श्री हनुमत तांडव स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है, जो भगवान श्री हनुमान की तांडव स्वरूप में की गई स्तुति है। इस स्तोत्र की रचना लोकेश्वर भट्ट नामक कवि ने की थी। इसमें हनुमान जी की महिमा, पराक्रम, भक्ति, बल, और भक्तों पर उनकी अपार कृपा का अत्यंत ओजस्वी और भक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है।
यह स्तोत्र न केवल भगवान हनुमान के विविध रूपों और गुणों का वर्णन करता है, बल्कि उनके द्वारा किए गए प्रमुख कार्यों जैसे — रामायण के प्रसंगों में रावण वध, लंका दहन, समुद्र पार करना, विभीषण से मैत्री और सीता माता की खोज जैसे कार्यों का भी स्मरण कराता है।
‘तांडव’ का अर्थ होता है उग्र और दिव्य नृत्य। इस स्तोत्र में हनुमान जी के तांडव रूप का वर्णन है, जिसमें वे न केवल बलशाली योद्धा के रूप में, बल्कि भक्तों की रक्षा करने वाले आराध्य के रूप में प्रकट होते हैं।
इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से मंगलवार या शनिवार को करने से बहुत शुभ फल प्राप्त होता है। यह शत्रु बाधा, भय, नकारात्मकता, मानसिक तनाव और आत्मविश्वास की कमी जैसे दोषों को दूर करता है। यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है जो शक्ति, साहस, बुद्धि और सफलता की कामना करते हैं।
श्री हनुमत तांडव स्तोत्र
श्री हनुमत तांडव स्तोत्र
वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।
रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥
भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं,
दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,
समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥ १ ॥
सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं
वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ
आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः॥ २ ॥
सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना,
भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ,
विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥ ३ ॥
सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः,
कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः
कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥ ४ ॥
प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,
फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,
सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥ ५ ॥
नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं
गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं
विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥ ६ ॥
रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं
दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्
सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥ ७ ॥
नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता
महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।
सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां
निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥ ८ ॥
इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः
कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न
शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥ ९ ॥
नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्॥ १० ॥
॥ इति श्री हनुमत तांडव स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री हनुमत तांडव स्तोत्र (हिंदी अनुवाद) (Shri Hanuman Tandava Stotram (Hindi Translation))
मैं उस श्री हनुमान को वंदन करता हूँ जो सिंदूर के समान लाल वर्ण वाले हैं,
लाल वस्त्र धारण किए हुए हैं,
लाल रंग की शोभा से युक्त हैं,
और जिनकी पूंछ भी रक्तवर्ण है — वे वानरों के स्वामी हैं।
मैं पवनपुत्र हनुमान का भजन करता हूँ,
जो श्रेष्ठ भक्तों के मन को आनंदित करने वाले हैं,
सूर्यरूप को निगलने वाले हैं,
और सभी भक्तों की रक्षा करने वाले हैं।
जो शुभ कार्यों को सिद्ध करते हैं,
विपरीत पक्ष के संकटों को दूर करते हैं,
समुद्र को पार करने वाले हैं,
और सिद्ध पुरुषों की कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं — उन्हें मैं नमस्कार करता हूँ॥ १ ॥
