“श्री मार्कंडेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली और कल्याणकारी स्तोत्र है, जिसकी रचना महर्षि मार्कंडेय द्वारा की गई थी। इस स्तोत्र में भगवान शिव के चन्द्रशेखर रूप की स्तुति की गई है, जो संहारक, रक्षक और मोक्षदाता हैं। इसमें भगवान शिव की उन लीलाओं और रूपों का वर्णन किया गया है जो उन्हें समस्त ब्रह्मांड के अधिपति और मृत्यु के भय से मुक्ति देने वाले देवता के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
यह स्तोत्र न केवल मृत्यु के भय को दूर करता है, बल्कि रोग, शत्रु, संकट और जीवन की सभी आपदाओं से सुरक्षा प्रदान करता है। महर्षि मार्कंडेय स्वयं एक अमर ऋषि माने जाते हैं, जिन्हें भगवान शिव ने मृत्यु के मुख से बचाया था, और उसी अनुभूति से प्रेरित होकर उन्होंने यह स्तोत्र प्रस्तुत किया।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मानसिक शांति, दीर्घायु, निर्भयता और आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए संजीवनी जैसा है जो जीवन में अकाल मृत्यु या भय के संकट से जूझ रहे होते हैं।
श्री मार्कंडेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र
“ॐ अस्य श्रीसदाशिवस्तोत्रमन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषि:,
श्रीसदाशिवो देवता, गौरी शक्ति:।
मम समस्तमृत्युशान्त्यर्थे जपे विनियोग:।”
मृत्युंजय स्तोत्र –
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिश्रृंगनिकेतनं
शिण्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युतानलसायकम्।
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदशालयैरभिवन्दितं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।1।।
पंचपादपपुष्पगन्धिपदाम्बुजव्दयशोभितं
भाललोचनजातपावकदग्धमन्मथविग्रहम्।
भस्मदिग्धकलेवरं भवनाशिनं भवमव्ययं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।2।।
मत्तवारणमुख्यचर्मकृतोत्तरीयमनोहरं
पंकजनासनपद्मलोचनपूजिताङ्घ्रिसरोरुहम्।
देवसिद्धतरंगिणीकरसिक्तशीतजटाधरं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।3।।
कुण्डलीकृतकुण्डलीश्वरककुण्डलं वृषवाहनं
नारदादिमुनीश्वरस्तुतवैभवं भुवनेश्वरम्।
अन्धकान्तकमाश्रितामरपादपं शमनान्तकं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।4।।
यक्षराजसखं भगक्षिहरं भुजंगविभूषणं
शैलराजसुतापरिष्कृतचारुवामकलेवरम्।
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।5।।
भेषजं भवरोगिणामखिलापदामपहारिणं
दक्षयज्ञविनाशिनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्।
भुक्तिमुक्तिफलप्रदं निखिलाघसंघनिबर्हणं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।6।।
भक्तवत्सलमर्चतां निधिमक्षयं हरिदम्बरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनूपमम्।
भूमिवारिनभोहुताशनसोमपालितस्वाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।7।।
विश्वसृष्टिविधायिनं पुनरेव पालनतत्परं
संहरन्तमथ प्रपंचमशेषलोकनिवासिनम्।
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमावृतं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यम:।।8।।
रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकण्ठमुमापतिम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।9।।
कालकण्ठं कलामूर्तिं कालाग्निं कालनाशनम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।10।।
नीलकण्ठं विरुपाक्षं निर्मलं निरुपद्रवम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।11।।
वामदेवं महादेवं लोकनाथं जगद्गुरुम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।12।।
देवदेवं जगन्नाथं देवेशमृषभध्वजम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।13।।
अनन्तमव्ययं शान्तमक्षमालाधारं हरम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।14।।
आनन्दं परमं नित्यं कैवल्यपदकारणम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।15।।
स्वर्गापवर्गदातारं सृष्टिस्थित्यन्तकारिणम्
नमामि शिरसा देवं किं नो मृत्यु: करिष्यति।।16।।
।। इति श्री मार्कंडेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री मार्कंडेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
“ॐ इस श्रीसदाशिव स्तोत्र मंत्र के ऋषि मार्कंडेय हैं,
देवता श्री सदाशिव हैं, शक्ति गौरी हैं।
इसका जप सभी प्रकार की मृत्यु की आशंका को शांत करने के लिए किया जाता है।”
मृत्युंजय स्तोत्र –
जो रत्नों के पर्वत पर विराजमान हैं, चाँदी जैसे हिमालय की चोटियों को अपना निवास बनाए हुए हैं,
जिनके शरीर पर सर्पों की कंचुकी सजी है और जो अपराजेय अग्निबाणों के साथ शोभायमान हैं।
जिन्होंने तीनों नगरों को तत्काल जला दिया और जिन्हें देवगण पूजते हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जिनके चरण कमल पाँच वृक्षों के पुष्पों की सुगंध से सुशोभित हैं,
जिनके ललाट की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गया।
