“भारत भूमातृ स्तोत्र” भारत माता की महिमा और दिव्यता का भावपूर्ण स्तुति-पाठ है। यह स्तोत्र मातृभूमि भारत को देवी के रूप में पूजते हुए उसके प्राकृतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक वैभव की सुंदर स्तुति करता है। इसमें भारतवर्ष को देवी पार्वती, लक्ष्मी, सरस्वती, अन्नपूर्णा और शिवा के स्वरूप में प्रतिष्ठित किया गया है। हिमालय को माँ का मुकुट, नदियों को अभिषेक करने वाली गंगाएं, और दक्षिण के पर्वतों को उनके चरणों का आधार माना गया है।
यह स्तोत्र वैदिक परंपरा, भारतीय दर्शन, संतों, ऋषियों, शूरवीरों और नारियों के योगदान को रेखांकित करता है और भारत को न केवल एक राष्ट्र, बल्कि एक सजीव देवता के रूप में नमन करता है। इसमें एक भक्त की भावनाएँ प्रकट होती हैं, जो माँ भारती की सेवा को ही अपना परम लक्ष्य मानता है और अन्य सभी सांसारिक इच्छाओं को त्यागकर केवल मातृसेवा की ही प्रार्थना करता है।
भारत भूमातृ स्तोत्र हमें न केवल अपने देश के प्रति गौरव, श्रद्धा और प्रेम से भर देता है, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और आध्यात्मिक चेतना की गहराई से भी परिचित कराता है। यह स्तोत्र राष्ट्रभक्ति को आध्यात्मिक भाव में बदलने वाला एक अनुपम ग्रंथ है।
भारत भूमात्र स्तोत्र (Bharat Bhumatra Stotra)
वन्दे मातरमव्यक्तां व्यक्तां च जननीं पराम् ।
दीनोहं बालक: कांक्षे सेवां जन्मनि जन्मनि ।। 1 ।।
सागरालिंगिता लक्ष्मीं जगज्जनककन्यकाम् ।
स्थितां हिमनगस्यांके पार्वतीमपरां भजे ।। 2 ।।
शुभ्रं धर्मध्वजं मातु: किं वा राशीकृतं यश: ।
रौप्यं वा मुकुटं दिव्यं वन्देऽहं तं हिमालयम् ।। 3 ।।
जाह्नवीयमुनासिन्धुब्रह्मपुत्रशतद्रुभि: ।
भूदेवीं पंचधाराभि सततं साभिषिचंति ।। 4 ।।
नगाधिपं धारयंती मस्तके रत्नमद्वयम् ।
काश्मीरं च ललाटे भ्रूमध्ये नेपालिकां शुभाम् ।। 5 ।।
नर्मदातापतीविंध्यसप्तपीठकमेखलाम् ।
पूर्वापराचलोरूँ च मलयं पादपीठके ।
मध्यदेशोदरे गुप्तानक्षयान् धनसंचयान् ।। 6 ।।
असुराणां पुरी लंका दासी यंच्चरणयो: कृता ।
तां देवी भारतीं वन्दे मातरं विश्वपूजिताम् ।। 7 ।।
दृष्टा चैवोपनिषदां गीतशास्त्रप्रवर्तक: ।
षड्दर्शनप्रवक्ता च भगवान्पाणिनिर्मुनि: ।। 8 ।।
वाल्मीकिश्र्च तथा व्यास: कालिदासो महाकवि: ।
आर्यभट्टश्र्च भरत: शंकरोऽद्वैतकेसरी ।। 9 ।।
भीष्मरामार्जुना वीरा नृपौ रामयुधिष्ठिरौ ।
सावित्री द्रोपदी सीता दमयंती च तारका ।। 10 ।।
महाधान्यद्वितीयानि रत्नान्येतानि भूतले ।
जननी भारती तेषां रत्नगर्भा कथं न सा ।। 11 ।।
वसुंधरा रत्नगर्भा रसा विश्र्वंभरा क्षमा ।
सर्वसहा स्थिरा चैव भारती भूसुकन्यका ।। 12 ।।
रत्नाकर: स्वयं भक्त्या मुक्तो पायनपूर्वकम् ।
चरणान्क्षालयत्यस्या अंतद्रश्र्च दिवानिशम् ।। 13 ।।
कैलासद्वारकाधीशौ रामेश्वरपुरीश्र्वरौ ।
द्वारपाला वभूबुश्र्च सौभाग्यं मातुरद्भुतम् ।। 14 ।।
पोषयन्ति सदा मातु: पर्वतस्तनमण्डलात् ।
नि:सृहाश्र्च पयोधारा: संततीनां परंपरा ।। 15 ।।
पुत्रवत्सलता मातुरगाथा हरिणा स्वयम् ।
अवतीर्योदरे सोढं गर्भदुखं पुन: पुन: ।। 16 ।।
