माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र तंत्र और शक्ति साधना के मार्ग में अत्यंत प्रभावशाली और दुर्लभ स्तोत्रों में से एक है। यह स्तोत्र आदिशक्ति के उग्र रूप माँ छिन्नमस्ता को समर्पित है, जो दश महाविद्याओं में एक विशेष स्थान रखती हैं। माँ छिन्नमस्ता का रूप अत्यंत रहस्यमयी, विस्मयकारी और प्रतीकात्मक है — वह स्वयं अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से संसार की तृष्णा मिटाती हैं। यह त्याग, शक्ति, और आत्म-नियंत्रण का सर्वोच्च प्रतीक है।
इस स्तोत्र में माँ छिन्नमस्ता की महिमा, स्वरूप, शक्तियाँ और उनके तांत्रिक प्रभावों का गहन वर्णन किया गया है। इसमें यह बताया गया है कि जो साधक मन, वाणी और कर्म से माँ की आराधना करता है, वह संसार के भय, दरिद्रता, रोग, बाधा, शत्रु, और माया से मुक्त होकर तेज, समृद्धि और सिद्धियों से युक्त हो जाता है। यह स्तोत्र साधकों को निर्भीक बनाता है और अद्भुत आध्यात्मिक बल प्रदान करता है।
जो भी साधक इस स्तोत्र का विधिपूर्वक जप करता है, वह स्वयं माँ की कृपा से अप्रतिम यश, धन, सिद्धियाँ और आत्म-शक्ति प्राप्त करता है। यह स्तोत्र तांत्रिक उपासना में विशेष रूप से प्रयुक्त होता है, किंतु सच्ची श्रद्धा और भक्ति से किया गया इसका पाठ किसी भी साधक के जीवन में बड़ा चमत्कार ला सकता है।
Maa Chinnamasta Stotram (माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र)
आनन्दयित्रि परमेश्वरि वेदगर्भे मातः पुरन्दरपुरान्तरलब्धनेत्रे ।
लक्ष्मीमशेषजगतां परिभावयन्तः सन्तो भजन्ति भवतीं धनदेशलब्ध्यै ॥ १ ॥
लज्जानुगां विमलविद्रुमकान्तिकान्तां कान्तानुरागरसिकाः परमेश्वरि त्वाम् ।
ये भावयन्ति मनसा मनुजास्त एते सीमन्तिनीभिरनिशं परिभाव्यमानाः ॥ २ ॥
मायामयीं निखिलपातककोटिकूटविद्राविणीं भृशमसंशयिनो भजन्ति ।
त्वां पद्मसुन्दरतनुं तरुणारुणास्यां पाशाङ्कुशाभयवराद्यकरां वरास्त्रैः ॥ ३ ॥
ते तर्ककर्कशधियः श्रुतिशास्त्रशिल्पैश्छन्दोऽभिशोभितमुखाः सकलागमज्ञाः ।
सर्वज्ञलब्धविभवाः कुमुदेन्दुवर्णां ये वाग्भवे च भवतीं परिभावयन्ति ॥ ४ ॥
वज्रपणुन्नहृदया समयद्रुहस्ते वैरोचने मदनमन्दिरगास्यमातः ।
मायाद्वयानुगतविग्रहभूषिताऽसि दिव्यास्त्रवह्निवनितानुगताऽसि धन्ये ॥ ५ ॥
वृत्तत्रयाष्टदलवह्निपुरःसरस्य मार्तण्डमण्डलगतां परिभावयन्ति ।
ये वह्निकूटसदृशीं मणिपूरकान्तस्ते कालकण्टकविडम्बनचञ्चवः स्युः ॥ ६ ॥
कालागरुभ्रमरचन्दनकुण्डगोल- खण्डैरनङ्गमदनोद्भवमादनीभिः ।
सिन्दूरकुङ्कुमपटीरहिमैर्विधाय सन्मण्डलं तदुपरीह यजेन्मृडानीम् ॥ ७ ॥
चञ्चत्तडिन्मिहिरकोटिकरां विचेला- मुद्यत्कबन्धरुधिरां द्विभुजां त्रिनेत्राम् ।
वामे विकीर्णकचशीर्षकरे परे तामीडे परं परमकर्त्रिकया समेताम् ॥ ८ ॥
