श्री कृष्ण स्तोत्र एक शक्तिशाली वैदिक स्तुति है, जो भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य स्वरूप, गुणों और ब्रह्मांडीय महिमा का वर्णन करती है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ साधक को आध्यात्मिक उन्नति, मानसिक शांति, और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है।
कृष्ण स्तोत्र (Krishna Stotra)
त्वं ब्रह्म परमं धाम निरीहो निरहंकृतिः।
निर्गुणश्च निराकारः साकारस्सगुणः स्वयम्॥ १ ॥
साक्षिरूपश्च निर्लिप्तः परमात्मा निराकृतिः।
प्रकृतिः पुरुषस्त्वं च कारणं च तयोः परम्॥ २ ॥
सृष्टिस्थित्यन्तविषये ये च देवास्त्रयः स्मृताः।
ते त्वदंशास्सर्वबीजाः ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥ ३ ॥
यस्य लोम्नां च विवरे चाखिलं विश्वमीश्वर।
महाविराण् महाविष्णुः त्वं तस्य जनको विभो॥ ४ ॥
तेजस्त्वं चापि तेजस्वी ज्ञानं ज्ञानी च तत्परः।
वेदेऽनिर्वचनीयस्त्वं कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः॥ ५ ॥
महदादेस्सृष्टिसूत्रं पञ्चतन्मात्रमेव च।
बीजं त्वं सर्वशक्तीनां सर्वशक्तिस्वरूपकः॥ ६ ॥
सर्वशक्तीश्वरः सर्वः सर्वशक्त्याश्रयस्सदा।
त्वमनीहः स्वयंज्योतिः सर्वानन्दस्सनातनः॥ ७ ॥
अहो आकारहीनस्त्वं सर्वविग्रहवानपि।
सर्वेन्द्रियाणां विषयं जानासि नेन्द्रियी भवान्॥ ८ ॥
सरस्वती जडीभूता यत्स्तोत्रे यन्निरूपणे।
जडीभूतो महेशश्च शेषो धर्मो विधिः स्वयम्॥ ९ ॥
पार्वती कमला राधा सावित्री वेदसूरपि।
वेदश्च जडतां याति को वा शक्ता विपश्चितः॥ १० ॥
वयं किं स्तवनं कुर्मः स्त्रियः प्राणेश्वरेश्वर।
प्रसन्नो भव नो देव दीनबन्धो कृपां कुरु॥ ११ ॥
विप्रपत्नीकृतं स्तोत्रं पूजाकाले च यः पठेत्।
स गतिं विप्रपत्नीनां लभते नात्र संशयः॥ १२ ॥
॥ इति श्री कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री कृष्ण स्तोत्र का हिंदी अनुवाद (Hindi translation of Shri Krishna Stotra)
आप ही परम ब्रह्म हैं, परम धाम हैं। आप न तो इच्छाओं से बंधे हैं और न ही अहंकार से।
आप निर्गुण भी हैं और साकार व सगुण स्वरूप भी स्वयं आप ही हैं॥ 1 ॥
आप ही साक्षी रूप में स्थित हैं, आप किसी भी कर्म में लिप्त नहीं होते। आप ही परमात्मा हैं, जो किसी रूप में नहीं बंधे।
आप ही प्रकृति (माया) और पुरुष (परमात्मा) दोनों हैं, और उन दोनों से भी परे हैं॥ 2 ॥
सृष्टि, स्थिति और प्रलय—इन तीन कार्यों से जुड़े जो तीन देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) कहे गए हैं,
वह सब आपके ही अंश हैं और समस्त सृजन के बीजस्वरूप हैं॥ 3 ॥
हे ईश्वर! जिनकी रोमकूपों से यह समस्त ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ है,
वह महान विराट पुरुष, महाविष्णु—आप ही उसके जनक हैं, हे प्रभु॥ 4 ॥
आप ही तेजस्वी तत्व हैं, आप ही ज्ञान हैं और आप ही ज्ञानी हैं।
आप वेदों में वर्णन के परे हैं, फिर भला कौन आपकी स्तुति करने में सक्षम है, हे ईश्वर?॥ 5 ॥
आप ही महान तत्वों और पाँच तन्मात्राओं (रूप, रस, गंध, स्पर्श, शब्द) के सृजनकर्ता हैं।
आप ही सभी शक्तियों के बीजस्वरूप और उनका आधार हैं॥ 6 ॥
आप समस्त शक्तियों के स्वामी हैं, आप ही स्वयंप्रकाश रूप हैं।
आप सदा सबका आधार हैं, आप निर्लिप्त, स्वयं प्रकाशित और सनातन आनंद स्वरूप हैं॥ 7 ॥
