“श्रीकृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम्” एक अद्भुत भक्ति स्तोत्र है जिसमें भक्त अपने मन के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करता है। यह स्तोत्र वैदिक पूजा के उन तत्वों को समाहित करता है जिन्हें शुद्ध भावनाओं के साथ केवल “मन” द्वारा अर्पित किया जाता है — जैसे पाद्य (पैर धोना), अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, तिलक, धूप-दीप, नैवेद्य, आरती, पुष्पांजलि और नमस्कार आदि।
यह स्तोत्र यह दर्शाता है कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए बाहरी साधनों की आवश्यकता नहीं होती — केवल श्रद्धा, समर्पण और प्रेम ही सबसे बड़ा पूजन है। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त भगवान श्रीकृष्ण को हृदय के कमल में विराजमान कर उनके सभी अंगों की मानसिक पूजा करता है, उन्हें स्नान कराता है, वस्त्र पहनाता है, भोजन अर्पित करता है और अंत में पुष्प अर्पित कर नमस्कार करता है।
यह स्तोत्र न केवल भावनात्मक रूप से भक्त को भगवान से जोड़ता है, बल्कि यह यह भी सिखाता है कि मानसिक पूजा भी उतनी ही प्रभावशाली और फलदायी हो सकती है जितनी की बाह्य पूजा।
महत्व
इस स्तोत्र का नियमित पाठ मन को शुद्ध करता है, एकाग्रता बढ़ाता है, और श्रीकृष्ण की कृपा को आकर्षित करता है। विशेष रूप से ब्रह्ममुहूर्त (प्रातःकाल) में शांत वातावरण में इसका पाठ अत्यंत शुभ और फलदायी माना गया है।
यह स्तोत्र उन भक्तों के लिए विशेष उपयुक्त है जो समय, साधन या शारीरिक असमर्थता के कारण पूर्ण वैदिक पूजन नहीं कर पाते, परंतु अपने हृदय में श्रीकृष्ण की पूजा करना चाहते हैं।
भावार्थ:
“जहाँ बाह्य पूजा संभव नहीं, वहाँ मानसिक पूजा ही सर्वश्रेष्ठ साधन है। और जब वह श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित हो, तो उसका फल निश्चित ही अद्वितीय होता है।”
श्रीकृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम्
Sri Krishna Manasa Puja Stotram
हृदम्भोजे कृष्णः सजल जलद श्यामल तनुः,
सरोजाक्षः स्रग्वी मकुट कटकाद्याभरणवान्।
शरद्राकानाथ प्रतिम वदनः श्रीमुरलिकां,
वहन् ध्येयो गोपीगण परिवृतः कुङ्कुमचितः ॥ 1 ॥
पयोम्भोधेर्द्वीपान्मम हृदयमायाहि भगवन्,
मणिव्रात भ्राजत् कनक वर पीठं भज हरे।
सुचिह्नौ ते पादौ यदुकुलज नेनेज्मि सुजलैः,
गृहाणेदं दूर्वा दल जलवदर्घ्यं मुररिपो ॥ 2 ॥
त्वमाचाम उपेन्द्र त्रिदश सरिदम्बोऽतिशिशिरं,
भजस्वेमं पञ्चामृत रचितमाप्लावमघहन्।
द्युनद्याः कालिन्द्या अपि कनक कुम्भस्थितमिदं,
जलं तेन स्नानं कुरु कुरु कुरुष्व आचमनकम् ॥ 3 ॥
तटिद्वर्णे वस्त्रे भज विजय कान्ता धिहरण,
प्रलम्बारि भ्रातः मृदुलमुपवीतं कुरु गले।
ललाटे पाटीरं मृगमद युतं धारय हरे,
गृहाणेदं माल्यं शतदल तुलस्यादि रचितम् ॥ 4 ॥
दशाङ्गं धूपं सद्वरद चरणाग्रे अर्पितमिदं,
मुखं दीपेन इन्दु प्रभ विरजसं देव कलये।
इमौ पाणी वाणीपति नुत सुकर्पूर रजसा,
विशोध्याग्रे दत्तं सलिलमिदमाचाम नृहरे ॥ 5 ॥
सदा तृप्तं अन्नं षड्रसवद अखिल व्यञ्जन युतं,
सुवर्णामात्रे गोघृत चषक युक्ते स्थितमिदम्।
यशोदा सूनो तत् परमदयया अशान सखिभिः,
प्रसादं वाञ्छद्भिः सह तदनु नीरं पिब विभो ॥ 6 ॥
