दस महाविद्या स्तोत्र एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो दस महाविद्याओं की स्तुति करता है। यह स्तोत्र तांत्रिक साधना, आध्यात्मिक उन्नति और देवी कृपा प्राप्ति के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।
दस महाविद्याएं तांत्रिक परंपरा में दस प्रमुख देवी स्वरूपों को दर्शाती हैं, जो विभिन्न रूपों में शक्ति, ज्ञान और मुक्ति की प्रतीक हैं। इनमें काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी शामिल हैं। दस महाविद्या स्तोत्र में इन सभी देवी स्वरूपों की स्तुति की गई है।
दस महाविद्या स्तोत्र हिंदी पाठ (Das Mahavidya Stotra in Hindi)
नमस्ते चण्डिके । चण्डि । चण्ड-मुण्ड-विनाशिनि ।
नमस्ते कालिके । काल-महा-भय-विनाशिनी ।। १ ।।
शिवे । रक्ष जगद्धात्रि । प्रसीद हरि-वल्लभे ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, जगत्-पालन-कारिणीम् ।। २ ।।
जगत्-क्षोभ-करीं विद्यां, जगत्-सृष्टि-विधायिनीम् ।
करालां विकटा घोरां, मुण्ड-माला-विभूषिताम् ।। ३ ।।
हरार्चितां हराराध्यां, नमामि हर-वल्लभाम् ।
गौरीं गुरु-प्रियां गौर-वर्णालंकार-भूषिताम् ।। ४ ।।
हरि-प्रियां महा-मायां, नमामि ब्रह्म-पूजिताम् ।
सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्ध-विद्या-धर-गणैर्युताम् ।। ५ ।।
मन्त्र-सिद्धि-प्रदां योनि-सिद्धिदां लिंग-शोभिताम् ।
प्रणमामि महा-मायां, दुर्गा दुर्गति-नाशिनीम् ।। ६ ।।
उग्रामुग्रमयीमुग्र-तारामुग्र – गणैर्युताम् ।
नीलां नील-घन-श्यामां, नमामि नील-सुन्दरीम् ।। ७ ।।
श्यामांगीं श्याम-घटिकां, श्याम-वर्ण-विभूषिताम् ।
प्रणामामि जगद्धात्रीं, गौरीं सर्वार्थ-साधिनीम् ।। ८ ।।
विश्वेश्वरीं महा-घोरां, विकटां घोर-नादिनीम् ।
आद्यामाद्य-गुरोराद्यामाद्यानाथ-प्रपूजिताम् ।। ९ ।।
श्रीदुर्गां धनदामन्न-पूर्णां पद्मां सुरेश्वरीम् ।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, चन्द्र-शेखर-वल्लभाम् ।। १० ।।
त्रिपुरा-सुन्दरीं बालामबला-गण-भूषिताम् ।
शिवदूतीं शिवाराध्यां, शिव-ध्येयां सनातनीम् ।। ११ ।।
सुन्दरीं तारिणीं सर्व-शिवा-गण-विभूषिताम् ।
नारायणीं विष्णु-पूज्यां, ब्रह्म-विष्णु-हर-प्रियाम् ।। १२ ।।
सर्व-सिद्धि-प्रदां नित्यामनित्य-गण-वर्जिताम् ।
सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्चितां सर्व-सिद्धिदाम् ।। १३ ।।
विद्यां सिद्धि-प्रदां विद्यां, महा-विद्या-महेश्वरीम् ।
महेश-भक्तां माहेशीं, महा-काल-प्रपूजिताम् ।। १४ ।।
प्रणमामि जगद्धात्रीं, शुम्भासुर-विमर्दिनीम् ।
रक्त-प्रियां रक्त-वर्णां, रक्त-वीज-विमर्दिनीम् ।। १५ ।।
भैरवीं भुवना-देवीं, लोल-जिह्वां सुरेश्वरीम् ।
चतुर्भुजां दश-भुजामष्टा-दश-भुजां शुभाम् ।। १६ ।।
त्रिपुरेशीं विश्व-नाथ-प्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम् ।
अट्टहासामट्टहास-प्रियां धूम्र-विनाशिनीम् ।। १७ ।।
कमलां छिन्न-मस्तां च, मातंगीं सुर-सुन्दरीम् ।
षोडशीं विजयां भीमां, धूम्रां च बगलामुखीम् ।। १८ ।।
