शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत प्रभावशाली प्रार्थना है, जिसमें भगवान शिव से जीवन में जाने-अनजाने में हुए पापों, दोषों और अपराधों के लिए क्षमा मांगी जाती है। यह स्तोत्र आत्म-स्वीकृति, पश्चाताप और शिव की करुणा को प्राप्त करने का एक दिव्य मार्ग है। इसमें भक्त अपने शारीरिक, मानसिक, वाणी, इंद्रियों और विचारों से किए गए समस्त पापों को स्वीकारते हुए भगवान शिव से उन्हें क्षमा करने की प्रार्थना करता है।
यह स्तोत्र दर्शाता है कि सच्ची भक्ति केवल बाहरी अनुष्ठानों से नहीं, बल्कि आंतरिक भावनाओं, आत्म-निरीक्षण और भगवान से सच्चे संबंध से प्राप्त होती है। यह स्तोत्र साधक के जीवन में शुद्धता, विनम्रता और आत्मोन्नति की भावना भरता है।
शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र (Shiv Apradh Kshamapan Stotra)
आदौ कर्मप्रसङ्गात् कलयति कलुषं मातृकुक्षौ स्थितं
मां विण्मूत्रामध्यमध्ये क्वथयति नितरां जाठरो जातवेदाः ।
यद्यद्वै तत्र दुःखं व्यथयति नितरां शक्यते केन वक्तुं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 1 ॥
बाल्ये दुःखातिरेको मललुलितवपुः स्तन्यपाने पिपासानो
शक्तश्चेन्द्रियेभ्यो भवगुणजनिता जन्तवो मां तुदन्ति ।
नानारोगादिदुःखाद्रुदनपरवशः शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 2 ॥
प्रौढोऽहं यौवनस्थो विषयविषधरैः पंचभिर्मर्मसन्धौ
दष्टो नष्टो विवेकः सुतधनयुवतिस्वादसौख्ये निषण्णः ।
शैवीचिन्ताविहीनं मम हृदयमहो मानगर्वाधिरूढं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 3 ॥
वार्द्धक्ये चेन्द्रियाणां विगतगतिमतिश्चाधिदैवादितापैः
पापै रोगैर्वियोगैस्त्वनवसितवपुः प्रौढिहीनं च दीनम् ।
मिथ्यामोहाभिलाषैर्धमति मम मनो धूर्जटेानशून्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 4 ॥
नो शक्यं स्मार्तकर्म प्रतिपदगहनप्रत्यवायाकुलाख्यं
श्रौते वार्ता कथं मे द्विजकुलविहिते ब्रह्ममार्गे सुसारे ।
नास्था धर्मे विचारः श्रवणमननयोः किं निदिध्यासितव्यं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 5 ॥
स्नात्वा प्रत्यूषकाले स्नपनविधिविधौ नाहृतं गाङ्गतोयं
पूजार्थं वा कदाचिद्बहुतरगहनात्खण्डबिल्वीदलानि ।
नानीता पद्ममाला सरसि विकसिता गन्धपुष्पे त्वदर्थं
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 6 ॥
दुग्धैर्मध्वाज्ययुक्तैर्दधिसितसहितैः स्नापितं नैव लिङ्गं
नो लिप्तं चन्दनाद्यैः कनकविरचितैः पूजितं न प्रसूनैः ।
धूपैः कर्पूरदीपैर्विविधरसयतै व भक्ष्योपहारैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 7 ॥
ध्यात्वा चित्ते शिवाख्यं प्रचरतरधनं नैव दत्तं द्विजेभ्यो
हव्यं ते लक्षसंख्यैर्हतवहवदने नार्पितं बीजमन्त्रैः ।
नो तप्तं गाङ्गतीरे व्रतजपनियमै रुद्रजाप्यैर्न वेदैः
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 8 ॥
स्थित्वा स्थाने सरोजे प्रणवमयमरुत्कुण्डले सूक्ष्ममार्गे
शान्ते स्वान्ते प्रलीने प्रकटितविभवे ज्योतिरूपे पराख्ये ।
लिङ्गज्ञे ब्रह्मवाक्ये सकलतनुगतं शङ्करं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 9 ॥
नग्नो निःसङ्गशुद्धस्त्रिगुणविरहितो ध्वस्तमोहान्धकारो
