“श्री ब्रह्मा कृत सरस्वती स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली और दिव्य स्तोत्र है, जिसकी रचना स्वयं ब्रह्मा जी ने मां सरस्वती की स्तुति में की थी। यह स्तोत्र देवी सरस्वती की महिमा, स्वरूप, गुण, और उनकी कृपा के प्रभाव को विस्तार से वर्णित करता है। इसमें माता के रूप, वीणा, पुस्तक, कमलासन, शुभ्रवस्त्र, और ज्ञान-विज्ञान की अधिष्ठात्री देवी के रूप में गुणगान किया गया है।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को विद्या, बुद्धि, वाक्सिद्धि (वाणी की स्पष्टता), काव्यशक्ति और तर्क-वितर्क में सफलता प्राप्त होती है। यह स्तोत्र विद्यार्थियों, कलाकारों, कवियों, वक्ताओं, और सभी ज्ञान-साधकों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। इसकी महिमा यह बताती है कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा और नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह त्रिलोकी में कीर्तिमान, सम्मानित और सरस्वती जी की कृपा से पूजनीय बन जाता है।
श्री ब्रह्मा द्वारा रचित सरस्वती स्तोत्र (Brahma Kruta Saraswati Stotram)
आरूढा श्वेतहंसे भ्रमति च गगने दक्षिणे चाक्षसूत्रं,
वामे हस्ते च दिव्याम्बरकनकमयं पुस्तकं ज्ञानगम्या ।
सा वीणां वादयन्ती स्वकरकरजपैः शास्त्रविज्ञानशब्दैः,
क्रीडन्ती दिव्यरूपा करकमलधरा भारती सुप्रसन्ना ॥ 1 ॥
श्वेतपद्मासना देवी श्वेतगन्धानुलेपना ।
अर्चिता मुनिभिः सर्वैः ऋषिभिः स्तूयते सदा ।
एवं ध्यात्वा सदा देवीं वाञ्छितं लभते नरः ॥ 2 ॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं,
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् ।
हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां,
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् ॥ 3 ॥
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता,
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 4 ॥
ह्रीं ह्रीं हृद्यैकबीजे शशिरुचिकमले कल्पविस्पष्टशोभे,
भव्ये भव्यानुकूले कुमतिवनदवे विश्ववन्द्याङ्घ्रिपद्मे ।
पद्मे पद्मोपविष्टे प्रणतजनमनोमोदसंपादयित्रि,
प्रोत्फुल्लज्ञानकूटे हरिनिजदयिते देवि संसारसारे ॥ 5 ॥
ऐं ऐं ऐं इन्ष्टमन्त्रे कमलभवमुखाम्भोजभूतिस्वरूपे,
रूपारूपप्रकाशे सकलगुणमये निर्गुणे निर्विकारे ।
न स्थूले नैव सूक्ष्मेऽप्यविदितविषये नापि विज्ञाततत्त्वे,
विश्वे विश्वान्तरात्मे सुरवरनमिते निष्कले नित्यशुद्धे ॥ 6 ॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं जाप्यतुष्टे हिमरुचिमुकुटे वल्लकीव्यग्रहस्ते,
मातर्मातर्नमस्ते दह दह जडतां देहि बुद्धिं प्रशस्तां ।
विद्यां वेदान्तवेद्यां परिणतपठिते मोक्षदे मुक्तिमार्गे,
मार्गातीतप्रभावे भव मम वरदा शारदे शुभ्रहारे ॥ 7 ॥
धीर्धीर्धीर्धारणाख्ये धृतिमतिनतिभिर्नामभिः कीर्तनीये,
नित्येऽनित्ये निमित्ते मुनिगणनमिते नूतने वै पुराणे ।
पुण्ये पुण्यप्रवाहे हरिहरनमिते नित्यशुद्धे सुवर्णे,
मातर्मात्रार्धतत्त्वे मतिमतिमतिदे माधवप्रीतिमोदे ॥ 8 ॥
ह्रूं ह्रूं ह्रूं स्वस्वरूपे दह दह दुरितं पुस्तकव्यग्रहस्ते,
सन्तुष्टाकारचित्ते स्मितमुखि सुभगे जृम्भिणि स्तम्भविद्ये ।
मोहे मुग्धप्रभावे कुरु मम कुमतिध्वान्तविध्वंसमीड्ये,
गीर्गीर्वाग्भारती त्वं कविवररसनासिद्धिदे सिद्धसाध्ये ॥ 9 ॥
स्तौमि त्वां त्वां च वन्दे मम खलु रसनां मा कदाचित्त्यजेथा,
मा मे बुद्धिर्विरुद्धा भवतु न च मनो देवि मे यातु पापम् ।