सर्व-सिद्धि-प्रदां सर्व-विद्या-मन्त्र-विशोधिनीम् ।
प्रणमामि जगत्तारां, सारं मन्त्र-सिद्धये ।। १९ ।।
।। फल-श्रुति ।।
इत्येवं व वरारोहे, स्तोत्रं सिद्धि-करं प्रियम् ।
पठित्वा मोक्षमाप्नोति, सत्यं वै गिरि-नन्दिनि ।। १ ।।
कुज-वारे चतुर्दश्याममायां जीव-वासरे ।
शुक्रे निशि-गते स्तोत्रं, पठित्वा मोक्षमाप्नुयात् ।। २ ।।
त्रिपक्षे मन्त्र-सिद्धिः स्यात्, स्तोत्र-पाठाद्धि शंकरी ।
चतुर्दश्यां निशा-भागे, शनि-भौम-दिने तथा ।। ३ ।।
निशा-मुखे पठेत् स्तोत्रं, मन्त्र-सिद्धिमवाप्नुयात् ।
केवलं स्तोत्र-पाठाद्धि, मन्त्र-सिद्धिरनुत्तमा ।
जागर्ति सततं चण्डी-स्तोत्र-पाठाद्-भुजंगिनी ।। ४ ।।
।। श्रीमुण्ड-माला-तन्त्रे एकादश-पटले महा-विद्या-स्तोत्रम् ।।
दस महाविद्या स्तोत्र – हिंदी अनुवाद (Das Mahavidya Stotra – Hindi translation)
हे चण्डिके! आपको नमस्कार है। हे चण्डि! चण्ड-मुण्ड का नाश करने वाली देवी!
हे कालिके! काल रूपी भय का नाश करने वाली देवी! आपको नमस्कार है। (1)
हे शिवा! सम्पूर्ण जगत की रक्षा करने वाली माता! हे हरि की प्रियतमा!
आप कृपा करें, मैं आपको बार-बार प्रणाम करता हूँ, जो जगत की धात्री और पालन करने वाली हैं। (2)
जो इस संसार को हिला देने वाली, जगत की सृष्टि करने वाली हैं,
जो कराल (भयंकर) रूप में, विकट और मुण्डों की माला धारण किए हुए प्रकट होती हैं। (3)
जो भगवान शिव के द्वारा पूजित और प्रिय हैं,
जो गौर वर्ण वाली, गुरु प्रिय, और सुंदर आभूषणों से सजी हुई हैं। (4)
जो भगवान विष्णु को प्रिय हैं, ब्रह्मा द्वारा पूजित हैं,
जो सिद्धियाँ प्रदान करने वाली हैं, और सिद्धों व विद्याधरों के साथ विराजमान हैं। (5)
जो मन्त्रों की सिद्धि देने वाली हैं, जो लिंग रूप से शोभायमान हैं,
मैं उन दुर्गा माता को प्रणाम करता हूँ, जो संसार की दुर्गति का नाश करती हैं। (6)
जो उग्र (प्रचंड) रूप में उग्रता से भरी हुई हैं, तारामयी देवी के साथ युक्त हैं,
जो नील रंग की, नील मेघ जैसी हैं, मैं उन्हें प्रणाम करता हूँ। (7)
जो श्याम वर्ण वाली हैं, श्याम-घंटा जैसी, श्याम आभूषणों से सजी हुई हैं,
जो जगत की धात्री, गौर वर्ण वाली, सभी कार्यों की सिद्धि प्रदान करने वाली हैं। (8)
जो सम्पूर्ण विश्व की अधीश्वरी हैं, अत्यंत भयंकर हैं,
जो आदि शक्ति हैं, आदि गुरु की आराध्या हैं, और प्रारंभिक नाथों द्वारा पूजित हैं। (9)
जो श्री दुर्गा हैं, धन और अन्न देने वाली हैं, पद्मा (लक्ष्मी) हैं, और देवताओं की अधीश्वरी हैं,
मैं उन माता को प्रणाम करता हूँ, जो चंद्रशेखर (शिव) की प्रिय हैं। (10)
जो त्रिपुरा सुन्दरी, बाल रूप वाली, और देवियों से सुसज्जित हैं,
जो शिव की दूत हैं, शिव की प्रिय हैं, शिव के ध्यान में रहने वाली सनातन देवी हैं। (11)
जो सुंदरता और तारक शक्ति से युक्त हैं, शिव गणों द्वारा पूजित हैं,
जो नारायणी हैं, विष्णु द्वारा पूजित हैं, और ब्रह्मा-विष्णु-शिव को प्रिय हैं। (12)
जो सब सिद्धियाँ देने वाली हैं, नित्य और अनित्य दोनों से परे हैं,
