महालक्ष्मी स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य स्तुति है, जो देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने हेतु श्रद्धापूर्वक पाठ की जाती है। यह स्तोत्र उनके आठ स्वरूपों की महिमा का गुणगान करता है और भक्त के जीवन से दरिद्रता, कष्ट, पाप और दुर्भाग्य को दूर करता है। देवी महालक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य, और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है, और इस स्तोत्र के माध्यम से उनके प्रति भक्ति प्रकट कर उनकी कृपा को प्राप्त किया जा सकता है।
महालक्ष्मी अष्टकम् के रूप में प्रसिद्ध यह स्तोत्र संस्कृत में रचित है और इसमें देवी लक्ष्मी के विभिन्न स्वरूपों, गुणों और शक्तियों का सुंदर वर्णन किया गया है। इसका नित्य पाठ करने से न केवल आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है, बल्कि मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और आत्मिक बल की प्राप्ति भी होती है। विशेष रूप से शुक्रवार को, या दीपावली जैसे पर्वों पर इसका पाठ अत्यधिक फलदायी माना जाता है।
यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक उन्नति का साधन है, बल्कि पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नति की राह को भी प्रशस्त करता है।
महालक्ष्मी स्तोत्र (Mahalakshmi Stotra)
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ।।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित: ।।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ।।
।। इति महालक्ष्मी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
महालक्ष्मी स्तोत्र हिंदी अनुवाद (Mahalakshmi Stotra Meaning in Hindi)
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे महामाया! आपको नमस्कार है, आप श्रीपीठ पर विराजमान हैं और देवताओं द्वारा पूजित हैं। आपके हाथों में शंख, चक्र और गदा हैं – हे महालक्ष्मी! आपको बारम्बार नमस्कार।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे गरुड़ पर सवार होकर कोलासुर राक्षस का नाश करने वाली देवी! समस्त पापों को हरने वाली महालक्ष्मी जी, आपको प्रणाम।
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि ।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे सर्वज्ञानी, सब प्रकार की वरदान देने वाली और सभी दुष्टों का भय दूर करने वाली देवी! सभी दुःखों को हरने वाली महालक्ष्मी जी को नमन है।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे देवी! सिद्धि और बुद्धि देने वाली, भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली, मंत्रों से पवित्र – हे महालक्ष्मी जी! आपको नमस्कार।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे देवी! आप आदि और अंत से रहित हैं, आदि शक्ति और परमेश्वरी हैं। योग से उत्पन्न हुईं और योग से प्रकट हुईं – आपको नमस्कार।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: आप स्थूल, सूक्ष्म और महा उग्र रूप वाली हैं, महान शक्ति और विशाल गर्भ वाली हैं। हे महापापों का नाश करने वाली देवी, आपको प्रणाम।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी ।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे देवी! आप कमलासन पर विराजमान हैं, परब्रह्म की स्वरूपा हैं, परमेश्वरी और जगत की माता – महालक्ष्मी जी, आपको नमस्कार।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ: हे देवी! आप श्वेत वस्त्र धारण किए हुए हैं, विभिन्न आभूषणों से सुशोभित हैं, जगत को धारण करने वाली, और जगत की माता – आपको नमन।
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: ।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा ।।
अर्थ: जो भक्तिपूर्वक इस महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्र का पाठ करता है, वह सभी सिद्धियाँ प्राप्त करता है और सदा राज्य प्राप्त करता है।
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम् ।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित: ।।
अर्थ: जो व्यक्ति दिन में एक बार इसका पाठ करता है, उसके महापाप नष्ट हो जाते हैं; जो दिन में दो बार इसका पाठ करता है, वह धन-धान्य से युक्त हो जाता है।
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् ।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा ।।
अर्थ: जो व्यक्ति दिन में तीन बार इसका पाठ करता है, उसके सभी शत्रु नष्ट हो जाते हैं; और महालक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न रहती हैं, वरदान देने वाली और शुभ फल देने वाली बनकर।
।। इति महालक्ष्मी स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
महालक्ष्मी स्तोत्र – लाभ, विधि और जप समय
लाभ (Benefits):
- इस स्तोत्र के पाठ से जीवन में सुख-शांति, ऐश्वर्य और समृद्धि आती है।
- नित्य पाठ करने से पाप नष्ट होते हैं और घर में लक्ष्मी का वास होता है।
- यह स्तोत्र दरिद्रता, कर्ज और आर्थिक संकट को दूर करने में अत्यंत प्रभावशाली है।
- नियमित रूप से इसका जाप करने से सभी शत्रु शांत होते हैं और भाग्य का उदय होता है।
- शुक्रवार को विशेष रूप से पाठ करने से धन और वैभव की प्राप्ति होती है।
पाठ विधि (Vidhi):
- प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थान को शुद्ध करें।
- माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं और पुष्प अर्पित करें।
- यदि संभव हो तो सफेद वस्त्र पहनें और सफेद या पीले पुष्पों से पूजन करें।
- लक्ष्मी जी को चंदन, कमलगट्टा, काजल, मिठाई और दक्षिणा अर्पण करें।
- शांत चित्त होकर महालक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें, कम से कम एक बार।
- पाठ के बाद आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
जप समय (Jaap Time):
- एक बार प्रतिदिन पाठ करने से पापों का नाश होता है।
- दो बार प्रतिदिन (प्रातः और संध्या) पाठ करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
- तीन बार प्रतिदिन पाठ करने से सभी शत्रुओं का नाश होता है और लक्ष्मीजी सदा प्रसन्न रहती हैं।
- विशेष दिन: शुक्रवार, पूर्णिमा, दीपावली, अक्षय तृतीया, धनतेरस आदि पर इसका पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
- ब्रह्ममुहूर्त (सुबह 4 से 6 बजे के बीच) का समय स्तोत्र पाठ के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।