जिन्होंने शुभ कार्य हेतु संदेह रहित होकर मधुर वचन खाए,
तुम शीघ्र धैर्य को ग्रहण करो — ऐसा जो कोई कहे,
उसे कभी कोई भय नहीं होता।
ऐसा वचन वानरराज हनुमान से सुनकर,
वानरों के नायक रामदूत के शरणागत हुए॥ २ ॥
जो विशाल भुजाओं और नेत्रों वाले हैं,
जिनकी पूंछ की गुच्छियाँ शोभा देती हैं,
दोनों भुजाओं में उन्होंने अपने भाई (राम-लक्ष्मण) को धारण किया,
और उन्हें कोशल के अधिपति बना दिया।
वे कपीश्वर के समीप लक्ष्मण और सीता को स्थापित करने वाले हैं —
वे मुझे शीघ्र मंगल प्रदान करें॥ ३ ॥
जो उत्तम शब्दशास्त्रों में पारंगत हैं,
जिन्हें श्रीराम ने देखा,
कपीश्वर के भक्त सेवक के रूप में,
जो संपूर्ण नीति मार्ग को जानने वाले हैं।
लक्ष्मण के प्रति सराहना करते हुए,
दीर्घ भुजाओं से विभूषित,
कपीश्वर के मित्र बनकर,
अपने कार्य को सिद्ध करने वाले प्रभु बने॥ ४ ॥
जो अत्यंत वेग से चलने वाले हैं,
पर्वतों के अभिमान को नष्ट करने वाले हैं,
सर्पों की माता के गर्व और अहंकार का नाश करने वाले हैं।
विभीषण से मित्रता करने वाले,
जनकपुत्री के जन्मदाह को शांत करने वाले,
शुभ कार्य को सिद्ध करने वाले,
राक्षसों के विनाशक को मैं नमन करता हूँ॥ ५ ॥
मैं उस पुष्प-मालाधारी को नमन करता हूँ,
जो स्वर्णवर्ण धारण करते हैं,
गदा से युक्त हैं,
मुकुट और कुण्डल से सुसज्जित हैं।
जिनकी पूंछ की लपट लंका को जलाने वाली थी,
जो श्रेष्ठ नायक हैं,
विपक्ष के राक्षसों के वंश का संपूर्ण विनाश करने वाले हैं॥ ६ ॥
रघुवंश श्रेष्ठ के सेवक को मैं नमन करता हूँ,
जो लक्ष्मण को प्रिय हैं,
सूर्यवंश के भूषण के अंगूठी को दिखाने वाले हैं।
जनकनंदिनी के शोक और ताप को हरने वाले,
आघात करने वाले,
सूक्ष्म रूप धारण करने वाले,
दीर्घ रूप लेने वाले को मैं नमन करता हूँ॥ ७ ॥
हे पवनपुत्र! तुम्हारे द्वारा सूर्य के समान प्रकाशमान रूप में
बड़े सामर्थ्य से वह कार्य सिद्ध किया गया,
जिससे दो महान पुरुषों का कल्याण हुआ।
तुमने तारकासुर को नष्ट किया,
रघुवंशश्रेष्ठ राम ने जनकनंदिनी को बचाया,
बाली को मारा,
और फिर राक्षसराज रावण का वध किया॥ ८ ॥
जो मनुष्य इस स्तोत्र को मंगलवार के दिन श्रद्धा से पढ़े,
वह कपीश्वर के सेवक रूप में
सभी प्रकार की संपत्ति का भोग करता है।
वह सदैव वानरराज की कृपा दृष्टि का पात्र होता है,
और उसे कभी भी शत्रु से भय नहीं होता॥ ९ ॥
इस स्तोत्र का रचना कार्य
लोकेश्वर नामक भट्ट ने
“नेत्रांगनन्द” वर्ष के “अनंगवासर” तिथि को किया॥ १० ॥
॥ इति श्री हनुमत तांडव स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits)
- शत्रु भय और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा – यह स्तोत्र हनुमान जी के तांडव रूप का स्मरण कराता है जो राक्षसों, बाधाओं और सभी प्रकार के शत्रुओं का नाश करते हैं।
- धैर्य, साहस और आत्मबल की वृद्धि – इसका नियमित पाठ करने से मानसिक मजबूती, आत्मविश्वास और निर्भयता प्राप्त होती है।
- रोग, संकट, और शनि दोषों का निवारण – यह स्तोत्र विशेष रूप से शनि पीड़ा, बुरी दृष्टि और कालसर्प जैसे दोषों से मुक्ति दिलाता है।
- संकटमोचन कृपा प्राप्त होती है – जब जीवन में कोई कार्य बार-बार विफल हो, तो यह स्तोत्र कार्यसिद्धि प्रदान करता है।
- भक्ति, ज्ञान और नीति-बुद्धि की प्राप्ति – श्री हनुमान जी नीति, सेवा, और विवेक के प्रतीक हैं, यह स्तोत्र उनके इन्हीं गुणों को जागृत करता है।
पाठ विधि (Pāṭh Vidhi)
- प्रातःकाल या सायंकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अपने घर के मंदिर में या हनुमान जी के चित्र या मूर्ति के सामने आसन लगाकर बैठें।
- घी का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। श्री हनुमान जी को लाल फूल, गुड़-चना, या सिंदूर अर्पित करें।
- “ॐ श्री हनुमते नमः” का उच्चारण कर स्तोत्र पाठ आरंभ करें।
- स्तोत्र का पाठ शांत मन, स्पष्ट उच्चारण और श्रद्धा से करें।
- पाठ के अंत में हनुमान जी की आरती करें और “जय बजरंग बली” का जयकार करें।
जप या पाठ का श्रेष्ठ समय (Best Time for Recitation)
- ✅ विशेष दिन:
- मंगलवार (हनुमान जी का प्रिय दिन)
- शनिवार (शनि दोष से मुक्ति हेतु)
- ✅ समय:
- ब्राह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे) – श्रेष्ठ माना जाता है।
- सायंकाल (शाम 6 से 8 बजे) – भी उत्तम है।
- ✅ विशेष अवसरों पर:
- संकट के समय
- ग्रह बाधा या शनि पीड़ा में
- किसी कार्य की सिद्धि हेतु