जो सगुण और निर्गुण रूप में ध्यान की जाती हैं, और सभी सिद्धियाँ देती हैं। (13)
जो विद्याओं की देवी हैं, सिद्धियाँ देने वाली हैं, महाविद्या हैं, और महेश्वरी हैं,
जो महेश की भक्त हैं, शिव की शक्ति हैं, और महाकाल द्वारा पूजित हैं। (14)
मैं उस माता को प्रणाम करता हूँ जो सम्पूर्ण सृष्टि की धात्री हैं और शुम्भ राक्षस का वध करती हैं,
जो रक्त की प्रिय, रक्तवर्णा और रक्तबीज का संहार करने वाली हैं। (15)
जो भैरवी हैं, संसार की अधीश्वरी हैं, लोलजीह्वा (कंपायमान जीभ) हैं, और देवताओं की देवी हैं,
जो चार, दस, अथवा अठारह भुजाओं वाली रूपों में प्रकट होती हैं। (16)
जो त्रिपुरेश्वरी हैं, विश्वनाथ (शिव) की प्रिय हैं, और विश्व की अधीश्वरी हैं,
जो अट्टहासिनी हैं, हँसी से संसार को कम्पायमान करने वाली हैं, धूम्र व नाश करने वाली हैं। (17)
जो कमला (लक्ष्मी), छिन्नमस्ता, मातंगी और सुरसुंदरी हैं,
जो षोडशी, विजया, भीमा, धूम्रा और बगलामुखी हैं। (18)
जो सभी सिद्धियाँ देने वाली हैं, समस्त विद्याओं और मन्त्रों का शोध करने वाली हैं,
मैं उस जगत-तारिणी, मन्त्र-सिद्धि देने वाली देवी को प्रणाम करता हूँ। (19)
फलश्रुति (पाठ के लाभ का वर्णन)
हे सुंदर रूपवाली देवी! यह स्तोत्र सिद्धि देने वाला और प्रिय है,
जो इसे पढ़ता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है — यह सच्ची बात है, हे गिरिनंदिनी! (1)
यदि कोई इस स्तोत्र को मंगलवार या चतुर्दशी, अमावस्या, अथवा जीवन के कठिन समय में
या शुक्रवार की रात को पढ़े, तो वह मोक्ष प्राप्त करता है। (2)
तीन पक्षों (तिथि के तीन भाग) में इस स्तोत्र का पाठ करने से मन्त्र सिद्धि होती है,
विशेष रूप से चतुर्दशी की रात में, शनिवार या मंगलवार को, (3)
रात्रि के प्रारंभ में इस स्तोत्र का पाठ करने से मन्त्र की सिद्धि प्राप्त होती है।
केवल स्तोत्र पाठ से ही उत्तम सिद्धि प्राप्त होती है।
चण्डी देवी सदा जागरूक रहती हैं — इस स्तोत्र के पाठ से वह तुरंत प्रसन्न होती हैं। (4)
लाभ (Benefit)
- दस महाविद्याओं की कृपा प्राप्त होती है।
- आध्यात्मिक उन्नति और साधना में सफलता मिलती है।
- सभी प्रकार की बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा मिलती है।
- मन की शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है।
विधि (Method)
- प्रातः या संध्या के समय स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शुद्ध स्थान पर आसन लगाकर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- दीपक जलाएं और दस महाविद्याओं का ध्यान करें।
- दस महाविद्या स्तोत्र का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- पाठ के पश्चात देवी से अपनी मनोकामना पूर्ण होने की प्रार्थना करें।
जाप का उपयुक्त समय (Suitable time for chanting)
- नित्य प्रातःकाल या संध्या समय।
- विशेष रूप से चतुर्दशी तिथि, अमावस्या, पूर्णिमा, शुक्रवार और मंगलवार को।
- नवरात्रि, दीपावली और अन्य देवी पर्वों के समय।