जो भस्म से लिप्त शरीर वाले, संसार के दुखों का नाश करने वाले और अविनाशी हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो मतवाले हाथी की खाल को ओढ़े हुए आकर्षक हैं,
जिनके चरणकमलों की पूजा ब्रह्मा और विष्णु करते हैं।
जिनकी जटाओं को गंगा की लहरें धोती हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जिनके कानों में नागराज कुण्डल बने हैं और जो वृषभ (नंदी) पर सवार रहते हैं,
जिनकी स्तुति नारद आदि ऋषि करते हैं और जो सम्पूर्ण संसार के स्वामी हैं।
जिन्होंने अंधकासुर का वध किया और सभी अमर वृक्षों के समान पूज्य हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो यक्षराज कुबेर के मित्र हैं, जिनके दाँतों से भूतों का भय मिट जाता है,
जिनके गले में सर्पों की माला है और जिनकी पत्नी हिमालय पुत्री (पार्वती) हैं।
जिनके गले में विष की नीली लकीरें हैं, जो फरसा और मृग धारण करते हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो समस्त सांसारिक रोगों के लिए औषधि हैं और सब दुखों का नाश करते हैं,
जिन्होंने दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया और जो त्रिगुणात्मक, त्रिनेत्रधारी हैं।
जो भोग और मोक्ष दोनों देने वाले हैं तथा पापों का नाश करने वाले हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो भक्तों पर सदा दयालु रहते हैं और अमूल्य निधि के समान हैं,
जो सभी प्राणियों के स्वामी, सबसे श्रेष्ठ और अद्वितीय हैं।
जिनके स्वरूप को भूमि, जल, आकाश, अग्नि और चंद्रमा भी स्वीकार करते हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो सृष्टि के रचयिता, पालनकर्ता और संहारक हैं,
जिनका निवास समस्त लोकों में है और जो सदैव गणों के साथ लीलामग्न रहते हैं,
ऐसे चन्द्रशेखर की मैं शरण लेता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो रुद्र हैं, पशुपति हैं, स्थाणु हैं, नीलकण्ठ हैं और पार्वतीपति हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो कालकण्ठ हैं, कलारूप हैं, कालाग्नि हैं और काल का नाश करने वाले हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो नीलकण्ठ, विरुपाक्ष, निर्मल और निःशंक हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो वामदेव, महादेव, लोकनाथ और जगद्गुरु हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो देवों के भी देव, जगत के स्वामी और रृषभध्वज हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो अनंत, अविनाशी, शांतस्वरूप और अक्षय माला धारण करते हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो परमानंदस्वरूप, शाश्वत और मोक्ष का कारण हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
जो स्वर्ग और मोक्ष दोनों देने वाले, सृष्टि, पालन और संहार के अधिपति हैं –
ऐसे देव को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ, फिर मृत्यु मेरा क्या कर सकती है?
।। इस प्रकार श्री मार्कंडेय कृत महामृत्युंजय स्तोत्र समाप्त होता है ।।
लाभ (Benefits)
- अकाल मृत्यु से रक्षा: यह स्तोत्र विशेष रूप से मृत्यु के भय, दुर्घटनाओं और गंभीर बीमारियों से बचाने वाला है।
- रोग-नाशक प्रभाव: यह स्तोत्र शरीर को रोगों से मुक्त करता है, विशेषतः जब किसी की तबीयत लगातार खराब हो या मृत्यु का भय बना हो।
- दीर्घायु प्रदान करता है: स्तोत्र का नियमित जप करने से दीर्घायु, आरोग्य और तेज की प्राप्ति होती है।
- संकटों से रक्षा: शत्रु बाधा, काला जादू, भूत-प्रेत, बुरी दृष्टि आदि नष्ट हो जाते हैं।
- मानसिक शांति व शक्ति: यह स्तोत्र मन को शांति देता है और आत्मबल बढ़ाता है।
- घर में सुख-शांति: यदि घर में बार-बार बीमारियाँ, अशांति या झगड़े होते हैं तो इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान और समय: सुबह ब्रह्ममुहूर्त में या शाम को शांत स्थान पर बैठकर करें।
- साफ-सुथरे वस्त्र: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। सफेद या पीले वस्त्र श्रेष्ठ माने जाते हैं।
- शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति/चित्र: सामने रखें और दीपक जलाकर पुष्प अर्पित करें।
- रुद्राक्ष की माला से जप करें (यदि उपलब्ध हो)।
- आरंभ में संकल्प लें: “मैं अमुक उद्देश्य से यह महामृत्युंजय स्तोत्र पाठ कर रहा/रही हूँ।”
- एकाग्रता और श्रद्धा: पाठ करते समय मन को भटकने न दें, भगवान शिव के चंद्रशेखर रूप का ध्यान करें।
- अंत में आरती करें और प्रार्थना करें।
जप/पाठ का समय (Jap Time)
- रोज़ाना पाठ करें: विशेषतः सोमवार या प्रदोष व्रत के दिन उत्तम होता है।
- सुबह (ब्रह्म मुहूर्त, 4 से 6 बजे): यह समय सबसे शुभ माना गया है।
- या शाम के समय सूर्यास्त के बाद।
- विशेष संकट के समय: जब कोई मृत्यु शय्या पर हो, किसी की जान को खतरा हो, या कोई गंभीर ऑपरेशन हो – उस समय इसका पाठ अद्भुत लाभ देता है।
- रोगी के सिरहाने बैठकर पाठ करें – यह मृत्यु को भी टाल सकता है।