पितृ देव स्तोत्र एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से युक्त स्तोत्र है, जो हमारे पूर्वजों (पितरों) की स्तुति, सम्मान और तृप्ति के लिए विशेष रूप से गाया या पढ़ा जाता है। यह स्तोत्र मार्कण्डेय पुराण से लिया गया है, जिसमें रुचि मुनि द्वारा ध्यान और तप के माध्यम से पितरों को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र का उच्चारण किया गया था।
इस स्तोत्र में पितृगणों की ब्रह्मांडीय स्थिति, दिव्य स्वरूप और उनके तेजस्वी रूपों का वर्णन किया गया है। पितृ देवताओं को सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, वायु, पृथ्वी, नक्षत्रों, ग्रहों, ऋषियों, देवताओं और योगियों के रूप में दर्शाया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पितर केवल मृत पूर्वज नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय शक्ति और धर्म के आधार हैं।
Pitra Dev Stotram – पितृ स्तोत्र
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम् ॥
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥
मन्वादीनां च नेतारः सूर्याचन्दमसोस्तथा ।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि ॥
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा ।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान् ।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलिः ॥
प्रजापतेः कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः ॥
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः ।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः ॥
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतामनसः ।
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुजः ॥
।। इति पितृ स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
पितृ स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
1.
जिन पितरों की कोई मूर्ति नहीं है लेकिन जो तेजस्वी स्वरूप में पूजित हैं,
उन दिव्य दृष्टि वाले ध्यानमग्न पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
2.
इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष और मरीचि जैसे प्रजापतियों के जो पूर्वज हैं,
सप्तर्षियों और अन्य श्रेष्ठ पितरों को मैं कामनाओं को पूर्ण करने वाले समझकर प्रणाम करता हूँ।
3.
मनुओं के पूर्वज, सूर्य और चंद्रमा के आदि पितरों को,
तथा समुद्रों में निवास करने वाले समस्त पितरों को मैं नमस्कार करता हूँ।
4.
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि और आकाश के पितरों को,
तथा आकाश और पृथ्वी के पितरों को भी मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
5.
देवर्षियों और समस्त लोकों द्वारा पूजित उन पितरों को,
जो अक्षय फल देने वाले हैं, मैं सच्चे मन से नमस्कार करता हूँ।
6.
प्रजापति, कश्यप, सोम (चंद्रमा) और वरुण को,
तथा योगेश्वर रूप पितरों को मैं सदा हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ।
7.
सातों लोकों में स्थित सात गणों वाले पितरों को नमस्कार हो,
और स्वयंभू ब्रह्मा, जो योग-दृष्टि से युक्त हैं, उन्हें भी मैं प्रणाम करता हूँ।
8.
जो सोम से उत्पन्न हुए हैं, योग स्वरूप को धारण करने वाले पितृगण,
और जगत के पितर रूप चंद्रमा को मैं नमस्कार करता हूँ।
9.
जो अग्नि स्वरूप में हैं और अन्य पितर भी जो अग्नि रूप में पूज्य हैं,
साथ ही यह सम्पूर्ण विश्व जो अग्नि और सोम से बना है, उन सभी को मैं प्रणाम करता हूँ।
10.
जो तेजस्वी स्वरूप में हैं, जो सूर्य, चंद्र और अग्नि के रूप में प्रतिष्ठित हैं,
वे सभी जगत रूप हैं और ब्रह्मस्वरूप भी हैं — उन्हें मैं साष्टांग प्रणाम करता हूँ।
11.
उन सभी योगीस्वरूप, तपस्वी, ध्यानमग्न पितरों को,
मैं बारम्बार प्रणाम करता हूँ — हे स्वधा को स्वीकार करने वाले पितरों! कृपा करें।
।। इति पितृ स्तोत्र हिंदी अनुवाद समाप्त ।।
लाभ (Benefits)
- पितृ दोष निवारण
नियमित पाठ से कुंडली में उपस्थित पितृ दोष शांत होता है और परिवार संबंधित बाधाएँ दूर होती हैं। - पूर्वजों की आत्मा को शांति
इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं, उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है और वे अपने वंशजों की रक्षा करते हैं। - परिवार में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य
घर में खुशहाली, स्वास्थ्य, आर्थिक विकास होता है तथा पारिवारिक सौहार्द बढ़ता है। - कार्य में बाधा निवारण, उन्नति
पढ़ने वालों को कार्यक्षेत्र में सफलता, पदोन्नति और कठिनाइओं से मुक्ति मिलती है। - नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा
श्राद्ध पक्ष में नियमित श्रवण या पाठ से नकारात्मक ऊर्जाएँ दूर होती हैं।
सीता गायत्री मन्त्र (Sita Gayatri Mantra)
विधि (Procedure)
- समय और स्थान
- श्राद्ध‑पक्ष (पितृ पक्ष) या अमावस्या के दिन विशेष रूप से पाठ करें।
- सुबह स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनकर, पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पढ़ना anbefalensværdigt है ।
- पूजन सामग्री
दीपक, जल, पुष्प, तिल, धूप‑दीपक और नैवेद्य की व्यवस्था करनी चाहिए। - श्रद्धा‑भाव
पाठ के दौरान मन में पूर्वजों की याद और श्रद्धा भाव होना अत्यंत आवश्यक है। - तीर्थ/ब्राह्मण के समक्ष पाठ
यदि संभव हो तो पितृ तर्पण स्थल या ब्राह्मणों को दान करते हुए श्रवण करें — इससे पाठ की प्रभावशीलता बढ़ती है। - पिंडदान और तर्पण
स्तोत्र पढ़ने के बाद पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध सहित अनुष्ठान करना उत्तम परिणाम देता है।
जाप समय (Ideal Japa Time)
- श्राद्ध‑पक्ष एवं अमावस्या
यही सर्वोत्तम अवधि है – जब पितृ पृथ्वी पर आते हैं। - वार्षिक और पितरों की पुण्यतिथि
जैसे- वार्षिक श्राद्ध, पूर्वजों की स्मृतिदिन पर स्तोत्र का पाठ विशेष फलदायी है। - दैनिक पाठ
सुबह-शाम नियमित पाठ करने से लगातार आशीर्वाद बना रहता है। - जाप संख्या
- पितृ गायत्री मंत्र – 11 माला जप सुबह के समय।
- अपनी क्षमता अनुसार पूरे स्तोत्र या मंत्र का 3× (सुबह, दिन या शाम) पाठ।