महाकौतूहल दक्षिणकाली ह्रदय
यह दक्षिण काली स्तोत्र महाकाल द्वारा रचित एक अद्भुत स्तोत्र है, जिसका प्रभाव अत्यधिक शक्तिशाली माना जाता है। एक समय महाकाल ने प्रजापिता ब्रह्मा को दंडित करने के लिए उनका सिर काट दिया था, जिससे उन्हें ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए ही महाकाल ने इस स्तोत्र का निर्माण किया।
श्री कृष्णाष्टकम् – भजे व्रजैक मण्डनम् (Krishnashtakam – Bhaje Vrajaik Maṇḍanam)
जो व्यक्ति देवी की पूजा के बाद इस स्तोत्र का नियमित पाठ करता है, उसे ब्रह्महत्या के दोष से मुक्त किया जाता है। यह स्तोत्र न केवल ब्रह्महत्या के दोष से छुटकारा दिलाता है, बल्कि संकटों और कष्टों के समय इसका पाठ करने से सभी प्रकार की पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है।
श्री कृष्णाष्टकम् – वसुदेव सुतं देवंकंस (Shri Krishnashtakam)
इस स्तोत्र का प्रभावी पाठ व्यक्ति को मानसिक शांति, समृद्धि और सुख-शांति प्रदान करता है।
महाकालोवाच:
महाकौतूहलं स्तोत्रं हृदयाख्यं महोत्तमम् ।
श्रृणु प्रिये महागोप्यं दक्षिणायः श्रृणोपितम् ॥
अवाच्येमपि वक्ष्यामि तव प्रीत्या प्रकाशितं ।
अन्येभ्यः कुरु गोप्यं च सत्यं सत्यं च शैलजे ॥
भावार्थः महाकाल बोले, हे प्रिये! अति गोपनीय, चमत्कारी काली ह्रदय स्तोत्र का तुम श्रवण करो । दक्षिणदेवी ने अब तक इसे गुप्त रखा था । इस स्तोत्र को केवल तुम्हारे कारण मैं कह रहा हूं । हे शैलकुमारी ! तुम इसे उजागर मत करना ।
देव्युवाच:
कस्मिन् युगे समुत्पन्नं केन स्तोत्रं कृतं पुरा ।
तत्सर्वं कथ्यतां शंभो दयानिधि महेश्वरः ॥
भावार्थः देवी ने पूछा, हे प्रभो ! इस स्तोत्र की रचना किस काल में और किसके द्वारा हुई? वह सब कृपया मुझे बताएं ।
महाकालोवाच:
पुरा प्रजापते शीर्षच्छेदनं च कृतावहन् ।
ब्रह्महत्या कृतेः पापैर्भैंरवं च ममागतम् ॥
ब्रह्महत्या विनाशाय कृतं स्तोत्रं मयाप्रिये ।
कृत्या विनाशकं स्तोत्रं ब्रह्महत्यापहारकम् ॥
भावार्थः महाकाल बोले, हे देवी ! सृष्टि से पूर्व जब मैंने ब्रह्मा का शिरविच्छेद किया तो मुझे ब्रह्महत्या का दोष लगा और मैं भैरव रूप होय गया । ब्रह्महत्या दोष के निवारणार्थ सर्वप्रथम मैंने ही इस स्तोत्र का पाठ किया था।
विनियोग:
ॐ अस्य श्री दक्षिणकाल्या हृदय स्तोत्र मंत्रस्य श्री महाकाल ऋषिरुष्णिक्छन्दः, श्री दक्षिण कालिका देवता, क्रीं बीजं, ह्नीं शक्तिः, नमः कीलकं सर्वत्र सर्वदा जपे विनियोगः।
हृदयादि न्यास:
ॐ क्रां ह्रदयाय नमः । ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा । ॐ क्रूं शिखायै वषट्, ॐ क्रैं कवचाय हुं, ॐ क्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्, ॐ क्रः अस्त्राय फट् ।
ध्यान:
ॐ ध्यायेत्कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीं ।
चतुर्भुजां ललज्जिह्वां पुर्णचन्द्रनिभानवाम् ॥
नीलोत्पलदल प्रख्यां शत्रुसंघ विदारिणीम् ।
नरमुण्डं तथा खङ्गं कमलं वरदं तथा ॥
विभ्राणां रक्तवदनां दंष्ट्रालीं घोररूपिणीं ।
अट्टाटहासनिरतां सर्वदा च दिगम्बराम् ।
शवासन स्थितां देवीं मुण्डमाला विभूषिताम् ॥
अथ ह्रदय स्तोत्रम्:
ॐ कालिका घोर रूपाढ्यां सर्वकाम फलप्रदा ।
सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु में ॥
ह्नीं ह्नीं स्वरूपिणी श्रेष्ठा त्रिषु लेकेषु दुर्लभा ।
तव स्नेहान्मया ख्यातं न देयं यस्य कस्यचित् ॥
