शिव शंकर स्तोत्र एक अत्यंत मार्मिक और प्रभावशाली स्तुति है, जिसमें भक्त भगवान शिव से अपने पाप, कष्ट, मोह और सांसारिक बंधनों से मुक्ति की प्रार्थना करता है। यह स्तोत्र भक्ति, विनम्रता और आत्मसमर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें “हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम्” की पुनरावृत्ति से गहन भावनात्मक शक्ति उत्पन्न होती है।
इस स्तोत्र में भक्त अपनी दुर्बुद्धि, सांसारिक मोह, भय, पाप, मृत्यु और जन्म-जन्मांतर की पीड़ा से मुक्ति हेतु शिव से विनती करता है। यह स्तोत्र यह बताता है कि जब जीवन के सभी सहारे छूट जाते हैं, तब केवल शिव ही अंतिम आश्रय होते हैं।
विशेषताएं:
- प्रत्येक श्लोक के अंत में दोहराया गया “हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम्” मंत्र शिव से समस्त दुःखों और पापों के विनाश की प्रार्थना है।
- यह स्तोत्र श्रद्धा, करुणा और आत्मबोध का संदेश देता है।
- इसका पाठ मन को शुद्ध करता है और शिवभक्ति को गहरा बनाता है।
कब पढ़ें:
- इसे प्रातःकाल, प्रदोष व्रत, सोमवार, या महाशिवरात्रि पर विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
- संकट और मानसिक अशांति के समय भी यह स्तोत्र बहुत प्रभावी है।
“शिव शंकर स्तोत्र” शिव की कृपा पाने और जीवन के समस्त कष्टों से छुटकारा पाने का एक दिव्य माध्यम है। यह न केवल एक स्तोत्र है, बल्कि आत्मा की पुकार है जो शिव की शरण में शांति खोजती है।
शिव शंकर स्तोत्रं (Shiva Shankara Stotram)
अतिभीषणकटुभाषणयमकिंकरपटली
कृतताडनपरिपीडनमरणागतसमये
उमया सह मम चेतसि यमशासन निवसन्
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ १ ॥
असदिन्द्रियविषयोदयसुखसात्कृतसुकृतेः
परदूषणपरिमोक्षण कृतपातकविकृतेः
शमनाननभवकानननिरतेर्भव शरणं हर शंकर
शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ २ ॥
विषयाभिधबडिशायुधपिशितायितसुखतो
मकरायितगतिसंसृतिकृतसाहसविपदम्
परमालय परिपालय परितापितमनिशं हर
शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ३ ॥
दयिता मम दुहिता मम जननी मम जनको
मम कल्पितमतिसन्ततिमरुभूमिषु निरतम्
गिरिजासख जनितासुखवसतिं कुरु सुखिनं
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ४ ॥
जनिनाशन मृतिमोचन शिवपूजननिरतेः
अभितोऽदृशमिदमीदृशमहमावह इति हा
गजकच्छपजनितश्रम विमलीकुरु सुमतिं
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ५ ॥
त्वयि तिष्ठति सकलस्थितिकरुणात्मनि हृदये
वसुमार्गणकृपणेक्षणमनसा शिवविमुखम्
अकृताह्निकमसुपोषकमवताद् गिरिसुतया
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ६ ॥
पितरावतिसुखदाविति शिशुना कृतहृदयौ
शिवया हृतभयके हृदि जनितं तव सुकृतम्
इति मे शिव हृदयं भव भवतात् तव दयया
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ७ ॥
शरणागतभरणाश्रितकरुणामृतजलधे
शरणं तव चरणौ शिव मम संसृतिवसतेः
परिचिन्मय जगदामयभिषजे नतिरवतात्
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ८ ॥
विविधाधिभिरतिभीतिभिरकृताधिकसुकृतं
शतकोटिषु नरकादिषु हतपातकविवशम्
मृड मामव सुकृती भव शिवया सह कृपया
हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम् ॥ ९ ॥
॥ इति शिव शंकर स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
“शिव शंकर स्तोत्र” का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of “Shiv Shankar Stotra”)
भयंकर शब्द बोलने वाले यमराज के दूत
जो मृत्यु के समय हमें पीड़ा और कष्ट देते हैं,
उनकी आज्ञा मेरे मन में न बस पाए — हे पार्वतीसहित शंकर!
