कामकला काली स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली तांत्रिक स्तोत्र है, जो देवी काली के “कामकला” स्वरूप को समर्पित है। इस स्तोत्र का पाठ साधक को आध्यात्मिक, मानसिक और भौतिक स्तर पर अनेक लाभ प्रदान करता है।
ऋणमोचन महागणपति स्तोत्र (Rinmochan Mahaganpati Stotra)
कामकला काली स्तोत्र:
अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १ ॥
विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या-
सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।
तदा कामकालीं स तुष्टाव
वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २ ॥
महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची-
परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।
चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले
शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३ ॥
महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः
करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।
भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं
समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४ ॥
महाकल्पकालान्तकादम्बिनी-
त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।
स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र-
ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५ ॥
लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि-
प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां
कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६ ॥
स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा-
सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।
मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां
महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७ ॥
निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो-
च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।
महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च-
ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८ ॥
चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त-
प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।
पदन्याससम्भारभीताहिराजा-
ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९ ॥
महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै-
स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।
पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां
तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १० ॥
लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग-
क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।
मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां
महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११ ॥
भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे
युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।
क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं
ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२ ॥
ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं
धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।
ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद-
वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३ ॥
अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं
तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।
शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे
महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४ ॥
चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं
लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।
शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं
पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५ ॥
प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं
ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।
फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं
तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६ ॥
ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं
तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।
जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त-
क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७ ॥
महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध
स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा-
वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८ ॥
महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त-
स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।
चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत-
त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९ ॥
पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा-
महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।
महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त-
स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २० ॥
वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि-
स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।
महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो-
ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१ ॥
सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं
जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।
स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु-
र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२ ॥
पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं
मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।
न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं
न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३ ॥
धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो
यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।
श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा
लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४ ॥
॥ इति कामकला काली स्तोत्र सम्पूर्णम् ॥
ऋणविमोचन नृसिंह स्तोत्र (Rinmochan Narsingh Stotra)
स्तोत्र का हिंदी अनुवाद
श्लोक 1:
अब मैं महेश्वरी देवी का उत्तम स्तोत्र कहता हूँ, जिसका स्मरण मात्र से विघ्न दूर हो जाते हैं।
श्लोक 2:
जब रावण ने देवताओं को जीतने के लिए प्रयास किया, तब उसने युद्ध में सभी को पराजित करने की इच्छा से कामकला काली की स्तुति की।
श्लोक 3:
वह देवी, जो रक्त की लहरों से श्मशान को धोती हैं, चिता की ज्वाला में तप्त जटाओं वाली हैं, शिव के शव पर विराजमान हैं।
श्लोक 4:
महाभैरवी, योगिनियों और डाकिनियों से घिरी हुई, कराल रूप वाली, मद्य, मांस और रक्त का सेवन करती हुई, हँसती हुई विचरण करती हैं।
श्लोक 5:
महाकल्प के अंत में प्रकट होने वाली, जिनका तेज बारह आदित्यों और कालाग्नि रुद्र से भी अधिक है, जिनकी दृष्टि सहन करने योग्य नहीं है।
श्लोक 6:
नीले पत्थर से बनी वेदी पर विराजमान, जिनकी जांघें स्थूल और सुडौल हैं, जिनकी छाती पर विशाल स्तन हैं, कमर पर द्वीप की खाल का उत्तरीय है।
श्लोक 7:
रक्त से सने नरमुंडों की माला पहने, रक्त की धाराओं से सने, मृत ब्राह्मणों के अंगों से सजी, अपने अट्टहास से जगत को भयभीत करती हैं।
श्लोक 8:
जिनके मुख से रक्त की धाराएँ बहती हैं, जिनकी दीर्घ दंतपंक्तियाँ हैं, जो अपनी जिह्वा से सब कुछ चाटती हैं।
श्लोक 9:
जिनके चरणों की गति से पृथ्वी कांपती है, जिनके केश सुव्यवस्थित हैं, जिनके पदचाप से सर्प भयभीत हो जाते हैं।
श्लोक 10:
महाभीषण, बीस मुखों और सत्ताईस नेत्रों वाली, जिनके मुख्य तीन मुखों में तीन नेत्र हैं, जो उज्ज्वल हैं।
श्लोक 11:
जिनके मुख सिंह, हाथी, गधा, भालू, पक्षी, ग्रह आदि के रूप में हैं, जिनकी जटाएँ विशाल और चमकदार हैं।
श्लोक 12:
जिनके बाएँ भाग में सत्ताईस भुजाएँ हैं, दाएँ में भी उतनी ही, जो क्रमशः रत्नमाला, कपाल, चर्म, पाश आदि धारण करती हैं।
श्लोक 13:
जो शक्ति, खट्वांग, मुण्ड, भुशुण्डी, धनुष, चक्र, घंटा, शिशु, प्रेत, शिला आदि धारण करती हैं।
श्लोक 14:
जो डमरु, पारिघ, भिन्दिपाल, मौशल, पट्टिश, प्राश, शतघ्नी, शिवापोतक, कर्त्ति, खड्ग आदि धारण करती हैं।
श्लोक 15:
जो अङ्कुश, दण्ड, रत्नकुम्भ, त्रिशूल, पाशुपत अस्त्र, पञ्चकुण्ड, पारिजात, छुरी, तोमर आदि धारण करती हैं।
श्लोक 16:
जो पुष्पमाला, डिण्डिम, गिद्ध, कोरक, मांस का टुकड़ा, श्रुव, फल, बीजपूर, सुई, परशु, गदा, यष्टि आदि धारण करती हैं।
श्लोक 17:
जो वज्रमुष्टि, कुणप्प, लालन आदि धारण करती हैं, जिनके चरणों में नूपुर हैं, जो सर्पों से सजी हैं।
श्लोक 18:
जिनकी नासिका विशाल है, जिनके सभी हाथों में कंगन हैं, जिनके अंगद आदि आभूषण हैं।
श्लोक 19:
जिनके शरीर पर धूसरता है, जो सर्पों से सजी हैं, जिनके वक्षस्थल पर यज्ञोपवीत है।
श्लोक 20:
जिनके कानों में ताटंक हैं, जो सर्पों से सजी हैं, जिनका शरीर मोहबीज से सुशोभित है।
श्लोक 21:
जिनके केशों में सर्पों की माला है, जिनकी जटाएँ विशाल हैं, जिनके मध्य में किङ्किणियों की माला है।
श्लोक 22:
मैं सदैव ऐसी कामकला काली का स्मरण करता हूँ, जिससे मैं देवताओं और असुरों पर विजय प्राप्त कर सकूँ।
श्लोक 23:
जो लोग इस स्तोत्र का पाठ करते हैं, उन्हें शोक, पाप, दुःख, मृत्यु, रोग, भय और आपत्ति नहीं होती।
लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram)
कामकला काली स्तोत्र के लाभ (Benefits of Kamakala Kali Stotra)
1. नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं से रक्षा
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को नकारात्मक शक्तियों, बुरी नजर, तांत्रिक प्रभाव और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है। यह कवच की तरह कार्य करता है, जो बाहरी और आंतरिक बाधाओं से रक्षा करता है।
2. आध्यात्मिक उन्नति और सिद्धियाँ
देवी काली के मंत्रों और स्तोत्रों का जप साधक को आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है। यह साधना साधक के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है और उसे सिद्धियाँ प्राप्त करने में सहायक होती है।
3. मन की शांति और आत्मबल में वृद्धि
इस स्तोत्र का पाठ करने से मन शांत होता है, आत्मविश्वास बढ़ता है और साधक को मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है। यह भय, चिंता और तनाव को दूर करने में सहायक है।
ग्रह दोषों और कुंडली दोषों का निवारण
कामकला काली स्तोत्र का पाठ शनि, राहु, केतु और मंगल ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करता है। यह पितृ दोष, कालसर्प दोष जैसी कुंडली की समस्याओं को हल करने में मदद करता है।
5. भौतिक सुख-संपत्ति और समृद्धि
देवी काली की कृपा से साधक को धन, दीर्घायु, सुख, बुद्धि, यश, स्त्री-संतान और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह स्तोत्र जीवन में सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति करता है।
ऋणमोचन अंगारक स्तोत्रम् (Rin Mochan Angaraka Stotram)
पाठ विधि
- समय: रात्रि काल में, विशेषकर अमावस्या या अष्टमी तिथि को।
- स्थान: शुद्ध और शांत स्थान, जैसे मंदिर या पूजा कक्ष।
- दीपक: सरसों के तेल का दीपक जलाएं।
- मंत्र जप: 21, 31, 41 या 51 बार स्तोत्र का पाठ करें।
- आसन: कुश या ऊन का आसन प्रयोग करें।
- नियम: पाठ के दौरान पूर्ण एकाग्रता और श्रद्धा बनाए रखें।
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