साधना पंचकम स्तोत्रम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत सारगर्भित ग्रंथ है। यह ग्रंथ उनके जीवन के अंतिम चरण में लिखा गया था, जब उनके शिष्यों ने उनसे यह निवेदन किया कि वे साधना और आध्यात्मिक जीवन की राह पर एक संक्षिप्त मार्गदर्शक रचना करें। इसके उत्तर में उन्होंने यह पाँच श्लोकों का स्तोत्र लिखा, जिसे “उपदेश पंचरत्नम्” भी कहा जाता है, अर्थात् पाँच अनमोल उपदेशों के रत्न।
हर श्लोक में आठ-आठ उपदेश हैं, इस प्रकार कुल मिलाकर 40 उपदेश इस स्तोत्र में निहित हैं। ये उपदेश जीवन के विभिन्न आध्यात्मिक स्तरों पर साधक को दिशा दिखाते हैं। यह स्तोत्र केवल उपदेशों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह जीवन की साधना यात्रा का एक व्यवस्थित और क्रमिक मार्गदर्शन भी है। इसलिए इसे “सोपान आरोहण न्याय” का उदाहरण भी माना जाता है — जैसे किसी सीढ़ी के एक-एक पायदान पर चढ़कर हम शिखर की ओर बढ़ते हैं।
साधना पंचकं स्तोत्रम् हिंदी पाठ
Sadhana Panchakam Stotram in Hindi
वेदो नित्यमधीयतां तदुदितं कर्म स्वनुष्ठीयतां।
तेनेशस्य विधीयतामपचितिः काम्ये मनस्त्यज्यताम्।
पापौघः परिभूयतां भवसुखे दोषोऽनुसन्धीयताम्।
आत्मेच्छा व्यवसीयतां निजगृहात्तूर्णं विनिर्गम्यताम॥ १ ॥
सङ्गः सत्सु विधीयतां भगवतो भक्तिर्दृढाऽऽधीयताम।
शान्त्यादिः परिचीयतां दृढतरं कर्माशु सन्त्यज्यताम्।
सद्विद्वानुपसर्प्यतां प्रतिदिनं तत्पादुका सेव्यताम।
ब्रह्मैवाक्षरमर्थ्यतां श्रुतिशिरोवाक्यं समाकर्ण्यताम॥ २ ॥
वाक्यार्थश्च विचार्यतां श्रुतिशिरःपक्षः समाश्रीयताम।
दुस्तर्कात्सुविरम्यतां श्रुतिमतस्तर्कोऽनुसन्धीयताम्।
ब्रह्मैवस्मि विभाव्यतामहरहो गर्वः परित्यज्यताम।
देहोऽहम्मतिरुज्झ्यतां बुधजनैर्वादः परित्यज्यताम॥ ३ ॥
क्षुद्व्याधिश्च चिकित्स्यतां प्रतिदिनं भिक्षौषधं भुज्यताम।
स्वाद्वन्नं न च याच्यतां विधिवशात्प्राप्तेन सन्तुष्यताम्।
शीतोष्णादि विषह्यतां न तु वृथा वाक्यं समुच्चार्यताम्।
मौदासीन्यमभीप्स्यतां जनकृपानैष्ठुर्यमुत्सृज्यताम॥ ४ ॥
एकान्ते सुखमास्यतां परतरे चेतः समाधीयताम।
पूर्णात्मा सुसमीक्ष्यतां जगदिदं तद्बाधितं दृश्यताम्।
प्राक्कर्म प्रविलाप्यतां चितिबलान्नाप्युत्तरैश्श्लिष्यताम।
प्रारब्धं त्विह भुज्यतामथ परब्रह्मात्मना स्थीयताम॥ ५ ॥
फलश्रुति:
यः श्लोकपञ्चकमिदं पठते मनुष्यः।
सञ्चिन्तयत्यनुदिनं स्थिरतामुपेत्य।
तस्याशु संसृतिदवानलतीव्रघोर
तापः प्रशान्तिमुपयाति चितिप्रभावात्॥
॥ इति साधना पंचकं स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
साधना पंचकं स्तोत्रम् – हिंदी अनुवाद सहित (Sadhna Panchakan Stotram – with Hindi translation)
१.
