मातंगी हृदय स्तोत्र तंत्र परंपरा में अष्टमहाविद्याओं में एक प्रमुख देवी श्री मातंगी को समर्पित एक अत्यंत रहस्यमय, शक्तिशाली और कल्याणकारी स्तोत्र है। यह स्तोत्र स्वयं भगवान भैरव द्वारा देवी भैरवी को उपदेश रूप में प्रदान किया गया है, जिसमें उन्होंने मातंगी देवी के हृदयस्थ रूप की स्तुति का रहस्य उजागर किया है।
मातंगी देवी को वाणी, संगीत, कला, वाक्-सिद्धि और आकर्षण की देवी माना जाता है। वे उच्छिष्ट चांडालिनी और शुद्ध चेतना का प्रतीक हैं — जो सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों क्षेत्रों में साधक को वश में करने की अद्भुत शक्ति प्रदान करती हैं।
इस स्तोत्र का पाठ न केवल सांसारिक सुख, संपत्ति और समृद्धि प्रदान करता है, बल्कि यह साधक के भीतर दिव्य चेतना, वाणी की सिद्धि और आत्मिक उन्नति भी उत्पन्न करता है। यह स्तोत्र दुख, दरिद्रता, मानसिक अशांति, शत्रु बाधा, वाणी दोष, पारिवारिक कलह आदि सभी संकटों का नाश करने में समर्थ है।
मातंगी हृदय स्तोत्र (Matangi Hridaya Stotra)
एकदा कौतुकाविष्टा भैरवं भूतसेवितम्।
भैरवी परिपप्रच्छ सर्वभूतहिते रता ॥ १ ॥
श्री भैरव्युवाच।
भगवन्सर्वधर्मज्ञ भूतवात्सल्यभावन।
अहं तु वेत्तुमिच्छामि सर्वभूतोपकारम् ॥ २ ॥
केन मन्त्रेण जप्तेन स्तोत्रेण पठितेन च।
सर्वथा श्रेयसां प्राप्तिर्भूतानां भूतिमिच्छताम् ॥ ३ ॥
श्री भैरव उवाच।
शृणु देवि तव स्नेहात्प्रायो गोप्यमपि प्रिये।
कथयिष्यामि तत्सर्वं सुखसम्पत्करं शुभम् ॥ ४ ॥
पठतां शृण्वतां नित्यं सर्वसम्पत्तिदायकम्।
विद्यैश्वर्यसुखाव्याप्तिमङ्गलप्रदमुत्तमम् ॥ ५ ॥
मातङ्ग्या हृदयं स्तोत्रं दुःखदारिद्र्यभञ्जनम्।
मङ्गलं मङ्गलानां च अस्ति सर्वसुखप्रदम् ॥ ६ ॥
ॐ अस्य श्रीमातङ्गीहृदयस्तोत्रमन्त्रस्य दक्षिणामूर्तिरृषिः –
विराट् छन्दः – श्री मातङ्गी देवता – ह्रीं बीजं – क्लीं शक्तिः – ह्रूं कीलकं।
सर्ववाञ्छितार्थसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः॥
ऋष्यादिन्यासः।
दक्षिणामूर्तिरृषये नमः शिरसि।
विराट्छन्दसे नमः मुखे।
मातङ्गीदेवतायै नमः हृदि।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
हूं शक्तये नमः पादयोः।
क्लीं कीलकाय नमः नाभौ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे।
इति ऋष्यादिन्यासः॥
करन्यासः।
ॐ ह्रीं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ क्लीं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ क्लीं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ ह्रूं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
अङ्गन्यासः।
ॐ ह्रीं हृदयाय नमः।
ॐ क्लीं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रूं शिखायै वषट्।
