“सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली और श्रद्धा से पूरित स्तोत्र है, जिसे स्वयं समस्त देवताओं ने माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए रचा था। इस स्तोत्र में देवी लक्ष्मी के विविध रूपों का अत्यंत सुंदर वर्णन मिलता है — वे पार्वती रूप में कैलाश पर, समुद्र-कन्या के रूप में क्षीर सागर में, महालक्ष्मी बनकर वैकुण्ठ में, राधिका रूप में गोलोक में, और तुलसी, गंगा, सावित्री, पद्मावती आदि रूपों में विविध लोकों और वनों में प्रतिष्ठित हैं।
यह स्तोत्र माता लक्ष्मी की सर्वव्यापकता, सर्वशक्तिमत्ता और सौंदर्य की महिमा को प्रकट करता है। इसमें बताया गया है कि माता लक्ष्मी के बिना यह समस्त संसार निस्तेज और निष्फल है। उनके कृपा से ही ऐश्वर्य, सौभाग्य, विद्या, पुत्र-पौत्र, प्रतिष्ठा, कीर्ति और मोक्ष की प्राप्ति संभव है।
यह स्तोत्र न केवल धन और सुख की प्राप्ति के लिए उपयुक्त है, बल्कि यह समस्त दुःखों और अभावों को दूर करने वाला और जीवन में आनंद व संतुलन लाने वाला भी है।
जो भक्त सच्ची श्रद्धा से इसका नित्य पाठ करता है, उसे माता लक्ष्मी की कृपा से सभी सांसारिक और आध्यात्मिक सफलताएँ प्राप्त होती हैं।
सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र
क्षमस्व भगवत्यंब क्षमा शीले परात्परे ।
शुद्ध सत्व स्वरूपेच कोपादि परि वर्जिते ॥
उपमे सर्व साध्वीनां देवीनां देव पूजिते ।
त्वया विना जगत्सर्वं मृत तुल्यंच निष्फलम् ॥
सर्व संपत्स्वरूपात्वं सर्वेषां सर्व रूपिणी ।
रासेश्वर्यधि देवीत्वं त्वत्कलाः सर्वयोषितः ॥
कैलासे पार्वती त्वंच क्षीरोधे सिंधु कन्यका ।
स्वर्गेच स्वर्ग लक्ष्मी स्त्वं मर्त्य लक्ष्मीश्च भूतले ॥
वैकुंठेच महालक्ष्मीः देवदेवी सरस्वती ।
गंगाच तुलसीत्वंच सावित्री ब्रह्म लोकतः ॥
कृष्ण प्राणाधि देवीत्वं गोलोके राधिका स्वयम् ।
रासे रासेश्वरी त्वंच बृंदा बृंदावने वने ॥
कृष्ण प्रिया त्वं भांडीरे चंद्रा चंदन कानने ।
विरजा चंपक वने शत शृंगेच सुंदरी ॥
पद्मावती पद्म वने मालती मालती वने ।
कुंद दंती कुंदवने सुशीला केतकी वने ॥
कदंब माला त्वं देवी कदंब काननेऽपिच ।
राजलक्ष्मीः राज गेहे गृहलक्ष्मी र्गृहे गृहे ॥
इत्युक्त्वा देवतास्सर्वाः मुनयो मनवस्तथा ।
रूरूदुर्न म्रवदनाः शुष्क कंठोष्ठ तालुकाः ॥
इति लक्ष्मी स्तवं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय सवैसर्वं लभेद्ध्रुवम् ॥
अभार्यो लभते भार्यां विनीतां सुसुतां सतीम् ।
सुशीलां सुंदरीं रम्यामति सुप्रियवादिनीम् ॥
पुत्र पौत्र वतीं शुद्धां कुलजां कोमलां वराम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं वैष्णवं चिरजीविनम् ॥
परमैश्वर्य युक्तंच विद्यावंतं यशस्विनम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भ्रष्ट श्रीर्लभेते श्रियम् ॥
हत बंधुर्लभेद्बंधुं धन भ्रष्टो धनं लभेत् ।
कीर्ति हीनो लभेत्कीर्तिं प्रतिष्ठांच लभेद्ध्रुवम् ॥
सर्व मंगलदं स्तोत्रं शोक संताप नाशनम् ।
हर्षानंदकरं शाश्वद्धर्म मोक्ष सुहृत्पदम् ॥
॥ इति सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र संपूर्णम् ॥
सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र (हिंदी अनुवाद) (Lakshmi Stotra written by Sarvadev (Hindi translation))
हे भगवती अंबे! क्षमा की मूर्ति, परम श्रेष्ठ,
शुद्ध सत्व स्वरूपिणी, क्रोध आदि से रहित – कृपया हमें क्षमा करें।
आप सभी साध्वी नारियों की उपमा हैं, देवताओं द्वारा पूजित देवी हैं,
आपके बिना यह समस्त संसार मृत समान व निष्फल है।
आप समस्त संपत्तियों की स्वरूपा हैं, सभी रूपों में व्याप्त हैं,
रासेश्वरी के रूप में दिव्य देवीत्व की अधिष्ठात्री हैं,
आपकी ही कलाएं समस्त स्त्रियों में व्याप्त हैं।
कैलाश में आप पार्वती हैं, क्षीर सागर में समुद्र कन्या,
स्वर्ग में आप स्वर्गलक्ष्मी हैं, और मृत्युलोक में आप पृथ्वी की लक्ष्मी हैं।
वैकुण्ठ में आप महालक्ष्मी हैं, देवताओं की देवी, सरस्वती हैं,
आप गंगा हैं, तुलसी हैं, और ब्रह्मलोक में सावित्री हैं।