मरणे जन्मकाले च मुमूर्षुर्नवबालक: ।
त्वदंके चैव संशेते अहो वत्सलता तव ।। 17 ।।
पद्मालया त्वमेवासि त्वमेव च सरस्वती ।
अन्नपूर्णा त्वमेवासि त्वमेव च शिवा सती ।। 18 ।।
त्वदृक्षा: कल्पवृक्षाश्र्च चिंतामणिशिला: शिला: ।
त्वद्वनं नन्दनं साक्षात्साक्षात्वं स्वर्गदेवता ।। 19 ।।
प्रतिजन्मनि मे चित्तं वित्तं देहश्र्च संतति: ।
त्वत्सेवानिरता भूयुर्माता त्वं करुणामयी ।। 20 ।।
न मे वांछाऽस्ति यशसि विद्वत्तवे न च वा सुखे ।
प्रभुत्वं नैव वा स्वर्गे मोक्षेत्यानंददायके ।। 21 ।।
परं च भारते जनम मानवस्य च वा पशो: ।
विहंगस्य च वा जन्तोर्व्रक्षपाषाणयोरपि ।। 22 ।।
निरंतरं भवतु मे मातृ सेवांशभाग्यभाक् ।
एषैव वांछा ह्रदये साक्षी सर्वात्मक: प्रभु: ।। 23 ।।
।। इति भारत भूमातृ स्तोत्र संपूर्णम् ।।
भारत भूमातृ स्तोत्र हिंदी अनुवाद
मैं उस माता को नमस्कार करता हूँ जो अव्यक्त और व्यक्त दोनों रूपों में परम जननी हैं।
मैं एक दीन बालक हूँ, जन्म-जन्म में आपकी सेवा की इच्छा करता हूँ। ॥1॥
जो समुद्र से आलिंगित लक्ष्मी के समान हैं, और समस्त सृष्टि की कन्या के रूप में पूजित हैं,
जो हिमालय की गोद में स्थित हैं, मैं उन पार्वती स्वरूपा माता की उपासना करता हूँ। ॥2॥
माता के शुभ्र धर्मध्वज की महिमा अपार है, उनका यश स्वर्ण रत्नों के समान चमकता है।
उनके मुकुट जैसा हिमालय, वह दिव्य और रजत आभा से युक्त है – मैं उस हिमालय को नमस्कार करता हूँ। ॥3॥
गंगा, यमुना, सिंधु, ब्रह्मपुत्र, सतलज आदि नदियाँ
पृथ्वी माता को पाँच पवित्र धाराओं से निरंतर अभिषेक करती हैं। ॥4॥
जो पर्वतराज को अपने मस्तक पर अद्वितीय रत्न के रूप में धारण करती हैं,
जिनके ललाट पर कश्मीर और भ्रूमध्य में शुभ नेपाल स्थित है। ॥5॥
नर्मदा, तापती, विंध्य और सप्तपीठ पर्वत उनकी मेखला (कमरबंध) हैं,
पूर्व और पश्चिम के पर्वत उनके ऊरु भाग में स्थित हैं, मलय पर्वत उनके चरण पीठ हैं,
और मध्यदेश उनके गर्भ में स्थित अक्षय धन-संपदा से भरा है। ॥6॥
जिस रावण की राजधानी लंका तक को माताजी ने अपने चरणों में स्थान दिया,
मैं उस देवी भारती, विश्व पूजिता मातरम् को प्रणाम करता हूँ। ॥7॥
जिन्होंने उपनिषदों का दर्शन कराया, गीता और शास्त्रों का प्रवर्तन किया,
षड्दर्शन के प्रवक्ता, और महान व्याकरणाचार्य पाणिनि जैसे ऋषियों को जन्म दिया। ॥8॥
वाल्मीकि, व्यास, कालिदास जैसे महाकवियों को;
आर्यभट्ट, भरत मुनि, और अद्वैत के सिंह शंकराचार्य को जन्म दिया। ॥9॥
भीष्म, राम, अर्जुन जैसे महावीर; राजा राम और युधिष्ठिर जैसे नृपों को;
सावित्री, द्रौपदी, सीता, दमयंती और तारका जैसी पुण्यशालिनी स्त्रियों को जन्म दिया। ॥10॥
ये सभी इस धरती की महानतम विभूतियाँ हैं –
तो फिर जननी भारती उन रत्नों की जननी क्यों नहीं कहलाएंगी? ॥11॥
जो वसुंधरा हैं, रत्नगर्भा हैं, रसस्वरूपा हैं, विश्वंभरा हैं, क्षमाशील हैं,
सर्वसहा, स्थिर और भगवती भारती – भूमि की कन्या हैं। ॥12॥
रत्नों का सागर स्वयं भक्ति भाव से उनके चरणों को धोता है,
प्रातःकाल और रात्रि में भी उनके चरणों की सेवा करता है। ॥13॥
