धूमावती देवी दस महाविद्याओं में सातवीं रूप हैं। उनका स्वरूप वृद्ध, धूम्र वर्ण, और कंकाल समान होता है, जो संसार की अस्थायिता और माया का प्रतीक है । उनके उपासक उनकी सकरात्मक ऊर्जा प्राप्त करते हुए अपनी आध्यात्मिक उन्नति, भय, संकट और छाया प्रभावों से मुक्ति पाते हैं।
धूमावती अष्टक स्तोत्र (Dhumavati Ashtak Stotra)
ॐ प्रातर्वा स्यात् कुमारी कुसुम-कलिकया जप-मालां जपन्ती।
मध्यान्हे प्रौढ-रूपा विकसित-वदना चारु-नेत्रा निशायाम्।।
सन्ध्यायां वृद्ध-रूपा गलीत-कुच-युगा मुण्ड-मालां वहन्ती।
सा देवी देव-देवी त्रिभुवन-जननी चण्डिका पातु युष्मान्॥ 1 ॥
बद्ध्वा खट्वाङ्ग कोटौ कपिल दर जटा मण्डलं पद्मयोनेः।
कृत्वा दैत्योत्तमाङ्गैः स्रजमुरसी शिरः शेखरं ताक्ष्य पक्षैः॥
पूर्ण रक्तैः सुराणां यम महिष महा-श्रिङ्गमादाय पाणौ।
पायाद् वः वन्द्यमाना प्रलय मुदितया भैरवः कालरात्र्या॥ 2 ॥
चर्वन्ती ग्रन्थि खण्ड प्रकट कट कटा शब्द संघातमुग्रम्।
कुर्वाणा प्रेतमध्ये ककहकह हास्यमुग्रं कृशाङ्गी॥
नित्यं नृत्यं प्रमत्ता डमरू डिमडिमान् स्फारयन्ती मुखाब्जम्।
पायान्नश्चण्डिकेयं झझमझमझमा जल्पमाना भ्रमन्ती॥ 3 ॥
टण्टट् टण्टट् टण्टटा प्रकट मटमटा नाद घण्टां वहन्ती।
स्फ्रें स्फ्रेंखार कारा टकटकित हसां दन्त सङ्घट्ट भीमा॥
लोलं मुण्डाग्र माला ललहलह लहा लोल लोलोग्र रावम्।
चर्वन्ती चण्डमुण्डं मट मट मटितं चर्वयन्ती पुनातु॥ 4 ॥
वामे कर्णे मृगाङ्कं प्रलया परीगतं दक्षिणे सूर्य बिम्बम्।
कण्ठे नक्षत्र हारं वर विकट जटा जुटके मुण्ड मालम्॥
स्कन्धे कृत्वा उरगेन्द्र ध्वज निकर युतं ब्रह्म कङ्काल भारम्।
संहारे धारयन्ती मम हरतु भयं भद्रदा भद्र काली॥ 5 ॥
तैलोभ्यक्तैक वेणी त्रयुमय विलसत्कर्णिका क्रान्तकर्णा।
लोहेनैकेन कृत्वा चरण नलिन कामात्मनः पाद शोभाम्॥
दिग्वासा रासभेन ग्रसती जगादिदं या जवा कर्णपुरा।
वर्षिण्युर्ध्व प्रबृद्धा ध्वज वितत भुजा सा सि देवी त्वमेव॥ 6 ॥
संग्रामे हेती कृत्तैः स रुधिर दर्शनैर्यद् भटानां शिरोभीः।
मालामाबध्यमुर्ध्नि ध्वज वितत भुजा त्वं श्मशाने प्रविष्टा॥
दृष्ट्वा भूतैः प्रभूतैः पृथु जघन घना बद्ध नागेन्द्र काञ्ची।
शूलाग्र व्यग्र हस्ता मधु रुधिर मदा ताम्र नेत्रा निशायाम्॥ 7 ॥
दंष्ट्रा रौद्रे मुखे स्मिंस्तव विशती जगत् देवी! सर्व क्षणार्धात्।
सारस्यान्त काले नर रुधिर वसा सम्प्लवे धूम धूम्रे॥
काली कापालिकी त्वं शव शयन रता योगिनी योग मुद्रा।
रक्तारक्ती कुमारी मरण भव हरा त्वं शिवा चण्ड घण्टा॥ 8 ॥
