“ब्रह्मशक्ति स्तोत्र” एक अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है जो देवी ब्रह्मशक्ति को समर्पित है — जो सृष्टि, संरक्षण और संहार की त्रैगुणिक शक्तियों की मूल स्रोत हैं। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन साधकों के लिए रचा गया है जो आध्यात्मिक उन्नति, संपूर्ण मंगल, भय, वियोग और मानसिक संताप से मुक्ति की आकांक्षा रखते हैं।
इस स्तोत्र में देवी को ब्रह्मस्वरूपा, परमानंद रूपिणी, ज्ञान, सम्पत्ति, सिद्धि और यश की दात्री के रूप में वर्णित किया गया है। देवी की महाशक्तियों को स्मरण करते हुए साधक उनसे कृपा, रक्षण और आत्म-साक्षात्कार की प्रार्थना करता है।
ब्रह्मशक्ति स्तोत्र (Brahmshakti Stotra)
ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि।
परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे।
सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले।।
विजये शिवदे देवि! मां प्रसीद जय-प्रदे।
वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः! प्रसीद मे।।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले।
सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके।।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती।
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले।
कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते।।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे।
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः।
चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।।
मम योग-प्रदे देवि! प्रसीद सिद्ध-योगिनि।
सर्व-सिद्धि-स्वरूपे च, प्रसीद सिद्धि-दायिनि।।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना।
स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि।।
॥ फल-श्रुति ॥
एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्।
न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।।
।। इति ब्रह्मशक्ति स्तोत्र संपूर्णम्।।
“ब्रह्मशक्ति स्तोत्र” का हिंदी अनुवाद
ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि।
परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि।।
👉 हे ब्राह्मी देवी! आप स्वयं ब्रह्मस्वरूपा और सनातन (शाश्वत) हैं।
आप परमात्मा के रूप में, परम आनंद की मूर्ति हैं — मुझ पर कृपा करें।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे।
सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले।।
👉 हे कल्याणकारी प्रकृति स्वरूपिणी! आपको नमस्कार है।
इस संसार रूपी भवसागर से मुझे उबारिए। हे समस्त मंगलों की स्वरूपिणी, मुझ पर कृपा करें।
विजये शिवदे देवि! मां प्रसीद जय-प्रदे।
वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः! प्रसीद मे।।
👉 हे विजयी और शिवस्वरूपिणी देवी! आप विजय प्रदान करती हैं — मुझ पर कृपा करें।
आप वेद और वेदांगों की स्वरूपा, वेदों की जननी हैं — कृपया मेरी रक्षा करें।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले।
सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके।।
👉 हे शोक को नष्ट करने वाली, ज्ञानमयी देवी! आप भक्तों से अत्यंत स्नेह रखती हैं।
हे सम्पत्ति देने वाली माया! हे जगदम्बा! मुझ पर कृपा करें।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्रष्टुर्वक्षसि भारती।
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे।।
👉 लक्ष्मी भगवान नारायण की गोद में हैं, भारती सृष्टिकर्ता ब्रह्मा के हृदय में हैं।
हे महा-माया! अब आप मेरी गोद में (मुझसे) जुड़ें। हे विष्णु की शक्ति! मुझ पर कृपा करें।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले।
कृष्णस्य राधिके भद्रे, प्रसीद कृष्ण पूजिते।।
👉 हे कालरूपा, कार्यरूपा, दीनों पर स्नेह करने वाली देवी! कृपा करें।
हे राधा! हे कल्याणी! आप श्रीकृष्ण द्वारा पूजित हैं — मुझ पर भी कृपा करें।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे।
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे।।
👉 हे सम्पूर्ण सुंदर स्त्रियों की रूप स्वरूपा! आप कला से युक्त हैं — कृपया मुझ पर प्रसन्न हों।
आप सम्पूर्ण धन-वैभव की स्वरूपा हैं — मुझे भी सम्पत्ति प्रदान करें।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः।
चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम्।।
👉 हे यशस्वियों द्वारा पूजित! आप यश की खान हैं — कृपया मुझ पर शीघ्र कृपा करें।
आप स्थावर-जंगम (चर-अचर) सभी में समाई हुई हैं — मेरी रक्षा करें, देर न करें।
मम योग-प्रदे देवि! प्रसीद सिद्ध-योगिनि।
सर्व-सिद्धि-स्वरूपे च, प्रसीद सिद्धि-दायिनि।।
👉 हे देवी! जो मुझे योग की अनुभूति देती हैं, कृपा करें। आप सिद्ध योगिनी हैं।
आप सभी सिद्धियों की स्वरूपा हैं — कृपया मुझे सिद्धियाँ प्रदान करें।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना।
स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि।।
👉 हे ईश्वरी! अब आप मेरी रक्षा कीजिए, क्योंकि मैं विरह की अग्नि में जल रहा हूँ।
अपने आत्म-दर्शन के पुण्य से मुझे अपनाइए — हे परमेश्वरी!
॥ फल-श्रुति ॥
एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत्।
न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि।।
👉 जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ या श्रवण करता है, उसके जीवन से वियोग की पीड़ा,
और स्त्री से मिलने वाली पीड़ा दूर हो जाती है। जन्म-जन्मांतर तक वह स्त्रियों से धोखा नहीं खाता।
।। इति ब्रह्मशक्ति स्तोत्र संपूर्णम्।।
ब्रह्मशक्ति स्तोत्र के मुख्य विषय:
- देवी को सनातन ब्रह्म और परमात्मा के रूप में वंदन
- देवी की प्रकृति, ज्ञान, माया और विजय देने वाली शक्ति का स्तवन
- शोक नाश, संपत्ति दान, योग सिद्धि, वियोग से मुक्ति, और सिद्धियाँ प्राप्त करने की प्रार्थना
- स्तोत्र के अंत में फलश्रुति दी गई है, जो बताती है कि इसका पाठ व्यक्ति को प्रेम-वियोग, स्त्री से छल, और जन्म-जन्मांतर के दुखों से मुक्त करता है।
पाठ की विधि एवं लाभ:
- इसे प्रातःकाल या रात्रि में एकाग्रचित्त होकर पढ़ें।
- देवी को पीले या सफेद पुष्प, दीप और धूप समर्पित करें।
- ध्यानपूर्वक स्तोत्र का पाठ करें और “ॐ ह्रीं नमः” या “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” जैसे बीज मंत्रों से पुष्टि करें।
किसके लिए उपयोगी है?
- जो व्यक्ति वियोग, मानसिक वेदना, प्रेम में विघ्न, धन की कमी या आत्मिक शांति की तलाश में है
- जो माया, सिद्धि, यश और आत्मबोध की प्राप्ति चाहता है
- जो किसी शक्ति साधना में लगे हैं और देवी से प्रत्यक्ष कृपा की आकांक्षा रखते हैं
“ब्रह्मशक्ति स्तोत्र” न केवल एक मंत्रित स्तुति है, बल्कि यह एक शक्ति-साधना का माध्यम है, जो साधक को दुखों से मोक्ष और शक्ति के साक्षात्कार तक पहुंचाने का मार्ग बनाता है।