न्यसा दशकम् स्वामि वी.एन. वेदांत देसिकन द्वारा रचित एक छोटा लेकिन गहन स्तोत्र है, जिसमें उन्होंने न्यासम या प्राप्तिस्थति (भगवान श्रीहरि के चरणों में आत्मसमर्पण) का सार 10 श्लोकों में संक्षेप रूप में प्रस्तुत किया है ।
यह प्रपत्तिधर्म की पांच अंगुलीय विधि, सात्विक त्याग, संसारांतर्गत सेवा की कामना और जीवन के अंत में मोक्ष की प्रार्थना से परिपूर्ण है ।
न्यासदशकम् (Nyasa Dasakam)
अहं मद्रक्षणभरो मद्रक्षणफलं तथा।
न मम श्रीपतेरेवेत्यात्मानं निक्षिपेद् बुधः।। 1 ।।
न्यस्याम्यकिनचनः श्रीमन्ननुकूलोऽन्यवर्जितः।
विश्वासप्रार्थनापूर्वमात्मरक्षाभरं त्वयि।। 2 ।।
स्वामी स्वशेषं स्ववशं स्वभरत्वेन निर्भरम्।
स्वदत्तस्वधिया स्वार्थ स्वस्मिन्नयस्यति मां स्वयम्।। 3 ।।
श्रीमन्नभीष्टवरद त्वामस्मि शरणं गतः।
ऐतद्देहावसाने मां त्वत्पादं प्रापय स्वयम्।। 4 ।।
त्वच्छेषत्वे स्थिरधियं त्वत्प्राप्त्येकप्रयोजनम्।
निषिद्धकाम्यरहितं कुरु मां नित्यकिंकरम्।। 5 ।।
देवीभूषणहेत्यादिजुष्टस्य भगवंस्तव।
नित्यं निरपराधेषु कैंकर्येषु नियुंगक्ष्व माम्।। 6 ।।
मां मदीयं च निखिलं चेतनाचेतनात्मकम्।
स्वकैकंर्योपकरणं वरद स्वीकुरु स्वयम्।। 7 ।।
त्वमेव रक्षकोऽसि मे त्वमेव करुणाकरः।
न प्रवर्तय पापानि प्रवृत्तानि निवारय।। 8 ।।
अक्रत्यानां च करणं कृत्यानां वर्जनं च मे।
क्षमस्व निखिलं देव प्रणतार्तिहर प्रभो।। 9 ।।
श्रीमन्नियतपंचांग मद्रक्षणभरार्पणम्।
अचीकरत्स्वयं स्वस्मिन्नतोऽहमिह निर्भरः।। 10 ।।
।। इति न्यसा दशकम् सम्पूर्णम् ।।
न्यसा दशकम् का हिंदी अनुवाद
मेरी रक्षा का भार मेरा नहीं है, और उसकी प्राप्ति का फल भी मेरा नहीं है।
यह श्रीपति (भगवान) का ही है – ऐसा जानकर बुद्धिमान आत्मा को समर्पित करे॥ 1॥
हे श्रीमन नारायण! मैं सर्वथा निर्बल हूँ, आपके अनुकूल हूँ और अन्य सभी का त्याग करने वाला हूँ।
विश्वास और प्रार्थना के साथ आत्मरक्षा का सारा भार आप पर समर्पित करता हूँ॥ 2॥
आप स्वामी हैं, मैं आपका दास हूँ, मैं केवल आपके अधीन हूँ और मेरे कर्तव्य का भार आप पर है।
आपकी दी हुई बुद्धि और उद्देश्य से आप स्वयं ही मुझे अपने में समाहित कर लेंगे॥ 3॥
हे श्रीमन! इच्छित वर देने वाले! मैं आपकी शरण में हूँ।
इस शरीर के अंत में मुझे अपने चरणों तक स्वयं पहुँचा देना॥ 4॥
आपके सेवक के रूप में स्थिर बुद्धि प्रदान करें और केवल आपकी प्राप्ति ही मेरा एकमात्र उद्देश्य हो।
इच्छाओं से रहित होकर मुझे अपना नित्य सेवक बना लें॥ 5॥
हे भगवन्! जो देवी के आभूषणों आदि से युक्त है,
आप मुझे सदैव निर्दोष सेवाओं में नियुक्त करें॥ 6॥
मुझे और मेरे सभी जड़-चेतन साधनों को,
केवल आपकी सेवा के उपकरण के रूप में स्वीकार करें॥ 7॥
आप ही मेरे रक्षक हैं, आप ही करुणा के सागर हैं।
आप मुझे पाप करने से रोकें और जो हो चुके हैं उन्हें दूर करें॥ 8॥
जो कार्य नहीं करने योग्य थे वे हो गए और जो करने योग्य थे वे नहीं हुए,
ऐसे सभी दोषों को क्षमा करें, हे प्रभो! आप शरणागत के कष्ट हरने वाले हैं॥ 9॥
हे श्रीमन! आपने पंचांग नियमों के अनुसार मेरी रक्षा का भार स्वयं ही स्वीकार कर लिया है,
इसलिए अब मैं पूर्णतः निश्चिंत होकर आपके भरोसे हूँ॥ 10॥
।। इति न्यसा दशकम् सम्पूर्णम् ।।
लाभ
- आत्मिक शांति और साक्षात्कारपूर्ण एकनिष्ठता प्राप्त होती है, क्योंकि इसमें आत्मा, रक्षा, और फल की पूर्ण जिम्मेदारी भगवान को सौंप दी जाती है ।
- यह स्तोत्र विश्वास, एकाग्रता, और भक्ति-मानवता को जागृत करता है, जिससे जीवन आनंदमय और सफल बनता है ।
- दोषों की क्षमा, पापों से मुक्ति और मोक्ष-प्राप्ति की प्रेरणा मिलती है, क्योंकि इसमें भगवान से आत्मीय अनुरोध और समर्पण की भावना है ।
विधि
- शुद्ध स्थान पर भगवान श्रीहरि की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें, दीप-धूप करें।
- हर श्लोक (दो पंक्तियाँ) ध्यानपूर्वक जपें, मन में आत्मसमर्पण का भाव रखें।
- इसके माध्यम से स्वामी, स्व-कर्तव्य, जीवनफल की जिम्मेदारी भगवान को अर्पित करें (पहले तीन श्लोक).
- आगे यह प्रकट करें कि आप उनके नित्य सेवक, भक्त, और निर्दोष सेवक हैं (4–7 श्लोक).
- अंत में भगवान से रक्षा, दोषों की क्षमा, अंतान्तमोक्ष आदि का निवेदन करें (8–10 श्लोक).
- 108 बार पाठ पारंपरिक रूप से अनुकूल माना जाता है ।
जप समय
- सुबह आराधना के दौरान, जैसा कि वैष्णव परंपरा में दैनिक थिरुवआराधनम् (गुण-20/22) के अंतर्गत किया जाता है।
- विशेष रूप से ब्राह्म मुहूर्त (सुबह 4–6 AM) सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
- यदि संभव न हो, तो संध्या समय (शाम 6–8 PM) में भी पाठ फलदायी है।