चन्द्र स्तोत्र एक पवित्र स्तुति है जो चंद्रदेव को समर्पित है। चंद्रमा को मन, भावनाओं और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से मानसिक शांति, भावनात्मक संतुलन और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
ॐ अर्यमायै नमः (Om Aryamayai Namah)
चन्द्र स्तोत्र हिंदी पाठ (Chandra Stotra in Hindi)
ॐ श्वेताम्बर: श्वेतवपु: । किरीटी श्वेतधुतिर्दणडधरोद्विबाहु: ।
चन्द्रोऽम्रतात्मा वरद: शशाऽक: श्रेयांसि महं प्रददातु देव: ।। 1 ।।
दधिशऽकतुषाराभं क्षीरोदार्नवसम्भवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।। 2 ।।
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभुः ।
हरस्य मुकटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते ।। 3 ।।
सुधामया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम् ।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम् ।। 4 ।।
राकेशं तारकेशं च रोहिणी प्रियसुन्दरम् ।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुह: ।। 5 ।।
।। इति चन्द्र स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
वाराही गायत्री मंत्र (Varahi Gayatri Mantra)
चन्द्र स्तोत्र का शुद्ध हिंदी अनुवाद:
ॐ श्वेताम्बर: श्वेतवपु: । किरीटी श्वेतधुतिर्दणडधरोद्विबाहु: ।
चन्द्रोऽम्रतात्मा वरद: शशाऽक: श्रेयांसि महं प्रददातु देव: ।। 1 ।।
अनुवाद:
जो सफेद वस्त्र पहनते हैं, जिनका शरीर भी श्वेत वर्ण का है, जो मुकुटधारी हैं, जिनके वस्त्र भी श्वेत हैं, जो दो भुजाओं से युक्त हैं और दण्ड (राजदण्ड) धारण करते हैं — ऐसे अमृतमय आत्मा वाले, वर देने वाले, शशांक चिह्नयुक्त चंद्रदेव मुझे श्रेष्ठ फल प्रदान करें।
दधिशऽकतुषाराभं क्षीरोदार्नवसम्भवम् ।
नमामि शशिनं सोमं शम्भोर्मुकुटभूषणम् ।। 2 ।।
अनुवाद:
जो दही, हिम (बर्फ) और कुशा के समान श्वेत हैं, जो क्षीरसागर से उत्पन्न हुए हैं — उन शशि (चंद्रमा) को, जो भगवान शिव के मुकुट के आभूषण हैं, मैं नमन करता हूँ।
क्षीरसिन्धुसमुत्पन्नो रोहिणीसहित: प्रभुः ।
हरस्य मुकटावास बालचन्द्र नमोस्तु ते ।। 3 ।।
अनुवाद:
जो क्षीरसागर से उत्पन्न हुए हैं, जो रोहिणी नक्षत्र के साथ रहते हैं, जो भगवान शिव के मुकुट में स्थान पाने वाले बालचंद्र (अर्धचंद्र) हैं — हे प्रभु! आपको बारंबार नमस्कार।
सुधामया यत्किरणा: पोषयन्त्योषधीवनम् ।
सर्वान्नरसहेतुं तं नमामि सिन्धुनन्दनम् ।। 4 ।।
अनुवाद:
जिनकी अमृतमयी किरणें औषधियों और वनस्पतियों का पोषण करती हैं, जो समस्त अन्नरस के मूल कारण हैं — उन समुद्रपुत्र चंद्रदेव को मैं नमन करता हूँ।
राकेशं तारकेशं च रोहिणी प्रियसुन्दरम् ।
ध्यायतां सर्वदोषघ्नं नमामीन्दुं मुहुर्मुह: ।। 5 ।।
अनुवाद:
जो पूर्णिमा के चंद्र (राकेश), ताराओं के स्वामी, रोहिणी के प्रिय और सुंदर हैं — उन दोषों का नाश करने वाले चंद्रमा को मैं बारंबार नमस्कार करता हूँ, और ध्यान करता हूँ।
।। इति चन्द्र स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
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चन्द्र स्तोत्र के लाभ (Benefits of Chandra Stotra)
- मानसिक शांति और स्थिरता: चन्द्र स्तोत्र का नियमित पाठ मन को शांत और स्थिर बनाता है, जिससे तनाव और चिंता में कमी आती है।
- भावनात्मक संतुलन: यह स्तोत्र भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे व्यक्ति अधिक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण बनता है।
- चंद्र दोष का निवारण: जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है, उनके लिए यह स्तोत्र विशेष रूप से लाभकारी है। यह चंद्र दोष को शांत करने में सहायक होता है।
- रचनात्मकता और अंतर्ज्ञान में वृद्धि: चन्द्र स्तोत्र का पाठ करने से रचनात्मकता और अंतर्ज्ञान शक्ति में वृद्धि होती है, जो कलाकारों और लेखकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
- धन और समृद्धि की प्राप्ति: यह स्तोत्र धन, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति में भी सहायक होता है।
Om Varahaya Namaha (ॐ वराहाय नमः)
चन्द्र स्तोत्र की पाठ विधि (Recitation method of Chandra Stotra)
- समय और स्थान: सोमवार या पूर्णिमा के दिन सुबह या शाम के समय शांत और स्वच्छ स्थान पर बैठें।
- दिशा: उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- वस्त्र और आसन: सफेद या हल्के रंग के वस्त्र पहनें और सफेद कपड़ा बिछाकर आसन ग्रहण करें।
- पूजन सामग्री:
- जल से भरा एक कलश
- सफेद फूल (चमेली या श्वेत कमल)
- चंदन, अक्षत (चावल), कुमकुम
- सफेद मिठाई या खीर (प्रसाद के लिए)
- चंद्र मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष या मोती की माला
- संकल्प और प्रार्थना: हाथ में जल लेकर संकल्प लें: “ॐ नमः चन्द्राय! मैं अपने मन और आत्मा की शुद्धि के लिए चंद्र स्तोत्र का पाठ कर रहा/रही हूँ। कृपया मुझे मानसिक शांति, सुख, समृद्धि और भावनात्मक स्थिरता प्रदान करें।” इसके बाद जल अर्पण करें और “ॐ चं चन्द्राय नमः” मंत्र का 11 बार जप करें।
- पाठ क्रम:
- गणपति वंदना करें – “ॐ गं गणपतये नमः”
- गुरु वंदना करें – “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः”
- इसके बाद चन्द्र स्तोत्र का पाठ करें।
- पाठ के बाद:
- चंद्रदेव को जल अर्पित करें – जल से भरा कलश रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- शांति के लिए प्रार्थना करें – “हे चंद्रदेव, कृपा करें और मेरे मन को शांत रखें।”
- सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं और फिर परिवार में बांटें।
- 108 बार “ॐ चं चन्द्राय नमः” मंत्र का जप करें (रुद्राक्ष या मोती की माला से करें)।
- विशेष नियम और सावधानियां:
- पाठ करते समय ध्यान केंद्रित करें और किसी से बात न करें।
- मांसाहार, नशा और तामसिक भोजन से बचें।
- नकारात्मक विचारों से दूर रहें और शुद्ध मन से पाठ करें।
- राहु, केतु, शनि के उपायों के साथ इस पाठ को करने से अधिक लाभ मिलता है।
- पूर्णिमा के दिन जल में केवड़ा या गुलाब डालकर स्नान करें और पाठ करें।
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