वैदिक ज्योतिष में नवग्रहों में से एक केतु ग्रह को रहस्यमय, आध्यात्मिक, और मोक्ष प्रदायक ग्रह माना गया है। केतु भले ही एक “छाया ग्रह” हो, लेकिन इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में अत्यंत गहरा और निर्णायक होता है। जब केतु कुंडली में अशुभ स्थिति में होता है, तो व्यक्ति को भ्रम, मानसिक तनाव, अचानक समस्याएं, और आध्यात्मिक उलझन का सामना करना पड़ता है। इन प्रभावों से राहत पाने और केतु को शांत करने के लिए केतु स्तोत्र का पाठ एक शक्तिशाली उपाय माना गया है।
मां ब्रह्मचारिणी देवी मंत्र (Maa Brahmacharini Devi Mantra)
केतु स्तोत्र में केतु देव के विभिन्न नामों और स्वरूपों का वर्णन है, जो उनके विविध गुणों और शक्तियों को दर्शाते हैं। इस स्तोत्र का नियमित पाठ न केवल केतु के दोषों को शांत करता है, बल्कि साधक को आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति और जीवन की बाधाओं से मुक्ति भी प्रदान करता है। जो व्यक्ति इसे श्रद्धा और नियमपूर्वक पढ़ता है, उसे केतु की कृपा से सफलता, समृद्धि और आंतरिक शांति प्राप्त होती है।
माँ शैलपुत्री: नवरात्रि के प्रथम दिवस की अधिष्ठात्री देवी (Maa Shailputri Mantra)
केतु स्तोत्र (Ketu Stotra)
केतुः कालः कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णकः ।
लोककेतुर्महाकेतुः सर्वकेतुर्भयप्रदः ॥ 1 ॥
रौद्रः रुद्रप्रियः रुद्रः क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक् ।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ॥ 2 ॥
तारागणविमर्दश्च जैमिनेयो ग्रहाधिपः ।
पंचविंशति नामानि केतुर्ः यः सततं पठेत् ॥ 3 ॥
तस्य नश्यन्ति बाधाश्च सर्वाः केतुप्रसादतः ।
धनधान्यपशूनां च भवेत् वृद्धिर्न संशयः ॥ 4 ॥
।। इति केतु स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
आपदुन्मूलन श्री दुर्गा स्तोत्रम् – (Aapadunmoolana Sri Durga Stotram)
केतु स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
केतुः कालः कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णकः ।
लोककेतुर्महाकेतुः सर्वकेतुर्भयप्रदः ॥ 1 ॥
केतु काल के नियंत्रक हैं, धूम्रवर्ण (धुएँ के रंग) के हैं, और सभी लोकों के लिए केतु हैं। वे महान केतु हैं और भयप्रद हैं।
रौद्रः रुद्रप्रियः रुद्रः क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक् ।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ॥ 2 ॥
वे रौद्र हैं, रुद्र को प्रिय हैं, रुद्रस्वरूप हैं, क्रूर कर्म करने वाले हैं, सुगंधित हैं, पलाश के धुएँ के समान रंग वाले हैं, और चित्रवर्ण यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
तारागणविमर्दश्च जैमिनेयो ग्रहाधिपः ।
पंचविंशति नामानि केतुर्ः यः सततं पठेत् ॥ 3 ॥
जो तारागणों को विमर्दित करते हैं, जैमिनि के पुत्र हैं, और ग्रहों के अधिपति हैं। जो व्यक्ति केतु के ये पच्चीस नाम सतत पढ़ता है,
तस्य नश्यन्ति बाधाश्च सर्वाः केतुप्रसादतः ।
धनधान्यपशूनां च भवेत् वृद्धिर्न संशयः ॥ 4 ॥
उसकी सभी बाधाएँ केतु की कृपा से नष्ट हो जाती हैं, और उसके धन, धान्य, पशुओं में वृद्धि होती है—इसमें कोई संदेह नहीं है।
।। इति केतु स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
अन्गारका स्तोत्रम (Angaraka Stotram)
केतु स्तोत्र के लाभ (Benefits of Ketu Stotra)
- केतु दोष निवारण: जिनकी कुंडली में केतु अशुभ स्थिति में है, उनके लिए यह स्तोत्र अत्यंत लाभकारी है।
- आध्यात्मिक उन्नति: केतु मोक्ष और आत्मज्ञान का कारक है; इसका पाठ साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है।
- बाधाओं से मुक्ति: जीवन में आने वाली अचानक की समस्याएँ, दुर्घटनाएँ या मानसिक तनाव को दूर करता है।
- धन, धान्य और समृद्धि: नियमित पाठ से आर्थिक स्थिति में सुधार और समृद्धि प्राप्त होती है।
अनादी कल्पेश्वर स्तोत्र (Anadikalpeshvara Stotram)
पाठ विधि (Vidhi)
- समय: मंगलवार या शनिवार को, विशेषकर शुक्ल पक्ष में, ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे) में पाठ करना श्रेष्ठ है।
- स्थान: शांत और पवित्र स्थान चुनें, जहाँ ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- स्नान और वस्त्र: पाठ से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आसन: कुशा या ऊन के आसन पर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- दीपक और धूप: भगवान केतु के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक और धूप जलाएं।
- माला: रुद्राक्ष या लहसुनिया (कैट्स आई) माला का उपयोग करके पाठ करें, जिससे जप की संख्या का ध्यान रखा जा सके।
- एकाग्रता: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और भगवान केतु के स्वरूप का ध्यान करें।
आग्नेय स्तोत्र हिंदी (Agney Stotra )
जप संख्या और समय (Chanting number and time)
- जप संख्या: प्रत्येक दिन 108 बार जप करना शुभ माना जाता है। विशेष लाभ हेतु 17,000 बार जप करने की अनुशंसा की जाती है।
- समय: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे) में जप करना अत्यंत फलदायी होता है।
- दिशा: दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर मुख करके जप करें।
श्री आदिमाता अशुभनाशिनी स्त्रोत्र (Shri Adimata Ashubhnashini Stotra)
अन्य उपयोगी केतु मंत्र (Other Useful Ketu Mantras)
- केतु बीज मंत्र: “ॐ स्रां स्रीं स्रौं सः केतवे नमः”
- लाभ: केतु के अशुभ प्रभावों को शांत करता है और आध्यात्मिक उन्नति में सहायक है।
- केतु गायत्री मंत्र: “ॐ चित्रवर्णय विद्महे, सरपरूपाय धिमहि, तन्नो केतु प्रचोदयात्”
- लाभ: बुद्धि की तीव्रता, आध्यात्मिक जागृति, और मानसिक शांति प्रदान करता है।
पार्वती पंचक स्तोत्र (Parvati Panchak Stotra)
श्री आदिमाता शुभंकरा स्तवनम् (Shri Adimata Shubhankara Stavanam)
श्री कामेश्वरी स्तुति (Shri Kameshwari Devi Stuti)