कामेश्वराङ्गनिलयां कलया सुधांशोर्विभ्राजमानहृदयामपरे स्मरन्ति ।
सुप्ताहिराजसदृशीं परमेश्वरस्थां त्वामाद्रिराजतनये च समानमानाः ॥ ९ ॥
लिङ्गत्रयोपरिगतामपि वह्निचक्र- पीठानुगां सरसिजासनसन्निविष्टाम् ।
सुप्तां प्रबोध्य भवतीं मनुजा गुरूक्तहूँकारवायुवशिभिर्मनसा भजन्ति ॥ १० ॥
शुभ्रासि शान्तिककथासु तथैव पीता स्तम्भे रिपोरथ च शुभ्रतरासि मातः ।
उच्चाटनेऽप्यसितकर्मसुकर्मणि त्वं संसेव्यसे स्फटिककान्तिरनन्तचारे ॥ ११ ॥
त्वामुत्पलैर्मधुयुतैर्मधुनोपनीतैर्गव्यैः पयोविलुलितैः शतमेव कुण्डे ।
साज्यैश्च तोषयति यः पुरुषस्त्रिसन्ध्यं षण्मासतो भवति शक्रसमो हि भूमौ ॥ १२ ॥
जाग्रत्स्वपन्नपि शिवे तव मन्त्रराजमेवं विचिन्तयति यो मनसा विधिज्ञः ।
संसारसागरसमृद्धरणे वहित्रं चित्रं न भूतजननेऽपि जगत्सु पुंसः ॥ १३ ॥
इयं विद्या वन्द्या हरिहरविरिञ्चिप्रभृतिभिः पुरारातेरन्तः पुरमिदमगम्यं पशुजनैः ।
सुधामन्दानन्दैः पशुपतिसमानव्यसनिभिः सुधासेव्यैः सद्भिर्गुरुचरणसंसारचतुरैः ॥ १४ ॥
कुण्डे वा मण्डले वा शुचिरथ मनुना भावयत्येव मन्त्री संस्थाप्योच्चैर्जुहोति प्रसवसुफलदैः पद्मपालाशकानाम् ।
हैमं क्षीरैस्तिलैर्वां समधुककुसुमैर्मालतीबन्धुजातीश्वेतैरब्धं सकानामपि वरसमिधा सम्पदे सर्वसिद्ध्यै ॥ १५ ॥
अन्धः साज्यं समांसं दधियुतमथवा योऽन्वहं यामिनीनां मध्ये देव्यै ददाति प्रभवति गृहगा श्रीरमुष्यावखण्डा ।
आज्यं मांसं सरक्तं तिलयुतमथवा तण्डुलं पायसं वा हुत्वा मांसं त्रिसन्ध्यं स भवति मनुजो भूतिभिर्भूतनाथः ॥ १६ ॥
इदं देव्याः स्तोत्रं पठति मनुजो यस्त्रिसमयं शुचिर्भूत्वा विश्वे भवति धनदो वासवसमः ।
वशा भूपाः कान्ता निखिलरिपुहन्तुः सुरगणा भवन्त्युच्चैर्वाचो यदिह ननु मासैस्त्रिभिरपि ॥ १७ ॥
॥ इति माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
Maa Chinnamasta Stotram
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
हे परमेश्वरी! वेदों की जननी, आनंद देने वाली, इन्द्रपुरी की आंतरिक दृष्टि प्राप्त करने वाली माता।
समस्त लोकों की लक्ष्मीस्वरूपा देवी को धन और क्षेत्र की प्राप्ति के लिए संतजन पूजते हैं ॥ १ ॥
हे परमेश्वरी! जो लज्जाशील हैं, लाल मणियों के समान आभा वाली, प्रेम रस में रची बसी हैं।
जो मन से आपकी उपासना करते हैं, वे सदैव सौभाग्यशाली स्त्रियों द्वारा पूजित होते हैं ॥ २ ॥
हे मायामयी देवी! करोड़ों पापों का नाश करने वाली, सुंदर पद्मवर्ण तन वाली, युवा अरुणमुखी।
पाश, अंकुश, अभय और वर मुद्रा से युक्त, जो शक के बिना आपकी उपासना करते हैं, वे श्रेष्ठ होते हैं ॥ ३ ॥
जो कठोर तर्कशील बुद्धि वाले हैं, वेद, शास्त्र और कला में निपुण हैं, छंदों से युक्त हैं, समस्त आगम के ज्ञाता हैं।
