श्री भगवती देवी स्तोत्रम् एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है जो देवी दुर्गा, शक्ति और भगवती को समर्पित है। माँ भगवती ममतामयी होती हैं, वे सदैव अपने भक्तों पर करुणा बरसाती हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चों पर स्नेह रखती है, वैसे ही भगवती देवी भी अपने शरणागत भक्तों को आशीर्वाद देती हैं।
श्री भगवती स्तोत्र व्यासजी द्वारा रचित है और यह दुर्गा सप्तशती का ही एक भाग है। जो व्यक्ति संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते, वे केवल श्री भगवती स्तोत्र का नियमित पाठ करें तो उन्हें सप्तशती के समान फल प्राप्त होता है।
यदि आप जीवन की रुकावटों, शत्रु बाधाओं, कर्ज, करियर, शिक्षा, मानसिक तनाव या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ अवश्य करें। जब जीवन में उत्तर नहीं मिल रहे हों, समस्याएँ उलझी हों, तो यह स्तोत्र चमत्कारी रूप से रक्षा करता है।
जो व्यक्ति आर्थिक कष्ट से जूझ रहे हों, जिनके धन का अपव्यय हो रहा हो या व्यापार में हानि हो रही हो, उनके लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत फलदायक है। इससे धन के नए मार्ग खुलते हैं और धन-संचय बढ़ता है।
शत्रुओं से मुक्ति, विवादों में विजय, न्यायालय के मुकदमों में सफलता, कर्ज से मुक्ति, और गृहस्थ जीवन में शांति के लिए यह स्तोत्र अत्यंत चमत्कारी माना जाता है। यदि नियमित नवरात्रि के पश्चात भी इसका पाठ किया जाए, तो जीवन में कोई विघ्न नहीं आता और सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
श्री भगवती देवी स्तोत्रम्
जय भगवति देवी नमो वरदे,
जय पापविनाशिनी बहुफलदे।
जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे,
प्रणमामि तु देवी नरार्तिहरे।।1।।
जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे,
जय पावकभूषितवक्त्रवरे।
जय भैरवदेहनिलीन हरे,
जय अंधकदैत्यविशोषकरे।।2।।
जय महिषविमर्दिनि शूलकरे,
जय लोकसमस्तकपापहरे।
जय भगवति देवी नमो वरदे,
जय पापविनाशिनी बहुफलदे।।3।।
जय षण्मुखसायुधईशनुते,
जय सागरगामिनि शम्भुनुते।
जय दुःखदरिद्रविनाशकरे,
जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे।।4।।
जय भगवति देवी नमो वरदे,
जय पापविनाशिनी बहुफलदे।
जय देवि समस्तशरीरधरे,
जय नाकविदर्शिनि दुःखहरे।।5।।
जय व्याधिविनाशिनि मोक्षकरे,
जय वांछितदायिनि सिद्धिवरे।
जय भगवति देवी नमो वरदे,
जय पापविनाशिनी बहुफलदे।।6।।
एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।
ग्रहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा।।7।।
।। इति श्री भगवती देवी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
श्री भगवती देवी स्तोत्रम् (हिंदी अनुवाद) (Shri Bhagwati Devi Stotram (Hindi translation))
हे भगवती देवी! आपको नमस्कार है, आप वर देने वाली हैं।
आप पापों का नाश करने वाली और अनेकों फलों को देने वाली हैं।
आप शुम्भ-निशुम्भ राक्षसों के सिर धारण करने वाली हैं,
हे देवी! आप मानवों के दुःखों का हरण करने वाली हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
।।1।।
आपके नेत्र चन्द्रमा और सूर्य के समान तेजस्वी हैं,
आपके मुख पर अग्नि के समान दीप्ति है।
आप भैरव के शरीर में समाहित होकर उनके साथ रहती हैं,
आप अंधक नामक दैत्य का नाश करने वाली हैं।
।।2।।
आप महिषासुर का संहार करने वाली हैं, आपके हाथों में शूल (त्रिशूल) है,
आप समस्त लोकों के पापों का नाश करती हैं।
हे भगवती देवी! आपको नमस्कार है, आप वर देने वाली हैं।
आप पापों का विनाश कर अनेक प्रकार के फल देने वाली हैं।
।।3।।
आप षण्मुख (कार्तिकेय) और अन्य आयुधधारी देवताओं से स्तुति प्राप्त करती हैं,
आप समुद्र की ओर जाने वाली (गंगा या शक्ति) हैं, और भगवान शंकर द्वारा वंदित हैं।
आप दुःख और दरिद्रता का नाश करती हैं,
आप पुत्र और परिवार की वृद्धि करने वाली देवी हैं।
।।4।।
हे भगवती देवी! आपको नमस्कार है, आप वर देने वाली हैं।
आप पापों का विनाश करती हैं और अनेक प्रकार के फल देती हैं।
आप सम्पूर्ण शरीरों में विद्यमान हैं,
आप स्वर्गलोक तक का दर्शन कराने वाली तथा दुःख हरने वाली हैं।
।।5।।
आप रोगों का नाश करती हैं और मोक्ष प्रदान करती हैं,
आप इच्छित वस्तुओं को देने वाली तथा सिद्धियों को देने वाली हैं।
हे भगवती देवी! आपको नमस्कार है, आप वर देने वाली हैं।
आप पापों का नाश करती हैं और अनेक फलों को देने वाली हैं।
।।6।।
जो कोई भी यह स्तोत्र, जो कि व्यास जी द्वारा रचित है,
नियमपूर्वक और शुद्ध हृदय से पढ़ता है,
ग्रह बाधा में भी भगवती देवी उससे प्रसन्न रहती हैं और उसे सदा कृपा प्रदान करती हैं।
।।7।।
।। इति श्री भगवती देवी स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ।।
श्री भगवती स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Bhagwati Stotra):
- धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं और समृद्धि में वृद्धि होती है।
- शत्रु बाधा दूर होती है और मुकदमों में विजय प्राप्त होती है।
- कर्ज से मुक्ति मिलती है और आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
किन्हें इसका पाठ करना चाहिए (Who should read it):
- जो व्यक्ति कर्ज में डूबे हों, उन्हें इसका नियमित पाठ करना चाहिए।
- जो जीवन में शांति, शक्ति और समृद्धि की कामना रखते हैं, वे भी इसका नित्य पाठ करें।