लांगूल अर्थात् पूंछ और अस्त्र अर्थात् शस्त्र — यह स्तोत्र भगवान हनुमान के वीर रूप की आराधना का एक अत्यंत प्रभावशाली साधन है। इसे “लांगूलास्त्र शत्रुजन्म हनुमत स्तोत्र” कहा जाता है क्योंकि यह शत्रुओं का नाश करने में सक्षम माना जाता है।
इस स्तोत्र का नियमित रूप से जप करने से नकारात्मक शक्तियों का अंत होता है, भय दूर होता है और जीवन में आने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं।
लांगूलास्त्र शत्रुजन्य हनुमत स्तोत्र
Laangulastr Shatrujanya Hanumat Stotra
।। ॐ हनुमन्तमहावीर वायुतुल्यपराक्रमम् ।
मम कार्यार्थमागच्छ प्रणमाणि मुहुर्मुहुः ।।
विनियोगः –
ॐ अस्य श्रीहनुमच्छत्रुञ्जयस्तोत्रमालामन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, नानाच्छन्दांसि श्री महावीरो हनुमान् देवता मारुतात्मज इति ह्सौं बीजम्, अञ्जनीसूनुरिति ह्फ्रें शक्तिः, ॐ हा हा हा इति कीलकम् श्री राम-भक्ति इति ह्वां प्राणः, श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर इति ह्वां ह्वीं ह्वूं जीव, ममाऽरातिपराजय-निमित्त-शत्रुञ्जय-स्तोत्र-मन्त्र-जपे विनियोगः ।
करन्यासः –
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं हनुमते अंगुष्ठाभ्यां नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं रामदूताय तर्जनीभ्यां नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लक्ष्मण-प्राणदात्रे मध्यमाभ्यां नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं अञ्जनीसूनवे अनामिकाभ्यां नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं सीताशोक-विनाशाय कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लङ्काप्रासादभञ्जनाय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
हृदयादि-न्यासः –
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं हनुमते हृदयाय नमः ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं रामदूताय शिरसे स्वाहा ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लक्ष्मण-प्राणदात्रे शिखायै वषट् ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं अञ्जनीसूनवे कवचाय हुम् ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं सीताशोक-विनाशाय नेत्र-त्रयाय वोषट् ।
• ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं लङ्काप्रासादभञ्जनाय अस्त्राय फट् ।
ध्यानः –
ध्यायेदच् बालदिवाकर द्युतनिभं देवार्रिदर्पापहं
देवेन्द्रप्रमुख-प्रशस्तयशसं देदीप्यमानं रुचा ।
सुग्रीवादिसमस्तवानरयुतं सुव्यक्त-तत्त्व-प्रियं
संरक्तारुण-लोचनं पवनजं पीताम्बरालंकृतम् ।।
उद्यन्मार्तण्ड-कोटि-प्रकटरुचियुतं चारुवीरासनस्थं
मौञ्जीयज्ञोपवीताभरणरुचिशिखं शोभितं कुंडलाङ्कम् ।
भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनादप्रमोदं
ध्यायेद् देवं विधेयं प्लवगकुलपतिं गोष्पदी भूतवार्धिम् ।।
वज्राङ्गं पिङ्गकेशाढ्यं स्वर्णकुण्डल-मण्डितम्
निगूढमुपसङ्गम्य पारावारपराक्रमम् ।।
स्फटिकाभं स्वर्णकान्तिं द्विभुजं च कृताञ्जलिम्
कुण्डलद्वयसंशोभिमुखाम्भोजं हरिं भजे ।।
सव्यहस्ते गदायुक्तं वामहस्ते कमण्डलुम्
उद्यद्दक्षिणदोर्दण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत् ।।
इस तरह से श्रीहनुमानजी का ध्यान करके “अरे मल्ल चटख” तथा “टोडर मल्ल चटख” का उच्चारण करके हनुमानजी को ‘कपिमुद्रा’ प्रदर्शित करें ।
माला-मन्त्र –
मंत्र 1:
ॐ ऐं श्रीं ह्वां ह्वीं ह्वूं स्फ्रें ख्फ्रें हस्ख्फ्रें ह्सौं नमो हनुमते त्रैलोक्याक्रमण-पराक्रमण-श्रीरामभक्त मम परस्य च सर्वशत्रून् … (पूरा मंत्र ऊपर है)
मंत्र 2:
ॐ नमो भगवते हनुमते महाबलपराक्रमाय महाविपत्ति-निवारकाय भक्तजन मनःकल्पना कल्पद्रुमाय दुष्टजन-मनोरथ-स्तम्भकाय प्रभञ्जन-प्राणप्रियाय स्वाहा ।।
ध्यानः –
श्रीमन्तं हनुमन्तमात्तरिपुभिद्भूभृत्तरुभ्राजितं
वल्गद्वालधिबद्धवैरिनिचयं चामीकराद्रिप्रभम् ।
रोषाद्रक्तपिशङ्ग-नेत्र नलिनं भ्रूमभङ्मङ्गस्फुरत्
प्रोद्यच्चण्ड-मयूख-मण्डल-मुखं-दुःखापहं दुःखिनाम् ।।
कौपीनं कटिसूत्रमौंज्यजिनयुग्देहं विदेहात्मजाप्राणाधीश-पदारविन्द-निरतं
स्वान्तं कृतान्तं द्विषाम् ।
