“श्री मंगल गीतम” एक अत्यंत मधुर एवं भावपूर्ण भक्ति रचना है, जिसकी रचना महाकवि जयदेव ने की थी। यह स्तुति भगवान विष्णु के विविध अवतारों—विशेषतः श्रीकृष्ण और श्रीराम—की लीलाओं, सौंदर्य, करुणा और मंगलदायक स्वरूप का सुंदर वर्णन करती है।
इस गीत में भगवान के विभिन्न रूपों की स्तुति करते हुए, भक्त उनके चरणों में पूर्ण समर्पण भाव प्रकट करता है। इसमें उनका वैभव, उनका राक्षसों पर विजय प्राप्त करना, भक्तों को भय से मुक्त करना, और उनकी करुणा को हृदयस्पर्शी शैली में वर्णित किया गया है। जयदेव कृत यह स्तुति संगीत, नृत्य, और भक्ति भाव के समन्वय का अनुपम उदाहरण है।
श्री मंगल गीतम (Mangal Gitam)
श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए ।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे ॥ 1 ॥
दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए ।
मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे ॥ 2 ॥
कालियविषधरगञ्जन जनरञ्जन ए ।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे ॥ 3 ॥
मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए ।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे ॥ 4 ॥
अमलकमलदललोचन भवमोचन ए ।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे ॥ 5 ॥
जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए ।
समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे ॥ 6 ॥
अभिनवजलधरसुंदर धृतमंदर ए ।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे ॥ 7 ॥
तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए ।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे ॥ 8 ॥
श्रीजयदेवकवेरूदितमिदं कुरुते मुदम् ।
मंगलमञ्जुलगीतं जय जय देव हरे ॥ 9 ॥
राधेकृष्ण हरि गोविन्द गोपाल
हरि वसुदेव बाल भज नन्द दुलाल
जय जय देव हरे ॥ 10 ॥
॥ इति श्री मंगल गीतम संपूर्णम् ॥
“श्री मंगल गीतम” का हिंदी अनुवाद
जो कमल के समान वक्षस्थल वाली देवी के वक्ष पर विराजमान हैं,
कर्णों में कुंडल धारण करते हैं, मनोहर वनमाला से सुशोभित –
हे देव! हे हरे! आपको बार-बार वंदन है। ॥1॥
जो सूर्य मंडल की शोभा बढ़ाने वाले हैं,
जिनकी कृपा से संसार के बंधन कटते हैं –
जो मुनियों के मनरूपी हंस के आधार हैं –
हे देव! हे हरे! आपको नमस्कार है। ॥2॥
जो कालिय नाग जैसे विषधर का दमन करते हैं,
जो जनसमुदाय का कल्याण करते हैं –
यदुकुल रूपी कमल के सूर्यस्वरूप हैं –
हे देव! हे हरे! आपकी जय हो। ॥3॥
जो मधु, मुर और नरक नामक राक्षसों का विनाश करने वाले हैं,
गरुड़ की सवारी करने वाले हैं –
देवताओं की लीलाओं के आधार हैं –
हे देव! हे हरे! जय हो। ॥4॥
जिनकी आँखें कमल की पंखुड़ियों जैसी हैं,
जो संसार से मुक्ति प्रदान करते हैं –
तीनों लोकों के आधार और धन हैं –
हे देव! हे हरे! बारंबार नमन है। ॥5॥
जो जनकपुत्री सीता के अलंकार स्वरूप हैं –
जिन्होंने दुष्ट रावण को युद्ध में पराजित किया –
दशानन का समर में अंत करने वाले –
हे देव! हे हरे! आपको प्रणाम है। ॥6॥
जो वर्षा के बादल जैसे सुंदर स्वरूपधारी हैं –
जिन्होंने मंदार पर्वत को धारण किया –
जिनका मुख चंद्रमा जैसा मोहक है –
हे देव! हे हरे! आपकी वंदना है। ॥7॥
हम आपके चरणों में सदा समर्पित हैं –
हमारे ऊपर कृपा कीजिए –
हे देव! हे हरे! हमारी रक्षा कीजिए। ॥8॥
यह मंगलमय मधुर गीत,
जयदेव कवि द्वारा रचित है, हर्षदायक है –
हे देव! हे हरे! आपकी बारंबार वंदना। ॥9॥
राधे कृष्ण, हरि, गोविंद, गोपाल,
हरि, वसुदेव, बाल, भज नंददुलाल –
जय जय देव हरे। ॥10॥
॥ इति श्री मंगल गीतम संपूर्णम् ॥
लाभ (Benefits):
“श्री मंगल गीतम” का पाठ करने से भक्त को निम्नलिखित आध्यात्मिक एवं मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं:
- मंगलमय वातावरण का निर्माण: यह स्तुति भगवान श्रीकृष्ण और श्रीराम के दिव्य गुणों का गायन है, जिससे घर और मन में शुभता व सकारात्मकता आती है।
- कष्टों और दोषों का नाश: नियमित पाठ से मानसिक अशांति, भय, और दुर्भाग्य जैसे दोष दूर होते हैं।
- भक्ति भाव की वृद्धि: यह गीत आत्मा को भक्तिरस से भर देता है और ईश्वर के प्रति समर्पण को गहरा करता है।
- कार्यसिद्धि में सहायक: मंगल कार्यों में सफलता, विवाह, संतान सुख, नौकरी, व्यापार आदि में अनुकूलता बढ़ती है।
- श्रीहरि की कृपा: भगवान विष्णु के सभी अवतारों की स्तुति होने के कारण यह गीत हर रूप में विष्णु-भक्ति को जाग्रत करता है।
पाठ विधि (Pāṭh Vidhi):
- प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पूजा स्थान में दीपक, अगरबत्ती और पुष्प अर्पण करके भगवान विष्णु / श्रीकृष्ण / श्रीराम की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
- “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र से शुरुआत करें।
- श्री मंगल गीतम का भावपूर्वक पाठ करें। पाठ के अंत में “जय जय देव हरे” को श्रद्धा से दोहराएं।
- अंत में भगवान से प्रार्थना करें और आरती करें।
विशेष: यदि यह गीत संगीतमय रूप से गाया जाए तो उसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
जप / पाठ का उपयुक्त समय (Best Time to Chant):
- प्रातः काल (सुबह 4–8 बजे): सर्वोत्तम समय माना जाता है। यह समय सतोगुणी प्रभाव में होता है और मन शांत होता है।
- संध्याकाल (शाम 6–8 बजे): घर में भक्तिमय वातावरण बनाने के लिए उत्तम समय है।
- विशेष अवसर: जन्माष्टमी, रामनवमी, गुरुवार, एकादशी, पूजा-पर्व या किसी शुभ कार्य के आरंभ में इसका पाठ किया जा सकता है।