श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र भगवान विष्णु के द्वादश (12) दिव्य नामों का स्तुति स्तोत्र है। यह स्तोत्र स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को बताया गया है, जिसमें उन्होंने कहा कि इन 12 नामों का स्मरण करने मात्र से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और अक्षय पुण्य प्राप्त करता है।
इस स्तोत्र का जप प्राचीन काल से वैष्णव परंपरा में पूजा के दौरान विशेष रूप से “नैवेद्य” (भोग अर्पण) के समय किया जाता है, जिससे भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद की प्राप्ति की जा सके। यह स्तोत्र भक्त को भक्ति, सद्बुद्धि, धन-वैभव, और शांति प्रदान करता है।
श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र
Shri Krishna Dwadashnaam Stotra
श्रीकृष्ण उवाच –
किं ते नामसहस्रेण विज्ञातेन तवाऽर्जुन।
तानि नामानि विज्ञाय नरः पापैः प्रमुच्यते ॥ 1 ॥
प्रथमं तु हरिं विन्द्याद् द्वितीयं केशवं तथा।
तृतीयं पद्मनाभं च चतुर्थं वामनं स्मरेत् ॥ 2 ॥
पञ्चमं वेदगर्भं तु षष्ठं च मधुसूदनम्।
सप्तमं वासुदेवं च वराहं चाऽष्टमं तथा ॥ 3 ॥
नवमं पुण्डरीकाक्षं दशमं तु जनार्दनम्।
कृष्णमेकादशं विन्द्याद् द्वादशं श्रीधरं तथा ॥ 4 ॥
एतानि द्वादश नामानि विष्णुप्रोक्ते विधीयते।
सायं-प्रातः पठेन्नित्यं तस्य पुण्यफलं शृणु ॥ 5 ॥
चान्द्रायण-सहस्राणि कन्यादानशतानि च।
अश्वमेधसहस्राणि फलं प्राप्नोत्यसंशयः ॥ 6 ॥
अमायां पौर्णमास्यां च द्वादश्यां तु विशेषतः।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ 7 ॥
॥ इति श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र — हिंदी अनुवाद
Shri Krishna Dwadashnaam Stotra – Hindi Meaning
श्रीकृष्ण बोले –
हे अर्जुन! जब तुम इन बारह नामों को जान लोगे,
तो हजार नाम जानने की आवश्यकता नहीं रहेगी,
इन नामों के स्मरण मात्र से मनुष्य पापों से मुक्त हो जाता है। ॥1॥
पहले “हरि” नाम का स्मरण करे, फिर “केशव” का,
तीसरे “पद्मनाभ”, और चौथे “वामन” नाम को याद करे। ॥2॥
पाँचवे “वेदगर्भ”, छठे “मधुसूदन”,
सातवें “वासुदेव”, और आठवें “वराह” का स्मरण करे। ॥3॥
नवां नाम “पुण्डरीकाक्ष”, दसवां “जनार्दन”,
ग्यारहवां “कृष्ण”, और बारहवां “श्रीधर” जानना चाहिए। ॥4॥
ये बारह नाम स्वयं भगवान विष्णु द्वारा कहे गए हैं,
जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः और सायं इनका पाठ करता है,
वह उत्तम पुण्यफल प्राप्त करता है — सुनो मैं बताता हूँ। ॥5॥
वह हजार चान्द्रायण व्रतों का फल, सौ कन्याओं के दान का फल,
और हजार अश्वमेध यज्ञों के फल को प्राप्त करता है — इसमें कोई संदेह नहीं। ॥6॥
विशेष रूप से अमावस्या, पूर्णिमा और द्वादशी तिथि को,
जो प्रातःकाल इन नामों का पाठ करता है,
वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। ॥7॥
॥ इस प्रकार श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
पाठ विधि (Lesson method)
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाकर बैठें।
- पहले मन में श्रद्धा एवं भाव से भगवान को प्रणाम करें।
- फिर श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद भगवान को नैवेद्य (भोग) अर्पण करें और प्रार्थना करें।
विशेष रूप से अमावस्या, पूर्णिमा, द्वादशी तिथि तथा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन इसका पाठ अत्यंत फलदायक होता है।
श्रीकृष्ण द्वादशनाम स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Krishna Dwadashnam Stotra):
- यह स्तोत्र पापों का नाश करता है और पुण्य फल प्रदान करता है।
- चित्त को शांति मिलती है और मन एकाग्र होता है।
- धन, सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
- जीवन के कष्ट, भय और तनाव समाप्त होते हैं।
- भक्ति मार्ग पर दृढ़ता आती है और श्रीकृष्ण का विशेष सान्निध्य मिलता है।
- भोजन से पूर्व नैवेद्य रूप में इसका पाठ करने से अन्न शुद्ध और ऊर्जा से युक्त हो जाता है।
किन्हें करना चाहिए यह पाठ (Who should do this lesson):
- वे लोग जो जीवन में आनंद, सुख और संतुलन की पुनः प्राप्ति चाहते हैं।
- जिनके जीवन में धन की कमी, तनाव या निराशा हो।
- वे जो श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर जीवन में सुधार लाना चाहते हों।
- प्रतिदिन पूजा करने वाले भक्त इसे अपने नैवेद्य कर्म में शामिल करें।