विपरीत प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और रहस्यमयी स्तोत्र है, जो देवी प्रत्यंगिरा को समर्पित है। यह स्तोत्र मुख्यतः उन साधकों के लिए रचा गया है जो तंत्र बाधा, काला जादू, भूत-प्रेत, शत्रु बाधा, अदृश्य आक्रमण या मानसिक-आध्यात्मिक संकटों से घिरे होते हैं। यह स्तोत्र देवी प्रत्यंगिरा की विपरीत शक्ति रूप का आह्वान करता है जो नकारात्मक शक्तियों को पलटकर वापस भेजने में सक्षम है।
यह स्तोत्र “नारसिंहिका, चण्डिका, वाराही, भैरवी” आदि देवी स्वरूपों के माध्यम से चारों दिशाओं की रक्षा की भावना से शुरू होता है, और फिर अंत में उन सभी अदृश्य, ज्ञात-अज्ञात बाधाओं का नाश करने की प्रार्थना करता है जो शत्रुओं द्वारा भेजी जाती हैं — चाहे वे मंत्र, तंत्र, विष, यंत्र या शारीरिक/मानसिक हानि के रूप में हों।
देवी प्रत्यंगिरा को अघोर शक्ति, तंत्र निवारक, अति गुप्त देवी के रूप में जाना जाता है, और यह स्तोत्र उनके प्रबल और क्रोधी रूप को प्रसन्न करने हेतु प्रयोग किया जाता है। यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावी और उग्र स्वभाव का है, अतः इसे श्रद्धा, शुद्धता और सावधानी के साथ पढ़ा या जपा जाता है।
श्री विपरीत प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र हिंदी पाठ
ब्राह्मी मां पूर्चतः पातु, वह्नौ नारायणी तथा।
माहेश्वरी च दक्षिणे, नैऋत्यां चण्डिकाऽवतु।।
पश्चिमेऽवतु कौमारी, वायव्ये चापराजिता।
वाराही चोत्तरे पातु, ईशाने नारसिंहिका।।
प्रभाते भैरवी पातु, मध्याह्ने योगिनी क्रमात्।
सायं मां वटुकः पातु, अर्धरात्रौ शिवोऽवतु।।
निशान्ते सर्वगा पातु, सर्वदा चक्रनायिका।
ॐ क्षौं ॐ ॐ ॐ हं हं हं यां रां लां खां रां रां क्षां ॐ ऐं ॐ ह्रीं रां रां मम रक्षां कुरु ॐ ह्रां ह्रं ॐ सः ह्रं ॐ क्ष्रीं रां रां रां यां सां ॐ वं यं रक्षां कुरु कुरु।
ॐ नमो विपरीत-प्रत्यंगिरायै विद्या-राज्ञो त्रैलोक्य-वशंकरी तुष्टि-पुष्टि-करी, सर्व-पीड़ापहारिणी, सर्व-रक्षा-करी, सर्व-भय-विनाशिनी।
सर्व-मंगल-मंगला-शिवा सर्वार्थ-साधिनी। वेदना पर-शस्त्रास्त्र-भेदिनी, स्फोटिनी, पर-तन्त्र पर-मन्त्र विष-चूर्ण सर्व-प्रयोगादीनामभ्युपासितं,
यत् कृतं कारितं वा, तन्मस्तक-पातिनी, सर्व-हिंसाऽऽकर्षिणी, अहितानां च नाशिनी, दुष्ट-सत्वानां नाशिनी।
यः करोति यत्-किञ्चित् करिष्यति निरुपकं कारयति।
तन्नाशयति, यत्कर्मणा मनसा वाचा, देवासुर-राक्षसाः तिर्यक् प्रेत-हिंसका, विरुपकं कुर्वन्ति, मम मन्त्र, यन्त्र, विष-चूर्ण,
सर्व-प्रयोगादीनात्म-हस्तेन, पर-हस्तेन। यः करोति करिष्यति कारियिष्यति वा, तानि सर्वाणि, अन्येषां निरुपकानां तस्मै च निवर्तय पतन्ति, तस्मस्तकोपरि।।
श्री विपरीत प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र (हिंदी अनुवाद) (Sri Viparita Pratyangira Mahavidya Stotra (Hindi Translation))
ब्राह्मी माता मेरे आगे की ओर रक्षा करें, अग्निकोण में नारायणी रक्षा करें।
दक्षिण दिशा में माहेश्वरी रक्षा करें, नैऋत्य दिशा में चण्डिका रक्षा करें।
पश्चिम में कौमारी रक्षा करें, वायव्य दिशा में अपराजिता रक्षा करें।
उत्तर में वाराही रक्षा करें, ईशान कोण में नारसिंहिका रक्षा करें।
प्रभात काल में भैरवी मेरी रक्षा करें, दोपहर में योगिनी क्रम से रक्षा करें।
सायंकाल में वटुक मेरी रक्षा करें, मध्यरात्रि में शिव रक्षा करें।
