माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र एक अत्यंत भावपूर्ण और शक्तिशाली स्तुति है जो देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है। यह स्तोत्र माँ की करुणा, कृपा और उनके “भिक्षा दान” स्वरूप का सुंदर वर्णन करता है। अन्न की देवी के रूप में पूजित माँ अन्नपूर्णा को “प्रत्यक्ष महेश्वरी” माना गया है, जो शिवजी को भी भिक्षा प्रदान करती हैं। इस स्तोत्र के माध्यम से भक्त माँ से न केवल अन्न की, बल्कि ज्ञान, वैराग्य, शांति और आत्मिक संतोष की भी याचना करता है।
इस स्तोत्र की रचना ऐसे शब्दों से की गई है जो माँ के सौंदर्य, ऐश्वर्य, तेज और करुणा का गहन रूप से चित्रण करते हैं। प्रत्येक श्लोक का अंत “भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी” से होता है, जो भक्त के पूर्ण आत्मसमर्पण और श्रद्धा का प्रतीक है।
काशी (वाराणसी) की अधीश्वरी कही जाने वाली माँ अन्नपूर्णा के इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में अन्न, धन और समृद्धि की वृद्धि होती है। यह स्तोत्र न केवल शारीरिक भूख मिटाने के लिए है, बल्कि आत्मा की भूख और जीवन के अभावों को भी शांत करने का माध्यम है। यह भक्त और ईश्वर के बीच पूर्ण विश्वास और करुणा पर आधारित संबंध को सशक्त करता है।
Maa Annapurna Stotram (माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र)
नित्यानन्दकरी वराभयकरी सौन्दर्यरत्नाकरी
निर्धूताखिलघोरपावनकरी प्रत्यक्षमाहेश्वरी ।
प्रालेयाचलवंशपावनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १ ॥
नानारत्नविचित्रभूषणकरी हेमाम्बराडम्बरी
मुक्ताहारविलम्बमानविलसद्वक्षोजकुम्भान्तरी ।
काश्मीरागरुवासिताङ्गरुचिरे काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ २ ॥
योगानन्दकरी रिपुक्षयकरी धर्मार्थनिष्ठाकरी
चन्द्रार्कानलभासमानलहरी त्रैलोक्यरक्षाकरी ।
सर्वैश्वर्यसमस्तवाञ्छितकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ३ ॥
कैलासाचलकन्दरालयकरी गौरी उमा शङ्करी
कौमारी निगमार्थगोचरकरी ओङ्कारबीजाक्षरी ।
मोक्षद्वारकपाटपाटनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ४ ॥
दृश्यादृश्यविभूतिवाहनकरी ब्रह्माण्डभाण्डोदरी
लीलानाटकसूत्रभेदनकरी विज्ञानदीपाङ्कुरी ।
श्रीविश्वेशमनःप्रसादनकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ५ ॥
उर्वीसर्वजनेश्वरी भगवती मातान्नपूर्णेश्वरी
वेणीनीलसमानकुन्तलहरी नित्यान्नदानेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ६ ॥
आदिक्षान्तसमस्तवर्णनकरी शम्भोस्त्रिभावाकरी
काश्मीरात्रिजलेश्वरी त्रिलहरी नित्याङ्कुरा शर्वरी ।
कामाकाङ्क्षकरी जनोदयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ७ ॥
देवी सर्वविचित्ररत्नरचिता दाक्षायणी सुन्दरी
वामं स्वादुपयोधरप्रियकरी सौभाग्यमाहेश्वरी ।
भक्ताभीष्टकरी सदा शुभकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ८ ॥
चन्द्रार्कानलकोटिकोटिसदृशा चन्द्रांशुबिम्बाधरी
चन्द्रार्काग्निसमानकुन्तलधरी चन्द्रार्कवर्णेश्वरी ।
मालापुस्तकपाशासाङ्कुशधरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ ९ ॥
क्षत्रत्राणकरी महाऽभयकरी माता कृपासागरी
साक्षान्मोक्षकरी सदा शिवकरी विश्वेश्वरश्रीधरी ।
दक्षाक्रन्दकरी निरामयकरी काशीपुराधीश्वरी
भिक्षां देहि कृपावलम्बनकरी मातान्नपूर्णेश्वरी ॥ १० ॥
अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे ।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति ॥ ११ ॥
माता च पार्वती देवी पिता देवो महेश्वरः ।
बान्धवाः शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ॥ १२ ॥
॥ इति श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
नित्य आनंद प्रदान करने वाली, वर और अभय देने वाली, सौंदर्य की रत्नराशि स्वरूपा।
भयंकर पापों का नाश करने वाली, प्रत्यक्ष महेश्वरी।
हिमालय वंश को पवित्र करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ १ ॥
विभिन्न रत्नों से अलंकृत, स्वर्णवस्त्र धारण करने वाली।
मोती की माला से सुशोभित, सुंदर वक्षस्थल वाली।
कश्मीरी अगरु से सुगंधित अंगों वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ २ ॥
योग से आनंद देने वाली, शत्रुओं का नाश करने वाली, धर्म और अर्थ में स्थिरता देने वाली।
चंद्र, सूर्य और अग्नि के समान तेज वाली, तीनों लोकों की रक्षक।
समस्त ऐश्वर्य और इच्छित वस्तुएं देने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ३ ॥
