काल भैरव, भगवान शिव के रौद्र रूप हैं, जिन्हें समय और मृत्यु के स्वामी के रूप में पूजा जाता है। उनकी आराधना से साधक को भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। काल भैरव तांडव स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो जीवन में साहस, आत्मबल और आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा रखते हैं।
ओम सिद्धि विनायकाय नमः (Om Siddhi Vinayakay Namah)
भैरव तांडव स्तोत्र (Kaal Bhairav Tandav Stotram)
अथ श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रम् ।
ॐ चण्डं प्रतिचण्डं करधृतदण्डं कृतरिपुखण्डं सौख्यकरं
लोकं सुखयन्तं विलसितवन्तं प्रकटितदन्तं नृत्यकरम् ।
डमरुध्वनिशङ्खं तरलवतंसं मधुरहसन्तं लोकभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं भैरववेषं कष्टहरम् ॥ १ ॥
चर्चितसिन्दूरं रणभूविदूरं दुष्टविदूरं श्रीनिकरं
किङ्किणिगणरावं त्रिभुवनपावं खर्प्परसावं पुण्यभरम् ।
करुणामयवेशं सकलसुरेशं मुक्तसुकेशं पापहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ २ ॥
कलिमलसंहारं मदनविहारं फणिपतिहारं शीघ्रकरं
कलुषं शमयन्तं परिभृतसन्तं मत्तदृगन्तं शुद्धतरम् ।
गतिनिन्दितकेशं नर्तनदेशं स्वच्छकशं सन्मुण्डकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ३ ॥
कठिनस्तनकुम्भं सुकृतं सुलभं कालीडिम्भं खड्गधरं
वृतभूतपिशाचं स्फुटमृदुवाचं स्निग्धसुकाचं भक्तभरम् ।
तनुभाजितशेषं विलमसुदेशं कष्टसुरेशं प्रीतिनरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेशं कष्टहरम् ॥ ४ ॥
ललिताननचन्द्रं सुमनवितन्द्रं बोधितमन्द्रं श्रेष्ठवरं
सुखिताखिललोकं परिगतशोकं शुद्धविलोकं पुष्टिकरम् ।
वरदाभयहारं तरलिततारं क्षुद्रविदारं तुष्टिकरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ५ ॥
सकलायुधभारं विजनविहारं सुश्रविशारं भ्रष्टमलं
शरणागतपालं मृगमदभालं सञ्जितकालं स्वेष्टबलम् ।
पदनूपूरसिञ्जं त्रिनयनकञ्जं गुणिजनरञ्जन कुष्टहरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ६ ॥
मर्दयितुसरावं प्रकटितभावं विश्वसुभावं ज्ञानपदं
रक्तांशुकजोषं परिकृततोषं नाशितदोषं सन्मतिदम् ।
कुटिलभ्रुकुटीकं ज्वरधननीकं विसरन्धीकं प्रेमभरं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ७ ॥
परिनिर्जितकामं विलसितवामं योगिजनाभं योगेशं
बहुमद्यपनाथं गीतसुगाथं कष्टसुनाथं वीरेशम् ।
कलयन्तमशेषं भृतजनदेशं नृत्यसुरेशं वीरेशं
भज भज भूतेशं प्रकटमहेशं श्रीभैरववेषं कष्टहरम् ॥ ८ ॥
॥ इति श्रीभैरवताण्डवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
रिद्धि सिद्धि प्रदाये श्री विघ्नेश्वराय नम: (Riddhi Siddhi Pradaye Shri Vighneshwaray Namah)
भैरव तांडव स्तोत्र का हिंदी अनुवाद:
जो चण्ड और प्रतिचण्ड (क्रूर शत्रुओं का विनाश करने वाले), हाथ में दण्ड (गदा) धारण करने वाले, शत्रुओं का नाश करने वाले, सुखदायक, तांडव नृत्य करने वाले और तेजस्वी भगवान हैं — ऐसे प्रकट महेश (भैरव) की आराधना करो। (1)
जो अपने शरीर पर सिंदूर लगाए हैं, रणभूमि में महान योद्धा हैं, दुष्टों से दूर हैं, पुण्य से युक्त हैं, जिनके गले में घंटियों की माला है और जो सभी पापों का नाश करते हैं — ऐसे भैरव की उपासना करो। (2)
