मातंगी स्तोत्र देवी मातंगी की स्तुति में रचा गया एक तांत्रिक एवं रहस्यात्मक स्तोत्र है। मातंगी दस महाविद्याओं में नवम स्थान पर विराजमान हैं और उन्हें शब्द शक्ति तथा वाणी की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। यह स्तोत्र देवी के अघोर, सौंदर्य, विद्या, तंत्र और सिद्धि स्वरूपों का वर्णन करता है।
देवी मातंगी को त्रिलोक की समस्त विद्याओं, वाक् सिद्धियों और रहस्यमय आकर्षण शक्तियों की स्रोत माना गया है। इस स्तोत्र में वे भिन्न-भिन्न रूपों में वर्णित हैं—कभी रौद्र, कभी सुंदर, कभी शव पर स्थित, तो कभी वशीकरण देने वाली। इनकी आराधना से साधक को वाणी की सिद्धि, वाक् चातुर्य, तांत्रिक कार्यों में सफलता, तथा अधिकार प्राप्ति जैसे दुर्लभ लाभ सहज प्राप्त होते हैं।
यह स्तोत्र “एकजटा कल्पलतिका” ग्रंथ और “शिव दीक्षा” की तांत्रिक परंपरा से संबंधित है, जो इसकी गूढ़ता और प्रभावशीलता को और अधिक प्रकट करता है।
मातंगी स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से शिवरात्रि, अमावस्या, पूर्णिमा, शनिवार और मंगलवार के दिन करना श्रेष्ठ माना जाता है। यह साधना स्त्री या पुरुष को लोक-प्रभाव, आकर्षण, सिद्धि, और राजकीय कृपा तक प्रदान कर सकती है।
मातंगी स्तोत्र (Matangi Stotra)
नमामि वरदां देवीं सुमुखीं सर्वसिद्धिदाम् ।
सूर्यकोटिनिभां देवीं वह्निरूपां व्यवस्थिताम् ॥ १ ॥
रक्तवस्त्र नितम्बां च रक्तमाल्योपशोभिताम् ।
गुंजाहारस्तनाढ्यान्तां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ २ ॥
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनाकर्ष दायिनीम् ।
मुण्ड कर्त्रिं शरावामां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ३ ॥
स्वयम्भुकुसुम प्रीतां ऋतुयोनिनिवासिनीम् ।
शवस्थां स्मेरवदनां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ४ ॥
रजस्वला भवेन्नित्यं पूजेष्टफलदायिनीम् ।
मद्यप्रियं रतिमयीं परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ५ ॥
शिवविष्णुविरञ्चीनां साद्यां बुद्धिप्रदायिनीम् ।
असाध्यं साधिनीं नित्यां परंज्योतिस्वरूपिणीम् ॥ ६ ॥
रात्रौ पूजा बलियुतां गोमांस रुधिरप्रियाम् ।
नानाऽलङ्कारिणीं रौद्रीं पिशाचगणसेविताम् ॥ ७ ॥
इत्यष्टकं पठेद्यस्तु ध्यानरूपां प्रसन्नधीः ।
शिवरात्रौ व्रतेरात्रौ वारूणी दिवसेऽपिवा ॥ ८ ॥
पौर्णमास्याममावस्यां शनिभौमदिने तथा ।
सततं वा पठेद्यस्तु तस्य सिद्धि पदे पदे ॥ ९ ॥
॥ एकजटा कल्पलतिका शिवदीक्षायान्तर्गतम् मातंगी स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
मातंगी स्तोत्र — हिंदी अनुवाद सहित (Matangi Stotra – with Hindi Translation)
मैं उस वरदान देने वाली देवी मातंगी को नमस्कार करता हूँ, जो सुंदर मुखवाली हैं, सभी सिद्धियाँ देने वाली हैं,
और जिनका स्वरूप सूर्य के करोड़ों किरणों के समान दीप्तिमान है तथा अग्निरूप में स्थित है। ॥१॥
जो लाल वस्त्र धारण करती हैं, जिनकी कमर सुंदर है, जो लाल पुष्पों की माला से शोभायमान हैं,
गुंजा की माला उनके स्तनों तक शोभा देती है, और जिनका स्वरूप परम ज्योति (ईश्वरीय प्रकाश) स्वरूप है। ॥२॥
जो मारण (विनाश), मोहन (आकर्षण), वशीकरण, स्तम्भन (नियंत्रण) और आकर्षण प्रदान करने वाली हैं,
जो मुण्ड (कटे हुए सिर) और खप्पर (खोपड़ी का पात्र) धारण करती हैं, और परम ज्योति रूपा हैं। ॥३॥
जो स्वयं उत्पन्न पुष्पों से प्रसन्न होती हैं, जो ऋतुकाल में योनिस्थान में निवास करती हैं,
