“शिवशक्ति कृत श्रीगणाधीश स्तोत्र” एक दिव्य और दुर्लभ स्तोत्र है, जिसकी रचना स्वयं भगवान शिव और शक्ति (माता पार्वती) ने की है। यह स्तोत्र भगवान गणेश की स्तुति में रचा गया है, जो समस्त विघ्नों का नाश करने वाले, सिद्धि-बुद्धि के दाता और समृद्धि प्रदान करने वाले देव हैं।
इस स्तोत्र में भगवान गणेश के विभिन्न रूपों, उनके दिव्य गुणों, शक्तियों और स्वरूपों का सुंदर वर्णन किया गया है। इसे पढ़ते समय यह स्पष्ट होता है कि शिव और शक्ति ने कितनी भक्ति और श्रद्धा से अपने पुत्र श्रीगणेश की स्तुति की है। यह स्तोत्र ना केवल भक्तों के विघ्नों को दूर करता है, बल्कि भक्ति, शांति, समृद्धि, संतान-सुख और मोक्ष तक का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
विशेषता यह है कि इस स्तोत्र का महत्त्व स्वयं भगवान गणेश ने भी स्वीकार किया है और कहा है कि जो भक्त इसे श्रद्धा से पढ़ेगा या सुनेगा, उसे भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लाभ निश्चित रूप से प्राप्त होंगे।
शिवशक्ति कृत श्रीगणाधीश स्तोत्र
।। श्रीगणेशाय नमः ।।
।। श्रीशक्तिशिवावूचतुः ।।
नमस्ते गणनाथाय गणानां पतये नमः।
भक्तिप्रियाय देवेश भक्तेभ्यः सुखदायक॥ १
स्वानन्दवासिने तुभ्यं सिद्धिबुद्धिवराय च।
नाभिशेषाय देवाय ढुण्ढिराजाय ते नमः॥ २
वरदाभयहस्ताय नमः परशुधारिणे।
नमस्ते सृणिहस्ताय नाभिशेषाय ते नमः॥ ३
अनामयाय सर्वाय सर्वपूज्याय ते नमः।
सगुणाय नमस्तुभ्यं ब्रह्मणे निर्गुणाय च॥ ४
ब्रह्मभ्यो ब्रह्मदात्रे च गजानन नमोऽस्तु ते।
आदिपूज्याय ज्येष्ठाय ज्येष्ठराजाय ते नमः॥ ५
मात्रे पित्रे च सर्वेषां हेरम्बाय नमो नमः।
अनादये च विघ्नेश विघ्नकर्त्रे नमो नमः॥ ६
विघ्नहर्त्रे स्वभक्तानां लम्बोदर नमोऽस्तु ते।
त्वदीयभक्तियोगेन योगीशाः शान्तिमागताः॥ ७
किं स्तुवो योगरूपं तं प्रणमावश्च विघ्नपम्।
तेन तुष्टो भव स्वामिन्नित्युकत्वा तं प्रणेमतुः॥ ८
तावुत्थाप्य गणाधीश उवाच तौ महेश्वरौ।
भवत्कृतमिदं स्तोत्रं मम भक्तिविवर्धनम्॥ ९
भविष्यति च सौख्यस्य पठते शुण्वते प्रदम्।
भुक्तिमुक्तिप्रदं चैव पुत्रपौत्रादिकं तथा॥ १०
धनधान्यादिकं सर्वं लभते तेन निश्चितम्।
।। इति शिवशक्ति कृत श्रीगणाधीश स्तोत्र संपूर्णम् ।।
शिवशक्ति कृत श्रीगणाधीश स्तोत्र (हिंदी अनुवाद)
।। श्रीगणेशाय नमः ।।
।। श्रीशक्तिशिवावूचतुः ।।
हे गणनाथ! आपको नमस्कार है, जो समस्त गणों के स्वामी हैं।
आप भक्ति को प्रिय मानते हैं, हे देवेश! और अपने भक्तों को सुख प्रदान करते हैं॥ १
जो स्वानंद धाम में निवास करते हैं, सिद्धि और बुद्धि को देने वाले हैं।
नाभिशेष रूप वाले देव, हे ढुण्ढिराज! आपको नमस्कार है॥ २
वर और अभय देने वाले हाथ वाले प्रभु को नमस्कार है, जो परशु धारण करते हैं।
फावड़ा (सृणि) हाथ में लिए हुए, नाभिशेष रूप में स्थित आपको प्रणाम॥ ३
जो समस्त रोगों से रहित हैं, और सबके द्वारा पूजित हैं — आपको नमस्कार।
सगुण और निर्गुण — दोनों ही रूपों वाले ब्रह्मस्वरूप को नमन॥ ४
