“बुध स्तोत्र” भगवान बुध (Budh Dev) की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और श्रद्धापूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र वैदिक परंपरा में बुध ग्रह की महिमा, स्वरूप, गुण, और प्रभावों का अत्यंत सुंदर वर्णन करता है। बुध देव को बुद्धि, वाणी, तर्कशक्ति, शिक्षा, गणना, लेखन, व्यवसाय, और वैवाहिक संतुलन का अधिपति माना जाता है। वे चंद्रमा (सोम) के पुत्र तथा तारा के गर्भ से उत्पन्न हुए माने जाते हैं।
इस स्तोत्र में बुधदेव की आकृति, रंग, रूप, स्वभाव, शक्ति, अस्त्र-शस्त्र, वाहन और कुल-गोत्र का विस्तार से वर्णन किया गया है। वे पीतवर्ण, चतुर्भुज, सिंह पर आरूढ़, सौम्य स्वभाव वाले, ज्ञानदायक और पीड़ा नाशक माने गए हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति प्रातःकाल इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी बुद्धि में वृद्धि होती है और बुध ग्रह की अशुभता समाप्त हो जाती है।
बुध स्तोत्र (Buddh Stotra)
पीताम्बर: पीतवपु किरीटी, चतुर्भुजो देवदु:खापहर्ता।
धर्मस्य धृक सोमसुत: सदा मे, सिंहाधिरुढ़ो वरदो बुधश्च।।
प्रियंगुकनकश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं नमामि शशिनन्दनम्।।
सोमसुनुर्बुधश्चैव सौम्य: सौम्यगुणान्वित:।
सदा शान्त: सदा क्षेमो नमामि शशिनन्दनम्।।
उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुधम्।।
शिरीषपुष्पसंकाशं कपिलीशो युवा पुन:।
सोमपुत्रो बुधश्चैव सदा शान्तिं प्रयच्छतु।।
श्याम: शिरालश्च कलाविधिज्ञ: कौतूहली कोमलवाग्विलासी।
रजोधिको मध्यमरूपधृक स्यादाताम्रनेत्रो द्विजराजपुत्र:।।
अहो चन्द्रासुत श्रीमन् मागधर्मासमुद्भव:।
अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहु: खड्गखेटकधारक:।।
गदाधरो नृसिंहस्थ: स्वर्णनाभसमन्वित:।
केतकीद्रुमपत्राभ: इन्द्रविष्णुप्रपूजित:।।
ज्ञेयो बुध: पण्डितश्च रोहिणेयश्च सोमज:।
कुमारो राजपुत्रश्च शैशवे शशिनन्दन:।।
गुरुपुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा।
सौम्य: सौम्यगुणोपेतो रत्नदानफलप्रद:।।
एतानि बुधनामानि प्रात: काले पठेन्नर:।
बुद्धिर्विवृद्धितां याति बुधपीड़ा न जायते।।
।। इति बुध स्तोत्र संपूर्णम्।।
बुध स्तोत्र – हिंदी अनुवाद सहित
पीताम्बर: पीतवपु किरीटी, चतुर्भुजो देवदु:खापहर्ता।
धर्मस्य धृक सोमसुत: सदा मे, सिंहाधिरुढ़ो वरदो बुधश्च।।
पीले वस्त्रधारी, पीले रंग के शरीर वाले, मुकुटधारी, चार भुजाओं वाले भगवान बुध सभी दुखों को दूर करने वाले हैं।
वे धर्म के धारक, चंद्रमा के पुत्र हैं, सदा मेरे लिए कल्याणकारी हों। वे सिंह पर विराजमान और वरदान देने वाले हैं।
प्रियंगुकनकश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं नमामि शशिनन्दनम्।।
प्रियंगु और सोने के समान पीत वर्ण वाले, अनुपम रूप वाले बुधदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।
वे अत्यंत सौम्य हैं और सौम्य गुणों से युक्त हैं। वे चंद्रमा के पुत्र हैं।
सोमसुनुर्बुधश्चैव सौम्य: सौम्यगुणान्वित:।
सदा शान्त: सदा क्षेमो नमामि शशिनन्दनम्।।
बुध चंद्रमा के पुत्र हैं, अत्यंत शांत स्वभाव वाले और सद्गुणों से युक्त हैं।
वे सदा शांति और कल्याण देने वाले हैं – ऐसे शशिनंदन को मैं प्रणाम करता हूँ।
उत्पातरूपी जगतां चन्द्रपुत्रो महाद्युति:।
सूर्यप्रियकरो विद्वान् पीडां हरतु मे बुधम्।।
