यह स्तोत्र एक वृद्ध ब्राह्मण को व्याकरण के नियमों का अभ्यास करते देख शंकराचार्य द्वारा रचित हुआ। उन्होंने उसे समझाया कि मृत्यु के समय ये नियम उसकी रक्षा नहीं करेंगे; इसलिए गोविन्द (भगवान) का भजन ही मुक्ति का मार्ग है। इस स्तोत्र में 17 श्लोक हैं, जो जीवन की नश्वरता और ईश्वर भक्ति की आवश्यकता को दर्शाते हैं
लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram)
चर्पट पंजरिका स्तोत्रम् (Charpat Panjarika Stotra):
दिनमपि रजनी सायं प्रात: शिशिरवसन्तौ पुनरायात: ।
काल: क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि न मुच्चत्याशावायु: ।। १ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।
प्राप्ते संनिहिते मरणे नहि नहि रक्षति डुकृञ् करणे ।। (ध्रुवपदम्)
अग्रे वह्नि: पृष्ठे भानू रात्रौ चिबुकसमर्पितजानु: ।
करतलभिक्षा तरुतलवासस्तदपि न मुच्चत्याशापाश: ।। २ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
यावद्वित्तोपार्जनसक्तस्तावन्निजपरिवारो रक्त: ।
पश्चाद्धावति जर्जरदेहे वार्तां पृच्छति कोऽपि न गेहे ।। ३ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
जटिलो मुण्डी लुंचितकेश: काषायाम्बरबहुकृतवेष: ।
पश्यन्नपि च न पश्यति लोको ह्युदरनिमित्तं बहुकृतशोक: ।। ४ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
भगवद्गीता किंचिदधीता गंगाजल लवकणिकापीता ।
सकृदपि यस्य मुरारिसमर्चा तस्य यम: किं कुरते चर्चाम् ।। ५ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
अंगं गलितं पलितं मुण्डं दशनविहीनं जातं तुण्डम् ।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं तदपि न मुच्चत्याशा पिण्डम् ।। ६ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
बालास्तावत्क्रीडासक्तस्तरुणस्तावत्तरुणीरक्त: ।
वृद्धस्तावच्चिन्तामग्न: पारे ब्रह्मणि कोऽपि न लग्न: ।। ७ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम् ।
इह संसारे खलु दुस्तारे कृपयापारे पाहि मुरारे ।। ८ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
पुनरपि रजनी पुनरपि दिवस: पुनरपि पक्ष: पुनरपि मास: ।
पुनरप्ययनं पुनरपि वर्षं तदपि न मुच्चत्याशामर्षम् ।। ९ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
वयसि गते क: कामविकार: शुष्के नीरे क: कासार: ।
नष्टे द्रव्ये क: परिवारो ज्ञाते तत्त्वे क: संसार: ।। १० ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
नारीस्तनभरनाभिनिवेशं मिथ्यामायामोहावेशम् ।
एतन्मांसवसादिविकारं मनसि विचारय बारम्बारम् ।। ११ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
कस्त्वं कोऽहं कुत आयात: का मे जननी को मे तात: ।
इति परिभावय सर्वमसारं विश्वं त्यक्त्वा स्वप्नविचारम् ।। १२ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
गेयं गीतानामसहस्त्रं ध्येयं श्रीपतिरूपमजस्त्रम् ।
नेयं सज्जनसंगे चित्तं देयं दीनजनाय च वित्तम् ।। १३ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
यावज्जीवो निवसति देहे कुशलं तावत्पृच्छति गेहे ।
गतवति वायौ देहापाये भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये ।। १४ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
सुखत: क्रियते रामाभोग: पश्चाद्धन्त शरीरे रोग: ।
यद्यपि लोके मरणं शरणं तदपि न मुच्चति पापाचरणम् ।। १५ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
रथ्याचर्पटविरचितकन्थ: पुण्यापुण्यविवर्जितपन्थ: ।
नाहं न त्वं नायं लोकस्तदपि किमर्थं क्रियते शोक: ।। १६ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
कुरुते गंगासागरगमनं व्रतपरिपालनमथवा दानम् ।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन मुक्तिं न भजति जन्मशतेन ।। १७ ।।
भज गोविन्दं भज गोविन्दं भज गोविन्दं मूढमते ।।
॥ श्रीशंकराचार्यविरचितं चर्पट पंजरिका स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
ऋणमोचन अंगारक स्तोत्रम् (Rin Mochan Angaraka Stotram)
चर्पट पंजरिका स्तोत्रम् का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Charpat Panjarika Stotram):
दिन जाता है, रात आती है, फिर शाम और सुबह होती है, शीत और वसंत बार-बार आते हैं —
काल खेलता रहता है, आयु चली जाती है — फिर भी आशा की वायु नहीं छूटती। (1)
आगे अग्नि है, पीछे सूर्य है, रात में ठोड़ी से घुटनों को छूकर बैठा है,
हाथ में भिक्षा पात्र है, वृक्ष के नीचे निवास है — फिर भी आशा का बंधन नहीं छूटता। (2)
जब तक धन कमाने में लगे रहते हो, तब तक परिवार प्रेम करता है।
लेकिन जब शरीर जर्जर हो जाता है, तब कोई घर में हाल भी नहीं पूछता। (3)
जटा वाला, सिर मुँड़वाया हुआ, बाल खींचे हुए, भगवा वस्त्र धारण किए हुए —
सब कुछ देखता है फिर भी नहीं देखता — यह दुनिया पेट के कारण बहुत दुःखी है। (4)
जिसने थोड़ी-सी गीता पढ़ी है, गंगाजल की एक बूँद भी पी है,
और जिसने कभी भी श्रीहरि की पूजा की है — उसके पास यमराज क्या कर पाएगा? (5)
अंग गल चुका है, सिर के बाल सफेद हो गए हैं, दाँत टूट गए हैं, मुँह सूख गया है,
बूढ़ा हो गया है, हाथ में लाठी लेकर चलता है — फिर भी आशा का पिंड नहीं छूटता। (6)
बचपन में खेल-कूद में लीन, युवावस्था में स्त्रियों में रत रहता है,
बुढ़ापे में चिंताओं में डूबा रहता है — ब्रह्म में कोई भी नहीं लगता। (7)
फिर से जन्म, फिर से मरण, फिर से माता के गर्भ में शयन —
यह संसार बहुत कठिन है — हे मुरारी! कृपा करके पार लगाओ। (8)
फिर से रात, फिर से दिन, फिर से पक्ष, फिर से महीना —
फिर से अयन, फिर से वर्ष — फिर भी आशा और क्रोध नहीं छूटते। (9)
जब जवानी चली गई, तो फिर कामनाएँ कहाँ?