सचूर्णं ताम्बूलं मुखशुचिकरं भक्षय हरे,
फलं स्वादु प्रीत्या परिमलवद आस्वादय चिरम्।
सपर्या पर्याप्त्यै कनकमणिजातं स्थितमिदं,
प्रदीपैः आरार्तिं जलधितनया श्लिष्ट रचये ॥ 7 ॥
विजातीयैः पुष्पैः अतिसुरभिभिः बिल्व तुलसी–
युतैश्च इमं पुष्पाञ्जलिं अजित ते मूर्ध्नि निदधे।
तव प्रादक्षिण्य क्रमणं अघविद्ध्वंसी रचितं,
चतुर्वारं विष्णो जनिपथ गतिश्रान्तिद विभो ॥ 8 ॥
नमस्कारो अष्टाङ्गः सकलदुरित ध्वंसनपटुः,
कृतं नृत्यं गीतं स्तुतिरपि रमाकान्त सततम्।
तव प्रीत्यै भूयात् अहम् अपि च दासस्तव विभो,
कृतं छिद्रं पूर्णं कुरु कुरु नमस्तेऽस्तु भगवन् ॥ 9 ॥
सदा सेव्यः कृष्णः सजल घन नीलः करतले,
दधानो दध्यान्नं तदनु नवनीतं मुरलिकाम्।
कदाचित् कान्तानां कुचकलश पत्रालि रचना–
समासक्तः स्निग्धैः सह शिशु विहारं विरचयन् ॥ 10 ॥
मणिकर्णीच्छया जातमिदं मानस पूजनम्।
यः कुर्वीतोषसि प्राज्ञः तस्य कृष्णः प्रसीदति ॥ 11 ॥
॥ इति श्रीकृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
श्रीकृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् (हिंदी अनुवाद)
मेरे हृदय रूपी कमल में जल-मेघ के समान श्याम वर्ण वाले श्रीकृष्ण विराजमान हों,
कमल के समान नेत्रों वाले, फूलों की माला, मुकुट और कंगन आदि से सुशोभित हों।
शरद पूर्णिमा के चंद्रमा जैसे मुख वाले श्रीकृष्ण, बांसुरी धारण किए हुए,
गोपियों से घिरे, और कुमकुम से रंजित शरीर वाले ध्यान में आएं ॥ 1 ॥
हे भगवान! क्षीर सागर के द्वीप से प्रकट होकर मेरे हृदय में पधारिए।
आप सोने के सिंहासन पर रत्नों से शोभायमान होकर विराजमान हों।
हे यदुवंशी! आपके दोनों चरणों को मैं पवित्र जल से स्नान कराता हूँ,
आप इस दूर्वा और जल से बने अर्घ्य को स्वीकार कीजिए, हे मुरद्वेषी ॥ 2 ॥
हे उपेन्द्र! यह त्रिदेवों की पवित्र गंगा जल से निर्मित अति शीतल आचमन है,
आप इसे स्वीकार कर, पंचामृत से स्नान करें, हे पापों का नाश करने वाले।
यह यमुना का जल, स्वर्ण कलश में रखा है,
इससे स्नान कीजिए और आचमन करें ॥ 3 ॥
हे विजयश्री को प्राप्त करने वाले! बिजली के समान वर्ण वाले वस्त्र धारण कीजिए,
हे प्रलंबासुर के संहारक! अपने गले में कोमल यज्ञोपवीत धारण कीजिए।
हे हरि! अपने ललाट पर चंदन और कस्तूरी से बना तिलक धारण कीजिए,
यह कमल और तुलसी आदि से बनी माला ग्रहण कीजिए ॥ 4 ॥
हे वरदाता! यह दस प्रकार की सुगंधित धूप आपके चरणों में अर्पित है,
आपके मुख की कान्ति चंद्रमा के समान है, वह दीप से प्रकाशित हो।
हे नृहरि! ये दोनों हाथ, ब्रह्मा द्वारा स्तुत की गई कपूरयुक्त सुगंध से पवित्र हों,
और यह जल आचमन हेतु स्वीकार करें ॥ 5 ॥
हे सदा संतुष्ट रहने वाले! यह छह रसों से युक्त सभी प्रकार के व्यंजन वाला भोजन,
स्वर्ण पात्र में गोघृत (गाय का घी) के साथ रखा है।
हे यशोदा के पुत्र! कृपा कर इस प्रसाद को गोप-सखाओं के साथ स्वीकार करें,
जो आपकी कृपा पाने के इच्छुक हैं, वे भी इसे प्राप्त करें ॥ 6 ॥
हे हरि! यह सुपारी, चूर्ण और तांबूल मुख शुद्ध करने वाला है, कृपया इसका सेवन करें।
यह मीठा फल और सुगंधित रस भी प्रेमपूर्वक चिरकाल तक स्वीकार करें।
यह सुवर्ण और रत्नों से बना कलश आरती हेतु रखा गया है,