प्रभात और रात्रि के संधि समय में सर्वगामिनी देवी रक्षा करें, सदा चक्र की नायिका रक्षा करें।
ॐ क्षौं ॐ ॐ ॐ हं हं हं यं रं लं खं रं रं क्षां ॐ ऐं ॐ ह्रीं रं रं मेरी रक्षा करो ॐ ह्रां ह्रं ॐ सः ह्रं ॐ क्ष्रीं रं रं रं यं सां ॐ वं यं रक्षा करो करो।
ॐ विपरीत प्रत्यंगिरा देवी को नमस्कार, जो विद्याओं की रानी हैं, तीनों लोकों को वश में करने वाली हैं, तुष्टि और पुष्टि प्रदान करने वाली हैं, सभी पीड़ाओं को हरने वाली हैं, समस्त रक्षा करने वाली हैं, और सारे भयों को नष्ट करने वाली हैं।
जो समस्त मंगलों की मंगलमयी हैं, कल्याणमयी शिवा हैं, और सभी कार्यों की सिद्धि देने वाली हैं। जो पीड़ा, शस्त्रों और अस्त्रों को भेदने वाली हैं, विस्फोट करने वाली हैं, पर-मंत्र, पर-तंत्र, विष या चूर्ण जैसे प्रयोगों को नष्ट करने वाली हैं।
जो कुछ किया गया है या करवाया गया है, वह उसके सिर पर गिर पड़े, जो भी हिंसा या नुकसान करने वाले हैं, उनका नाश करने वाली हैं। दुष्ट आत्माओं का नाश करने वाली हैं।
जो कुछ भी करता है, कर चुका है या करने की योजना बना रहा है –
वह सब नष्ट हो जाए। जो भी देवता, दानव, राक्षस, पशु, प्रेत आदि मन, वाणी या कर्म से मुझे हानि पहुँचाने की कोशिश करें, चाहे अपने हाथ से या किसी और के हाथ से, या मंत्र-तंत्र-विष-चूर्ण आदि के द्वारा,
वे सभी दुष्ट कर्म, और वे लोग जो ये कार्य करते हैं – उन पर विपरीत प्रत्यंगिरा देवी का प्रहार हो और वे नष्ट हों।
लाभ (Benefits):
- तंत्र-मंत्र, जादू-टोना से सुरक्षा:
यह स्तोत्र देवी प्रत्यंगिरा के उस रूप का आह्वान करता है जो काले जादू, तांत्रिक प्रयोगों, भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष और अघोरी विद्या से रक्षा करती हैं। - शत्रुओं का नाश और बचाव:
शत्रुओं द्वारा की गई मानसिक, आध्यात्मिक या तांत्रिक हानियों का पलटवार करके नाश करती हैं। - गुप्त और अदृश्य शत्रु से रक्षा:
जो लोग छिपकर या असाध्य साधनों से किसी को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, उनसे देवी रक्षा करती हैं। - रोग और मानसिक तनाव से राहत:
यह स्तोत्र मानसिक अशांति, भय, नींद में डर, बुरे स्वप्न, आत्मिक कमजोरी आदि को भी शांत करता है। - तांत्रिक साधकों की रक्षा:
जो व्यक्ति साधना मार्ग पर हैं, उनके लिए यह कवच समान है।
पाठ/जप विधि (Vidhi):
- स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- अपने पूजा स्थल को साफ करें और दीपक जलाएं।
- देवी प्रत्यंगिरा का चित्र या यंत्र सामने रखें।
- “ॐ प्रत्यंगिरायै नमः” बीज मंत्र से प्रारंभ करें।
- श्री विपरीत प्रत्यंगिरा महाविद्या स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- इसके पश्चात देवी को नींबू, काली मिर्च, लौंग, या नारियल आदि अर्पित करें (तांत्रिक प्रतीक)।
- अंत में, रक्षा एवं विजय की प्रार्थना करें।
नोट: यह स्तोत्र शक्तिशाली और उग्र स्वरूप की देवी का है, अतः इसे गुरु के मार्गदर्शन में या विशेष श्रद्धा के साथ ही जपें।
जप का उपयुक्त समय (Best Time to Chant):
- रात्रि का समय: विशेष रूप से मध्यरात्रि (12:00 AM के आसपास) यह स्तोत्र अधिक प्रभावशाली माना गया है।
- अमावस्या और पूर्णिमा की रातें: यह तांत्रिक प्रयोग के लिए उपयुक्त समय हैं।
- त्रिसंध्या (सुबह, दोपहर, शाम): साधारण पाठ के लिए यह समय भी उचित है।





















































