बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाओं, संकटों और विघ्नों को दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना गया है। विशेष रूप से भैरव अष्टमी अथवा शनिवार के दिन इसका श्रद्धापूर्वक पाठ करने से साधक को व्यापार, जीवन, मुकदमे, शत्रु-दोष, और तांत्रिक प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भगवान भैरव के 52 अद्भुत स्वरूपों का वर्णन करता है, जिनमें काल भैरव, कापालिक भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, भीषण भैरव, उन्मत्त भैरव, क्रोध भैरव और बटुक भैरव प्रमुख हैं। इसका नियमित पाठ साधक को नकारात्मक ऊर्जा, तांत्रिक क्रियाओं, शत्रुओं और अदृश्य भय से सुरक्षित रखता है तथा आध्यात्मिक और सांसारिक समृद्धि प्रदान करता है।
बटुक भैरव स्तोत्र (Batuk Bhairav Stotra)
ध्यान:
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः॥
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥
मानसिक पूजन:
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः।
ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये निवेदयामि नमः।
ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मूल स्तोत्र:
ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥ 1॥
श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः॥ 2॥
कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः॥ 3॥
शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी-पतिः॥ 4॥
धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्॥ 5॥
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्॥ 6॥
त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय।
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग-वर-धारकः॥ 7॥
भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु-लोचनः॥ 8॥
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः।
अष्ट-मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान-चक्षुस्तपो-मयः॥ 9॥
अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः॥10॥
कपाल-धारी मुण्डी च, नाग-यज्ञोपवीत-वान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा॥ 11॥
शुद्ध-नीलाञ्जन-प्रख्य-देहः मुण्ड-विभूषणः।
बलि-भुग्बलि-भुङ्-नाथो, बालो बाल-पराक्रमः॥ 12॥
सर्वापत्-तारणो दुर्गो, दुष्ट-भूत-निषेवितः।
कामी कला-निधिः कान्तः, कामिनी-वश-कृद्वशी॥13॥
जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया-मन्त्रौषधी-मयः।
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ-विष्णुरितीव हि॥ 14॥
फल-श्रुति:
अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्॥ 15॥
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा॥ 16॥
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः॥ 17॥
मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये॥ 18॥
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्॥ 19॥
क्षमा प्रार्थना:
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर॥
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर।
मया यत् पूजितं देव, परिपूर्णं तदस्तु मे॥
॥ इति श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
बटुक भैरव स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
ध्यानीय रूप (ध्यान):
“मैं बटुक भैरव के बाल रूप को प्रणाम करता हूँ — बालक जैसे स्फटिक समान दैत्य-मोचन मुख वाले, नौ रत्नों से अलंकृत, कंगना-नूपुर धारण करने वाले; दिव्य तेज, सरल मुख, त्रिनयन एवं हाथों में शूल-दण्ड धारण किए हुए।”
मानसिक पूजन (आत्मिक समर्पण):
पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि और सर्व तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हुए — “ॐ लं, ॐ हं, ॐ यं, ॐ रं, और ॐ सं” मंत्रों के साथ मैं बटुक भैरव को गंध, पुष्प, धूप, दीप, ताम्बूल अर्पित करता हूँ।
मूल स्तोत्र का भावार्थ:
- “ॐ भैरवो भूतनाथ…”
— हे भैरव, आप सब भूतों के स्वामी, आत्मा के रचयिता, क्षेत्र के ज्ञाता, रक्षक एवं वीर क्षत्रिय हैं। - “श्मशान-वासी मांसाशी…”
— आप श्मशान में वासरत, रक्त-पीने वाले, सिद्धशक्ति के गुणी तथा सिद्धियों से पूरित हैं। - “कंकालः कालः-शमनः…”
— आप कंकाल जैसे भयंकर, मृत्यु को शांत करने वाले, कवि समान शरीरधारी और त्रिनयन एवं पिंगल-नेत्रों वाले हैं। - “शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः…”
— हाथ में शूल-मात्रा, खड्ग, कंकालाकार, धूसर नेत्रों वाले, योगिनी के पति और भैरवी-नाथ के रूपधारी हैं। - “धनदोऽधन-हारी च…”
— आप धन देने वाले, धन लेने वाले, नाग-हार, नाग केश, आकाश केश और कपाल धारी हैं। - “कालः कपालमाली च…”
— आप समय के स्वामी, कपाल-माला धारण करने वाले, सुंदर, कला-निधि, त्रिनयन, त्रि-शिखा, त्रिलोकाधारी हैं। - “त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः…”
— आप शांत, लोकप्रिय देवता, खट्वांग (गदा)धर, बटुक विभूषित हैं। - “भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः…”
— आप भूतों के अधिपति, पशुपति, भिक्षुक, चालाक दिगंबर, वीर और पाण्डु नेत्र-धारी हैं। - “प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः…”
— आप शांतिप्रिय, शुद्ध, शिव-प्रिय, अष्टमूर्तियों एवं निधियों के आराध्य, ज्ञानदृष्टि वाले हैं। - “अष्टाधारः षडाधारः…”
— आप छह-आधारी, सर्पयुक्त, गंभीर, पृथ्वी के धरतीपति-ध्रुवात्मा हैं। - “कपाल-धारी मुण्डी च…”
— आप पारदर्शी नील अंगारिक, यज्ञोपवीतधारी, स्तम्भक, मोहक और भयभीत करने वाले हैं। - “शुद्ध-नीलाञ्जन-प्रख्य…”
— आपका रंग साधारण नीला, सिर पर मुण्डी, बलि-बलि-भूषणयुक्त, बाल रूप के पराक्रमी हैं। - “सर्वापत्-तारणो दुर्गो…”
— आप आपत्तिजनक, दुर्गा रूप, दुष्ट-भूतों के नाशक, कामिनी-वश करवाने वाले देवता हैं। - “जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो…”
— आप जगत की रक्षा करने वाले, माया-मंत्र-औषधियों रूप, सर्वसिद्धिप्रद, वैद्य और विष्णु जैसे हैं।
फल-श्रुति (फल की वाणी):
जो व्यक्ति इस स्तोत्र के अष्टोत्तरशतनाम जप, पाठ, लिखन, स्थापना या धारण करता है — उसे शत्रु भय, भूत-प्रेत, संकट, रोग, बन्धन, किसी प्रकार का अभिशाप नहीं रहता। अष्टमी, शनिवार आदि शुभ समय में निरंतर पाठ करने पर सभी इच्छाएं पूर्ण, भय नष्ट, और भयिनाश पूर्ण रूप से होता है।
क्षमा-प्रार्थना:
“हे परमेश्वर! मेरा न आवाहनाधिकार, पूजन, क्रिया-ज्ञान नहीं — कृपया जो कुछ भी मैंने आज अज्ञानपूर्वक किया, क्षमा करें।”
॥ इति श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् पूर्णम् ॥