“बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्रम्” भगवान भैरव के बटुक रूप की स्तुति में रचित एक अत्यंत प्रभावशाली और रहस्यमयी स्तोत्र है। इसमें भगवान बटुक भैरव के 108 गुणों और नामों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। बटुक भैरव, कालभैरव के बाल रूप माने जाते हैं जो विशेष रूप से शत्रु विनाश, आपदाओं से रक्षा, और भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने वाले देवता हैं।
इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को भय, रोग, शत्रु, दुर्भाग्य, कष्ट और बाधाओं से मुक्ति मिलती है तथा जीवन में सुख-समृद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से यह स्तोत्र तांत्रिक प्रयोगों, साधनाओं और आत्मरक्षा हेतु सिद्ध माना जाता है।
नियमपूर्वक इसका पाठ करने पर साधक को मानसिक, आत्मिक और भौतिक सुरक्षा की अनुभूति होती है और साधना में उच्च सिद्धि प्राप्त होती है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो शत्रु बाधा, ऊपरी हवा, या असामान्य भय से ग्रसित हैं।
बटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्रम् (Batuk Bhairav Ashtottara Stotra)
पाठ प्रारंभ विधि:
सीधे हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़कर जल भूमि पर छोड़ दें।
विनियोग:
ॐ अस्य श्रीबटुक भैरव स्तोत्र मन्त्रस्य, कालाग्नि रूद्र ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, आपदुद्धारक बटुक भैरवो देवता, ह्रीं बीजम्, भैरवी वल्लभः शक्तिः, नीलवर्णों दण्डपाणिः कीलकं, समस्त शत्रु दमन, समस्त आपत्ति निवारण, सर्व अभिष्ट प्राप्ति हेतु विनियोगः।
ऋष्यादि न्यास:
ॐ कालाग्नि ऋषये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
आपदुद्धारक श्रीबटुक भैरव देवतायै नमः हृदये ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
भैरवी वल्लभ शक्तये नमः पादयोः ।
नीलवर्णों दण्डपाणिः कीलकाय नमः नाभौ ।
समस्त शत्रु दमन, आपत्ति निवारण एवं सर्व अभिष्ट प्राप्ति हेतु विनियोगाय नमः सर्वांगे ।
मूल मंत्र:
ॐ ह्रीं बं बटुकाय क्षौं क्षौं आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय स्वाहा ।
ध्यान:
नील जीमूत के समान वर्ण, जटाधारी, रक्त नेत्रों वाले,
दंष्ट्रायुक्त, भयानक मुख वाले, सर्प यज्ञोपवीतधारी ।
दंष्ट्रा और आयुधों से अलंकृत, कपालों की माला पहने हुए,
हाथों में करोतिका, भस्म से अलंकृत शरीर ।
नागराज कमरबंध, बाल रूप, दिगम्बर वेश,
पाँव की मंजीरियों से भूमि को कम्पित करने वाले ।
भूत-प्रेत-पिशाचों से घिरे, योगिनी चक्र के मध्य,
मातृमण्डल से वेष्टित, अट्टहास युक्त विकराल स्वरूप ।
भक्तों की रक्षा हेतु चारों दिशाओं में भ्रमण करते हैं ।
बटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम्:
- ॐ ह्रीं बटुकों वरदः शूरो भैरवः काल भैरवः ।
भैरवी वल्लभो भव्यो दण्ड पाणिर्दया निधिः ।। - वेताल वाहनों रौद्रो रूद्र भृकुटि सम्भवः ।
कपाल लोचनः कान्तः कामिनी वश कृद् वशी ।। - आपदुद्धारणो धीरो हरिणाङ्क शिरोमणिः ।
दंष्ट्रा करालो दष्टोष्ठौ धृष्टो दुष्ट निवर्हणः ।। - सर्प हारः सर्प शिरः सर्प कुण्डल मण्डितः ।
कपाली करुणा पूर्णः कपालैक शिरोमणिः ।। - श्मशान वासी मासांशी मधु मत्तोऽट्टहासवान् ।
वाग्मी वाम व्रतो वामो वामदेव प्रियंकरः ।। - वनेचरो रात्रिचरो वसुदो वायु वेगवान् ।
योगी योग व्रत धरो योगिनी वल्लभो युवा ।। - वीरभद्रो विश्वनाथो विजेता वीर वन्दितः ।
भूताध्यक्षो भूति धरो भूत भीति निवरणः ।। - कलङ्कहीनः कंकाली क्रूरः कुक्कुरवाहनः ।
गाढो गहन गम्भीरो गणनाथ सहोदरः ।। - देवीपुत्रो दिव्य मूर्तिर्दीप्तिमान् दिवालोचनः ।
महासेन प्रियकरो मान्यो माधव मातुलः ।। - भद्रकाली पतिः भद्रः भद्रदः भद्रवाहनः ।