वे सभी विद्वान् जब आपके चंद्रमा जैसे सौम्य रूप की उपासना करते हैं, तो सर्वज्ञ और ऐश्वर्ययुक्त बनते हैं ॥ ४ ॥
हे माता! वज्र के समान कठोरता से हृदय को छूने वाली, शत्रुओं को शांत करने वाली, इन्द्र जैसी शोभा वाली।
आप द्वैत और अद्वैत रूपों से युक्त हैं, दिव्य अस्त्रों और अग्निशक्ति से युक्त हैं, धन्य हैं आप ॥ ५ ॥
जो त्रिकोण और आठ दलों के बीच अग्नि में स्थित आपके मणिपुर केंद्र रूप को पूजते हैं,
वे अग्निकूट के समान प्रज्वलित होकर मृत्यु जैसे काल को भी मात देने वाले बन जाते हैं ॥ ६ ॥
जो आपकी उपासना कामदेव उत्पत्ति में प्रयुक्त इत्र, चंदन, कुंडगोल, और सुगंधित रसायनों से करते हैं,
वे लाल चंदन, कुमकुम और हिम वस्त्रों से मंडल तैयार कर देवी को प्रसन्न करते हैं ॥ ७ ॥
जो बिजली की तरह चमकती हैं, सूर्य किरणों से अधिक तेजस्वी हैं, जिनका कंधे से रक्त बहता है, दो भुजाओं और तीन नेत्रों वाली हैं।
बाईं ओर हाथ में सिर पकड़े हुए, सर्वोच्च शक्ति से युक्त, मैं उन परम माँ की वंदना करता हूँ ॥ ८ ॥
कुछ साधक आपको कामेश्वर की अर्धांगिनी, चंद्रमा के समान चमकने वाले हृदय वाली मानते हैं।
सुप्त नाग के समान निश्चल, परमेश्वर के समीपस्थ, पर्वतराज हिमालय की पुत्री समान पूजनीय मानते हैं ॥ ९ ॥
जो तीन प्रकार के लिंगों में स्थित हैं, अग्निचक्र और कमलासन की अधिष्ठात्री हैं।
गुरु द्वारा बताए गए मन्त्र से वायु द्वारा जगाकर जो ध्यान करते हैं, वे भवसागर से पार हो जाते हैं ॥ १० ॥
हे माँ! आप शांति की कथाओं में उज्ज्वल हैं, पीतवर्णा हैं, शत्रुओं के नाश में शुभ्रतर हैं।
उच्चाटन या काले-श्वेत कर्म में भी आपकी ही उपासना की जाती है, आप स्फटिक जैसी स्वच्छ हैं ॥ ११ ॥
जो व्यक्ति आपको कमल, मधु, दूध, और घृत से सजे हुए सौ पात्रों में त्रिकाल पूजन करता है,
वह छह माह के भीतर धरती पर इन्द्र के समान प्रभावशाली और समृद्ध हो जाता है ॥ १२ ॥
हे शिवे! जो मनुष्य आपके मन्त्रराज का जाग्रत या स्वप्न में भी ध्यान करता है,
वह संसार रूपी समुद्र में डूबते हुए को भी पार कराने वाला नौका बन जाता है, यह अद्भुत है ॥ १३ ॥
यह विद्या, जिसे हरि, हर और ब्रह्मा जैसे देवता भी पूजते हैं, असाधारण है, पशु बुद्धि से रहित जनों के लिए अगम्य है।
यह सुधा स्वरूपा विद्या सद्गुरु के चरणों में निवास करती है, ज्ञानी जन ही इसे प्राप्त करते हैं ॥ १४ ॥
जो व्यक्ति शुद्ध भाव से मंत्र को मंडल या कुंड में स्थापित कर उच्चारण सहित आहुतियाँ देता है,
वह स्वर्ण, दूध, तिल, मधु, पुष्प आदि से यज्ञ करता है और समस्त सिद्धियों को प्राप्त करता है ॥ १५ ॥
जो रात में माँ को दूध, घृत, मांस या रक्त सहित तिल, चावल या खीर अर्पित करता है,
वह व्यक्ति त्रिकाल हवन करने से भूतनाथ के समान शक्तिशाली और चमत्कारी बनता है ॥ १६ ॥