धूमावती अष्टक स्तोत्र – फलश्रुति
ॐ धूमावत्यष्टकं पुण्यं, सर्वापद् विनिवारकम्।
यः पठेत् साधको भक्त्या, सिद्धीं विन्दति वन्दिताम्॥ 1 ॥
महा-पदी महा-घोरे, महा-रोगे महा-रणे।
शत्रुच्चाटे मारणादौ, जन्तुनां मोहने तथा॥ 2 ॥
पठेत् स्तोत्रमिदं देवी! सर्वत्र सिद्धिभाग् भवेत्।
देव दानव गन्धर्व, यक्ष राक्षसा पन्नगाः॥ 3 ॥
सिंह व्याघ्रदिकाः सर्वे, स्तोत्र स्मरण मात्रतः।
दुराद् दूरतरं यान्ति, किं पुनर्मानुषादयः॥ 4 ॥
स्तोत्रेणानेन देवेशी! किं न सिद्ध्यति भू-तले।
सर्व शान्तीर्भवेद् चान्ते, निर्वाणतां व्रजेत्॥ 5 ॥
॥ इति धूमावती अष्टक स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
कामना सिद्धि स्रोत्र (Kamana Siddhi Stotra)
धूमावती अष्टक स्तोत्र – हिंदी अनुवाद
1.
प्रातःकाल में देवी धूमावती एक कुमारी कन्या के रूप में, हाथ में जपमाला लिए जप करती हुई दिखाई देती हैं।
दोपहर के समय वे एक प्रौढ़ा रूप में, सुंदर चेहरे और नेत्रों से सुशोभित रहती हैं।
संध्या के समय वे वृद्धा के रूप में, ढीले वक्षों और मुण्डमाला धारण किए रहती हैं।
वही देवी त्रिदेवों की अधिष्ठात्री, त्रिभुवन जननी, चण्डिका – आप सबकी रक्षा करें।
2.
जटाजूट में खट्वांग (गदा) को बाँधकर, कपिला जटाओं से सजे हुए सिर पर पद्मयोनि (ब्रह्मा) को धारण कर,
दैत्यराजाओं के सिरों से बनी माला को वक्षस्थल पर पहने हुए, शिर पर गरुड़ के पंखों का मुकुट धारण किए हुए,
देवताओं के रक्त से भींगे शरीर और हाथ में यम, भैंसे और बड़े सींगों को लिए हुए,
कालरात्रि रूपी भैरवी – प्रलय से प्रसन्न होकर – हम सभी की रक्षा करें।
3.
जो उग्र स्वर से विचित्र बोलों का उच्चारण करती हैं, अस्थियों को चबाती हैं,
प्रेतों के बीच में हास्य करती हैं, कृश शरीर वाली हैं,
नित्य नृत्य करती हुई, डमरू और डिम-डिम बजाती हुई, उनके मुख कमल से घोष निकलते हैं,
झंझनाते हुए शब्द करती हुई चण्डिका देवी – हम सबकी रक्षा करें।
4.
घंटी बजाते हुए जो टण्टण शब्द करती हैं, भयावह हँसी हँसती हैं,
जो लोहे की माला, मुण्डों से बनी माला धारण करती हैं, गूँजते हुए स्वर में बोलती हैं,
जो चण्ड-मुण्डों को चबाती हैं, उनकी गूँजती हुई आवाजें हम सबको पवित्र करें।
5.
बाएँ कान में चंद्रमा, दाएँ में सूर्य, गले में नक्षत्रों की माला,
जटाओं में मुण्डों की माला, कंधे पर नागों का ध्वज, और हड्डियों से बना ब्रह्मा का कंकाल धारण किए हुए,
संहार रूपी भयंकर देवी – हे भद्रकाली! मेरा भय हर लें।
6.