अहो! आप बिना आकार के होते हुए भी सभी रूपों वाले हैं।
आप सभी इंद्रियों के विषय को जानते हैं, परंतु स्वयं इंद्रिय-युक्त नहीं हैं॥ 8 ॥
जब आपके स्तोत्र का वर्णन होता है, तब सरस्वती भी मौन हो जाती हैं।
महेश (शिव), शेष, धर्म और स्वयं ब्रह्मा भी जड़ हो जाते हैं, अर्थात स्तुति करने में असमर्थ हो जाते हैं॥ 9 ॥
पार्वती, लक्ष्मी, राधा, सावित्री और वेदों के देवता भी,
आपका वर्णन करने में अक्षम हो जाते हैं, फिर ज्ञानी लोग भी क्या कर सकते हैं?॥ 10 ॥
हे प्राणियों के स्वामी, हम स्त्रियाँ आपका स्तवन क्या करें?
हे दीनों के बंधु! हे प्रभु! हम पर कृपा करें, प्रसन्न हों॥ 11 ॥
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को, जो कि ब्राह्मणों की पत्नियों द्वारा रचित है, पूजा के समय पढ़ता है,
वह उन ब्राह्मण-पत्नियों की ही गति को प्राप्त करता है—इसमें कोई संदेह नहीं॥ 12 ॥
॥ इति श्री कृष्ण स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
श्री कृष्ण स्तोत्र के लाभ (Benefits of Shri Krishna Stotra)
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र आत्मा को शुद्ध करता है और ईश्वर के प्रति भक्ति भाव को प्रगाढ़ करता है।
- मानसिक शांति: नियमित पाठ से तनाव, चिंता और भय कम होते हैं, जिससे मन शांत रहता है।
- सकारात्मक ऊर्जा: यह स्तोत्र नकारात्मकता को दूर कर जीवन में सकारात्मकता और उत्साह का संचार करता है।
- सफलता और समृद्धि: भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से जीवन में सफलता, समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।
- कष्टों से मुक्ति: यह स्तोत्र जीवन के कष्टों, बाधाओं और दुखों को दूर करने में सहायक है।
पाठ विधि (Vidhi)
- समय: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे) में पाठ करना सर्वोत्तम माना जाता है।
- स्थान: शांत और पवित्र स्थान चुनें, जहाँ ध्यान केंद्रित किया जा सके।
- स्नान और वस्त्र: पाठ से पूर्व स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- आसन: कुशा या ऊन के आसन पर उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- दीपक और धूप: भगवान श्रीकृष्ण के चित्र या मूर्ति के समक्ष दीपक और धूप जलाएं।
- माला: तुलसी की माला का उपयोग करके पाठ करें, जिससे जप की संख्या का ध्यान रखा जा सके।
- एकाग्रता: पाठ के दौरान मन को एकाग्र रखें और भगवान श्रीकृष्ण के स्वरूप का ध्यान करें।
जप संख्या और समय (Chanting number and time)
- जप संख्या: प्रत्येक दिन 108 बार जप करना शुभ माना जाता है।
- समय: ब्रह्म मुहूर्त (प्रातः 4 से 6 बजे) में जप करना अत्यंत फलदायी होता है।
- दिशा: उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके जप करें।
अन्य उपयोगी मंत्र (Other useful mantras)
- कृष्ण मूल मंत्र: “ॐ कृष्णाय नमः”
- लाभ: आध्यात्मिक जागृति, मानसिक शांति, और आत्म-साक्षात्कार में सहायक।
- हरे कृष्ण महा मंत्र: “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”
- लाभ: भक्ति भाव की वृद्धि, मन की शुद्धि, और मोक्ष की प्राप्ति।
- कृष्ण गायत्री मंत्र: “ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्”
- लाभ: ज्ञान की प्राप्ति, बुद्धि की तीव्रता, और आध्यात्मिक उन्नति।