ॐ ह्रीं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ क्लीं कवचाय हुम्।
ॐ ह्रूं अस्त्राय फट्।
॥ ध्यानम् ॥
श्यामां शुभ्रां सुफालां त्रिकमलनयनां रत्नसिंहासनस्थां
भक्ताभीष्टप्रदात्रीं सुरनीकरकरासेव्यकञ्जाङ्घ्रियुग्माम्।
नीलाम्भोजातकान्तिं निशिचरनिकरारण्यदावाग्निरूपां
मातङ्गीमावहन्तीमभिमतफलदां मोदिनीं चिन्तयामि ॥ ७ ॥
नमस्ते मातङ्ग्यै मृदुमुदिततन्वै तनुमतां
परश्रेयोदायै कमलचरणध्यानमनसां।
सदा संसेव्यायै सदसि विबुधैर्दिव्यधिषणैः
दयार्द्रायै देव्यै दुरितदलनोद्दण्ड मनसे ॥ ८ ॥
परं मातस्ते यो जपति मनुमेवोग्रहृदयः
कवित्वं कल्पानां कलयति सुकल्पः प्रतिपदम्।
अपि प्रायो रम्याऽमृतमयपदा तस्य ललिता
नटी चाद्या वाणी नटन रसनायां च फलिता ॥ ९ ॥
तव ध्यायन्तो ये वपुरनुजपन्ति प्रवलितं
सदा मन्त्रं मातर्नहि भवति तेषां परिभवः।
कदम्बानां माल्यैरपि शिरसि युञ्जन्ति यदि ये
भवन्ति प्रायस्ते युवतिजनयूथस्ववशगाः ॥ १० ॥
सरोजैः साहस्रैः सरसिजपदद्वन्द्वमपि ये
सहस्रं नामोक्त्वा तदपि च तवाङ्गे मनुमितं।
पृथङ्नाम्ना तेनायुतकलितमर्चन्ति प्रसृते
सदा देवव्रातप्रणमितपदाम्भोजयुगलाः ॥ ११ ॥
तव प्रीत्यैर्मातर्ददति बलिमादाय सलिलं
समत्स्यं मांसं वा सुरुचिरसितं राजरुचितम्।
सुपुण्यायै स्वान्तस्तव चरणप्रेमैकरसिकाः
अहो भाग्यं तेषां त्रिभुवनमलं वश्यमखिलम् ॥ १२ ॥
लसल्लोलश्रोत्राभरणकिरणक्रान्तिललितं
मितस्मेरज्योत्स्नाप्रतिफलितभाभिर्विकरितं।
मुखाम्भोजं मातस्तव परिलुठद्भ्रूमधुकरं
रमा ये ध्यायन्ति त्यजति न हि तेषां सुभवनम् ॥ १३ ॥
परः श्रीमातङ्ग्या जपति हृदयाख्यः सुमनसाम्-
अयं सेव्यः सुद्योऽभिमतफलदश्चातिललितः।
नरा ये शृण्वन्ति स्तवमपि पठन्तीममनुनिशं
न तेषां दुष्प्राप्यं जगति यदलभ्यं दिविषदाम् ॥ १४ ॥
धनार्थी धनमाप्नोति दारार्थी सुन्दरीः प्रियाः।
सुतार्थी लभते पुत्रं स्तवस्यास्य प्रकीर्तनात् ॥ १५ ॥
विद्यार्थी लभते विद्यां विविधां विभवप्रदां।
जयार्थी पठनादस्य जयं प्राप्नोति निश्चितम् ॥ १६ ॥
नष्टराज्यो लभेद्राज्यं सर्वसम्पत्समाश्रितं।
कुबेरसमसम्पत्तिः स भवेद्धृदयं पठन् ॥ १७ ॥
किमत्र बहुनोक्तेन यद्यदिच्छति मानवः।
मातङ्गीहृदयस्तोत्रपठनात्सर्वमाप्नुयात् ॥ १८ ॥
॥ इति श्री दक्षिणामूर्तिसंहितायां मातंगी हृदय स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
मातंगी हृदय स्तोत्र का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Matangi Hridya Stotra)
1. एक बार, जब भैरवी देवी कौतूहल से भर गईं, तब उन्होंने भूतगणों से सेवित भैरव जी से पूछा।
2. (भैरवी बोलीं) हे भगवान! आप सभी धर्मों को जानने वाले हैं, समस्त प्राणियों पर दया करने वाले हैं।
3. मैं जानना चाहती हूँ कि ऐसा कौन-सा मंत्र या स्तोत्र है, जिसका जप या पाठ करने से समस्त प्राणियों को लाभ होता है?