जो शव पर विराजमान रहती हैं, मंद मुस्कान से शोभायमान हैं, और परम ज्योति स्वरूपिणी हैं। ॥४॥
जो रजस्वला रूप में भी पूजनीय हैं, जो इच्छित फल देने वाली हैं,
जो मद्य (मदिरा) प्रिय हैं, रति स्वरूपा हैं, और परम ज्योति स्वरूपा हैं। ॥५॥
जो शिव, विष्णु और ब्रह्मा को भी बुद्धि देने वाली हैं,
जो असाध्य कार्यों को भी साध्य बना देती हैं, नित्य स्वरूपा हैं, और परम ज्योति स्वरूपा हैं। ॥६॥
जिनकी रात्रि में पूजा की जाती है बलियों के साथ, जो गोमांस व रक्त की प्रिय हैं,
जो विविध आभूषणों से अलंकृत हैं, रौद्र रूपा हैं, और जिनकी सेवा पिशाचों का समूह करता है। ॥७॥
जो भी इस ध्यानरूप मातंगी अष्टक स्तोत्र का पाठ शिवरात्रि, व्रतरात्रि या वारुणी तिथि पर करता है,
या नियमित करता है, वह प्रसन्न बुद्धि वाला होकर देवी की कृपा को प्राप्त करता है। ॥८॥
जो व्यक्ति पूर्णिमा, अमावस्या, शनिवार या मंगलवार के दिन इसका पाठ करता है,
या प्रतिदिन श्रद्धा से इसका पाठ करता है, वह प्रत्येक चरण पर सिद्धि प्राप्त करता है। ॥९॥
॥ एकजटा कल्पलतिका शिवदीक्षायान्तर्गतम् मातंगी स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
मातंगी स्तोत्र के लाभ (Benefits)
🔹 वाक् सिद्धि व वाणी पर नियंत्रण – देवी मातंगी वाणी की अधिष्ठात्री हैं। उनके स्तोत्र से वाणी में प्रभाव, भाषण में शक्ति व संवाद में आकर्षण आता है।
🔹 राजकीय सम्मान व प्रभाव – राज्य, समाज, या संस्था में प्रभाव और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
🔹 विद्या और कलाओं में सफलता – संगीत, लेखन, कला, गायन आदि क्षेत्रों में मातंगी का आशीर्वाद विशेष लाभदायक होता है।
🔹 वशीकरण और आकर्षण शक्ति में वृद्धि – स्तोत्र में वर्णित शक्तियाँ साधक को सम्मोहन व आकर्षण की ऊर्जा से युक्त करती हैं।
🔹 तांत्रिक सिद्धियाँ – उच्च तांत्रिक साधना करने वाले साधकों के लिए यह स्तोत्र अत्यंत उपयोगी और शक्तिशाली होता है।
🔹 दुश्मनों से सुरक्षा और अमंगल दूर करना – रौद्र रूप का स्मरण करने से शत्रु पर विजय और बुरी नजर का नाश होता है।
पाठ विधि (Vidhi of Recitation)
- स्थान व सामग्री:
- एकांत व शांत स्थान में आसन बिछाकर बैठें (उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करें)।
- देवी मातंगी का चित्र या यंत्र स्थापित करें।
- सामग्री: दीपक, धूप, चंदन, पुष्प, गुंजा माला (संभव हो), नैवेद्य (मिठाई/फल), लाल वस्त्र।
- शुद्धिकरण:
- हाथ-पाँव धोकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- “ॐ मातंग्यै नमः” मंत्र से तीन बार आचमन करें।
- आवाहन और पूजन:
- दीप व धूप अर्पित करें।
- “ॐ ह्रीं ऐं भगवत्यै मातंग्यै नमः” से देवी का ध्यान करें।
- स्तोत्र पाठ:
- एकाग्र होकर मातंगी स्तोत्र का पाठ करें (कम से कम 1 बार, अधिकतम 11 या 21 बार)।
- अंत में प्रार्थना करें:
- इच्छित कार्य सिद्धि हेतु संकल्प लें।
- फल या नैवेद्य अर्पण कर स्तुति करें।
- विशेष टिप:
- लाल पुष्प, गुंजा माला, और मधुर स्वर से पाठ विशेष फलदायी होता है।
जप / पाठ का उपयुक्त समय (Best Time for Recitation)
समय / तिथि | लाभ |
---|---|
अमावस्या | तांत्रिक साधना, रात्रिकाल हेतु श्रेष्ठ |
पूर्णिमा | आकर्षण, विद्या, सौंदर्य सिद्धि हेतु |
रात्रि काल | रौद्र रूप की साधना हेतु अत्यंत प्रभावी |
शिवरात्रि | विशेष सिद्धि व तेज हेतु |
शनिवार / मंगलवार | कष्ट निवारण, मंत्र शक्ति जागरण हेतु |
नियमित प्रतिदिन | वाणी सिद्धि, मानसिक शांति, भक्ति लाभ हेतु |