मा मे दुःखं कदाचित् क्वचिदपि विषयेऽप्यस्तु मे नाकुलत्वं,
शास्त्री वादे कवित्वे प्रसरतु मम धीर्मास्तु कुण्ठा कदापि ॥ 10 ॥
इत्येतैः श्लोकमुख्यैः प्रतिदिनमुषसि स्तौति यो भक्तिनम्रो,
वाणी वाचस्पतेरप्यविदितविभवो वाक्पटुर्मुष्टकण्ठः ।
स स्यादिष्टार्थलाभैः सुतमिव सततं पाति तं सा च देवी,
सौभाग्यं तस्य लोके प्रभवति कविता विघ्नमस्तं प्रयाति ॥ 11 ॥
निर्विघ्नं तस्य विद्या प्रभवति सततं चाश्रुतग्रन्थबोधः,
कीर्तिस्त्रैलोक्यमध्ये निवसति वदने शारदा तस्य साक्षात् ।
दीर्घायुर्लोकपूज्यः सकलगुणनिधिः सन्ततं राजमान्यो,
वाग्देव्याः संप्रसादात् त्रिजगति विजयी जायते सत्सभासु ॥ 12 ॥
ब्रह्मचारी व्रती मौनी त्रयोदश्यां निरामिषः ।
सारस्वतो जनः पाठात् सकृदिष्टार्थलाभवान् ॥ 13 ॥
पक्षद्वये त्रयोदश्यामेकविंशतिसंख्यया ।
अविच्छिन्नः पठेद्धीमान् ध्यात्वा देवीं सरस्वतीम् ॥ 14 ॥
सर्वपापविनिर्मुक्तः सुभगो लोकविश्रुतः।
वाञ्छितं फलमाप्नोति लोकेऽस्मिन्नात्र संशयः ॥ 15 ॥
ब्रह्मणेति स्वयं प्रोक्तं सरस्वत्याः स्तवं शुभम् ।
प्रयत्नेन पठेन्नित्यं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥ 16 ॥
॥ इति श्री ब्रह्मा सरस्वती स्तोत्र संपूर्णम् ॥
“श्री ब्रह्मा द्वारा रचित सरस्वती स्तोत्र” का हिंदी अनुवाद
जो देवी श्वेत हंस पर सवार होकर आकाश में विचरण करती हैं,
दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं में स्वर्ण से मढ़ा दिव्य पुस्तक धारण करती हैं,
जो ज्ञान से प्राप्त की जाती हैं और अपने कर कमलों से शास्त्रों की ध्वनि उत्पन्न करती हैं —
ऐसी वीणा वादिनी, दिव्य रूपधारी, करकमल वाली भारती देवी हमें कृपा करें ॥1॥
जो देवी श्वेत कमल पर आसीन हैं, श्वेत चंदन से सुगंधित हैं,
सभी मुनियों और ऋषियों द्वारा पूजित और स्तुत हैं —
जो व्यक्ति इस देवी का ध्यान करता है, वह अपने सभी मनोकामनाओं को प्राप्त करता है ॥2॥
जो श्वेत वर्ण, ब्रह्म विचार की साररूपा,
संसार को व्याप्त करने वाली, हाथों में वीणा, पुस्तक, भय दूर करने वाली हैं,
हाथों में स्फटिक की माला लिए, पद्मासन पर स्थित —
ऐसी परमेश्वरी भगवती शारदा को मैं वंदन करता हूँ, जो बुद्धि प्रदान करती हैं ॥3॥
जो कुंद, चंद्रमा और हिम की तरह उज्जवल हैं,
श्वेत वस्त्रों से आच्छादित, वीणा और वरमुद्रा से युक्त,
श्वेत कमल पर आसीन हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे देवताओं द्वारा पूजित —
ऐसी भगवती सरस्वती मेरी रक्षा करें, जो सम्पूर्ण मूढ़ता का नाश करती हैं ॥4॥
जो ह्रीं बीज से प्रकट होती हैं, चंद्र-समान उज्ज्वल हैं,
कमल पर स्थित, भक्तों की कामनाओं की पूर्ति करने वाली,
दुष्ट बुद्धि का नाश करने वाली, विश्व वंदनीय चरणों की स्वामिनी —
ज्ञान से खिले हुए रूप में, हरि की प्रिय, संसार के सारस्वरूप वाली देवी को प्रणाम ॥5॥
जो ऐं बीज मंत्र से पूजनीय हैं, ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न सौंदर्य स्वरूपा हैं,
रूप और अरूप दोनों में प्रकट, सभी गुणों से युक्त,
न स्थूल, न ही सूक्ष्म, न ज्ञेय, न ही किसी तर्क से जानने योग्य,
विश्व में व्यापक, देवताओं द्वारा पूजित, निष्कल और नित्य शुद्ध देवी हैं ॥6॥
जो ह्रीं बीज से प्रसन्न होती हैं, हिमकांति जैसी मुखमंडल वाली,
वीणा सहित, संतुष्ट मन की अधिष्ठात्री —
हे माँ! मेरी जड़ता को भस्म करें, उत्तम बुद्धि प्रदान करें,
विद्या, वेदांत और मोक्ष मार्ग में मुझे सफलता दें ॥7॥
जो धृति, बुद्धि और स्मृति की अधिष्ठात्री हैं,
