श्री गणेशाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (श्री गणेश जी के 108 नामों का स्तोत्र) का नियमित जप भक्तों को अनेक लाभ प्रदान करता है। यह स्तोत्र विघ्नों को दूर करने, मन की एकाग्रता बढ़ाने और जीवन में समृद्धि लाने में सहायक माना जाता है।
श्री गणेशाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र (Ganesha Ashtottara Shatnam Stotra)
।। श्रीगणेशाय नम: ।।
यम उवाच
गणेश हेरंब गजाननेति महोहदर स्वानुभवप्रकाशिन्।
वरिष्ठ सिद्धिप्रिय बुद्धिनाथ वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
अनेकविघ्नांतक वक्रतुंड स्वसंज्ञवासिंश्र्च चतुर्भुजेति।
कवीश देवांतकनाशकारिन् वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
महेशसूनो गजदैत्यशत्रो वरेण्यसूनो विकट त्रिनेत्र।
वरेश पृथ्वीधर एकदंत वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
प्रमोद मोदेतिनरांतकारे शडूर्मिहंतर्गजकर्ण ढुण्ढे।
द्वे द्वारिसिन्धो स्थिरभावकारिन् वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
विनायक ज्ञानविघातशत्रो पराशरस्यात्मज विष्णुपुत्र।
अनादिपूज्याखुग सर्वपूज्य वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
वैरिंच्य लम्बोदर धूम्रवर्ण मयूरपालेति मयूरवाहिन्।
सुरासुरै: सेवितपादपद्म वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
वरिन्महाखुध्वज शूर्पकर्ण शिवाज सिंहस्थ अनंतवाह।
दितौज विघ्नेश्वर शेषनाभे वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
अणोरणीयो महतो महीयो रवेर्ज योगेशज ज्येष्ठराज।
निधीश मन्त्रेश च शेषपुत्र वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
वरप्रदातरदितेश्र्च सूनो परात्पर ज्ञानद तारवक्त्र।
गुहाग्रज ब्रह्मप पार्श्रवपुत्र वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
सिन्धोश्र्च शत्रो परशुप्रयाणे शमीशपुष्पप्रिय विघ्नहारिन्।
दूर्वाभरैरर्चित देवदेव वदंत त्यजत प्रभीता:।।
धिय: प्रदातश्र्च शमीप्रियेति सुसिद्धिदातश्र्च सुशांतिदात:।
अमेयमायामितविक्रमेति वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
द्विधा चतुर्थिप्रिय कश्यपाच्य धनप्रद ज्ञानपदप्रकाशिन्।
चिंतामणे चित्तविहारकारिन् वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
यमस्य शत्रो ह्माभिमानशत्रो विधेर्ज हंत: कपिलस्य सूनो।
विदेह स्वानंदज योगयोग वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
गणस्य शत्रो कपिलस्य शत्रो समस्तभावज्ञ च भालचन्द्रं।
अनादिमध्यांतमय प्रचारिन् वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
विभो जगद्रूप गणेश भूमन् पुष्टे: पते आखुगतेति बोध:।
कर्तुश्र्च पातुश्च तु संहरेति वदंतमेवं त्यजत प्रभीता:।।
इदमष्टोत्तरशतं नाम्नां तस्य पठंति ये।
श्रृण्वंति तेषु वै भीता: कुरुध्वं मा प्रवेशनम्।।
भुक्तिमुक्तिप्रदं ढुण्ढेर्धनधान्यप्रवर्धनम्।
ब्रह्मभूतकरं स्तोत्रं जपन्तं नित्यमादरात्।।
यत्र कुत्र गणेशस्य चिन्हयुक्तानि वै भटा:।
धामानि तत्र संभीता: कुरुध्वं माप्रवेशनम्।।
।। इति श्री गणेशाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र सम्पूर्णम् ।।
श्री गणेशाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र” का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of “Shri Ganesha Ashtottara Shatnam Stotra”)
।। श्रीगणेशाय नमः ।।
(यमराज कहते हैं:)
जो व्यक्ति श्री गणेश जी को हेरंब (रक्षक), गजानन (गजमुख), महोदर (विशाल उदर वाले), और स्वानुभव के प्रकाश स्वरूप के रूप में जानता है – उससे पाप और भय दूर हो जाते हैं।
जो गणेश जी को अनेक विघ्नों का अंत करने वाले, वक्रतुण्ड (टेढ़ी सूंड वाले), स्वयं की शक्ति में वास करने वाले और चतुर्भुज (चार भुजाओं वाले) रूप में पूजते हैं – उन्हें भूत-प्रेत डराते नहीं हैं।
जो महेश्वर के पुत्र, गजासुर के शत्रु, श्रेष्ठ, एकदंत और विकट (भयानक रूप) तथा त्रिनेत्र (तीन नेत्रों वाले) के रूप में गणेश जी का स्मरण करता है, वह सभी विघ्नों से मुक्त होता है।
जो प्रमोद, मोद (आनंद देने वाले), नरों के कष्टों का नाश करने वाले, गजकर्ण (हाथी के जैसे कान वाले), ढुण्ढी (दुर्भेद्य) कहकर स्मरण करता है – वह सुरक्षित रहता है।
जो विनायक (नेता), ज्ञान के मार्ग के बाधाओं को हटाने वाले, पराशर मुनि के आत्मतत्व जैसे, विष्णु पुत्र के समान, अनादिपूज्य (सबसे पहले पूजनीय) तथा सभी देवताओं द्वारा पूज्य हैं – वे भक्तों के समस्त संकट हर लेते हैं।
