देवकृत लक्ष्मी स्तोत्र एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जिसे देवताओं ने माता लक्ष्मी की स्तुति में रचा है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से मन की शांति प्राप्त होती है, जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है, और व्यक्ति स्वस्थ, समृद्ध एवं सफल बनता है ।
दुर्गा अष्टोत्तर (Durgashtotar Stotra)
देवकृत लक्ष्मी स्तोत्र (Devkrit Laxmi Stotra)
क्षमस्व भगवंत्यव क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥1॥
उपमे सर्वसाध्वीनां देवीनां देवपूजिते ।
त्वया विना जगत्सर्वं मृततुल्यं च निष्फलम् ॥2॥
सर्वसंपत्स्वरूपा त्वं सर्वेषां सर्वरूपिणी ।
रासेश्वर्यधि देवी त्वं त्वत्कलाः सर्वयोषितः ॥3॥
कैलासे पार्वती त्वं च क्षीरोदे सिन्धुकन्यका ।
स्वर्गे च स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं मर्त्यलक्ष्मीश्च भूतले ॥4॥
वैकुंठे च महालक्ष्मीर्देवदेवी सरस्वती ।
गंगा च तुलसी त्वं च सावित्री ब्रह्मालोकतः ॥5॥
कृष्णप्राणाधिदेवी त्वं गोलोके राधिका स्वयम् ।
रासे रासेश्वरी त्वं च वृंदावन वने वने ॥6॥
कृष्णा प्रिया त्वं भांडीरे चंद्रा चंदनकानने ।
विरजा चंपकवने शतशृंगे च सुंदरी ॥7॥
पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुंददंती कुंदवने सुशीला केतकीवने ॥8॥
कदंबमाला त्वं देवी कदंबकाननेऽपि च ।
राजलक्ष्मी राजगेहे गृहलक्ष्मीगृहे गृहे ॥9॥
इत्युक्त्वा देवताः सर्वा मुनयो मनवस्तथा ।
रूरूदुर्नम्रवदनाः शुष्ककंठोष्ठ तालुकाः ॥10॥
इति लक्ष्मीस्तवं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरूत्थाय स वै सर्वै लभेद् ध्रुवम् ॥11॥
अभार्यो लभते भार्यां विनीतां सुसुतां सतीम् ।
सुशीलां सुंदरीं रम्यामतिसुप्रियवादिनीम् ॥12॥
पुत्रपौत्रवतीं शुद्धां कुलजां कोमलां वराम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं वैष्णवं चिरजीविनम् ॥13॥
परमैश्वर्ययुक्तं च विद्यावंतं यशस्विनम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भ्रष्टश्रीर्लभते श्रियम् ॥14॥
हतबंधुर्लभेद्बंधुं धनभ्रष्टो धनं लभेत् ।
कीर्तिहीनो लभेत्कीर्तिं प्रतिष्ठां च लभेद् ध्रुवम् ॥15॥
सर्वमंगलदं स्तोत्रं शोकसंतापनाशनम् ।
हर्षानंदकरं शश्वद्धर्म मोक्षसुहृत्प्रदम् ॥16॥
।। इति श्रीदेवकृत लक्ष्मीस्तोत्रं संपूर्णम् ।।
दिगबंधन रक्षा स्तोत्र (Digbandhan Raksha Stotra)
देवकृत लक्ष्मी स्तोत्र (हिन्दी अनुवाद)
हे क्षमा की स्वरूपा, हे परम शक्ति! हमें क्षमा करें।
आप शुद्ध सत्वस्वरूपा हैं और क्रोध आदि दोषों से रहित हैं।
आप सभी साध्वी स्त्रियों की आदर्श हैं, देवीगणों द्वारा पूज्य हैं।
आपके बिना यह सम्पूर्ण संसार मृतक के समान और निष्फल है।
आप समस्त संपत्तियों की स्वरूपा हैं, सबके भीतर आप ही व्याप्त हैं।
रास की अधीश्वरी आप ही हैं, और समस्त स्त्रियाँ आपकी ही कलाएं हैं।
कैलास में आप पार्वती हैं, क्षीर सागर में समुद्र की पुत्री।
स्वर्ग में आप स्वर्गलक्ष्मी हैं, और पृथ्वी पर आप मर्त्यलक्ष्मी हैं।
वैकुण्ठ में आप महालक्ष्मी हैं, देवों की देवी सरस्वती हैं।
आप ही गंगा हैं, तुलसी हैं, और ब्रह्मलोक में सावित्री हैं।
आप श्रीकृष्ण की प्राणस्वरूपा हैं, गोलोक में स्वयं राधा हैं।