नित्य नियम से वेदों का अध्ययन करें,
उनमें बताए गए कर्मों को ठीक प्रकार से निभाएँ।
उन्हीं कर्मों के द्वारा ईश्वर की पूजा करें,
कामनाओं से उत्पन्न कर्मों का त्याग करें।
पापों के समूह को तिरस्कृत करें,
संसार के सुख में छिपे दोषों को समझें।
स्वेच्छा को स्थिर और साधनायोग्य बनाएं,
अपने घर से शीघ्र बाहर निकलें (गृहत्याग करें)। ॥१॥
२.
सज्जनों की संगति करें,
भगवान की भक्ति दृढ़ रूप से अपनाएं।
शांति, संतोष जैसे गुणों को धारण करें,
संकल्पपूर्वक निष्काम कर्मों का त्याग करें।
सच्चे विद्वान गुरु की शरण जाएँ,
प्रति दिन उनके पादुका (चरणचिह्न) की सेवा करें।
ब्रह्म ही शाश्वत सत्य है – इसे जानें,
वेदवाक्यों को श्रद्धा से सुनें। ॥२॥
३.
वेदवाक्यों के अर्थों पर गहन विचार करें,
श्रुति (वेदों) के निर्णय को ही अपनाएं।
कठिन और कपटी तर्कों से दूर रहें,
श्रुति-सम्मत तर्कों का अनुसंधान करें।
“मैं ब्रह्म हूँ” – इस भाव का अभ्यास करें,
हर दिन अभिमान को त्यागें।
“मैं शरीर हूँ” – इस भावना को छोड़ें,
बुद्धिमान जनों से वाद-विवाद न करें। ॥३॥
४.
भूख या रोग होने पर चिकित्सा करें,
रोज़ भिक्षा को औषधि समझकर ग्रहण करें।
स्वादिष्ट भोजन की इच्छा न करें,
जो भी नियति से प्राप्त हो, उसी में संतोष करें।
ठंड, गर्मी आदि को सहन करें,
अनावश्यक वचन न बोलें।
उदासीनता की भावना रखें,
लोगों की कृपा या निर्दयता की अपेक्षा न करें। ॥४॥
५.
एकांत में सुखपूर्वक बैठें,
चित्त को परमात्मा में स्थिर करें।
पूर्ण आत्मा का ध्यान करें,
इस जगत को माया से बाधित (मिथ्या) रूप में देखें।
पूर्वजन्म के कर्मों का अंत करें,
चित्त की शक्ति से बाद के कर्मों से न जुड़ें।
जो प्रारब्ध (भोगने योग्य कर्म) है, उसे शांत चित्त से भोगें,
और परब्रह्म के रूप में स्थित हों। ॥५॥
फलश्रुति (श्लोक का फल)
जो मनुष्य इस पाँच श्लोकों वाले स्तोत्र का पाठ करता है,
और नित्य इसका चिंतन करता है,
वह स्थिरता को प्राप्त होकर
संसार रूपी अग्नि के भीषण ताप से
चित्त की शक्ति से शीघ्र ही मुक्ति पा जाता है।
॥ इति साधना पंचकं स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
साधना पंचकम स्तोत्रम् के लाभ (Benefits of Sadhana Panchakam Stotram):
- इच्छाओं से मुक्ति प्राप्त होती है।
- अहंकार भाव का क्षय होता है।
- चित्त की चंचलता समाप्त होती है।
- अज्ञान का नाश होता है।
किन्हें इसका पाठ करना चाहिए (Who should read it):
- जो व्यक्ति एक तनाव-मुक्त, चिंता-रहित और शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है, उसे इस स्तोत्र का नियमित पाठ अवश्य करना चाहिए।
- यह ग्रंथ विशेष रूप से उन साधकों के लिए उपयोगी है जो आत्मज्ञान और मोक्ष की दिशा में बढ़ना चाहते हैं।