“प्रज्ञा विवर्धन कार्तिकेय स्तोत्र” एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान कार्तिकेय (स्कंद, कुमारस्वामी) को समर्पित है। यह स्तोत्र रुद्रयामल तंत्र से लिया गया है और मुख्य रूप से बुद्धि, वाक्पटुता और आध्यात्मिक उन्नति के लिए पाठ किया जाता है।
इस स्तोत्र में भगवान कार्तिकेय के 28 पवित्र नामों का वर्णन किया गया है, जो उनके विभिन्न रूपों, शक्तियों और गुणों को दर्शाते हैं। स्कंद स्वयं कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रद्धा से प्रतिदिन इसका पाठ करता है, वह मूक व्यक्ति भी वाग्मी (वाचस्पति) बन सकता है और उसे महान प्रज्ञा (बुद्धिमत्ता) की प्राप्ति होती है।
इस स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से विद्यार्थियों, वक्ताओं, साधकों और बुद्धि तथा स्मरणशक्ति बढ़ाने की इच्छा रखने वालों के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है। यह न केवल मानसिक क्षमता बढ़ाने में सहायक है, बल्कि आत्मिक बल, एकाग्रता और भक्ति भाव को भी सुदृढ़ करता है।
श्री प्रज्ञा विवर्धन कार्तिकेय स्तोत्र
स्कंद उवाच –
योगीश्वरो महासेनः कार्तिकेयोऽग्निनन्दनः।
स्कंदः कुमारः सेनानी स्वामी शंकरसंभवः॥ १॥
गांगेयस्ताम्रचूडश्च ब्रह्मचारी शिखिध्वजः।
तारकारिरुमापुत्रः क्रोधारिश्च षडाननः॥ २॥
शब्दब्रह्मसमुद्रश्च सिद्धः सारस्वतो गुहः।
सनत्कुमारो भगवान् भोगमोक्षफलप्रदः॥ ३॥
शरजन्मा गणाधीशः पूर्वजो मुक्तिमार्गकृत्।
सर्वागमप्रणेता च वांछितार्थप्रदर्शनः॥ ४॥
अष्टाविंशतिनामानि मदीयानीति यः पठेत्।
प्रत्यूषं श्रद्धया युक्तो मूको वाचस्पतिर्भवेत्॥ ५॥
महामंत्रमयानीति मम नामानुकीर्तनात्।
महाप्रज्ञामवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥ ६॥
॥ इति श्री रुद्रयामले प्रज्ञा विवर्धन स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री प्रज्ञा विवर्धन कार्तिकेय स्तोत्र
(हिंदी अनुवाद)
स्कंद बोले –
योग के स्वामी, महान सेनापति, अग्नि के पुत्र कार्तिकेय,
स्कंद, कुमार, देवताओं के सेनानायक, शिवजी से उत्पन्न प्रभु हैं॥ १॥
गंगा माता के पुत्र, ताम्र मुकुट धारी, ब्रह्मचारी, मयूरध्वजधारी,
तारकासुर के संहारक, उमा (पार्वती) के पुत्र, क्रोध रूपी, और षडानन (छः मुख वाले) हैं॥ २॥
वे शब्द ब्रह्म के समुद्र, सिद्ध, सरस्वती के स्वरूप, और गुह (गुप्त रूप) हैं,
सनत्कुमार रूप में भगवान हैं, जो भोग और मोक्ष दोनों फल प्रदान करते हैं॥ ३॥
शर (तीर) से उत्पन्न, गणों के अधिपति, बड़े भाई, मोक्ष मार्ग के रचयिता,
सभी आगम शास्त्रों के प्रवर्तक और इच्छित फलों के दर्शक हैं॥ ४॥
जो श्रद्धापूर्वक प्रतिदिन प्रातः मेरे ये अठ्ठाइस नामों का पाठ करता है,
वह मूक व्यक्ति भी वाचस्पति (वाक्पटु, विद्वान वक्ता) बन जाता है॥ ५॥
मेरे ये नाम महामंत्रमय हैं—इनका कीर्तन करने से
महान बुद्धि (प्रज्ञा) की प्राप्ति होती है; इसमें कोई संदेह नहीं है॥ ६॥
॥ इस प्रकार श्री रुद्रयामल में वर्णित प्रज्ञा-विवर्धन स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥
लाभ (Benefits)
- बुद्धि और स्मरण क्षमता में वृद्धि:
नियमित पाठ या सुनने से तेज बुद्धि, तीव्र स्मरण शक्ति और प्रभावशाली वक्तृत्व का विकास होता है। - एकाग्रता में सुधार व अधिगम क्षमता:
विषयों को ठीक से सीखने में कठिनाई वाले व्यक्तियों के लिए भी यह स्तोत्र सहायक पाया गया है । - दिव्य ज्ञान–प्रज्ञा की प्राप्ति:
नामजप को “महामंत्र” बताया गया है, जिससे गूढ़ ज्ञान और आत्मसात बुद्धि प्राप्त होती है। - रक्षा, मनोबल और मनोवांछित सिद्धि:
संरक्षण, इच्छित फलों की पूर्ति, आंतरिक संतुलन और मानसिक/emotional peace के लिए उपकारी।
विधि (Method)
- पूर्व-चरण साधना:
कुछ परंपराओं में पुष्य नक्षत्र से शुरू कर सूर्य के अगले पुष्य नक्षत्र तक पीपल वृक्ष पूजा करना सलाह दी जाती है। - आसन–शुद्धि और पूजन:
आसन, आचमन, पवित्रिकरण, तिलक, शिखा–बंधन, आदि केले जाते हैं, साथ ही स्वस्ति वाचन, मंगल‑श्लोक, और रुद्राभिषेक विधियां शामिल हैं। - दीक्षा:
केवल साधना के लिए दीक्षा ज़रूरी है; सुनना और सामान्य पाठ के लिए आवश्यक नहीं। - जप विधि:
– स्रोतों अनुसार 11 बार प्रतिदिन पढ़ने, लेकिन 108 बार नाम‑जप करने का विशेष महत्व है।
जप का सही समय (Timing)
- प्रातःकाल (प्रत्यूष):
स्तोत्र “प्रत्युषं श्रद्धया” कहा गया है—अर्थात हर सुबह, सूर्योदय के समय श्रद्धा भाव से पाठ करना चाहिए। - त्रिकाल जप:
कुछ ग्रन्थों में सुबह–दोपहर–शाम (त्रि‑काल) जप की भी सलाह दी जाती है; जैसे पीडीएफ का उल्लेख करता है । - पुष्य नक्षत्र से आरंभ:
“पुष्य नक्षत्र से अगला पुष्य” तक की परंपरा में निरंतर जप करना शुभ माना जाता है।