जो कलियुग के दोषों का नाश करने वाले, काम को हराने वाले, भक्तों के प्रिय, पवित्र दृष्टि से युक्त और नृत्य करते समय तेजस्वी जटाएं धारण किए हुए हैं — ऐसे भैरव का भजन करो। (3)
जिनकी भुजाएं मजबूत हैं, जो काली माता के बालक जैसे हैं, खड्गधारी हैं, भूत-पिशाचों के साथ रहते हैं, कोमल भाषी हैं और भक्तों के संकटों का नाश करते हैं — ऐसे भैरव को नमस्कार करो। (4)
जिनका मुख चंद्रमा के समान सुंदर है, सुगंधित पुष्पों से सुशोभित हैं, गंभीर वाणी वाले, श्रेष्ठतम, शोकहर, पवित्र दृष्टि वाले और सभी को संतुष्टि देने वाले हैं — ऐसे भैरव को स्मरण करो। (5)
जो समस्त अस्त्र-शस्त्रों को धारण करते हैं, निर्जन स्थानों में विचरण करते हैं, शरणागतों के रक्षक, मस्तक पर चंदन व कस्तूरी लगाए हुए, तीन नेत्रों वाले और रोगनाशक हैं — उन भैरव को प्रणाम करो। (6)
जो शत्रु संहारक, भक्तों को प्रेम से अपनाने वाले, दोषविनाशक, ज्ञानदायक, तेजस्वी, रोग नाशक, करुणामय हैं — ऐसे महाबली भैरव की उपासना करो। (7)
जो काम से परे, योगियों के स्वामी, मद्यपान करने वाले, गीतों के प्रिय, भक्तों के दुख हरने वाले और तांडव में प्रवीण हैं — ऐसे वीरों के स्वामी भैरव को नमन करो। (8)
ओम सिद्धि वराय नमः (Om Siddhi Varaya Namah)
लाभ (Benefit)
- आत्मबल और साहस की वृद्धि: इस स्तोत्र का नियमित पाठ साधक में आत्मविश्वास और साहस का संचार करता है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों का सामना दृढ़ता से कर सकता है।
- नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: यह स्तोत्र साधक को बुरी नजर, तंत्र-मंत्र और अन्य नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- भय और मानसिक तनाव से मुक्ति: इसका पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है और भय, चिंता एवं तनाव को दूर करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह स्तोत्र साधक को आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर करता है और आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है।
- समृद्धि और सफलता: काल भैरव की कृपा से साधक को जीवन में समृद्धि, सफलता और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
ॐ अर्यमायै नमः (Om Aryamayai Namah)
पाठ विधि (Lesson method)
- स्थान: शांत और स्वच्छ स्थान पर, उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- समय: सुबह या शाम के समय, विशेषकर रविवार, अष्टमी या अमावस्या को पाठ करना शुभ माना जाता है।
- सामग्री: दीपक, अगरबत्ती, पुष्प, सिंदूर, नारियल, सरसों का तेल आदि से भगवान काल भैरव की पूजा करें।
- पाठ संख्या: प्रतिदिन एक बार पाठ करें। यदि संभव हो, तो माला का 11 या 108 बार जाप करें।
- विशेष ध्यान: पाठ के समय मन को एकाग्र रखें और भगवान काल भैरव के स्वरूप का ध्यान करें।
वाराही गायत्री मंत्र (Varahi Gayatri Mantra)
उपयुक्त समय (Suitable time)
- रविवार: राहुकाल (शाम 4:30 से 6:00 बजे) में पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
- अष्टमी और अमावस्या: इन तिथियों पर पाठ करने से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं।
- प्रत्येक दिन: यदि संभव हो, तो प्रतिदिन सुबह या शाम के समय पाठ करें।
Om Varahi Namaha (ॐ वाराही नमः)
Om Varahaya Namaha (ॐ वराहाय नमः)