कैलास पर्वत की गुफाओं में निवास करने वाली, गौरी, उमा और शंकर की अर्धांगिनी।
बाल रूप में वेदों के अर्थ में प्रकट होने वाली, ओंकार बीज मंत्र की स्वरूपा।
मोक्ष के द्वार खोलने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ४ ॥
दृश्य और अदृश्य शक्तियों की स्वामिनी, ब्रह्मांड रूपी पात्र की धारिणी।
लीला रूपी नाटक की सूत्रधार, विज्ञानरूपी दीप की ज्वाला।
श्री विश्वेश्वर के मन को प्रसन्न करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ५ ॥
पृथ्वी के समस्त जनों की अधीश्वरी, भगवती अन्नपूर्णा माता।
नीले बालों की वेणी वाली, सदा अन्नदान देने वाली।
सर्वदा आनंद और शुभ फल देने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ६ ॥
सृष्टि के आरंभ से अंत तक वर्णन करने वाली, शिव के तीन रूपों की अधिष्ठात्री।
कश्मीर और त्रिजला की स्वामिनी, नित्य अंकुर और शुभरात्रि की देवी।
कामनाएं पूर्ण करने वाली, लोककल्याणकारी, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ७ ॥
देवी जो विचित्र रत्नों से रचित हैं, दक्ष की पुत्री और सुंदर रूपवाली।
वाम अंग के प्रिय अमृत समान स्तनों की स्वामिनी, सौभाग्य देने वाली महेश्वरी।
भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली, सदा शुभफल देने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ८ ॥
जो करोड़ों चंद्रमा, सूर्य और अग्नि के समान तेजस्वी हैं, चंद्र रश्मि के समान मुखवाली।
सूर्य, चंद्र और अग्नि के रंग जैसे केशों वाली, चंद्र-सूर्य के वर्ण की अधीश्वरी।
माला, पुस्तक, पाश और अंकुश धारण करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ ९ ॥
क्षत्रियों की रक्षक, महान अभय प्रदान करने वाली, कृपा की सागर माता।
प्रत्यक्ष मोक्ष प्रदान करने वाली, सदा शिवस्वरूपिणी, विश्वेश्वर को धारण करने वाली।
दक्ष के क्रंदन की कारण, रोगों का नाश करने वाली, काशीपुरी की अधीश्वरी।
हे कृपामयी अन्नपूर्णा माता! मुझे भिक्षा दीजिए ॥ १० ॥
हे अन्नपूर्णे! जो सदा पूर्णता से परिपूर्ण हैं, जो शंकर की प्राणप्रिया हैं।
ज्ञान और वैराग्य की सिद्धि के लिए, मुझे भिक्षा दो, हे पार्वती ॥ ११ ॥
माँ पार्वती ही मेरी माता हैं, देव महेश्वर मेरे पिता हैं।
शिवभक्त ही मेरे बंधु हैं और तीनों लोक ही मेरा देश हैं ॥ १२ ॥
॥ इस प्रकार श्री अन्नपूर्णा स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ॥
माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र – लाभ, विधि और जप का समय
लाभ (Benefits):
- माँ अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में कभी अन्न, धन और संसाधनों की कमी नहीं होती।
- यह स्तोत्र दरिद्रता, भूख, आर्थिक अभाव और दुर्भाग्य को समाप्त करता है।
- घर में सुख-शांति, वैभव, संतोष और समृद्धि बनी रहती है।
- विद्यार्थी, गृहस्थ और साधक – सभी के लिए यह स्तोत्र अत्यंत कल्याणकारी है।
- नित्य पाठ करने से मानसिक स्थिरता, आत्मिक संतोष और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
- यह स्तोत्र भिक्षा या मांगने की भावना से नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और कृपा की प्रार्थना के रूप में गाया जाता है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातः स्नान कर साफ-सुथरे वस्त्र पहनें और पूजा स्थान को स्वच्छ करें।
- माँ अन्नपूर्णा का चित्र या मूर्ति लाल या पीले वस्त्र पर स्थापित करें।
- दीपक जलाएं, धूप-अगरबत्ती लगाएं और कुछ खाद्य सामग्री (जैसे चावल, गुड़, फल) अर्पण करें।
- स्तोत्र पाठ से पहले “ॐ अन्नपूर्णायै नमः” बीज मंत्र का 11 बार जप करें।
- फिर श्रद्धा और समर्पण भाव से सम्पूर्ण अन्नपूर्णा स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद आरती करें और प्रसाद सभी घर के लोगों को दें।
- विशेष अवसरों पर कन्याओं को भोजन कराना और अन्नदान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
जप का समय (Jaap Time):
- प्रातःकाल (सुबह 6 बजे से पहले) इस स्तोत्र का पाठ सबसे श्रेष्ठ माना गया है।
- पूर्णिमा, अन्नकूट, नवमी, नवरात्रि, दीपावली, और गुरुवार के दिन विशेष फलदायक होते हैं।
- नित्य एक बार पाठ करने से अन्न की कभी कमी नहीं रहती।
- अगर आप आर्थिक संकट या भोजन की कमी से परेशान हैं तो 21 दिन तक लगातार इसका पाठ करने से विशेष लाभ होता है।
- पाठ के बाद मौन रहकर माँ अन्नपूर्णा का ध्यान करना भी लाभकारी होता है।