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ १ ॥
इंद्रियों की झूठी सुखद अनुभूतियों में फंसा,
दूसरों को दोष देने वाला, पापों में डूबा हुआ,
हे शमनस्वरूप, संसाररूपी जंगल से मुक्त करने वाले, मेरी रक्षा करो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ २ ॥
विषयों के सुख रूपी काँटे और मछली पकड़ने जैसे मोहक जालों में फंसा हुआ,
जीवन की अनियंत्रित गति में उलझा हुआ, साहसी लेकिन पतन की ओर जाने वाला,
हे परमशरण, मेरी सतत पीड़ा को शांत करो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ३ ॥
मेरी पत्नी, पुत्री, माता और पिता –
सभी मेरे ही कल्पनाओं और मोह का परिणाम हैं, जो रेगिस्तान में भटक रहे हैं,
हे पार्वती के प्रिय, मुझे सच्चे आनंद का वास स्थान दो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ४ ॥
हे जन्म और मृत्यु से मुक्ति दिलाने वाले, शिव पूजन में लगे रहने वाले,
चारों ओर यह भ्रम है कि मैं ही सब कुछ कर रहा हूँ — हाय!
गज और कच्छप जैसे श्रमों से उत्पन्न अशुद्ध बुद्धि को निर्मल कर दो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ५ ॥
तुम करुणा के सागर हो और सबके हृदय में स्थित हो,
परंतु मेरा चित्त भटक रहा है, शिव से विमुख हो गया है,
मैंने कोई नियम नहीं अपनाया, न ही प्राणियों का पालन किया —
हे गिरिजा सहित, मेरी रक्षा करो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ६ ॥
हे पिता जैसे सुखदायक, शिशु जैसे सरल हृदय वाले,
हे भयहरण करने वाले, आपके पुण्य से ही मेरा हृदय निर्मल होता है,
हे शिव! मेरी प्रार्थना है कि मेरा हृदय भी वैसा ही निर्मल हो —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ७ ॥
हे शरणागतों के रक्षक, कृपा के अमृतसागर,
इस संसार-सागर से पार होने के लिए मैं आपके चरणों की शरण लेता हूँ,
हे जगत के दुःखों के वैद्य, मेरी यह नम्र वंदना स्वीकार करें —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ८ ॥
विविध कष्टों और भय से ग्रसित होकर
जो पुण्य नहीं कर सका, जो नरकों में फंसा हुआ है,
हे कृपालु शिव! मुझे बचाओ और पार्वती सहित मुझे अपनाओ —
हे शिव शंकर! मेरी सारी बुराइयाँ दूर करो ॥ ९ ॥
॥ इति शिव शंकर स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
शिव शंकर स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- पापों का नाश:
यह स्तोत्र हृदय से किए गए प्रायश्चित का प्रतीक है। इसके नियमित पाठ से जन्म-जन्मांतर के पाप भी नष्ट होते हैं। - भय और संकट से मुक्ति:
यह स्तोत्र मृत्यु के भय, यमदूतों की पीड़ा और भूत-प्रेत बाधाओं से सुरक्षा देता है। - मन की शांति:
इसके पाठ से मानसिक शांति, चित्त की स्थिरता और आत्मबल की प्राप्ति होती है। - शिव कृपा:
स्तोत्र के माध्यम से शिव को करुणा भाव से पुकारा जाता है, जिससे उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। - मोक्ष की प्राप्ति:
स्तोत्र में आत्म-समर्पण और भक्ति भाव इतना गहन है कि यह साधक को मोक्ष मार्ग की ओर ले जाता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातःकाल या संध्या समय स्नान कर शुद्ध होकर शांत स्थान पर बैठें।
- अपने सामने शिवलिंग, शिव-पार्वती या नंदी की प्रतिमा/चित्र रखें।
- दीपक जलाएं, गंगाजल छिड़कें और शांत भाव से शिव का ध्यान करें।
- “ॐ नमः शिवाय” का मानसिक जप करते हुए स्तोत्र का उच्चारण करें।
- प्रत्येक श्लोक को श्रद्धा, विनय और भावना के साथ पढ़ें।
- पाठ के अंत में “हर शंकर शिव शंकर हर मे हर दुरितम्” मंत्र का कम से कम 11 बार जप करें।
- पाठ के बाद भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल, और जल अर्पित करें।
जप/पाठ का उत्तम समय (Best Time for Chanting):
- प्रातःकाल (सुबह 4 से 6 बजे – ब्रह्ममुहूर्त) – सबसे शुभ समय।
- संध्या के समय सूर्यास्त के बाद, जब वातावरण शांत हो।
- सोमवार, महाशिवरात्रि, और प्रदोष व्रत पर विशेष रूप से लाभकारी।
- यदि संकट में हैं या मन अशांत है, तो कभी भी पाठ किया जा सकता है।