ध्यात्वैव समराङ्गणस्थितमथानीय स्वहृत्पङ्कजे
संपूजनोक्तविधिना संप्रार्थयेत्प्रार्थितम् ।।
मूल-पाठ –
(1) हनुमन्नञ्जनीसूनो ! महाबलपराक्रम ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(2) मर्कटाधिप ! मार्तण्ड मण्डल-ग्रास-कारक ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(3) अक्षक्षपणपिङ्गाक्षक्षितिजाशुग्क्षयङ्र ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(4) रुद्रावतार ! संसार-दुःख-भारापहारक ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(5) श्रीराम-चरणाम्भोज-मधुपायितमानस ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(6) बालिप्रथमक्रान्त सुग्रीवोन्मोचनप्रभो ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(7) सीता-विरह-वारीश-मग्न-सीतेश-तारक ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(8) रक्षोराज-तापाग्नि-दह्यमान-जगद्वन ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(9) ग्रस्ताऽशैजगत्-स्वास्थ्य-राक्षसाम्भोधिमन्दर ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(10) पुच्छ-गुच्छ-स्फुरद्वीर-जगद्-दग्धारिपत्तन ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(11) जगन्मनो-दुरुल्लंघ्य-पारावार विलंघन ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(12) स्मृतमात्र-समस्तेष्ट-पूरक ! प्रणत-प्रिय ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(13) रात्रिञ्चर-चमूराशिकर्त्तनैकविकर्त्तन ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(14) जानकी जानकीजानि-प्रेम-पात्र ! परंतप ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(15) भीमादिक-महावीर-वीरवेशावतारक ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(16) वैदेही-विरह-क्लान्त रामरोषैक-विग्रह ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(17) वज्राङ्नखदंष्ट्रेश ! वज्रिवज्रावगुण्ठन ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(18) अखर्व-गर्व-गंधर्व-पर्वतोद्-भेदन-स्वरः ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(19) लक्ष्मण-प्राण-संत्राण त्रात-तीक्ष्ण-करान्वय ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(20) रामादिविप्रयोगार्त्त ! भरताद्यार्त्तिनाशन ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(21) द्रोणाचल-समुत्क्षेप-समुत्क्षिप्तारि-वैभव ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(22) सीताशीर्वाद-सम्पन्न ! समस्तावयवाक्षत ! ।
लोलल्लांगूलपातेन ममाऽतरीन् निपातय ।।
(23) इत्येवमश्वत्थतलोपविष्टः शत्रुंजयं नाम पठेत्स्वयं यः ।
स शीघ्रमेवास्त-समस्तशत्रुः प्रमोदते मारुतज प्रसादात् ।।
।। इति लांगूलास्त्र शत्रुजन्य हनुमत स्तोत्र संपूर्णम् ।।
साधना विधि:
- हनुमान जी की रक्तचंदन से बनी मूर्ति की पूजा करें।
- लाल पुष्प व अन्य पूजन-सामग्री अर्पित करें।
- पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर इस स्तोत्र का 1, 3, 7 या 21 बार पाठ करें।
- यह प्रक्रिया लगातार 48 दिनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए करें।
महत्वपूर्ण निर्देश:
इंद्रिय-निग्रह (इंद्रियों पर नियंत्रण) के बिना यह साधना करना अनुचित और हानिकारक हो सकता है। अतः साधक को संयमित जीवन अपनाना अनिवार्य है।
लाभ (Benefits)
- शत्रुओं का नाश होता है और उनके प्रभाव से मुक्ति मिलती है।
- मानसिक पीड़ा, डर, और नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है।
- बच्चों में यदि किसी प्रकार का भय हो (विशेषतः भूत-प्रेत का), तो इसका पाठ अत्यंत लाभकारी है।
- जीवन के संकटों, रोगों और विघ्नों को दूर करता है और सुख-शांति प्रदान करता है।
- यह स्तोत्र हनुमान जी के आत्मबल और तेज का आह्वान करता है, जिससे साधक को आंतरिक शक्ति मिलती है।
किन्हें इसका पाठ करना चाहिए:
- जो व्यक्ति मानसिक, शारीरिक या शत्रुजनित कष्टों से पीड़ित हैं।
- जिनके जीवन में निरंतर विघ्न-बाधाएं आ रही हैं।
- जो भय, तनाव और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त होना चाहते हैं।