जो मनुष्य इस स्तोत्र का तीनों समय पाठ करता है, वह शुद्ध होकर इन्द्र के समान धनी बनता है।
राजा, स्त्रियाँ, शत्रु, देवता सभी उसके अधीन हो जाते हैं; केवल तीन महीने में यह प्रभाव दिखता है ॥ १७ ॥
॥ इस प्रकार माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र के लाभ, विधि और जाप का समय
लाभ (Benefits):
माँ छिन्नमस्ता स्तोत्र का पाठ करने से साधक को निम्नलिखित दिव्य लाभ प्राप्त होते हैं —
- भय, शत्रु और तांत्रिक बाधाओं से मुक्ति: यह स्तोत्र अत्यंत उग्र एवं रक्षक प्रभाव वाला है, जो नकारात्मक शक्तियों और काले जादू से रक्षा करता है।
- विपरीत ग्रह दोषों से राहत: विशेष रूप से राहु-केतु और मंगल के प्रभाव से पीड़ित लोगों को लाभ होता है।
- धन, ऐश्वर्य और सौभाग्य की प्राप्ति: नियमित पाठ से दरिद्रता दूर होती है और जीवन में समृद्धि आती है।
- साहस और आत्मबल की वृद्धि: साधक का आत्मविश्वास, निर्णयशक्ति और मानसिक बल कई गुना बढ़ता है।
- सिद्धि और तांत्रिक सफलता: यह स्तोत्र विशेष रूप से तंत्र मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए फलदायक माना गया है।
- मुक्ति और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर: माँ छिन्नमस्ता के ध्यान और स्तोत्र से साधक मोह-माया से ऊपर उठकर सच्चे आत्मिक विकास की ओर बढ़ता है।
विधि (Puja Vidhi):
- स्थान चयन: साधना किसी शांत, पवित्र और एकांत स्थान पर करें। तांत्रिक साधना के लिए घर का पूजन कक्ष या किसी सिद्ध स्थान का चयन करें।
- माँ छिन्नमस्ता की प्रतिमा या चित्र रखें: देवी को रक्तवर्णी फूल, जैसे लाल गुलाब या चंपा अर्पित करें।
- दीपक जलाएं: घी या तिल के तेल का दीपक जलाना शुभ माना गया है।
- धूप और नैवेद्य: गुग्गुल या चंदन की धूप दें, और नैवेद्य में गुड़, नारियल, मीठा भोग अर्पित करें।
- स्तोत्र पाठ: स्तोत्र का श्रद्धा और मनोयोग से उच्चारण करें। आरंभ में 1 बार पाठ करें, फिर आवश्यकता अनुसार 3, 7 या 11 बार भी कर सकते हैं।
- अंत में प्रार्थना: देवी से अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु प्रार्थना करें और धन्यवाद अर्पित करें।
विशेष: यदि आप किसी तांत्रिक प्रयोग के लिए स्तोत्र पढ़ रहे हैं, तो उसे किसी योग्य गुरु की देखरेख में ही करें।
जाप का समय (Best Time to Chant):
- त्रिसंध्या (सुबह, दोपहर, शाम) – तीनों समय इसका पाठ करने से अधिकतम फल मिलता है।
- रात्रि का समय (अर्धरात्रि या रात्रि 10 बजे के बाद) – तांत्रिक प्रभावों और सिद्धि हेतु सर्वश्रेष्ठ समय।
- अमावस्या, पूर्णिमा, नवरात्रि, और विशेष तांत्रिक तिथियों पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
- मंगलवार और शनिवार को इसका जप अत्यधिक प्रभावकारी माना जाता है।