नासाग्रे न्यस्तदृष्टिर्विदितभवगुणो नैव दृष्टः कदाचित् ।
उन्मन्यावस्थया त्वां विगत कलिमलं शंकरं न स्मरामि
क्षन्तव्यो मेऽपराधः शिव शिव शिव भो श्रीमहादेव शम्भो ॥ 10 ॥
चन्द्रोद्भासितशेखरे स्मरहरे गङ्गाधरे शंकर
सर्भूषितकण्ठकर्णविवरे नेत्रोत्थवैश्वानरे ।
दन्तित्वकृतसुन्दराम्बरधरे त्रैलोक्यसारे
हरे मोक्षार्थं कुरु चित्तवृत्तिमखिलामन्यैस्तु किं कर्मभिः ॥ 11 ॥
किं वानेन धनेन वाजिकरिभिः प्राप्तेन राज्येन
किं किं वा पुत्रकलत्रमित्रपशुभिर्देहेन गेहेन किम् ।
ज्ञात्वैतत्क्षणभङ्गरं सपदि रे त्याज्यं मनो दूरतः
स्वात्मार्थं गुरुवाक्यतो भज भज श्रीपार्वतीवल्लभम् ॥ 12 ॥
आयुर्नश्यति पश्यतां प्रतिदिनं याति क्षयं यौवनं
प्रत्यायान्ति गताः पुनर्न दिवसाः कालो जगद्भक्षकः ।
लक्ष्मीस्तोयतरङ्गभङ्गचपला विद्युच्चलं जीवितं
तस्मान्मां शरणागतं शरणद त्वं रक्ष रक्षाधुना ॥ 13 ॥
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम् ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शम्भो ॥ 14 ॥
॥ इति श्रीशिवापराधक्षमापनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र (हिंदी अनुवाद)
माँ के गर्भ में कर्मों के प्रभाव से मैंने पाप को धारण किया,
मल-मूत्र के बीच जठराग्नि मुझे निरंतर जलाती रही।
उस समय जो-जो दुख सहा, उसे कौन कह सकता है?
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 1 ॥
बाल्यावस्था में अत्यधिक दुख झेले, मल में लिप्त शरीर था,
स्तनपान और प्यास से व्याकुल, इन्द्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं।
भवसागर के जीव मुझे काटते रहे, मैं रोगों से पीड़ित होकर रोता रहा,
और उस अवस्था में मैंने तुम्हें नहीं स्मरण किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 2 ॥
युवावस्था में इन्द्रियों के विषधर पंच विषयों ने मुझे डस लिया,
बुद्धि नष्ट हो गई, मैं पुत्र, धन और स्त्री के सुख में डूब गया।
मेरा हृदय तुम्हारी शिवचिंतन से रहित हो गया, और अहंकार में डूब गया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 3 ॥
बुज़ुर्ग अवस्था में इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गई,
दैविक, भौतिक और आत्मिक तापों से शरीर जर्जर हो गया।
पापों, रोगों और वियोग से शरीर दुर्बल हो गया,
मोह और मिथ्या कामनाओं से मन तुम्हारी स्मृति से खाली हो गया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 4 ॥
स्मार्त कर्मों को मैं कर नहीं पाया, जो प्रतिदिन करने योग्य हैं।
न ही मैंने वैदिक कर्मों की शिक्षा ली, न ही ब्रह्मपथ को अपनाया।
धर्म में रुचि नहीं, न मनन और श्रवण में प्रवृत्ति रही,
मैंने कुछ भी ध्यान नहीं किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 5 ॥
प्रातःकाल स्नान नहीं किया, गंगा जल नहीं लाया,
पूजन के लिए बिल्वपत्र नहीं तोड़े,
कमल की माला, सुगंधित फूल नहीं चढ़ाए,
हे प्रभो! मन से कुछ भी नहीं समर्पित किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 6 ॥
दूध, घी, शहद, दही और चीनी से लिंग को स्नान नहीं कराया,
चंदन या फूलों से लिंग को पूजित नहीं किया,
धूप, दीप, नैवेद्य या स्वादिष्ट भोजन अर्पित नहीं किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 7 ॥
