चतु:श्लोकी भागवत का पाठ करने से आध्यात्मिक, मानसिक और सांसारिक जीवन में कई लाभ प्राप्त होते हैं। यह श्रीमद्भागवत महापुराण के चार मुख्य श्लोक हैं, जो भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी को उपदेश स्वरूप दिए थे। इनका नियमित पाठ करने से निम्नलिखित लाभ होते हैं:
चतु:श्लोकी भगवतम् हिंदी पाठ (Chatushloki Bhagwat in Hindi)
ज्ञानं परमगुहां मे यद्विज्ञानसमन्वितम् ।
सरहस्यं तदंगं च ग्रहाण गदितं मया ।। ।। 1 ।।
यावानहं यथाभावो यद्रूपगुणकर्मक: ।
तथैव तत्त्वविज्ञानमस्तु ते मदनुग्रहात् ।। ।। 2 ।।
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद्यत्सदसत्परम् ।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ।। ।। 3 ।।
ऋतेऽर्थं यत्प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि ।
तद्विद्यादात्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तम: ।। ।। 4 ।।
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम् ।। ।। 5 ।।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन: ।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा ।। ।। 6 ।।
एतन्मतं समातिष्ठ परमेण समाधिना ।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुज्झति कर्हिचित् ।। ।। 7 ।।
।। इति चतु:श्लोकी भगवत् सम्पूर्णम् ।।
चतु:श्लोकी भगवतम् सरल हिंदी अनुवाद (Chatushloki bhagavatam simple hindi translation)
ज्ञानं परमगुहां मे यद्विज्ञानसमन्वितम् ।
सरहस्यं तदंगं च ग्रहाण गदितं मया ।। 1 ।।
अनुवाद:
जो ज्ञान परम रहस्य है, जो विज्ञान (अनुभवजन्य ज्ञान) से युक्त है, वह ज्ञान जिसमें रहस्य और उसके अंग भी सम्मिलित हैं – वह मैं तुम्हें कह रहा हूँ, उसे ग्रहण करो।
यावानहं यथाभावो यद्रूपगुणकर्मक: ।
तथैव तत्त्वविज्ञानमस्तु ते मदनुग्रहात् ।। 2 ।।
अनुवाद:
मैं जैसा हूँ, जिस रूप, गुण और कर्म से युक्त हूँ – वैसा ही तत्त्व का ज्ञान (मेरे विषय का यथार्थ ज्ञान) तुम्हें मेरी कृपा से प्राप्त हो।
अहमेवासमेवाग्रे नान्यद्यत्सदसत्परम् ।
पश्चादहं यदेतच्च योऽवशिष्येत सोऽस्म्यहम् ।। 3 ।।
अनुवाद:
सृष्टि के आरंभ में केवल मैं ही था – न सत्य (दृश्य वस्तुएँ) था, न असत्य (अदृश्य वस्तुएँ)। सृष्टि के बाद जो कुछ भी है वह मैं ही हूँ, और अंत में जो शेष रहेगा वह भी मैं ही हूँ।
ऋतेऽर्थं यत्प्रतीयेत न प्रतीयेत चात्मनि ।
तद्विद्यादात्मनो मायां यथाऽऽभासो यथा तम: ।। 4 ।।
अनुवाद:
जो वस्तु आत्मा में होते हुए भी आत्मा के रूप में अनुभव नहीं होती और जो आत्मा से भिन्न प्रतीत होती है – उसे मेरी माया समझो, जैसे प्रकाश में प्रतिबिंब या अंधकार।
यथा महान्ति भूतानि भूतेषूच्चावचेष्वनु ।
प्रविष्टान्यप्रविष्टानि तथा तेषु न तेष्वहम् ।। 5 ।।
अनुवाद:
जैसे सारे जीव (पंचमहाभूत) सभी उच्च और निम्न वस्तुओं में व्याप्त होकर भी अप्रविष्ट रहते हैं, वैसे ही मैं सब में होकर भी वास्तव में उनमें प्रविष्ट नहीं हूँ।
एतावदेव जिज्ञास्यं तत्त्वजिज्ञासुनात्मन: ।
अन्वयव्यतिरेकाभ्यां यत्स्यात्सर्वत्र सर्वदा ।। 6 ।।
अनुवाद:
जो व्यक्ति तत्त्व को जानना चाहता है, उसे केवल उसी तत्त्व की जिज्ञासा करनी चाहिए जो सर्वत्र (हर स्थान में) और सर्वदा (हर समय) अन्वय (उपस्थित) और व्यतिरेक (अनुपस्थित होने पर भी प्रभावी) रूप से विद्यमान है।
एतन्मतं समातिष्ठ परमेण समाधिना ।
भवान् कल्पविकल्पेषु न विमुज्झति कर्हिचित् ।। 7 ।।
अनुवाद:
तुम इस मेरे मत को परम समाधि (पूर्ण ध्यान) द्वारा स्वीकार करो – तब तुम कल्पनाओं और विकल्पों में कभी भी भ्रमित नहीं होगे।
।। इति चतु:श्लोकी भगवत् सम्पूर्णम् ।।
चतु:श्लोकी भागवत के लाभ
- आध्यात्मिक उन्नति:
यह श्लोक आत्म-ज्ञान और ब्रह्म-ज्ञान की प्राप्ति में सहायक हैं, जिससे साधक का आध्यात्मिक विकास होता है। - पापों का नाश:
नियमित पाठ से त्रिविधि दुःखों, दरिद्रता, दुर्भाग्य एवं पापों का निवारण होता है । - मानसिक शांति:
यह श्लोक मन को स्थिर और शांत करते हैं, जिससे तनाव और चिंता में कमी आती है। - सुख-समृद्धि:
भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। - भवबंधन से मुक्ति:
इन श्लोकों का पाठ मोक्ष की ओर ले जाता है, जिससे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
पाठ विधि (Vidhi)
- शुद्धता:
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। - स्थान:
शांत और पवित्र स्थान पर बैठें, जहाँ ध्यान भंग न हो। - दीपक और धूप:
भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएं। - मंत्र जप:
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जप करें। - श्लोक पाठ:
चतु:श्लोकी भागवत के चारों श्लोकों का ध्यानपूर्वक पाठ करें। - ध्यान:
पाठ के पश्चात कुछ समय ध्यान करें और भगवान विष्णु से आशीर्वाद की प्रार्थना करें।





















