पशूपहार रसिकः पाशी पशुपतिः पतिः ।। - चण्डः प्रचण्ड चण्डेशश्चण्डी हृदय नन्दनः ।
दक्षो दक्षाध्वर हरो दिग्वासा दीर्घ लोचनः ।। - निरातङ्को निर्विकल्पः कल्पः कल्पान्त भैरवः ।
मद ताण्डव कृन्मत्तो महादेव प्रियो महान् ।। - खट्वांग पाणिः खातीतः खर शूलः खरान्त कृत् ।
ब्रह्माण्ड भेदनः ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मण पालकः ।। - दिक् चरो भूचरो भूष्णुः खेचरः खेलन प्रियः ।
सर्व दुष्ट प्रहर्ता च सर्व रोग निषूदनः ।
सर्व काम प्रदः शर्वः सर्व पाप निकृन्तनः ।।
फलश्रुति (संस्कृत में):
इत्थमष्टोत्तर-शतं नाम्ना सर्व-समृद्धिदम् ।
आपदुद्धार-जनकं बटुकस्य प्रकीर्तितम् ।।
एतच्च श्रृणुयान्नित्यं लिखेद् वा स्थापयेद् गृहे ।
धारयेद् वा गले बाहौ तस्य सर्वा समृद्धयः ।।
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न चौर-नृपजं भयम् ।
न चापस्मृति-रोगेभ्यो डाकिनीभ्यो भयं नहि ।।
न कूष्माण्ड-ग्रहादिभ्यो नापमृत्योर्न च ज्वरात् ।
मासमेकं त्रि-सन्ध्यं तु शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः ।।
सर्व-दारिद्रय-निर्मुक्तो निधि पश्यति भूतले ।
मास-द्वयमधीयानः पादुका-सिद्धिमान् भवेत् ।।
अञ्जनं गुटिका खड्गं धातु-वाद-रसायनम् ।
सारस्वतं च वेताल-वाहनं बिल-साधनम् ।।
कार्य-सिद्धिं महा-सिद्धिं मन्त्रं चैव समीहितम् ।
वर्ष-मात्रमधीनः प्राप्नुयात् साधकोत्तमः ।।
एतत् ते कथितं देवि ! गुह्याद् गुह्यतरं परम् ।
कलि-कल्मष-नाशनं वशीकरणं चाम्बिके ।।
॥ इति श्रीबटुक भैरव अष्टोत्तर स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ (Benefits)
- अवरोध और बाधाओं का निवारण – यह स्तोत्र मन, कामकाज और जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने, शत्रु, काले जादू, बुरी आत्माओं और नकारात्मक ऊर्जाओं से रक्षा करता है।
- विधिक एवं कोर्ट-संबंधी विजय – यह मंत्र क्रमवार रूप से न्यायालय के मामलों में सहायता करता है और उच्च अधिकारियों से अनुकूलता दिलाता है ।
- स्वास्थ्य संबंधी लाभ – शनि दोष, शरीर-रोग, मानसिक तनाव जैसी समस्या दूर करने में यह स्तोत्र सहायक है और शारीरिक व मानसिक सशक्तिकरण करता है ।
- वित्तीय स्थिति में सुधार – नियमित जप से घर पर सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है, जिससे धन-वृद्धि और आर्थिक समृद्धि होती है ।
- शक्ति, साहस, आत्मविश्वास – यह स्तोत्र साधक में भय हटाकर साहस और आत्मबल प्रदान करता है; तंत्र साधना में विशेष प्रभावी होता है ।
विधि (Way / Method)
- शुद्धि एवं तैयारी
सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर बटुक भैरव की मूर्ति या यंत्र स्थापित करें। - विनियोग (आरंभिक मंत्र उच्चारण)
हाथ में जल लेकर उपयुक्त विनियोग मंत्र पढ़ें एवं जल को भूमि पर विसर्जित करें. - ऋष्यादि न्यास और मूल मंत्र
- जटिल अंग-न्यास (कालाग्नि ऋषि, अंगुष्ठ-शिरा आदि) और उसके बाद “ॐ ह्रीं बं बटुकाय…” मूल मंत्र का जप करें ।
- ध्यान (Visualization)
- दीपक जलाएं और ध्यान में बटुक भैरव का रूप—जटाधारी, नीली आभा, सर्प-हार आदि—अपनी आंखों में लाएँ।
- अष्टोत्तरनाम जप
- 108 नामों वाला यह स्तोत्र पाठ दृढ़ श्रद्धा व जपमाला की सहायता से करें।
- समर्पण एवं समापन : जप के अंत में दीप, फूल, भस्म/चंदन का अर्पण करें और आभार व्यक्त करें।
जप–समय एवं संख्या (Timing & Count)
श्रेणी | विवरण |
---|---|
समय | ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4–6 AM) |
रिज़रव नियम | नियमित जप के लिए प्रतिदिन 108 बार मंत्र जाप होना चाहिए । |
साधन विशेष | संकट निवारण हेतु 21, 40 या 108 दिन तक लगातार जप प्रभावी रहता है । गंभीर शोध, न्याय या आर्थिक संकट में 3 माह तक अनवरत जप करने की सलाह दी जाती है । |