मन में तुम्हारी ध्यानमूर्ति को स्थापित नहीं किया,
ब्राह्मणों को दान नहीं दिया, अग्निहोत्र नहीं किया,
बीज मंत्रों से हवन नहीं किया,
गंगातट पर व्रत, जप, नियम या वेदों का पाठ नहीं किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 8 ॥
कमल रूपी चक्र पर स्थित होकर, प्राणायाम से सूक्ष्म मार्ग में प्रवेश कर,
शांति और आत्मविलीन अवस्था में प्रकाशरूप परब्रह्म शिव का ध्यान नहीं किया।
शिव को सर्वव्यापी जानकर भी उनका स्मरण नहीं किया।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 9 ॥
निर्वस्त्र, निस्संग, शुद्ध, त्रिगुण से परे,
अंधकार रूपी मोह को नष्ट करनेवाले शिव को,
नाक के अग्रभाग पर दृष्टि टिकाकर ध्यान करते हुए भी मैंने कभी नहीं देखा।
उन्मन अवस्था में भी मैंने तुम्हें नहीं पहचाना।
मेरे उन अपराधों को क्षमा करो, हे शिव! हे महादेव शम्भो! ॥ 10 ॥
चंद्रमा से शोभित शीशवाले, कामदेव के संहारक, गंगा को धारण करनेवाले,
कंठ और कानों में सुंदर आभूषण पहने हुए,
नेत्रों से अग्नि प्रकट करने वाले, हाथी की खाल को वस्त्र रूप में धारण करनेवाले,
तीनों लोकों के सारस्वरूप, हे हर! मुझे मोक्ष प्रदान करो।
क्या अन्य कर्मों से कुछ होगा? ॥ 11 ॥
धन, घोड़े, हाथी, राज्य – क्या इनसे कोई सार है?
पुत्र, पत्नी, मित्र, पशु – या शरीर और घर – किसका क्या महत्व है?
इन सबको क्षणभंगुर जानकर तुरंत ही मन से दूर करो,
गुरुवचन के अनुसार आत्मा के हित में श्री पार्वतीपति की भक्ति करो। ॥ 12 ॥
आयु क्षीण होती जा रही है, प्रतिदिन यौवन समाप्त होता है,
गए हुए दिन लौटकर नहीं आते, काल सम्पूर्ण जगत को निगल रहा है।
लक्ष्मी जल की लहरों जैसी चंचल है, जीवन विद्युत के समान क्षणिक है।
हे शरणदाता! मैं आपकी शरण में हूँ, मुझे अब रक्षा दो। ॥ 13 ॥
हाथ-पैरों से किया गया, वाणी और शरीर से उत्पन्न,
कर्मों से, कान और नेत्रों से, या मन से उत्पन्न अपराध,
चाहे वह विधिवत् किया गया हो या अज्ञानवश – सबको क्षमा करें।
जय हो, करुणासागर! श्रीमहादेव शम्भो! ॥ 14 ॥
॥ इति श्रीशिव अपराध क्षमापन स्तोत्र का हिंदी अनुवाद पूर्ण हुआ ॥
शिव अपराध क्षमापन स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shiva Crime Forgiveness Stotra):
- यह स्तोत्र पढ़ने से भगवान शिव के प्रति गहरी भक्ति विकसित होती है।
- साधक के जीवन में अनजाने पापों और अपराधों के प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
- आत्मग्लानि, तनाव और मानसिक बोझ से छुटकारा मिलता है।
- विशेष रूप से सावन मास में इसका पाठ अत्यंत पुण्यदायक माना गया है।
- शिवजी की कृपा प्राप्त कर जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिल सकती है।
किन्हें इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए (Who should recite this Stotra:):
- वे सभी भक्त जिन्होंने जीवन में भक्ति, पूजा या व्यवहार में त्रुटियाँ की हों और क्षमा चाहते हों।
- वे लोग जो गंभीर शारीरिक, मानसिक या आध्यात्मिक संकट में हैं और मार्गदर्शन चाहते हैं।
- वे साधक जो भगवान शिव से आत्मिक जुड़ाव और मोक्ष की ओर बढ़ना चाहते हैं।
- जिनका मन अपराध-बोध, पछतावे या आत्मग्लानि से ग्रस्त हो, वे इसे रोज शिवलिंग के समक्ष पढ़ सकते हैं।