ज्वर शान्ति स्तोत्र एक प्राचीन वैदिक स्तोत्र है, जिसका उल्लेख उपनिषदों में मिलता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से रोग, पारिवारिक कलह, मानसिक अशांति, और वियोग जैसी स्थितियों में शांति और संतुलन प्राप्त करने के लिए पाठ किया जाता है।
ओम सिद्धि विनायकाय नमः (Om Siddhi Vinayakay Namah)
ज्वर’ का अर्थ है बुखार या रोग, और ‘शान्ति’ का अर्थ है शांति। यह स्तोत्र देवी गौरी को समर्पित है, जिसमें उन्हें ब्रह्मस्वरूपिणी, परमानंद रूपिणी, और समस्त मंगलों की अधिष्ठात्री के रूप में स्तुति की गई है। इस स्तोत्र का पाठ मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक शांति प्रदान करने में सहायक माना जाता है।
रिद्धि सिद्धि प्रदाये श्री विघ्नेश्वराय नम: (Riddhi Siddhi Pradaye Shri Vighneshwaray Namah)
ज्वर शान्ति स्तोत्र (Jvar Shanti Stotra)
श्री शिवोवाच:
ब्राह्मि ब्रह्म-स्वरूपे त्वं, मां प्रसीद सनातनि ।
परमात्म-स्वरूपे च, परमानन्द-रूपिणि ।।
ॐ प्रकृत्यै नमो भद्रे, मां प्रसीद भवार्णवे ।
सर्व-मंगल-रूपे च, प्रसीद सर्व-मंगले ।।
विजये शिवदे देवि ! मां प्रसीद जय-प्रदे ।
वेद-वेदांग-रूपे च, वेद-मातः ! प्रसीद मे ।।
शोकघ्ने ज्ञान-रूपे च, प्रसीद भक्त वत्सले ।
सर्व-सम्पत्-प्रदे माये, प्रसीद जगदम्बिके ।।
लक्ष्मीर्नारायण-क्रोडे, स्त्रष्टुर्वक्षसि भारती ।
मम क्रोडे महा-माया, विष्णु-माये प्रसीद मे ।।
काल-रूपे कार्य-रूपे, प्रसीद दीन-वत्सले ।
कृष्णस्य राधिके भदे्र, प्रसीद कृष्ण पूजिते ।।
समस्त-कामिनीरूपे, कलांशेन प्रसीद मे ।
सर्व-सम्पत्-स्वरूपे त्वं, प्रसीद सम्पदां प्रदे ।।
यशस्विभिः पूजिते त्वं, प्रसीद यशसां निधेः ।
चराचर-स्वरूपे च, प्रसीद मम मा चिरम् ।।
मम योग-प्रदे देवि ! प्रसीद सिद्ध-योगिनि ।
सर्वसिद्धिस्वरूपे च, प्रसीद सिद्धिदायिनि ।।
अधुना रक्ष मामीशे, प्रदग्धं विरहाग्निना ।
स्वात्म-दर्शन-पुण्येन, क्रीणीहि परमेश्वरि ।।
फल-श्रुति:
एतत् पठेच्छृणुयाच्चन, वियोग-ज्वरो भवेत् ।
न भवेत् कामिनीभेदस्तस्य जन्मनि जन्मनि ।।
ओम सिद्धि वराय नमः (Om Siddhi Varaya Namah)
ज्वर शान्ति स्तोत्र का हिंदी अनुवाद:
श्री शिव ने कहा:
हे ब्राह्मी! हे सनातन! आप ब्रह्मस्वरूपा हैं, कृपा करें।
आप परमात्मा और परमानंद स्वरूपिणी हैं। (1)
ॐ हे प्रकृति! हे कल्याणी! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
भवार्णव (संसार रूपी समुद्र) से मुझे उबारिए।
आप समस्त मंगल की अधिष्ठात्री हैं, कृपा करें। (2)
हे विजया! हे शिवदेव द्वारा पूजिता देवी! कृपा करें।
आप वेद और वेदांगों की स्वरूपा, वेदमाता हैं – कृपा करें। (3)
हे शोक का नाश करने वाली! ज्ञान रूपा! भक्तवत्सला!
हे माया! जो समस्त संपत्ति देती हैं – कृपा करें।
हे जगदम्बा! मुझे आशीर्वाद दें। (4)
लक्ष्मी नारायण की गोद में हैं, सरस्वती ब्रह्मा के हृदय में।
मेरे हृदय में आप महामाया, विष्णुमाया के रूप में निवास करें – कृपा करें। (5)
आप काल (समय) और कार्य (कर्म) का रूप हैं – कृपा करें।
हे राधा! हे कृष्ण की प्रिय! कृपा करें।
आप कृष्ण द्वारा पूजित हैं। (6)
आप समस्त रूपवती स्त्रियों की रूप में विद्यमान हैं – कृपा करें।
आप सभी संपत्तियों की स्वरूपा हैं – कृपा कर उन्हें प्रदान करें। (7)
आप यशस्वी जनों द्वारा पूजित हैं – कृपा करें।
आप चर और अचर (स्थिर और गतिशील) सभी में विद्यमान हैं – कृपा कर शीघ्र कृपा करें। (8)
हे देवी! मुझे योग प्रदान करने वाली! कृपा करें।
आप सर्व सिद्धियों की स्वरूपा हैं – कृपा कर सिद्धियाँ दें। (9)
अब हे ईश्वरी! मुझे विरहाग्नि (वियोग की पीड़ा) से जल रहे मन से बचाइए।
अपने आत्म-दर्शन के पुण्य से मुझे अपना बना लीजिए। (10)
ॐ अर्यमायै नमः (Om Aryamayai Namah)
फलश्रुति (पाठ का फल):
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ करता है या इसे सुनता है —
उसे वियोगजनित रोग (मानसिक और शारीरिक) नहीं होता।
उसका जन्म-जन्मांतर तक प्रेम में किसी प्रकार का अंतर नहीं होता।
लाभ (Benefits)
ज्वर शान्ति स्तोत्र के पाठ से निम्नलिखित लाभ प्राप्त होते हैं:
- रोगों से मुक्ति: यह स्तोत्र रोगों, विशेषकर बुखार और मानसिक तनाव को दूर करने में सहायक है।
- पारिवारिक कलह का निवारण: पारिवारिक विवादों और कलह को शांत करने में यह स्तोत्र प्रभावी है।
- वियोग पीड़ा से राहत: प्रेम संबंधों में उत्पन्न वियोग और पीड़ा को कम करने में सहायक है।
- शांति और समृद्धि: यह स्तोत्र पाठक और श्रोताओं को शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार: नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता का संचार करता है।
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विधि (Vidhi)
ज्वर शान्ति स्तोत्र का पाठ करने की विधि निम्नलिखित है:
- स्नान और शुद्ध वस्त्र: पाठ से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थान की तैयारी: शांत और स्वच्छ स्थान पर पूजा की व्यवस्था करें।
- दीपक और अगरबत्ती जलाएं: दीपक और अगरबत्ती जलाकर वातावरण को पवित्र करें।
- इष्ट देवता का पूजन: अपने इष्ट देवता या देवी गौरी का पूजन करें।
- स्तोत्र का पाठ: श्रद्धा और भक्ति के साथ ज्वर शान्ति स्तोत्र का पाठ करें।
- नियमितता: सात, ग्यारह, या इक्कीस दिनों तक नियमित रूप से पाठ करें।
- प्रसाद वितरण: पाठ के पश्चात प्रसाद चढ़ाएं और उसे परिवारजनों में वितरित करें।
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