यह चंद्रपुत्र बुध देव, जो संपूर्ण सृष्टि में तेजस्वी हैं और विद्वान हैं,
सूर्य को प्रिय हैं — वे मेरी समस्त पीड़ाओं को दूर करें।
शिरीषपुष्पसंकाशं कपिलीशो युवा पुन:।
सोमपुत्रो बुधश्चैव सदा शान्तिं प्रयच्छतु।।
जो शिरीष पुष्प के समान कान्तिवान हैं, गंगा के निकटवर्ती (कपिलीश्वर), और यौवन से परिपूर्ण हैं,
चंद्रमा के पुत्र बुधदेव सदा मुझे शांति प्रदान करें।
श्याम: शिरालश्च कलाविधिज्ञ: कौतूहली कोमलवाग्विलासी।
रजोधिको मध्यमरूपधृक स्यादाताम्रनेत्रो द्विजराजपुत्र:।।
वे श्याम वर्ण के हैं, बालों से युक्त हैं, कलाओं में निपुण हैं, जिज्ञासु हैं,
कोमल वाणी के स्वामी हैं, राजसी प्रवृत्ति के हैं, मध्यम आकृति वाले हैं, ताम्र नेत्र वाले हैं और ब्राह्मणश्रेष्ठ (चंद्रमा) के पुत्र हैं।
अहो चन्द्रासुत श्रीमन् मागधर्मासमुद्भव:।
अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहु: खड्गखेटकधारक:।।
हे! चंद्रमा के पुत्र, श्रीमान् बुधदेव, जो मगध धर्म परंपरा से उत्पन्न हुए हैं,
अत्रि ऋषि के गोत्र से हैं, चार भुजाओं वाले हैं और खड्ग तथा ढाल धारण किए हुए हैं।
गदाधरो नृसिंहस्थ: स्वर्णनाभसमन्वित:।
केतकीद्रुमपत्राभ: इन्द्रविष्णुप्रपूजित:।।
वे गदा धारण करने वाले हैं, नृसिंह देव के आसन पर विराजमान हैं, उनके नाभि में स्वर्णमणि है,
वे केतकी के पत्तों के समान कान्तिवान हैं और इन्द्र तथा विष्णु द्वारा पूजित हैं।
ज्ञेयो बुध: पण्डितश्च रोहिणेयश्च सोमज:।
कुमारो राजपुत्रश्च शैशवे शशिनन्दन:।।
बुध को पंडित, रोहिणी के पुत्र, चंद्रमा का पुत्र, कुमार, राजकुमार और बचपन में ही ज्ञान से युक्त कहा गया है।
गुरुपुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा।
सौम्य: सौम्यगुणोपेतो रत्नदानफलप्रद:।।
वे बृहस्पति (गुरु) के शिष्य हैं, तारा के पुत्र हैं, देवताओं के समान बुद्धिमान हैं, ज्ञान देने वाले हैं,
सौम्य स्वभाव वाले हैं, सौम्य गुणों से युक्त हैं और रत्न दान का फल देने वाले हैं।
एतानि बुधनामानि प्रात: काले पठेन्नर:।
बुद्धिर्विवृद्धितां याति बुधपीड़ा न जायते।।
जो व्यक्ति प्रातःकाल इन बुधदेव के नामों का पाठ करता है,
उसकी बुद्धि में वृद्धि होती है और बुध ग्रह से संबंधित कोई पीड़ा नहीं होती।
।। इति बुध स्तोत्र संपूर्णम्।।
स्तोत्र के प्रमुख गुण और उद्देश्य:
- बुध ग्रह के दोषों को शांत करना
- बुद्धि, वाणी, शिक्षा और निर्णय क्षमता में सुधार
- व्यापार व संचार कौशल को बढ़ाना
- मानसिक स्थिरता और वाक्-शक्ति प्रदान करना
- कुंडली में बुध की महादशा, अंतरदशा या अशुभ स्थिति में राहत
पाठ विधि:
- बुधवार को सुबह स्नान कर हरे वस्त्र धारण करें।
- भगवान बुध का चित्र या प्रतीक स्थापित करें।
- हरे मूंग, दुर्वा, मिश्री आदि का भोग अर्पित करें।
- दीपक और धूप लगाकर श्रद्धा से स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद “ॐ बुधाय नमः” का 108 बार जप करें।
उपयुक्त समय और दिन:
- विशेष रूप से बुधवार को
- रोजाना प्रातःकाल, विशेषकर बुध की महादशा या पीड़ा के समय
“बुध स्तोत्र” न केवल ग्रहशांति हेतु है, बल्कि यह आध्यात्मिक चेतना, मानसिक संतुलन, और वाणी में मधुरता लाने के लिए भी अमोघ उपाय है। यदि किसी की कुंडली में बुध निर्बल हो या वाणी व तर्क में बाधा हो रही हो, तो यह स्तोत्र अत्यंत कल्याणकारी सिद्ध होता है।