जो वैरिंच्य (ब्रह्मा द्वारा पूज्य), लम्बोदर (लंबे पेट वाले), धूम्रवर्ण (धुएं के समान वर्ण वाले), मयूर वाहन वाले, और सुर-असुरों द्वारा पूजित हैं – वे सबका कल्याण करते हैं।
जो वर देने वाले, महाकाय (विशाल शरीर), शूर्पकर्ण (पंखे जैसे कान), शिव के प्रिय, सिंह पर आरूढ़, अनंत वाहनधारी हैं – उनका नाम स्मरण करने से भय मिटता है।
जो अति सूक्ष्म (अणु से भी छोटे), महत्तम, सूर्य के समान प्रकाशमान, योगियों के स्वामी, श्रेष्ठ राजा, निधियों के स्वामी और शेषनाग के समान हैं – वे साधकों को सिद्धि देते हैं।
जो वर प्रदान करने वाले, अदिति पुत्र के समान तेजस्वी, परात्पर (सर्वोच्च), ज्ञानदायक, तारकवक्त्र (तारे जैसे मुख वाले), गुह के अग्रज, ब्रह्मा के समान और पार्श्व देवताओं के पुत्र जैसे हैं – वे परम कल्याणकारी हैं।
जो समुद्र के समान विशाल, शत्रुओं का नाश करने वाले, परशु (कुल्हाड़ी) धारण करने वाले, शमी वृक्ष के फूलों को प्रिय मानने वाले, विघ्नों को दूर करने वाले हैं – वे संकटों से रक्षा करते हैं।
जो बुद्धि देने वाले, शमी वृक्ष को प्रिय, सिद्धि और शांति प्रदान करने वाले, अमेय (अपरिमित), मायावी और अद्भुत पराक्रमी हैं – वे भक्तों की हर इच्छा पूरी करते हैं।
जो द्विधा (द्वैविध्य) को हरने वाले, चतुर्थी को प्रिय, कश्यप के आदर करने योग्य, धन और ज्ञान देने वाले, चिंतामणि जैसे और चित्त को आनंद देने वाले हैं – वे सदा वंदनीय हैं।
जो यम के शत्रु हैं, अभिमान का नाश करने वाले हैं, ब्रह्मा के नाशक हैं, कपिल मुनि के समान हैं, शरीर से रहित, आत्मानंद स्वरूप योगी हैं – उनका स्मरण हर बंधन से मुक्त करता है।
जो गणों के शत्रु हैं, कपिल के शत्रु हैं, सब भावों को जानने वाले हैं, भालचंद्र (मस्तक पर चंद्रधारी) हैं, अनादि, मध्य और अंत से रहित हैं और सर्वत्र व्याप्त हैं – वे सबके रक्षक हैं।
जो विभु (सर्वशक्तिमान), जगत्स्वरूप, गणेश, भूमन् (सर्वव्यापक), पुष्टिदाता, मूषक वाहनधारी, कर्ता, पालक और संहारक हैं – वे ही सच्चे ईश्वर हैं।
जो भी इस अष्टोत्तरशतनाम (१०८ नामों) का पाठ करता है या इसे सुनता है, उन पर किसी भी प्रकार का भय प्रभाव नहीं डाल सकता।
जो व्यक्ति नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है, धन-धान्य में वृद्धि होती है और वह ब्रह्मस्वरूप बनता है।
जहां कहीं भी श्री गणेश जी का चिन्ह है, वहां के निवासी इस स्तोत्र को पढ़ने वालों से भयभीत हो जाते हैं और उनसे दूर रहते हैं।
।। इस प्रकार श्री गणेश जी के १०८ नामों वाला स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ।।
लाभ (Benefits)
- विघ्नों का नाश: इस स्तोत्र के जप से जीवन में आने वाले सभी प्रकार के विघ्न और बाधाएं दूर होती हैं।
- बुद्धि और स्पष्टता में वृद्धि: यह स्तोत्र मन को उच्च आध्यात्मिक ऊर्जा से जोड़ता है, जिससे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है।
- सकारात्मकता और समृद्धि: इसका जप वातावरण को शुद्ध करता है और शुभ ऊर्जा से भर देता है।
- नए कार्यों में सफलता: नए उपक्रम, विवाह या करियर की शुरुआत में इसका जप विशेष रूप से शुभ माना जाता है।
विधि (Vidhi)
- स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान का चयन करें।
- स्नान और वस्त्र: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजन सामग्री: भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक जलाएं और पुष्प, दूर्वा, अक्षत, सिंदूर आदि अर्पित करें।
- आरंभिक मंत्र: जप से पहले “ॐ गणपतये नमः” मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
- स्तोत्र पाठ: श्री गणेशाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें।
- समापन मंत्र: पाठ के बाद पुनः “ॐ गणपतये नमः” मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
जप का समय (Jaap Time)
- ब्रह्म मुहूर्त: सूर्योदय से लगभग 1.5 घंटे पूर्व का समय (ब्रह्म मुहूर्त) इस स्तोत्र के जप के लिए सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि इस समय मन शांत और ग्रहणशील होता है।
- अन्य समय: यदि ब्रह्म मुहूर्त में जप संभव न हो, तो प्रातःकाल या संध्या समय में शांत वातावरण में जप करें।
अतिरिक्त सुझाव
- नियमितता: नियमित रूप से इस स्तोत्र का जप करने से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
- विशेष अवसर: गणेश चतुर्थी, बुधवार, या किसी नए कार्य की शुरुआत के समय इस स्तोत्र का जप विशेष फलदायी होता है।
- श्रद्धा और भक्ति: जप करते समय मन को एकाग्र रखें और पूर्ण श्रद्धा व भक्ति के साथ भगवान गणेश का ध्यान करें।