4. (भैरव बोले) हे देवी! तुम्हारे स्नेह के कारण मैं वह सब बताने जा रहा हूँ, जो सामान्यतः गुप्त रखा जाता है, परन्तु यह सम्पत्ति और सुख प्रदान करने वाला है।
5. इसका नित्य पाठ या श्रवण करने से सर्वसिद्धियाँ, विद्या, ऐश्वर्य और सुख की प्राप्ति होती है।
6. यह मातंगी हृदय स्तोत्र दुख और दरिद्रता को दूर करता है, सभी शुभ चीज़ों में श्रेष्ठ है, और सम्पूर्ण सुखों को प्रदान करने वाला है।
बीज मंत्र और विनियोग
इस स्तोत्र का ऋषि – दक्षिणामूर्ति हैं, छंद – विराट् है, देवी – श्री मातंगी हैं,
बीज – “ह्रीं”, शक्ति – “क्लीं”, कीलक – “ह्रूं” है।
इसका प्रयोग सभी इच्छाओं की सिद्धि के लिए किया जाता है।
ऋष्यादि न्यास (देवता का आह्वान)
दक्षिणामूर्ति ऋषि को मस्तक पर नमस्कार।
विराट छंद को मुख में नमस्कार।
मातंगी देवी को हृदय में नमस्कार।
“ह्रीं” बीज को गुप्तांग में नमस्कार।
“हूं” शक्ति को पैरों में नमस्कार।
“क्लीं” कीलक को नाभि में नमस्कार।
विनियोग (उपयोग) पूरे शरीर में।
करण न्यास (हाथों में मंत्र का स्थितिकरण)
ह्रीं – अंगूठों में
क्लीं – तर्जनी (इंडेक्स फिंगर)
ह्रूं – मध्यमा (मिडल फिंगर)
ह्रीं – अनामिका (रिंग फिंगर)
क्लीं – कनिष्ठिका (लिटल फिंगर)
ह्रूं – हथेली और हाथ की पीठ में
अंग न्यास (देह पर स्थितिकरण)
हृदय में ह्रीं
सिर में क्लीं
शिखा में ह्रूं
तीन नेत्रों में ह्रीं
कवच में क्लीं
अस्त्र में ह्रूं
ध्यानम् (ध्यान करें)
मैं उस मातंगी देवी का ध्यान करता हूँ जो श्यामवर्णा हैं, शुभ्र वस्त्रों से सुशोभित हैं, सुंदर फलों से युक्त हैं, तीन कमल सदृश नेत्रों वाली हैं, रत्नों के सिंहासन पर विराजमान हैं, भक्तों की इच्छाएं पूर्ण करती हैं, देवताओं द्वारा सेवा की जाती हैं, नीले कमल के समान कांती वाली हैं, और रात्रि के समय दुष्टों के लिए अग्निरूप हैं।
स्तोत्र श्लोकों का भावार्थ
8. हे मातंगी! आपको प्रणाम है, आप कोमल, प्रसन्नचित्त और सुखद देहवाली हैं। कमल के समान चरणों का ध्यान करने वालों को सर्वोच्च कल्याण प्रदान करती हैं। देवताओं द्वारा सतत पूज्यनीय और दयालु हैं, और समस्त पापों का नाश करने वाली हैं।
9. जो आपका मंत्र और हृदय स्तोत्र जपते हैं, उन्हें उच्च कोटि की कविता और वाणी प्राप्त होती है। उनकी रसना (वाणी) साक्षात सरस्वती बन जाती है।
10. जो आपके स्वरूप का ध्यान करते हैं और मंत्र जपते हैं, वे अपमानित नहीं होते। वे कदंब पुष्पों की माला धारण करके स्त्रियों को भी आकर्षित कर लेते हैं।
11. जो व्यक्ति सहस्त्रों कमलों से आपके चरणों की पूजा करते हैं और सहस्त्र बार नाम जाप करते हैं, वे देवताओं द्वारा भी पूजित होते हैं।
12. जो आपके चरणों के प्रेम में लीन होकर बलि, जल, मछली, मांस आदि अर्पित करते हैं, वे सौभाग्यशाली होते हैं, और तीनों लोकों को वश में कर सकते हैं।
13. जिनका मुखमंडल झूमते हुए सुंदर आभूषणों से शोभित होता है और जिनकी भौंहों पर भ्रमर मंडराते हैं, ऐसे आपके मुखकमल का ध्यान करने वालों के घर से सौभाग्य नहीं जाता।
14. जो मातंगी देवी का यह हृदय स्तोत्र नित्य जपते हैं, वे सभी मनचाही वस्तुएं प्राप्त करते हैं, जो देवताओं को भी दुर्लभ है।