रास में आप रासेश्वरी हैं, और वृंदावन के प्रत्येक वन में विद्यमान हैं।
आप श्रीकृष्ण की प्रिय हैं, भांडीर वन में चंद्रमा समान हैं।
चंदन के वन में चंद्रिका हैं, चंपक वन में विरजा हैं, और शतशृंग पर्वत पर सुंदर देवी हैं।
पद्मवन में आप पद्मावती हैं, मालती वन में मालती हैं।
कुंदवन में कुंददंती हैं, और केतकीवन में सुशीला हैं।
कदंबवन में आप कदंबमाला हैं।
राजमहलों में राजलक्ष्मी हैं और प्रत्येक घर में आप ही गृहलक्ष्मी हैं।
यह सुनकर सभी देवता, ऋषि और मनु उदास और नम्र हो गए।
उनके कंठ और तालु सूख गए, और वे रो पड़े।
यह पुण्यदायक लक्ष्मी स्तोत्र, सभी देवताओं द्वारा रचा गया है।
जो व्यक्ति इसका पाठ प्रातःकाल करता है, वह निश्चित रूप से सभी वस्तुएँ प्राप्त करता है।
जो पुरुष अविवाहित है, उसे सुंदर, विनीत, सती, और प्रिय बोलने वाली पत्नी प्राप्त होती है।
उसे पवित्र, कुलीन, कोमल और उत्तम स्त्री प्राप्त होती है।
जो पुत्रहीन है, उसे दीर्घायु, वैष्णव पुत्र प्राप्त होता है।
वह परम ऐश्वर्य, विद्या और यश से युक्त होता है।
जिसका राज्य छिन गया हो, वह पुनः राज्य प्राप्त करता है। जिसकी लक्ष्मी चली गई हो, उसे पुनः लक्ष्मी प्राप्त होती है।
जो अपने संबंधी खो चुका है, उसे पुनः संबंधी मिलते हैं।
धनहीन को धन प्राप्त होता है।
यशहीन को कीर्ति और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
यह स्तोत्र सभी प्रकार के शुभ फल देने वाला, शोक और संताप का नाश करने वाला,
हर्ष और आनंद देने वाला, धर्म और मोक्ष का प्रिय मित्र प्रदान करने वाला है।
।। इति श्रीदेवकृत लक्ष्मीस्तोत्रं संपूर्णम् ।।
दारिद्रय दहन शिव स्तोत्र (Daridraya Dahana Shiv Stotra)
पाठ विधि
- स्नान: पाठ से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- स्थान: घर के पूजा स्थान में माता लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
- आरंभिक पूजा: गणेश पूजा के बाद, माता लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करें।
- मंत्र जाप: कमलगट्टे या स्फटिक की माला से 108 बार निम्न बीज मंत्र का जाप करें: ॐ श्रीं श्रीये नमः
- स्तोत्र पाठ: इसके बाद श्रद्धापूर्वक देवकृत लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करें।
- समापन: पाठ के अंत में माता लक्ष्मी से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।
दत्तात्रेय स्तोत्र (Dattatreya Stotra)
लाभ
- नियमित पाठ से मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है।
- धन, स्वास्थ्य और समृद्धि में वृद्धि होती है।
- व्यवसाय और करियर में सफलता मिलती है।
- कर्ज और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है ।
- घर में सुख-शांति और सौभाग्य का वास होता है।
जाप का उपयुक्त समय
- प्रातःकाल: स्नान के बाद, सूर्योदय से पूर्व (ब्राह्म मुहूर्त) में पाठ करना श्रेष्ठ माना जाता है ।
- शुक्रवार: शुक्रवार को माता लक्ष्मी का विशेष दिन माना जाता है; इस दिन पाठ करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
- नित्य पाठ: प्रतिदिन नियमित रूप से पाठ करने से स्थायी लाभ मिलता है।
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