श्री मोहिनीकृतं कृष्ण स्तोत्र” एक दुर्लभ और अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की मोहिनी रूप शक्ति की स्तुति करता है। यह स्तोत्र स्वयं मोहिनी (भगवान विष्णु का मोहिनी रूप) द्वारा गाया गया है और इसमें भगवान की उन लीलाओं और शक्तियों का वर्णन है, जो चेतना को आकर्षित करती हैं, इंद्रियों पर विजय प्राप्त कराती हैं और मन को आत्मिक प्रेम में रंग देती हैं।
यह स्तोत्र महर्षि दुर्वासा द्वारा मोहिनी को गंधमादन पर्वत पर दिया गया था और इसके पाठ से साधक को आकर्षण शक्ति, निरोगता, धन-समृद्धि, और एक सुशील व शुभ पत्नी की प्राप्ति होती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो अपने जीवन में प्रेम, सौंदर्य और सम्मोहन की दिव्य ऊर्जा को जाग्रत करना चाहते हैं।
भक्तिभाव से इसका नित्य पाठ करने पर व्यक्ति काम, क्रोध और मोह जैसे दोषों से मुक्त होकर श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप में मन को स्थिर कर सकता है। यह स्तोत्र वैराग्य और भक्ति दोनों का संगम है।
श्री मोहिनीकृतं कृष्ण स्तोत्र हिंदी पाठ
श्री गणेशाय नमः
मोहिन्युवाच –
सर्वेन्द्रियाणां प्रवरं विष्णोरंशं च मानसम्
तदेव कर्मणां बीजं तदुद्भव नमोऽस्तु ते ॥ 1 ॥
स्वयमात्मा हि भगवान् ज्ञानरूपो महेश्वरः
नमो ब्रह्मन् जगत्स्रष्टस्तदुद्भव नमोऽस्तु ते ॥ 2 ॥
सर्वाजित जगज्जेतर्जीवजीव मनोहर
रतिबीज रतिस्वामिन् रतिप्रिय नमोऽस्तु ते ॥ 3 ॥
शश्वद्योषिदधिष्ठान योषित्प्राणाधिकप्रिय
योषिद्वाहन योषास्त्र योषिद्बन्धो नमोऽस्तु ते ॥ 4 ॥
पतिसाध्यकराशेषरूपाधार गुणाश्रय
सुगन्धिवातसचिव मधुमित्र नमोऽस्तु ते ॥ 5 ॥
शश्वद्योनिकृताधार स्त्रीसन्दर्शनवर्धन
विदग्धानां विरहिणां प्राणान्तक नमोऽस्तु ते ॥ 6 ॥
अकृपा येषु तेऽनर्थं तेषां ज्ञानं विनाशनम्
अनूहरूपभक्तेषु कृपासिन्धो नमोऽस्तु ते ॥ 7 ॥
तपस्विनां च तपसां विघ्नबीजाय लीलया
मनः सकामं मुक्तानां कर्तुं शक्तं नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥
तपःसाध्यस्तथाऽऽराध्यः सदैवं पाञ्चभौतिकः
पञ्चेन्द्रियकृताधार पञ्चबाण नमोऽस्तु ते ॥ 9 ॥
मोहिनीत्येवमुक्त्वा तु मनसा सा विधेः पुरः
विरराम नम्रवक्त्रा बभूव ध्यानतत्परा ॥ 10 ॥
उक्तं माध्यन्दिने कान्ते स्तोत्रमेतन्मनोहरम्
पुरा दुर्वाससा दत्तं मोहिन्यै गन्धमादने ॥ 11 ॥
स्तोत्रमेतन्महापुण्यं कामी भक्त्या यदा पठेत्
अभीष्टं लभते नूनं निष्कलङ्को भवेद् ध्रुवम् ॥ 12 ॥
चेष्टां न कुरुते कामः कदाचिदपि तं प्रियम्
भवेदरोगी श्रीयुक्तः कामदेवसमप्रभः
वनितां लभते साध्वीं पत्नीं त्रैलोक्यमोहिनीम् ॥ 13 ॥
॥ इति श्री मोहिनीकृतं कृष्णस्तोत्रं समाप्तम् ॥
श्री मोहिनीकृतं कृष्ण स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
श्री गणेशाय नमः
मोहिनी ने कहा –
विष्णु के मन रूपी श्रेष्ठ अंग को, जो सभी इंद्रियों में श्रेष्ठ है,
वही समस्त कर्मों का बीज है, उसीसे उत्पन्न सब कुछ है – आपको नमस्कार है। ॥ 1 ॥
स्वयं भगवान आत्मा ही ज्ञानस्वरूप और महेश्वर हैं,
हे ब्रह्मा! जगत के स्रष्टा! आपसे उत्पन्न हुए – आपको नमस्कार है। ॥ 2 ॥
जो सर्वत्र अजेय, जगत के विजेता, जीव और प्राणों को मोहित करने वाले हैं,
जो रति के बीज, रति के स्वामी और रति को प्रिय हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 3 ॥
जो सदा स्त्रियों में निवास करते हैं, स्त्रियों के प्राणों से भी प्रिय हैं,
जो स्त्रियों के वाहन, शस्त्र और बंधु हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 4 ॥
जो पति को वश में करने वाले हैं, समस्त रूपों को धारण करने वाले और गुणों के आश्रय हैं,