15. जो धन की कामना करता है, उसे धन मिलता है। जो पत्नी की कामना करता है, उसे सुंदर पत्नी मिलती है। जो संतान चाहता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है।
16. जो विद्यार्थी है, उसे उत्तम विद्या मिलती है। जो विजय चाहता है, वह निश्चित ही विजयी होता है।
17. जिसकी सत्ता छिन गई हो, वह फिर से राजपद प्राप्त करता है। और जो यह स्तोत्र पढ़ता है, वह कुबेर के समान धनवान बनता है।
18. संक्षेप में कहें तो, जो भी मनुष्य जिस किसी वस्तु की कामना करता है, उसे यह स्तोत्र पढ़ने से वह सब प्राप्त होता है।
॥ इति श्री दक्षिणामूर्ति संहितायां मातंगी हृदय स्तोत्र समाप्त ॥
लाभ (Benefits)
जीवन के तमाम कल्याण: परिवार, घर, आयु, सफलता और ऐश्वर्य सभी प्राप्त होते हैं। विशेष रूप से मातंगी जयन्ती या साधना अवधि में नित्य जाप साकार होता है।
संपूर्ण समृद्धि: शारीरिक, मानसिक, आर्थिक—तीनों रूपों में पूर्ण समृद्धि मिलती है। विद्या, धन, ऐश्वर्य, वाणी, कला और संगीत में निपुणता प्राप्त होती है।
सिद्धियाँ मिलती हैं: कुंडलिनी जागरण, ध्यान-धारणा-संयोग, भविष्योद्घाटन, भूत‑काल परीक्षण जैसी दिव्य शक्तियाँ साकार होती हैं।
शत्रु नाश एवं आकर्षण: साधक के शत्रु नष्ट होते हैं, आकर्षण और वशीकरण शक्तियाँ बढ़ती हैं।
रक्षा और सुरक्षा: मातंगी कवच पढ़ने से मानसिक व शारीरिक सुरक्षा, मन की शांति, आत्मविश्वास व संतुलन प्राप्त होते हैं।
विधि (Method)
- समय और आरंभ
- प्रतिष्ठित काल: अक्षय तृतीया से वैशाख पूर्णिमा तक (लगभग 12 दिन), अथवा किसी सोमवार या गुप्त नवरात्रि के प्रथम दिन से प्रारंभ करें।
- उच्चारण योग्य समय: रात्रि 9 बजे के बाद करना श्रेष्ठ माना जाता है।
- पूजन-संस्कार
- लाल वस्त्र पहनकर पूर्व/उत्तर या पश्चिम की ओर बैठें, सामने गुरु एवं मातंगी का चित्र/यंत्र रखें, लाल आसन पर मौंगा या रुद्राक्ष माला उपयोग करें।
- गुरु-पूजन, गणेश पूजन, फिर भैरव मंत्र (ॐ हूं भ्रं हूं मतंग भैरवाय नमः) करें।
- न्यास एवं जाप
- विनियोग मन्त्र, ऋष्यादि-न्यास, कर-न्यास और अंग-न्यास विधिवत करें (जैसा मूल स्तोत्र में वर्णित)।
- इसके बाद मातंगी हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
- स्तोत्र के अंत में मातंगी कवच या हृदयंगम जाप भी किया जा सकता है।
- माला जाप
- सामान्यतः 11 माला (या कुछ परंपराओं में 21 माला) प्रतिदिन जाप करें।
- यह क्रिया 11 दिनों तक नियमित करें।
- जाप के पश्चात एक आचमनी जल देवी को अर्पित करें।
- समापन
- जाप और स्तोत्र पाठ के अंत में जल, पुष्प, माला आदि देवी को समर्पित करें।
- साधना की समाप्ति पर यन्त्र एवं माला का विधिवत विसर्जन करें। चित्र पूजास्थल पर रख सकते हैं।
जाप का अनुकूल समय (Best Times)
- मुख्य अवधि:
अक्षय तृतीया से वैशाख पूर्णिमा तक (12 दिन) विशेष फलदायक होती है। - वैकल्पिक प्रारंभ:
यदि मुख्य अवधि न हो सके, तो गुप्त नवरात्रि या किसी सोमवार से 11‑21 दिन की साधना शुरू करें। - रात्रिचर्या:
प्रतिदिन रात्रि 9 बजे के बाद साधना आरंभ करना उत्तम है। - नित्य जाप:
साधना अवधि के दौरान प्रतिदिन 11 माला स्तोत्र + 11 माला मंत्र जाप करें।