जल की पुत्री (यमुना) के द्वारा आरती अर्पित की जाती है ॥ 7 ॥
हे अजित! ये अतिसुगंधित फूल, बिल्वपत्र और तुलसी के साथ,
यह पुष्पांजलि आपके सिर पर अर्पित की जाती है।
हे विष्णु! चार बार आपकी परिक्रमा की जाती है,
यह पापों को नष्ट करने वाली और जीवन की थकावट को हरने वाली है ॥ 8 ॥
हे लक्ष्मीपते! यह अष्टांग नमस्कार सभी पापों को हरने वाला है,
नृत्य, गीत और स्तुति आपकी सेवा में सदैव अर्पित है।
हे प्रभो! यह सब आपकी प्रसन्नता के लिए है,
मैं आपका सेवक हूँ, कोई भी त्रुटि हो तो उसे क्षमा कर पूर्ण कीजिए ॥ 9 ॥
हे कृष्ण! जो सजल मेघ के समान नीलवर्ण के हैं, सदैव पूजनीय हैं,
अपने हाथ में दही-भात, फिर नवनीत और बांसुरी धारण किए हैं।
कभी-कभी वे गोपियों के साथ,
स्तनों के कमल रूपी पत्तों की रचना में लीन होकर बाल क्रीड़ा करते हैं ॥ 10 ॥
यह मानस पूजा मणिकर्णिका तीर्थ के प्रभाव से उत्पन्न है,
जो कोई बुद्धिमान व्यक्ति इस पूजा को प्रातः करता है, उस पर श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं ॥ 11 ॥
॥ इति श्रीकृष्ण मानस पूजा स्तोत्रम् हिंदी अनुवाद समाप्त ॥
लाभ (Benefits):
- मानसिक शांति और एकाग्रता:
यह स्तोत्र मन को शांत कर एकाग्र करता है और ध्यान की शक्ति को बढ़ाता है। - शुद्ध भक्ति और प्रेम का जागरण:
इसमें की गई पूजा केवल हृदय और भाव से की जाती है, जिससे परम प्रेम और भक्ति की अनुभूति होती है। - श्रीकृष्ण की विशेष कृपा:
भगवान श्रीकृष्ण मन की भावना को सर्वोपरि मानते हैं, इसलिए यह स्तोत्र उन्हें अत्यंत प्रिय है। - बिना सामग्रियों के भी संपूर्ण पूजन का पुण्य:
यदि साधक के पास पूजन-सामग्री न हो, तो भी इस स्तोत्र द्वारा वही पुण्य प्राप्त होता है जो विधिवत पूजन से मिलता है। - कर्मबंधनों से मुक्ति:
मन से की गई निष्काम सेवा और पूजा साधक को पापों से मुक्त करती है और मोक्ष के पथ पर अग्रसर करती है।
विधि (Method of Chanting):
- स्थान और समय का चयन करें:
प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (4–6 AM) सबसे उपयुक्त है। एक शांत और पवित्र स्थान चुनें। - स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें।
श्रीकृष्ण का चित्र, प्रतिमा या केवल उनके स्मरण के साथ पूजन प्रारंभ करें। - भगवान को ध्यान में बिठाएं:
हृदय-कमल में श्रीकृष्ण को विराजमान मानें और प्रत्येक श्लोक को श्रद्धा व भाव से पढ़ते जाएं। - पूजन की भावना रखें:
हर श्लोक में वर्णित वस्तु जैसे स्नान, वस्त्र, भोजन, पुष्प आदि को मानसिक रूप से भगवान को अर्पित करें। - अंत में प्रार्थना करें:
भगवान से प्रार्थना करें कि वे इस मानसिक पूजा को स्वीकार करें और अपने भक्त पर कृपा बनाए रखें।
जाप समय (Recommended Chanting Time):
- प्रमुख समय:
- प्रातः ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे): अत्यंत शुभ व शांत समय
- संध्याकाल (शाम 6 से 7 बजे): ध्यान के लिए उपयुक्त
- विशेष पर्वों पर: जन्माष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा, या किसी मनोकामना पूर्ति हेतु विशेष तिथि
- जप संख्या:
- प्रतिदिन 1 बार पूरे भाव से पढ़ें।
- विशेष कामना हेतु: 11 दिन तक प्रतिदिन 3 बार पाठ करें।