जो सुगंधित वायु के मित्र हैं और मधु के भी सखा हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 5 ॥
जो सदा योनि (जननी) के अधिष्ठान हैं, जिनसे स्त्रियों के दर्शन की इच्छा बढ़ती है,
जो विद्वानों और विरहिणों के प्राणों को हरने वाले हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 6 ॥
जो जिन पर कृपा नहीं करते, उनके लिए अनर्थ और उनके ज्ञान का विनाश करते हैं,
परंतु जिनकी भक्ति गूढ़ होती है, उन पर आप कृपा की सागर हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 7 ॥
जो तपस्वियों और उनके तप को विघ्न देने के लिए लीला से विघ्न रूप बीज बनते हैं,
जो मुक्तजनों के भी मन को इच्छाओं से भर देते हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 8 ॥
जो तप से साध्य, आराध्य, पंचभूतों से बने हुए हैं,
जो पाँचों इंद्रियों के अधिष्ठान और पाँच बाणों के स्वामी हैं – आपको नमस्कार है। ॥ 9 ॥
मोहिनी ने इस प्रकार कहा और मन में विधाता के समक्ष
नम्र मुख से मौन हो गई और ध्यान में लीन हो गई। ॥ 10 ॥
यह स्तोत्र, जो मध्यान्ह काल में प्रियतम को कहकर सुनाया गया था,
प्राचीन काल में दुर्वासा ऋषि ने मोहिनी को गंधमादन में प्रदान किया था। ॥ 11 ॥
यह स्तोत्र अत्यंत पुण्यदायक है, जो भी भक्त इसे प्रेमपूर्वक पढ़ता है,
वह निश्चित रूप से इच्छित फल प्राप्त करता है और निष्कलंक बनता है। ॥ 12 ॥
कामदेव कभी उसे कष्ट नहीं देता, वह सदा निरोग और समृद्ध रहता है,
वह कामदेव के समान तेजस्वी बनता है, और उसे त्रिलोक को मोहित करने वाली पत्नी प्राप्त होती है। ॥ 13 ॥
॥ इति श्री मोहिनीकृतं कृष्णस्तोत्रं समाप्तम् ॥
श्री मोहिनीकृतं कृष्ण स्तोत्र के लाभ (Benefits):
- प्रेम, आकर्षण और सौंदर्य की प्राप्ति:
स्तोत्र का नियमित पाठ साधक में मोहिनी शक्ति उत्पन्न करता है जिससे वह दूसरों को आकर्षित करता है। - काम दोष से मुक्ति:
यह स्तोत्र काम की नकारात्मक ऊर्जा को शांत कर मानसिक संतुलन और संयम प्रदान करता है। - शुभ जीवनसाथी की प्राप्ति:
स्तोत्र का पाठ करने से योग्य, सुशील एवं सुंदर पत्नी की प्राप्ति होती है – जैसा कि स्तोत्र में कहा गया है: “पत्नीं त्रैलोक्यमोहिनीम्” - रोग और मानसिक बाधाओं से मुक्ति:
व्यक्ति रोगमुक्त रहता है और उसका मन प्रसन्न, स्थिर तथा शुद्ध बना रहता है। - आकर्षण शक्ति में वृद्धि:
यह स्तोत्र सम्मोहन शक्ति को जाग्रत करता है और व्यक्ति सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में प्रिय बनता है।
पाठ की विधि (Vidhi):
- स्थान चयन:
शांत और पवित्र स्थान पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। - शुद्धता:
स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। सामने श्रीकृष्ण जी या मोहिनी स्वरूप की मूर्ति/चित्र रखें। - दीप एवं धूप:
दीपक जलाएं, चंदन या गुलाब की अगरबत्ती करें। - संकल्प लें:
मन में यह संकल्प करें कि आप प्रेम, आकर्षण और मानसिक शुद्धि हेतु यह स्तोत्र कर रहे हैं। - श्रद्धा और भक्ति से पाठ करें:
पूरे भाव से 1 या 3 बार प्रतिदिन पाठ करें। यदि समय हो तो 11 बार करना विशेष फलदायक माना गया है। - अंत में प्रार्थना करें:
भगवान श्रीकृष्ण से अपनी मनोकामना पूर्ति की प्रार्थना करें।
जप का समय (Best Time to Chant):
- प्रातःकाल (सुबह 4–6 बजे):
ब्रह्ममुहूर्त में इसका पाठ करना अत्यंत प्रभावशाली होता है। - माध्यान्ह काल (दोपहर 12 बजे के आसपास):
शास्त्रों के अनुसार यह स्तोत्र “माध्यन्दिने कान्ते” (श्लोक 11) में वर्णित है, अतः दोपहर का समय भी उत्तम है। - विशेष अवसर:
किसी विशेष मनोकामना या प्रेम-संबंधित बाधा को दूर करने हेतु शुक्रवार या पूर्णिमा को प्रारंभ करना शुभ रहता है।