जब पानी सूख गया, तो झील कहाँ?
जब धन चला गया, तो परिवार कहाँ?
और जब तत्व को जान लिया, तो संसार कहाँ? (10)
स्त्री के स्तनों और नाभि में आसक्त होना — यह मिथ्या माया और मोह का वश है।
यह सब मांस, रक्त और चर्बी का विकार है — मन में बार-बार विचार करो। (11)
तू कौन है? मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? मेरी माँ कौन है? मेरा पिता कौन है?
इस प्रकार विचार कर, सबकुछ व्यर्थ समझ — इस स्वप्न जैसे जगत को त्याग दे। (12)
गायन करो गीता के हजार नामों का, ध्यान करो श्रीहरि के अनश्वर रूप का,
मन लगाओ सज्जनों की संगति में, और दान करो निर्धनों को अपना धन। (13)
जब तक शरीर में प्राण है, तब तक ही घर में कुशल पूछी जाती है।
लेकिन जब शरीर से प्राण चला जाता है, तब पत्नी तक उस शरीर से डरती है। (14)
आसान सुख में राम नाम का स्मरण नहीं करते — बाद में शरीर रोगी हो जाता है।
भले ही मृत्यु ही अंतिम सत्य है — फिर भी पाप करने से मन नहीं हटता। (15)
सड़क की चिथड़ों से बनी हुई चादर पहने हुए, पुण्य-पाप के परे का मार्ग अपनाया हुआ,
“मैं नहीं हूँ”, “तू नहीं है”, “यह लोक नहीं है” — तब फिर शोक किसलिए किया जाए? (16)
कोई गंगासागर स्नान करता है, व्रत करता है, दान देता है —
लेकिन यदि ज्ञान नहीं है, तो जन्मों तक भी उसे मुक्ति नहीं मिलती। (17)
॥ श्रीशंकराचार्यविरचितं चर्पट पंजरिका स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
उपमन्यु कृता शिव स्तोत्रं (Upamanyu Krutha Shiva Stotram)
लाभ (Advantage)
- आध्यात्मिक जागृति: यह स्तोत्र आत्मा की शुद्धि और ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना को जागृत करता है।
- मोह-माया से विमुक्ति: संसारिक बंधनों और इच्छाओं से मुक्ति पाने में सहायक है।
- मृत्यु का भय कम करता है: जीवन की अनित्यता को समझाकर मृत्यु के भय को कम करता है।
- ध्यान और एकाग्रता में वृद्धि: नियमित पाठ से मन की एकाग्रता बढ़ती है।
- सकारात्मक दृष्टिकोण: जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करता है।
पाठ विधि (Text method)
- समय: प्रातःकाल या संध्या समय उपयुक्त है।
- स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान चुनें।
- आसन: सिद्धासन या पद्मासन में बैठें।
- संकल्प: पाठ से पहले ईश्वर का ध्यान करें और संकल्प लें।
- पाठ: श्लोकों का उच्चारण स्पष्ट और श्रद्धा पूर्वक करें।
- ध्यान: पाठ के बाद कुछ समय ध्यान करें।
धन्वंतरि महामंत्र (Dhanvantari Mahamantra)
यह स्तोत्र हमें यह सिखाता है कि संसारिक ज्ञान और उपलब्धियाँ अंततः व्यर्थ हैं यदि उनमें ईश्वर भक्ति का समावेश न हो। अतः, जीवन में सच्ची शांति और मुक्ति के लिए गोविन्द का भजन ही सर्वोत्तम मार्ग है।
कैलास राणा शिव चंद्रमौळी (Kailasrana Shivchandra Mauli)
घोरकष्टोद्धरण स्तोत्र (Ghorkashtodharan stotra)
ऊँ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा (Om namah kamala Vasinyai swaha)