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि निशामय परात्मिके ।
यस्य विज्ञानमात्रेण जीवन्मुक्तो भविष्यति ॥
नागयज्ञोपवीताञ्च चन्द्रार्द्धकृत शेखराम् ।
जटाजूटाञ्च संचिन्त्य महाकात समीपगाम् ॥
एवं न्यासादयः सर्वे ये प्रकुर्वन्ति मानवाः ।
प्राप्नुवन्ति च ते मोक्षं सत्यं सत्यं वरानने ॥
यंत्रं श्रृणु परं देव्याः सर्वार्थ सिद्धिदायकम् ।
गोप्यं गोप्यतरं गोप्यं गोप्यं गोप्यतरं महत् ॥
त्रिकोणं पञ्चकं चाष्ट कमलं भूपुरान्वितम् ।
मुण्ड पंक्तिं च ज्वालं च काली यंत्रं सुसिद्धिदम् ॥
मंत्रं तु पूर्व कथितं धारयस्व सदा प्रिये ।
देव्या दक्षिण काल्यास्तु नाम मालां निशामय ॥
काली दक्षिण काली च कृष्णरूपा परात्मिका ।
मुण्डमाला विशालाक्षी सृष्टि संहारकारिका ॥
स्थितिरूपा महामाया योगनिद्रा भगात्मिका ।
भगसर्पि पानरता भगोद्योता भागाङ्गजा ॥
आद्या सदा नवा घोरा महातेजाः करालिका ।
प्रेतवाहा सिद्धिलक्ष्मीरनिरुद्धा सरस्वती ॥
एतानि नाममाल्यानि ए पठन्ति दिने दिने ।
तेषां दासस्य दासोऽहं सत्यं सत्यं महेश्वरि ॥
ॐ कालीं कालहरां देवीं कंकाल बीज रूपिणीम् ।
कालरूपां कलातीतां कालिकां दक्षिणां भजे ॥
कुण्डगोलप्रियां देवीं स्वयम्भू कुसुमे रताम् ।
रतिप्रियां महारौद्रीं कालिकां प्रणमाम्यहम् ॥
दूतीप्रियां महादूतीं दूतीं योगेश्वरीं पराम् ।
दूती योगोद्भवरतां दूतीरूपां नमाम्यहम् ॥
क्रीं मंत्रेण जलं जप्त्वा सप्तधा सेचनेच तु ।
सर्वे रोगा विनश्यन्ति नात्र कार्या विचारणा ॥
क्रीं स्वाहान्तैर्महामंत्रैश्चन्दनं साधयेत्ततः ।
तिलकं क्रियते प्राज्ञैर्लोको वश्यो भवेत्सदा ॥
क्रीं हूं ह्नीं मंत्रजप्तैश्च ह्यक्षतैः सप्तभिः प्रिये ।
महाभयविनाशश्च जायते नात्र संशयः ॥
क्रीं ह्नीं हूं स्वाहा मंत्रेण श्मशानाग्नि च मंत्रयेत् ।
शत्रोर्गृहे प्रतिक्षिप्त्वा शत्रोर्मृत्युर्भविष्यति ॥
हूं ह्नीं क्रीं चैव उच्चाटे पुष्पं संशोध्य सप्तधा ।
रिपूणां चैव चोच्चाटं नयत्येव न संशयः ॥
आकर्षणे च क्रीं क्रीं क्रीं जप्त्वाक्षतान् प्रतिक्षिपेत् ।
सहस्त्रजोजनस्था च शीघ्रमागच्छति प्रिये ॥
क्रीं क्रीं क्रीं ह्नूं ह्नूं ह्नीं ह्नीं च कज्जलं शोधितं तथा ।
तिलकेन जगन्मोहः सप्तधा मंत्रमाचरेत् ॥
ह्रदयं परमेशानि सर्वपापहरं परम् ।
अश्वमेधादि यज्ञानां कोटि कोटिगुणोत्तमम् ॥
कन्यादानादिदानां कोटि कोटि गुणं फलम् ।
दूती योगादियागानां कोटि कोटि फलं स्मृतम् ॥
गंगादि सर्व तीर्थानां फलं कोटि गुणं स्मृतम् ।
एकधा पाठमात्रेण सत्यं सत्यं मयोदितम् ॥
कौमारीस्वेष्टरूपेण पूजां कृत्वा विधानतः ।
पठेत्स्तोत्रं महेशानि जीवन्मुक्तः स उच्यते ॥
रजस्वलाभगं दृष्ट्वा पठदेकाग्र मानसः ।
लभते परमं स्थान देवी लोकं वरानने ॥
महादुःखे महारोगे महासंकटे दिने ।
महाभये महाघोरे पठेत्स्तोत्रं महोत्तमम् ॥
। सत्यं सत्यं पुनः सत्यं गोपयेन्मातृजारवत् ।
भावार्थः
शत्रुओं का नाश करनेवाली, प्रचंडरूपधारिणी, मनोकामना पूरी करनेवाली वह महाकाली ह्नीं ह्नीं स्वरूपा, सर्वोत्तमा तथा कठिन प्रयास से ही सुलभ होनेवाली हैं । हे पार्वती! उनका यह स्तोत्र तुम्हारे प्रति प्रीति होने के कारण ही कह राहा हूं। हे वरानेने! उन महाकाली का ध्यान करने से प्राणी भवबंधन मुक्त हो जाता है । उनका ध्यान इस प्रकार करना चाहिए-उन देवी ने सर्पों का जनेऊ धारण कर रखा है, शशि पर दूज का चंद्रमा है तथा जटाओं से युक्त महाकाल के निकट वह स्थित हैं । जो इस प्रकार ध्यान करता है वह निश्चित ही मोक्ष पाता है ।