कैलास, द्वारका, रामेश्वर आदि तीर्थों के अधिपति भी
भारत माता के द्वारपाल की तरह सेवा में तत्पर हैं – यह सौभाग्य विलक्षण है। ॥14॥
पर्वत उनके स्तन मंडल से दूध की धाराओं के रूप में संतानों का पालन करते हैं,
यह जीवन परंपरा सदैव प्रवाहित होती रहती है। ॥15॥
माँ की पुत्रवत्सलता की महिमा हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने भी स्वयं कही है –
माँ गर्भधारण कर बार-बार संतानों की पीड़ा सहती है। ॥16॥
मरण, जन्म और मृत्यु के समय, नवजात शिशु और मरणासन्न प्राणी –
सभी माँ की गोद में ही आश्रय खोजते हैं – क्या यह आपकी अपार ममता नहीं है? ॥17॥
आप ही लक्ष्मी हैं, आप ही सरस्वती हैं,
आप ही अन्नपूर्णा हैं, और आप ही शिवा (पार्वती) हैं। ॥18॥
आपके दर्शन कल्पवृक्ष, चिंतामणि रत्न, और दिव्य शिलाएं हैं।
आपका वन ही नंदनवन है, आप साक्षात स्वर्ग की देवी हैं। ॥19॥
हर जन्म में मेरा मन, धन, शरीर और संतति
आपकी सेवा में ही लगी रहे – हे करुणामयी माता! ॥20॥
मुझे न यश की इच्छा है, न विद्वत्ता की, न सुख की;
न प्रभुत्व की, न स्वर्ग की और न मोक्ष की – मुझे केवल आपकी सेवा चाहिए। ॥21॥
यदि मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पत्थर को भी भारत में जन्म मिले,
तो वह भी परम सौभाग्यशाली है। ॥22॥
मुझे निरंतर मातृसेवा का सौभाग्य मिलता रहे –
यही मेरी एकमात्र इच्छा है – इस पर मेरे अंत:करण का साक्षी स्वयं परमात्मा है। ॥23॥
।। इस प्रकार भारत भूमातृ स्तोत्र समाप्त हुआ ।।
लाभ (Benefits)
- देश-भक्ति एवं मातृ-सम्मान की भावना का विकास – इससे मन में मातृभूमि के प्रति गहरा प्रेम और कृतज्ञता उत्पन्न होती है।
- मानसिक शांति और आत्मिक उत्थान – स्तोत्र से मानसिक स्थिरता व आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
- सामाजिक और नैतिक चेतना का जागरण – समाज के महान संत-ऋषि-कवियों के गुण स्मरण करना आत्म-अनुशासन को बढ़ाता है।
- विघ्न नाश एवं समृद्धि की प्रेरणा – मातृभूमि की आराधना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
- आध्यात्मिक गौरव का अनुभव – भारत की पवित्रता, दिव्यता, और वैभव का आभास होता है।
पाठ विधि (Vidhi)
- स्थान: पूजा स्थल या घर में उच्च स्थान पर देवी/भारत माता की तस्वीर हो।
- सज्जा: दीप, धूप, भारत माता का चित्र या ध्वज, पुष्प, फल और मिठाई रखें।
- संकल्प: “ओम् भारत मातरम्…” कहकर पाठ आरंभ करें।
- उच्चारण: शांत मन से प्रत्येक श्लोक श्रद्धा पूर्वक पढ़ें, मध्य में वंदे मिनारम् आदि प्रसंसाएँ।
- अंक: इच्छानुसार 1–3 चक्र में पाठ कर सकते हैं।
- समापन: “ॐ शांति” कहकर समर्पण करें।
जप का उचित समय (Jap Time)
समय | विवरण |
---|---|
प्रातः ब्राह्म-मुहूर्त | सुबह 4–6 बजे, मानसिक शांति और भक्तिगीलता के लिए श्रेष्ठ |
राष्ट्रीय उत्सव / पवित्र दिन | स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, मातृ दिवस पर विशेष रूप से उत्तम |
पूजा-अवसर | गृहप्रवेश, नये कार्य का आरंभ, यात्राओं से पूर्व |
नवरात्रि | देवी पूजन के अंतर्गत विशेष रूप से 1–3 बार पाठ अत्यंत प्रभावशाली |