गुरु बृहस्पति स्तोत्र भगवान बृहस्पति (जिन्हें गुरु या देवगुरु भी कहा जाता है) की स्तुति में रचित एक अत्यंत शक्तिशाली और मंगलकारी स्तोत्र है। यह स्तोत्र उनके गुणों, स्वरूप, प्रभाव, और उपकारों का वर्णन करता है तथा उन्हें प्रसन्न करने का एक प्रभावशाली माध्यम है।
बृहस्पति देव को नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। वे विद्या, वाणी, धर्म, नीति, न्याय, विवेक और सद्गुणों के अधिष्ठाता हैं। वे देवताओं के गुरु, शास्त्रों के ज्ञाता और ब्रह्मविद्या के प्रचारक हैं। इस स्तोत्र का पाठ व्यक्ति की वाणी में माधुर्य, बुद्धि में प्रखरता, कर्म में संतुलन, और जीवन में शुभता लाता है।
गुरु बृहस्पति स्तोत्र (Brihaspati Stotra)
क्रौं शक्रादि देवैः परिपूजितोसि त्वं जीवभूतो जगतो हिताय।
ददाति यो निर्मलशास्त्रबुद्धिं स वाक्पतिर्मे वितनोतु लक्ष्मीम्।। 1 ।।
पीताम्बरः पीतवपुः किरीटश्चतुर्भुजो देव गुरुः प्रशांतः।
दधाति दण्डं च कमण्डलुं च तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु महम्।। 2 ।।
ब्रहस्पतिः सुराचार्योदयावान् शुभलक्षणः।
लोकत्रयगुरुः श्रीमान् सर्वज्ञः सर्वतो विभुः।। 3 ।।
सर्वेशः सर्वदा तुष्टः श्रेयस्कृत् सर्वपूजितः।
अकोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता महाबलः।। 4 ।।
विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः।
भूर्भुवो धनदाता च भर्ता जीवो जगत्पतिः।। 5 ।।
पंचविंशतिनामानि पुण्यानि शुभदानि च।
नन्दगोपालपुत्राय भगवत्कीर्तितानि च।। 6 ।।
प्रातरुत्थाय यो नित्यं कीर्तयेत्तु समाहितः।
विप्रस्तस्यापि भगवान् प्रीतः स च न संशयः।। 7 ।।
तंत्रान्तरेऽपि नमः सुरेन्द्रवन्द्याय देवाचार्याय ते नमः।
नमस्त्वनन्तसामर्थ्य वेदसिद्धान्तपारग।। 8 ।।
सदानन्द नमस्तेऽस्तु नमः पीड़ाहराय च।
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे।। 9 ।।
नमोऽद्वितीयरूपाय लम्बकूर्चाय ते नमः।
नमः प्रहृष्टनेत्राय विप्राणां पतये नमः।। 10 ।।
नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक।
नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहेतवे।। 11 ।।
विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम्।
प्रत्यहं तु पठेन्मर्त्यस्तस्य कामफलप्रदम्।। 12 ।।
।। इति गुरु बृहस्पति स्तोत्र संपूर्णम्।।
गुरु बृहस्पति स्तोत्र – हिंदी अनुवाद सहित
1.
क्रौं शक्रादि देवैः परिपूजितोसि त्वं जीवभूतो जगतो हिताय।
ददाति यो निर्मलशास्त्रबुद्धिं स वाक्पतिर्मे वितनोतु लक्ष्मीम्।।
👉 हे बृहस्पति देव! आप इन्द्र आदि देवताओं द्वारा पूजित हैं। आप जीवस्वरूप होकर समस्त संसार के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
जो शुद्ध शास्त्रों की बुद्धि प्रदान करता है, वह वाणी के स्वामी मेरे लिए लक्ष्मी (संपत्ति/वाक्सिद्धि) को प्रसारित करें।
2.
पीताम्बरः पीतवपुः किरीटश्चतुर्भुजो देव गुरुः प्रशांतः।
दधाति दण्डं च कमण्डलुं च तथाक्षसूत्रं वरदोऽस्तु महम्।।
👉 हे गुरु बृहस्पति! आप पीले वस्त्रधारी, पीले शरीर वाले, मुकुट धारण किए हुए, चार भुजाओं वाले और शांत स्वभाव वाले देव हैं।
आप दण्ड, कमण्डलु और अक्षसूत्र धारण करते हैं – आप मुझे वरदान देने वाले हों।
3.
ब्रहस्पतिः सुराचार्योदयावान् शुभलक्षणः।
लोकत्रयगुरुः श्रीमान् सर्वज्ञः सर्वतो विभुः।।
👉 बृहस्पति देव, देवताओं के आचार्य हैं, शुभ लक्षणों से युक्त हैं।
तीनों लोकों के गुरु हैं, श्रीमान् हैं, सर्वज्ञ और सर्वव्यापी हैं।
4.
सर्वेशः सर्वदा तुष्टः श्रेयस्कृत् सर्वपूजितः।
अकोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता महाबलः।।
👉 वे सबके स्वामी हैं, सदा संतुष्ट रहते हैं, श्रेष्ठ फल देने वाले हैं, और सबके द्वारा पूजित हैं।
वे क्रोधरहित, श्रेष्ठ मुनि, नीति रचने वाले और अत्यंत शक्तिशाली हैं।
5.
विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः।
भूर्भुवो धनदाता च भर्ता जीवो जगत्पतिः।।
👉 वे विश्व की आत्मा हैं, विश्व के रचयिता हैं, स्वयं विश्व का कारण होते हुए भी अकारण हैं।
वे तीनों लोकों (भू, भुवः) को धन देने वाले, पालन करने वाले, जीवस्वरूप और जगत के स्वामी हैं।
6.
पंचविंशतिनामानि पुण्यानि शुभदानि च।
नन्दगोपालपुत्राय भगवत्कीर्तितानि च।।
👉 ये बृहस्पति के 25 पवित्र और शुभ फल देने वाले नाम हैं,
जो श्रीभगवान द्वारा नंदनंदन (कृष्ण) को बताए गए थे।
7.
प्रातरुत्थाय यो नित्यं कीर्तयेत्तु समाहितः।
विप्रस्तस्यापि भगवान् प्रीतः स च न संशयः।।
👉 जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः उठकर एकाग्रचित्त होकर इन नामों का कीर्तन करता है,
उससे भगवान बृहस्पति अत्यंत प्रसन्न होते हैं — इसमें कोई संदेह नहीं।
8.
तंत्रान्तरेऽपि नमः सुरेन्द्रवन्द्याय देवाचार्याय ते नमः।
नमस्त्वनन्तसामर्थ्य वेदसिद्धान्तपारग।।
👉 हे देवाचार्य! आपको तंत्र ग्रंथों में भी नमस्कार किया गया है, आप इन्द्र आदि देवों द्वारा वंदनीय हैं।
आपको बारंबार नमस्कार है, आप अनंत सामर्थ्य से युक्त और वेदों के सिद्धांतों के ज्ञाता हैं।
9.
सदानन्द नमस्तेऽस्तु नमः पीड़ाहराय च।
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे।।
👉 हे सदा आनंदस्वरूप प्रभु! आपको नमस्कार है, आप पीड़ा को हरने वाले हैं।
हे वाणी के स्वामी! आपको नमस्कार है, हे पीले वस्त्रधारी! आपको बारंबार नमस्कार है।
10.
नमोऽद्वितीयरूपाय लम्बकूर्चाय ते नमः।
नमः प्रहृष्टनेत्राय विप्राणां पतये नमः।।
👉 हे अद्वितीय स्वरूप वाले! आपको नमस्कार है, हे लम्बी दाढ़ीधारी! आपको नमस्कार है।
हे हर्षित नेत्रों वाले! हे ब्राह्मणों के स्वामी! आपको प्रणाम है।
11.
नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारक।
नमस्ते सुरसैन्याय विपन्नत्राणहेतवे।।
👉 हे शुक्राचार्य के शिष्य! हे संकटग्रस्तों के कल्याणकर्ता! आपको नमस्कार है।
हे देवसेना के संरक्षक! हे विपत्तिग्रस्तों को त्राण देने वाले! आपको प्रणाम है।
12.
विषमस्थस्तथा नृणां सर्वकष्टप्रणाशनम्।
प्रत्यहं तु पठेन्मर्त्यस्तस्य कामफलप्रदम्।।
👉 यदि किसी की कुंडली में बृहस्पति विषम स्थान में हो, तो भी यह स्तोत्र सभी कष्टों का नाश करता है।
जो मनुष्य इसे प्रतिदिन पढ़ता है, उसे इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
।। इति गुरु बृहस्पति स्तोत्र संपूर्णम्।।
इस स्तोत्र की विशेषताएँ:
- गुरु बृहस्पति के 25 शुभ नामों का वर्णन इसमें आता है।
- श्लोकों के माध्यम से बृहस्पति देव की दिव्य रूप, शक्ति, शांति, न्यायप्रियता और कृपालु स्वभाव का वर्णन किया गया है।
- इसका नियमित पाठ बुध्दि, धन, संतान, सुख-समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति देता है।
कब और क्यों पढ़ें?
- जब गुरु की दशा/अंतरदशा, साढ़ेसाती, गुरु वक्री या अशुभ स्थिति हो।
- जब विवाह, शिक्षा, करियर या संतान से जुड़ी बाधाएँ हों।
- जब जीवन में मार्गदर्शन और स्थायित्व की आवश्यकता हो।
- शुभ फल प्राप्ति और गुरु ग्रह के दोषों की शांति हेतु।
पाठ विधि:
- गुरुवार को प्रातः स्नान कर पीले वस्त्र धारण करें।
- भगवान बृहस्पति को पीले फूल, चने की दाल, हल्दी, पीले फल अर्पित करें।
- दीपक जलाकर श्रद्धापूर्वक स्तोत्र का पाठ करें।
- अंत में “ॐ बृहस्पतये नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें।
यह स्तोत्र केवल एक पाठ नहीं, बल्कि एक साधना है — जिससे आत्मिक चेतना जागृत होती है, और जीवन में शुभत्व का संचार होता है। जो व्यक्ति इस स्तोत्र को भक्ति भाव से पढ़ता है, उसे निश्चित ही गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त होती है।