ब्रह्मस्वरूपों और ब्रह्मदान करने वाले गजानन! आपको नमस्कार।
आदिपूज्य, ज्येष्ठ, और श्रेष्ठ गणराज को प्रणाम है॥ ५
सभी के माता-पिता स्वरूप, हे हेरम्ब! आपको बार-बार नमन।
अनादिकाल से स्थित विघ्नेश और विघ्नों के कर्ता को प्रणाम॥ ६
जो अपने भक्तों के विघ्नों को हर लेते हैं — हे लम्बोदर! आपको नमस्कार है।
आपकी भक्ति के योग से योगीजन शांति को प्राप्त होते हैं॥ ७
हम योगरूप वाले उस विघ्नहर्ता की स्तुति करें और उसे प्रणाम करें।
हे स्वामी! प्रसन्न हो जाइए — हम सदा आपको प्रणाम करते हैं॥ ८
तब गणाधीश ने उन दोनों महेश्वर (शिव-शक्ति) को उठाकर कहा —
“आपके द्वारा रचित यह स्तोत्र मेरी भक्ति को बढ़ाने वाला है॥” ९
“जो भी इसका पाठ या श्रवण करेगा, उसे सुख की प्राप्ति होगी।
यह भोग और मोक्ष देगा, और संतान तथा पौत्रादि सुख भी मिलेगा॥” १०
धन, अन्न और सभी प्रकार की संपत्ति निश्चित ही प्राप्त होगी।
।। इस प्रकार शिवशक्ति कृत श्रीगणाधीश स्तोत्र संपूर्ण हुआ ।।
लाभ (Benefits):
1. विघ्नों का नाश:
यह स्तोत्र पढ़ने से जीवन के सभी प्रकार के विघ्न, बाधाएँ और रुकावटें दूर होती हैं।
2. सिद्धि और बुद्धि की प्राप्ति:
भगवान गणेश को सिद्धि और बुद्धि का दाता माना गया है। इस स्तोत्र का पाठ विद्यार्थियों, प्रतियोगी परीक्षा देने वालों, और रचनात्मक कार्यों में लगे लोगों को विशेष लाभ देता है।
3. भौतिक सुख-संपत्ति:
पाठ करने वाले को धन, धान्य, पुत्र-पौत्रादि सुख, और समृद्ध जीवन प्राप्त होता है।
4. भक्ति एवं शांति की प्राप्ति:
यह स्तोत्र भगवान गणेश के प्रति भक्ति को बढ़ाता है और मानसिक शांति प्रदान करता है।
5. मोक्ष का मार्ग प्रशस्त:
जो व्यक्ति नियमित श्रद्धा से इसका पाठ करता है, उसे भोग और मोक्ष दोनों का लाभ मिलता है।
पाठ विधि (Paath Vidhi):
1. स्थान:
शुद्ध और शांत स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
2. समय:
प्रातःकाल स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। बुधवार या चतुर्थी को विशेष फलदायी माना गया है।
3. पूजन सामग्री:
भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, दूर्वा (दूब), मोदक/लड्डू अर्पण करें।
4. संकल्प:
अपने मन की इच्छा या उद्देश्य को ध्यान में रखकर भगवान को प्रणाम करें।
5. पाठ विधि:
संपूर्ण स्तोत्र को एकाग्रता और श्रद्धा के साथ पढ़ें। अंत में भगवान गणेश से प्रार्थना करें।
6. संख्या:
आप प्रतिदिन 1 बार, अथवा 11 बार का पाठ कर सकते हैं। विशेष अनुष्ठान में 21 या 108 बार भी पाठ किया जाता है।
जाप का उत्तम समय (Best Time for Recitation):
- प्रातःकाल (सुबह 5 से 7 बजे): सर्वोत्तम माना गया है, जब मन शांत और वातावरण पवित्र होता है।
- गणेश चतुर्थी, बुधवार, संकष्टी चतुर्थी: इन दिनों में पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
- चंद्रमा उदय के समय (संकष्टी व्रत पर): यह समय भी विशेष प्रभावकारी होता है।





















































