“भवानी भुजंगप्रयात स्तोत्र” एक अत्यंत दिव्य और प्रभावशाली स्तोत्र है जो देवी भवानी (पराशक्ति, त्रिपुरासुंदरी, आदि शक्ति) की महिमा का वर्णन करता है। यह स्तोत्र भुजंगप्रयात छंद में रचित है, जिसमें श्लोकों की लय साँप के चलने की भांति बहती है – इसीलिए इसे “भुजंगप्रयात” कहा जाता है।
इस स्तोत्र में देवी भवानी के दिव्य रूप, सौंदर्य, तेज, करुणा, शक्ति और उनके आध्यात्मिक स्वरूप का अत्यंत सुंदर और काव्यात्मक ढंग से वर्णन किया गया है। प्रत्येक श्लोक देवी के शरीर के किसी विशेष अंग, उनके अलंकरण, स्वरूप, शक्ति तथा ब्रह्मांड में उनकी व्यापकता को दर्शाता है।
यह स्तोत्र न केवल भावपूर्ण स्तुति है, बल्कि साधक की आत्मिक उन्नति, भक्ति, एवं आत्मसमर्पण का प्रतीक भी है। इससे साधक को देवी की कृपा प्राप्त होती है, भय, मोह, पाप, शोक आदि का नाश होता है और जीवन में ज्ञान, विवेक, तेज, और सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
भवानी भुजंगप्रयात स्तोत्र (Bhawani Bhujangpryat Stotra)
षडधारपङकेरुहंतारविराजत
सुषुम्नान्तरालेऽतितेजोल्लसन्तिम्
सुधामण्डलं द्रव्यन्तं पिबन्तीं
सुधामूर्तिमीदेऽचिदानन्दरूपाम् ॥ 1 ॥
ज्वलत्कोटिबालार्कभासारुणाङ्गीं
सुलावण्यश्रृंगारशोभाभिरामम्
महापद्मकिंजल्कमध्ये विराजत्
त्रिकोणे निशानं भजे श्रीभवानीम् ॥ 2 ॥
क्वान्तकिङकिणुपुरोद्भासिरत्न
प्रभालिधलाक्षारद्रपादब्जयुग्मम्
अजेशाच्युताद्यैः सुरैः सेव्यमानं
महादेवी मनमूर्धनि ते भावयामि ॥ 3 ॥
सुषोणामाम्बराबिद्धनीवीविनं
महारत्नकाञ्चीकलापं नितम्बम्
स्फुर्ददक्षिणावर्तनाभिं च तिसरो
वलि राम्यते रोमराजिं भजेऽहम् ॥ 4 ॥
लस्द्योन्क्तमुत्तुङ्गमनमाणिक्यकुंभो
पमश्रीस्तनद्वन्द्वमम्बुजाक्षीम्
भजे दुग्ध पूर्णाभिरामं तवेदं
महाहरिदिप्तं सदा प्रस्नुतास्यम् ॥ 5 ॥
शिरीषप्रसूनोल्लसद्बहुदण्डैर्
ज्वलदबनकोदण्डपाशाङकुशैश्च
चलत्कणोदरकेयूरभूषा
ज्वलद्भिः लसन्तिं भजे श्रीभवानीम् ॥ 6 ॥
शरत्पूर्णचन्द्रप्रभापूर्णबिम्बा
धर्स्मेरवक्त्रारविन्दं सुशांतम्
सुरत्नालिहारतात्ङक्षोभा
महा सुप्रसन्नं भजे श्रीभवानीम् ॥ 7 ॥
सूनासापूतं पद्मपत्रयताक्षं
यजन्तः श्रीयं दण्डक्षं कटाक्षम्
ललतोल्लसद्गन्धकस्तूरीभूषो-ज्ज्वलद्भिः
स्फुरन्तीं भजे श्रीभवानीम् ॥ 8 ॥
चलत्कुण्डलां ते ब्रह्माद्भृङ्गवृन्दं
घनस्निग्धधम्मिल्लभूषोज्ज्वलन्तिम्
स्फुर्नमौलिमानिक्यमध्येन्दुरेखा
विलासोल्लासदिव्यमूर्धनमीडे ॥ 9 ॥
स्वरूपं तवेदं प्रपौचत् परम
चतुरक्षमं प्रसन्नं स्फुरत्वम्ब
दिम्भस्य मे होत्सरोजे सदा
वाञ्मयं सर्वतेजोमयं च ॥ 10 ॥
गणेशाभि-मुख्यखिलाइच शक्तिबन्धैर्
वोतम वै स्फुरच्चक्र-राजोल्लासन्तिं
परं राजराजेश्वरी त्रैपुरी त्वं
शिवकोपरिस्थं शिवं भवयामि ॥ 11 ॥
त्वमर्कस्त्वमग्निष्ट्वमिन्दुस्त्वमापः
त्वमाकाशभूर्वयवस्तुं चिदात्मा
त्वदन्यो न कश्चित्प्रकाशोऽस्ति सर्वं
सदानन्दसंवित्स्वरूपं तवेदम् ॥ 12 ॥
गुरुस्त्वं शिवस्त्वं च शक्तिस्त्वमेव
त्वमेवसि माता पिताऽसि त्वमेव
त्वमेवासी विद्या त्वमेवासी बुद्धिर्
गतिर्मे मतिर्देवी सर्वं त्वमेव ॥ 13 ॥
श्रुतिनामगम्यं सुवेदागमाद्यैर्
महिमनो न जानाति परं तवेदम्
स्तुतिं कर्तुमिच्छामि ते त्वं भवानी
क्षमस्वेदमम्ब प्रमुग्धा किल्हम् ॥ 14 ॥
शरण्ये वरेण्ये सुकारुण्यपूर्णे
हिरण्योदारद्यैरगम्ययेऽतिपुण्ये
भवार्यभीतं च मां पाहि भद्रे
नमस्ते नमस्ते नमस्ते भवानी ॥ 15 ॥
इमान्वाहं श्रीभवानीभुजङ्ग