आप कृष्ण की प्राणस्वरूपा देवी हैं, गोलोक में राधिका स्वयं हैं,
रास में आप रासेश्वरी हैं, वृंदावन वन में वृंदा हैं।
आप कृष्ण प्रिय हैं भांडीर वन में, चंद्रा हैं चंदन वन में,
विरजा हैं चंपक वन में, शतश्रृंग पर्वत पर सुंदरी हैं।
पद्मावती हैं कमल वन में, मालती हैं मालती वन में,
कुंददंती हैं कुंद वन में, सुशीला हैं केतकी वन में।
आप कदंबमाला हैं कदंब वन में,
राजलक्ष्मी हैं राजमहल में, और प्रत्येक गृह में गृहलक्ष्मी हैं।
यह कहकर सभी देवता, मुनि और मनु आदि
रुदन करने लगे – जिनके मुख म्लान थे, और कंठ, ओष्ठ व तालु सूख गए थे।
यह पुण्यशाली लक्ष्मी स्तोत्र, जो सभी देवताओं द्वारा रचित है –
जो व्यक्ति इसे प्रातःकाल उठकर पढ़ता है, वह निश्चित रूप से सब कुछ प्राप्त करता है।
जिसके पास पत्नी नहीं है, उसे विनम्र, सुंदर, सुपुत्रवती,
सुशील, सुंदर, रमणीय, और अत्यंत प्रिय वाणी वाली पत्नी प्राप्त होती है।
उसे पुत्र-पौत्रवती, शुद्ध, कुलीन, कोमल और श्रेष्ठ स्त्री प्राप्त होती है।
जो निःसंतान है, उसे वैष्णव और दीर्घायु पुत्र की प्राप्ति होती है।
वह परम ऐश्वर्य से युक्त, विद्वान, और यशस्वी होता है।
राज्य से च्युत व्यक्ति पुनः राज्य प्राप्त करता है, लक्ष्मीहीन व्यक्ति पुनः लक्ष्मी पाता है।
जिसका संबंधी नष्ट हो गया है, उसे संबंधी मिलते हैं,
धनहीन को धन मिलता है, कीर्तिहीन को कीर्ति प्राप्त होती है, और प्रतिष्ठा भी निश्चित रूप से मिलती है।
यह स्तोत्र सर्व मंगल देने वाला, शोक व संताप नाशक है।
यह हर्ष, आनंद, और शाश्वत धर्म, मोक्ष व कल्याणकारी पद की प्राप्ति कराता है।
॥ इस प्रकार सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
सर्वदेव कृत लक्ष्मी स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति:
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से जीवन में लक्ष्मी का वास होता है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं रहती। - विवाह और संतान सुख:
जिनकी अभी तक विवाह नहीं हुआ हो, उन्हें योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है। संतानहीनों को पुण्य संतान की प्राप्ति होती है। - गृह सुख और सौभाग्य:
गृहस्थ जीवन में प्रेम, सुख-शांति, समृद्धि और पारिवारिक सौहार्द बना रहता है। - कीर्ति, प्रतिष्ठा और राज्य प्राप्ति:
यह स्तोत्र व्यक्ति को समाज में सम्मान, प्रसिद्धि और खोई हुई प्रतिष्ठा या पद की पुनः प्राप्ति कराता है। - कष्ट, शोक व संताप से मुक्ति:
मानसिक तनाव, गरीबी, कलह और जीवन के दुखद अनुभवों से मुक्ति मिलती है। - धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति:
यह स्तोत्र धर्म, भक्ति, और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है, और भगवती लक्ष्मी की कृपा से चित्त में शांति और आनंद उत्पन्न होता है।
पाठ विधि (Vidhi – Method of Recitation):
- साफ-सुथरे स्थान पर स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- अपने सामने माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र रखें। दीपक जलाएं, अगरबत्ती लगाएं।
- लक्ष्मी माता को पुष्प, नैवेद्य, चावल, केसर, मिश्री आदि अर्पण करें।
- “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” बीज मंत्र का 11 बार जप करके स्तोत्र का पाठ प्रारंभ करें।
- स्तोत्र पाठ के बाद माता लक्ष्मी से मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।
- संभव हो तो शुक्रवार या शुक्ल पक्ष के किसी दिन आरंभ करके प्रतिदिन नियमित रूप से पाठ करें।
- अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।
पाठ / जाप का उपयुक्त समय (Best Time for Recitation):
प्रातःकाल – सूर्योदय से पहले या सूर्योदय के समय (ब्राह्ममुहूर्त में पाठ करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है)।
शुक्रवार – देवी लक्ष्मी का दिन होने के कारण विशेष फलदायी होता है।
दीपावली, अक्षय तृतीया, पूर्णिमा, या शरदपूर्णिमा – इन पर्वों पर स्तोत्र का पाठ विशेष शुभ फलदायक होता है।
शुक्ल पक्ष के किसी भी दिन से आरंभ करना शुभ रहता है।