हे शैलकुमारी ! उस देवी का यंत्र भी गोपनीय है । उसमें पंद्रह त्रिकोण, अष्टदल कमल व भूपुर हैं । तदोपरांत मुंडों की पंक्ति व ज्वाला है । महाकाली का यह यंत्र सिद्धिदाता है । मंत्र के बारे में पहले ही बता चुका हूं । अब नाम के बारे में बताता हूं ।
हे पार्वती ! उन देवी के नाम हैं-काली, दक्षिणकाली, कृष्णरूपा, परात्मिका
संकट कटै मिटे सब पीरा जो सुमिरै हनुमत बलबीरा (Sankat Kate Mite Sab Peera )
काली ह्रदय स्तोत्र के लाभ (Benefits of Kali Hrdaya Stotra):
- ब्रह्महत्या दोष से मुक्ति:
महाकाल ने इस स्तोत्र का निर्माण ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति के लिए किया था। यदि किसी व्यक्ति ने अनजाने में ब्रह्महत्या का दोष लिया है, तो इस स्तोत्र का पाठ उसे इस दोष से मुक्ति दिलाता है। - कष्टों का निवारण:
संकटकाल, दुःख, और कष्टों में इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है। यह व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि लाता है। - शत्रुओं का नाश:
यह स्तोत्र शत्रुओं का नाश करने में सहायक है। इसके पाठ से शत्रु शक्तिहीन हो जाते हैं और व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है। - आध्यात्मिक उन्नति:
नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है और वह परम शांति और मोक्ष की प्राप्ति करता है। - सिद्धियों की प्राप्ति:
यह स्तोत्र विभिन्न प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए भी पढ़ा जाता है। यह व्यक्ति को मानसिक शक्ति और दिव्य दृष्टि प्रदान करता है।
काली ह्रदय स्तोत्र की विधि (Method of Kali Hrdaya Stotra):
- स्वच्छ स्थान पर बैठकर ध्यान:
सबसे पहले एक स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठें। ध्यान के दौरान देवी काली की पूजा और ध्यान करें। - स्नान और साफ-सुथरे कपड़े पहनें:
इस स्तोत्र का पाठ शुद्धता के साथ करना चाहिए। स्नान करके पवित्र कपड़े पहनें और एक आसन पर बैठें। - मंत्र का उच्चारण:
इस स्तोत्र का पाठ करते समय ‘क्रीं’ और ‘ह्नीं’ जैसे शक्तिशाली मंत्रों का उच्चारण करें। यह मंत्र विशेष रूप से देवी काली के रूप और शक्ति से जुड़ा हुआ है। - ध्यान और सिद्धि:
ध्यान करते समय देवी काली की उपस्थिति की कल्पना करें। उनका रूप, वाहन, और दिव्य शक्तियों का ध्यान करके पाठ करें। - नियत समय पर पाठ:
इस स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन विशेष रूप से रात के समय या शरद पूर्णिमा जैसी विशेष रातों में करना अत्यधिक प्रभावी होता है।
काली ह्रदय स्तोत्र के साथ जुड़े अन्य ध्यान योग्य बातें:
- यह स्तोत्र अत्यंत गोपनीय और शक्तिशाली माना जाता है। इसे केवल योग्य व्यक्ति ही पढ़ें, क्योंकि इसके पाठ से शक्तिशाली परिणाम प्राप्त होते हैं।
- स्तोत्र का पाठ करते समय एकाग्रता और पवित्रता बनाए रखें।
- इसे एक बार पूरे ह्रदय से पढ़ने से अधिक लाभ होता है।
ॐ नीलकण्ठाय नमः मंत्र – भगवान शिव का दिव्य रक्षक रूप (OM NILAKANTHAYA NAMAH MANTRA)
समय:
- इस स्तोत्र को सुबह या शाम के समय, विशेष रूप से संकटकाल में पढ़ना शुभ माना जाता है।
- आदर्श रूप से इस स्तोत्र का 7 या 108 बार जप करें। यह विधि विशेष रूप से प्रभावी होती है।
काली बीज मंत्र(Kali Beej Mantra)