कूर्म स्तोत्रम् भगवान विष्णु के कूर्म (कछुए) अवतार की स्तुति में रचित एक पवित्र स्तोत्र है। यह स्तोत्र भक्तों को आध्यात्मिक उन्नति, नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा और जीवन में स्थिरता प्रदान करने में सहायक माना जाता है।
इन्द्राक्षी स्तोत्र (Indrakshi Stotra)
भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को स्थिर रखने के लिए कूर्म (कछुए) का अवतार लिया था। इस अवतार में उन्होंने अपनी पीठ पर पर्वत को धारण किया, जिससे देवताओं और दैत्यों द्वारा समुद्र मंथन संभव हो सका। कूर्म स्तोत्रम् में भगवान के इस अवतार की महिमा का वर्णन किया गया है।
इन्द्रकृत श्रीकृष्ण स्तोत्र (Indra krut ShriKrishna Stotra)
कूर्म स्तोत्रम् (Kurma Stotram)
श्रीगणेशाय नमः
॥ देवा ऊचुः ॥
- नमामि ते देव पदारविन्दं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम् ।
यन्मूलहेतौ यतयोऽञ्जसोरुसंसारदुःखं बहिरुत्क्षिपन्ति ॥ १ ॥ - धातर्यदस्मिन् भव ईश जीवास्तापत्रयेणोपहता न शर्म ।
आत्माल्लभन्ते भगवंस्तवाङ्घ्रिच्छायां सविद्यामरमाश्रयेम ॥ २ ॥ - मार्गन्ति यत्ते मुखपद्मनीडैः छन्दःसुपर्णैरृषयो विविक्ते ।
यस्याघमर्षोदसरिद्वरायाः पदे पदं तीर्थपदं प्रपन्नाः ॥ ३ ॥ - यच्छ्रद्धया श्रुतवत्या च भक्त्या संसृज्यमाने हृदये विधाय ।
ज्ञानेन वैराग्यबलेन धीराः व्रजेम तत्तेङ्घ्रिसरोजपीठम् ॥ ४ ॥ - विश्वस्य जन्मस्थितिसंयमार्थे कृतावतारस्य पदांबुजं ते ।
व्रजेम सर्वे शरणं यदीश! स्मृतं प्रयच्छत्यभयं स्वपुंसाम् ॥ ५ ॥ - यस्य न बन्धेऽसति देहगेहे ममाहमित्यूढदुराग्रहाणाम् ।
पुंसां सुदूरं वसतो विपर्यां भजेम तत्ते भगवन् पदाब्जम् ॥ ६ ॥ - पानेन ते देव कथासुधायाः प्रवृद्धभक्त्या विशदाशया ये ।
वैराग्यसारं प्रतिलभ्य बोधं यथाञ्जसान्वीयुरकुण्ठधिष्ण्यम् ॥ ७ ॥ - तथापरे चात्मसमाधियोगबलेन जित्वा प्रकृतिं बलिष्ठां ।
त्वमेव धीराः पुरुषा विशन्ति तेषां श्रमः स्यान्न तु सेवया ते ॥ ८ ॥ - तत्ते वयं लोकसिसृक्षयाद्य त्वयानुसृष्टास्त्रिभिरात्मभिः स्म ।
सर्वे वियुक्ताः स्वविहारतन्त्रं न शक्नुमस्तत् प्रतिहर्तवे ते ॥ ९ ॥ - यावद्बलिं तेज हराम काले यथा वयञ्चान्नमदाम यत्र ।
तथोभयेषांत इमे हि लोका बलिं हरन्तोन्नमदन्त्यनूहाः ॥ १० ॥ - त्वं नः सुराणामसि सान्वयानां कूटस्थ आद्यः पुरुषः पुराणः ।
त्वं देवशक्त्यां गुणकर्मयोनौ रेतस्त्वजायां कविरादधेऽजः ॥ ११ ॥ - ततो वयं सत्प्रमुखा यदर्थे बभूविमात्मन् करवाम किं ते ।
त्वं नः स्वचक्षुः परिदेहि शक्त्या देवक्रियार्थे यदनुग्रहाणाम् ॥ १२ ॥
इंद्रकृत श्रीराम स्तोत्र (Indrakrit Shri Ram Stotra)
। इति श्रीमद्भागवतांतर्गतं कूर्मस्तोत्रं समाप्तम् ।
पाठ विधि (Lesson method)
- समय: सुबह या शाम के समय शांत वातावरण में।
- स्थान: स्वच्छ और पवित्र स्थान चुनें।
- संकल्प: पाठ से पूर्व भगवान कूर्म का ध्यान करें और संकल्प लें।
- पाठ: कूर्म स्तोत्रम् का श्रद्धा पूर्वक पाठ करें।
- मंत्र जाप: पाठ के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जाप करें. ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नमः
- आरती: अंत में भगवान कूर्म की आरती करें
आरूढा सरस्वती स्तोत्र (Arudha Saraswati Stotra)
लाभ (Benefit)
- नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा: यह स्तोत्र नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: पाठ से आत्मज्ञान और वैराग्य की भावना विकसित होती है।
- जीवन में स्थिरता: कूर्म अवतार स्थिरता का प्रतीक है, जिससे जीवन में संतुलन आता है।
- सुख-समृद्धि: पाठ से घर में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
आनंद लहरी स्तोत्र (Ananda Lahari Stotram)
जाप का समय (Chanting Time)
कूर्म स्तोत्रम् का जाप प्रातःकाल सूर्योदय के समय या संध्या के समय करना श्रेष्ठ माना जाता है। विशेष रूप से कूर्म जयंती के दिन इसका पाठ अत्यंत फलदायी होता है।
अहल्याक्रुता श्रीराम स्तोत्रं (Ahalya Kruta Sri Rama Stotram)

















