स्तुतिर्यः पथेक्रोटुमिच्छेत् तस्मै
स्वकीयं पदं शाश्वतं चैव सारं
श्रियं चाष्टसिद्धिं भवानी ददाति ॥ 16 ॥
भवने, भवने, भवने, त्रिवरं
उदारं मुद सर्वदा ये जपंति
न शोको न मोहो न पापं न भेतिच
कदाचित कथाश्चित कुतश्चिज्जनानम् ॥ 17 ॥
॥ इति भवानी भुजंगप्रयात स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
भवानी भुजंगप्रयात स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
जो देवी षडधार कमल में स्थित हैं, तेजोमय होकर सुषुम्ना मार्ग के मध्य में अत्यंत तेज से प्रकाशित होती हैं,
जो अमृत के मंडल का रस पीती हैं और स्वयं अमृतमयी हैं — मैं उस चिदानन्दस्वरूपा भवानी की स्तुति करता हूँ। ॥1॥
जो करोड़ों उगते सूर्य के समान तेजस्वी, लाल वर्ण की अंगों से शोभायमान हैं,
जो सौंदर्य और श्रृंगार से सुसज्जित हैं, महापद्म के केसर के मध्य त्रिकोण रूप में विराजमान हैं —
मैं उस रात्रिस्वरूपा श्री भवानी की वंदना करता हूँ। ॥2॥
जिनके चरण कमल रत्नजड़ित कर्णाभूषणों और लाक्षारस के रंग से चमकते हैं,
जिनकी सेवा ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवता भी करते हैं —
हे महादेवी! मैं अपने मस्तक पर आपको ध्यायन करता हूँ। ॥3॥
जिनकी लाल रंग की साड़ी, रत्नों से जड़ा हुआ कमरबंद और मनोहारी नितंब हैं,
जिनकी नाभि दक्षिणावर्त है और त्रिवली (तीन पेट की रेखाएँ) शोभायमान हैं —
मैं उन रोमावली युक्त भवानी की पूजा करता हूँ। ॥4॥
जो उत्तुंग मणियों के समान स्तन युगल वाली, कमलनयनी हैं,
जो दूध जैसे सौंदर्य से परिपूर्ण हैं, जिनके मुख पर हरित प्रभा है —
मैं उन प्रसन्न मुख वाली देवी की स्तुति करता हूँ। ॥5॥
जिनके हाथों में अग्नि, धनुष, पाश और अंकुश हैं और जो कर्णभूषणों से सुसज्जित हैं,
जो ज्वलंत आभूषणों से शोभायमान हैं —
मैं उस श्री भवानी का भजन करता हूँ। ॥6॥
जो शरद पूर्णिमा के चंद्रमा के समान मुखमंडल वाली, शांतस्वरूपा हैं,
जिनके मुख पर रत्नमालाएँ चमकती हैं —
मैं उन अत्यंत प्रसन्न श्री भवानी की स्तुति करता हूँ। ॥7॥
जिनकी नासिका से सौंदर्य झलकता है, कमलपत्र जैसे नेत्र हैं,
जिनके कटाक्ष धन्य और दण्डस्वरूप हैं,
जिनके ललाट पर चंदन और कस्तूरी शोभायमान हैं —
मैं उन चमकती हुई भवानी को प्रणाम करता हूँ। ॥8॥
जिनके झूमते हुए कुण्डल, सघन काले बालों में चमकते हैं,
जिनके मुकुट में रत्न और मध्य में चंद्रमा शोभायमान है —
मैं उनके दिव्य मस्तक को प्रणाम करता हूँ। ॥9॥
हे माँ! आपका यह स्वरूप प्रसन्नता और चेतना से पूर्ण है,
वह मेरे हृदय कमल में सदैव विराजमान हो —
जो मेरी वाणी को तेज और ज्ञान से भर दे। ॥10॥
गणेश और अन्य सभी शक्तियों के समूहों से घिरे हुए,
स्फुरणशील चक्रों से प्रकाशित राजराजेश्वरी, त्रिपुरा स्वरूपा देवी —
जो शिव के ऊपर विराजमान हैं, मैं उनका ध्यान करता हूँ। ॥11॥
आप ही सूर्य, अग्नि, चंद्रमा, जल, आकाश, पृथ्वी, वायु और चैतन्य स्वरूपा हैं,
आपके अतिरिक्त कोई और प्रकाश नहीं —
आप सदा आनंदस्वरूपा हैं। ॥12॥
आप ही गुरु, शिव, शक्ति, माता, पिता, विद्या, बुद्धि,
गति और मति हैं —
हे देवी! आप ही सब कुछ हैं। ॥13॥
आपका यह महान स्वरूप श्रुतियों और वेदों की पहुँच से परे है,
मैं आपकी स्तुति करना चाहता हूँ —
हे भवानी! मेरी इस अज्ञानवश की गई स्तुति को क्षमा करें। ॥14॥
हे शरणदायिनी, वरणीय, करुणा से परिपूर्ण, स्वर्ण जैसी उदार और पुण्यदायिनी देवी!