नित्य और अनित्य के कारण स्वरूप में पूजनीय हैं,
ऋषियों द्वारा पूजित, नूतन एवं पुरातन दोनों स्वरूपों में विराजमान,
हरि और हर की पूजिता, सुवर्ण जैसी शुद्ध —
हे माँ! जो मात्र का अर्धतत्त्व हैं, मुझे बुद्धि प्रदान करें जो माधव को प्रिय हो ॥8॥
जो ह्रूं बीज मंत्र से युक्त, पुस्तक लिए,
संतुष्ट चित्त वाली, मुस्कुराहट वाली, स्तंभन विद्या की स्वामिनी —
कुमति के अंधकार को दूर करने वाली,
कवियों की वाणी को सिद्ध करने वाली देवी —
हे भारती! आप मेरी बुद्धि को प्रकाशित करें ॥9॥
मैं आपकी स्तुति करता हूँ, आपको प्रणाम करता हूँ —
हे माँ! मेरी वाणी कभी भी आपकी कृपा से वंचित न हो,
मेरी बुद्धि विरोध में न हो, मन पाप से दूर रहे,
दुख न आए, विषयों में भी विचलन न हो —
शास्त्र, तर्क और काव्य में मेरी बुद्धि सदा कुशाग्र रहे ॥10॥
जो व्यक्ति इन प्रमुख श्लोकों को प्रतिदिन प्रातःकाल भक्ति सहित पढ़ता है,
वह ऐसा वाक्पटु बनता है कि वाचस्पति भी उसकी वाणी से चकित हो जाए,
उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं —
सरस्वती देवी स्वयं उसकी रक्षा करती हैं और कविता में सफलता देती हैं ॥11॥
उसकी विद्या में कोई विघ्न नहीं आता,
जो ग्रंथ उसने नहीं पढ़े, उनकी भी समझ उसे हो जाती है,
तीनों लोकों में उसकी कीर्ति फैल जाती है,
सरस्वती स्वयं उसके मुख में वास करती हैं —
वह दीर्घायु, लोकपूज्य, गुणवान और सभाओं में विजयी होता है ॥12॥
जो ब्रह्मचारी, व्रती, मौन धारण करने वाला व्यक्ति,
त्रयोदशी तिथि को निरामिष भोजन करके इस स्तोत्र का पाठ करता है —
वह एक बार के पाठ से ही इच्छित फल को प्राप्त करता है ॥13॥
जो बुद्धिमान व्यक्ति दोनों पक्षों की त्रयोदशी को,
इकत्तीस बार इस स्तोत्र का पाठ सरस्वती देवी का ध्यान कर करता है —
वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है,
भाग्यशाली और विश्व में प्रसिद्ध होता है ॥14॥
उसे इस लोक में इच्छित फल की प्राप्ति होती है —
इसमें कोई संदेह नहीं है ॥15॥
यह स्तोत्र ब्रह्मा जी ने स्वयं कहा है —
जो व्यक्ति इसे नित्य श्रमपूर्वक पढ़ता है,
वह अमरत्व प्राप्त करने योग्य बन जाता है ॥16॥
लाभ (Benefits)
- बुद्धि, स्मरणशक्ति और वाणी में वृद्धि
- वाक्सिद्धि, काव्य एवं लेखन-कला का विकास
- जड़ता, अवसाद और अज्ञान का नाश
- परीक्षा या प्रतियोगिता में सफलता
- आध्यात्मिक चेतना और शुद्धता की प्राप्ति
पाठ विधि (Vidhi)
- समय: ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से पहले) या प्रातः काल श्रेष्ठ है
- दिशा: पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पाठ करें
- माता सरस्वती का पूजन करें – श्वेत वस्त्र, कमल-पुष्प, सफेद चन्दन आदि से
- पाठ संख्या: प्रतिदिन १ बार या विशेष दिनों पर २१, ५१ या १०८ बार
अनुकूल पाठ का समय (Jap Time)
समय | कारण |
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ब्रह्ममुहूर्त | मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा सर्वोत्तम होती है |
प्रातः और संध्या | वाणी की शुद्धता और अध्ययन में एकाग्रता बढ़ती है |
वसंत पंचमी | सरस्वती पूजन का विशेष दिन, जब इसका पाठ अत्यंत फलदायक माना गया है |
निष्कर्ष
जो साधक इस स्तोत्र का नित्य श्रद्धापूर्वक पाठ करता है,
- उसे ज्ञान, वाणी, और बुद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है
- वह समाज में मान-सम्मान और कीर्ति अर्जित करता है
- उसकी रचनात्मकता और काव्य-शक्ति प्रकट होती है