जो बालों में तेल लगाए हुए हैं, कानों में त्रिकाल की ध्वनि भरती हैं,
लोहे के आभूषणों से सुसज्जित चरणों से ब्रह्मा के कमल को रौंदती हैं,
दिगम्बर हैं, गधे पर सवारी करती हैं, ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुई हैं,
जो ऊपर उठे हुए ध्वज और फैली हुई भुजाओं से युक्त हैं – वही देवी आप हैं।
7.
युद्धभूमि में कटे हुए अंगों और रक्त के प्रवाह से शत्रुओं के सिरों की माला बाँधती हैं,
श्मशान में प्रवेश करती हैं, उनका नृत्य प्रेतों को भी आतंकित कर देता है,
कमर में नागों से बनी कंचुकी पहनती हैं, हाथ में त्रिशूल, रक्त और मद से सना हुआ मुख,
ताम्रवर्णी आँखों वाली देवी – रात्रि में हमारे रक्षक बनें।
8.
रौद्र रूप में आपकी जिह्वा विकराल है, जिससे आप पूरे संसार को एक क्षण में निगल सकती हैं।
प्रलयकाल में नर-रक्त और चर्बी से सना हुआ शरीर लिए हुए, धुएँ से ढँकी हुई दिखाई देती हैं।
आप काली हैं, कपालिनी हैं, शव पर लेटी हुई योगिनी हैं,
आप रक्त की देवी, सिद्धि प्रदायिनी, मृत्यु और जन्म से मुक्ति देने वाली शिवा, चण्डघण्टा हैं
फलश्रुति – स्तोत्र पाठ का फल
जो भी साधक श्रद्धा से इस धूमावती अष्टक का पाठ करता है, वह सभी प्रकार की आपदाओं से मुक्त होता है और सिद्धि को प्राप्त करता है।
यह स्तोत्र महा-बाधाओं, भीषण रोगों, युद्धों, शत्रु बाधाओं, मारण प्रयोग और मोहिनी प्रयोगों में अत्यंत प्रभावी है।
इस स्तोत्र के पाठ से साधक को देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, नाग आदि सभी से सिद्धि प्राप्त होती है।
शेर, बाघ जैसे हिंसक पशु भी इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से दूर हो जाते हैं, फिर मनुष्यों का क्या कहना।
इस स्तोत्र से इस धरती पर क्या सिद्ध नहीं किया जा सकता? यह सम्पूर्ण शांति देता है और अंततः निर्वाण की प्राप्ति कराता है।
॥ इति धूमावती अष्टक स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
लाभ
- शत्रु, बाधा और नकारात्मक ऊर्जा निवारण: संकट, शत्रु, मानसिक विषाद, काले जादू आदि से सुरक्षा मिलती है ।
- सिड्ढियाँ और आध्यात्मिक शक्ति: ध्यान और मंत्र पठन से मानसिक दृढ़ता, आत्मज्ञान और तांत्रिक सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- मुक्ति, दुःखांत शांति: संसार के दुःख, व्याधि और मृत्यु का भय दूर होकर आत्मबल और संतोष की अनुभूति होती है।
विधि (पाठ / पूजा विधि)
- स्थान व समय: शांत, स्वच्छ स्थान पर दीपक, धूप, मूर्ति या यंत्र स्थापित करके पूजन करें ।
- मंत्र पठन:
- “ॐ धूं धूं धूमावत्यै नमः” या “Dhum Dhum Dhumavato Svaha”, 108 बार जप करें।
- पंच महा (वाम मार्ग): तेल, काला तिल, काले वस्त्र, गंध, फल आदि से पूजन करें ।
- हरना / हवन: समस्याओं निवारण हेतु साधक मक्खन तेल, काले तिल आदि से पूजा या गृह-हवन कर सकते हैं ।
- गुरु-सल्लाह: चूंकि यह एक तीव्र तांत्रिक साधना है, इसलिए गुरु-मार्गदर्शन अनिवार्य माना जाता है ।
जप समय
- श्रेष्ठ तिथि:
- शुक्ल पक्ष की अष्टमी (ज्येष्ठ मास) अथवा धूमावती जयंती → अत्यंत शुभ ।
- समय:
- ब्रह्म मुहूर्त (रात्रि–प्रातः 3:00–6:00) या मध्यरात्रि। ।