जो दुर्गम और अपार हैं —
भवसागर से भयभीत मुझको रक्षण करें।
आपको बारंबार नमस्कार है। ॥15॥
जो भक्त इस भवानी भुजंग स्तुति का पाठ करता है,
उसे भवानी अपना शाश्वत पद, सार, ऐश्वर्य और अष्ट सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। ॥16॥
जो “भवने, भवने, भवने” इस मंत्र को हर्षपूर्वक जपते हैं,
उनके जीवन में न शोक, न मोह, न पाप और न भय आता है —
कभी किसी प्रकार का कष्ट उन्हें नहीं होता। ॥17॥
लाभ (Benefits)
- दुख, गरीबी, बीमारी, अवसाद का नाश — निरंतर पाठ से ये सभी कष्ट दूर होते हैं
- मोक्ष और दिव्य लोक का अनुभव — मृत्यु उपरांत स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति को प्रेरित करता है
- धन, वैभव और समृद्धि — देवी भवानी की कृपा से संपत्ति और सुख की प्राप्ति होती है
- मानसिक संतुलन और शांति — आन्तरिक शांति, तनाव रहित मन की स्थिति प्रदान करता है
- रोग, भय, पाप से मुक्ति — शारीरिक और मानसिक उभारों को दूर करता है
- संतान की प्राप्ति व कुल वृद्धि — परिवार में संतति की कामना पूर्ण होती है
पाठ विधि (Vidhi)
- समय व स्थान: प्रातः स्नानाद्य उपरांत स्वच्छ एवं शांत स्थान—देवी भवानी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
- पूजा सामग्री: दीप, धूप, गोमती चक्र, सफेद व पीले पुष्प, लाल वस्त्र और शुभ नैवेद्य (लड्डू, मिठाई) अर्पित करें।
- शुद्ध उच्चारण: संस्कृत व हिंदी दोनों में श्लोक पढ़ा जा सकता है, परंतु उच्चारण शुद्ध होना अनिवार्य है।
- चित्र ध्येय: ध्यानपूर्वक हर श्लोक पढ़ें और ध्यान में देवी का दिव्य रूप स्मरण करें।
- जप संख्याएँ: ११, २१, ३२, ४४ या १०८ बार पाठ किया जा सकता है।
जप का उचित समय
- नित्यकाल: दिन में 1 बार, विशेषकर प्रातः-संध्या या ब्राह्म‑मुहूर्त में।
- शुभ अवसर: मंगलवार (काली भवानी समर्पित), नवदुर्गा पूजा, नवरात्रि, व्रत-उत्सवों के समय।
- विशेष दिन: मंगलवार या शनिदेव के दिन पाठ विशेष रूप से फलदायक होता है ।
- समूह में: गणपति–सरस्वती पूजन, स्तोत्र‑संगीत आदि अनुष्ठानों के उपरांत पाठ करें।
निष्कर्ष
भवानी भुजंगप्रयात स्तोत्र का नियमित, शुद्ध और श्रद्धापूर्वक पाठ:
- संकट, रोग, अभाव और अवसाद को मिटाता है
- धन, वैभव और मानसिक–आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है
- संतान और कुल वृद्धि की कामना पूरी करता है
विशेष रूप से नवरात्रि, मंगलवार, नवपूर्णिमा पर प्रतिदिन या ११–१०८ बार जप करने से देवी की कृपा हेतु अत्यधिक शुभ परिणाम होते हैं।