कल्कि स्तोत्रम् संस्कृत में
श्रीगणेशाय नमः ।
सुशान्तोवाच ।
१. जय हरेऽमराधीशसेवितं तव पदांबुजं भूरिभूषणम् ।
कुरु ममाग्रतः साधुसत्कृतं त्यज महामते मोहमात्मनः ॥
२. तव वपुर्जगद्रूपसम्पदा विरचितं सतां मानसे स्थितम् ।
रतिपतेर्मनो मोहदायकं कुरु विचेष्टितं कामलंपटम् ॥
३. तव यशोजगच्छोकनाशकं मृदुकथामृतं प्रीतिदायकम् ।
स्मितसुधोक्षितं चन्द्रवन्मुखं तव करोत्यलं लोकमङ्गलम् ॥
४. मम पतिस्त्वयं सर्वदुर्जयो यदि तवाप्रियं कर्मणाऽऽचरेत् ।
जहि तदात्मनः शत्रुमुद्यतं कुरु कृपां न चेदीदृगीश्वरः ॥
५. महदहंयुतं पञ्चमात्रया प्रकृतिजायया निर्मितं वपुः ।
तव निरीक्षणाल्लीलया जगत्स्थितिलयोदयं ब्रह्मकल्पितम् ॥
६. भूवियन्मरुद्वारितेजसां राशिभिः शरीरेन्द्रियाश्रितैः ।
त्रिगुणया स्वया मायया विभो कुरु कृपां भवत्सेवनार्थिनाम् ॥
७. तव गुणालयं नाम पावनं कलिमलापहं कीर्तयन्ति ये ।
भवभयक्षयं तापतापिता मुहुरहो जनाः संसरन्ति नो ॥
८. तव जनुः सतां मानवर्धनं जिनकुलक्षयं देवपालकम् ।
कृतयुगार्पकं धर्मपूरकं कलिकुलान्तकं शं तनोतु मे ॥
९. मम गृहं पतिपुत्रनप्तृकं गजरथैर्ध्वजैश्चामरैर्धनैः ।
मणिवरासनं सत्कृतिं विना तव पदाब्जयोः शोभयन्ति किम् ॥
१०. तव जगद्वपुः सुन्दरस्मितं मुखमनिन्दितं सुन्दरत्विषम् ।
यदि न मे प्रियं वल्गुचेष्टितं परिकरोत्यहो मृत्युरस्त्विह ॥
११. हयवर भयहर करहरशरणखरतरवरशर दशबलदमन ।
जय हतपरभरभववरनाशन शशधर शतसमरसभरमदन ॥
। इति श्रीकल्किपुराणे सुशान्ताकृतं कल्किस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
कल्कि स्तोत्रम् का हिंदी अनुवाद
श्रीगणेशाय नमः ।
सुशान्तोवाच:
1. हे हरि! अमराधीशों द्वारा सेवित आपके चरणकमल अत्यंत शोभायुक्त हैं। कृपया मेरे समक्ष उन्हें प्रकट करें और मेरी आत्मा से मोह को दूर करें।
2. आपका रूप सम्पूर्ण जगत की संपदा से निर्मित है और सत्पुरुषों के मन में स्थित है। यह कामदेव के मन को भी मोहित करने वाला है; कृपया इसे सुंदरता से सजाएं।
3. आपके यश से जगत का शोक नष्ट होता है; आपकी मधुर वाणी अमृत के समान है और आनंददायक है। आपका चंद्रमा के समान मुख और मधुर मुस्कान संसार के लिए कल्याणकारी है।
4. यदि आप मेरे पति हैं और कोई कार्य आपकी इच्छा के विरुद्ध हो, तो कृपया उस शत्रु को नष्ट करें और मुझ पर कृपा करें, यदि आप ऐसे ईश्वर हैं।
5. यह महान अहंकारयुक्त शरीर पंचमहाभूतों से प्रकृति द्वारा निर्मित है। आपकी दृष्टि से यह लीला रूप में जगत की सृष्टि, स्थिति और लय करता है, जिसे ब्रह्मा ने कल्पित किया है।
6. पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि से बने शरीर और इंद्रियों में स्थित त्रिगुणमयी माया से, हे प्रभो! कृपया आपकी सेवा के इच्छुकों पर कृपा करें।
7. जो लोग आपके गुणों से युक्त पावन नाम का कीर्तन करते हैं, वे कलियुग के दोषों से मुक्त होकर संसार के भय से छुटकारा पाते हैं और दुखों से पीड़ित नहीं होते।
8. आपका जन्म सत्पुरुषों के लिए कल्याणकारी, बौद्ध धर्म का नाशक, देवताओं का रक्षक, सत्ययुग की स्थापना करने वाला, धर्म की पूर्ति करने वाला और कलियुग का अंत करने वाला है; यह मुझे शुभ प्रदान करे।
9. मेरे घर में पति, पुत्र, पौत्र, हाथी, रथ, ध्वज, चंवर, धन, मणियों से युक्त आसन आदि बिना आपके चरणकमलों की सेवा के क्या शोभा देते हैं?
10. यदि आपका जगत रूप, सुंदर मुस्कान, निर्दोष मुख और सुंदर तेजस्विता मुझे प्रिय नहीं है, तो हे मृत्यु! मुझे अभी ले जाओ।
11. हे हयग्रीव! भय का नाश करने वाले, हाथों में शरण देने वाले, तीव्र बाणों से दशानन का वध करने वाले, पराजितों का उद्धार करने वाले, चंद्रमा के समान सौम्य, सौ युद्धों में विजयी, कामदेव के समान मनोहर—आपको जय हो!
। इति श्रीकल्किपुराणे सुशान्ताकृतं कल्किस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
कल्कि स्तोत्रम् के लाभ और विशेषताएँ
1. कलियुग के दोषों से मुक्ति: इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति कलियुग के पापों और दोषों से मुक्त होता है और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।
2. संसारिक भय और दुखों से राहत: यह स्तोत्र जीवन के भय, दुख और कष्टों को दूर करने में सहायक है, जिससे मनुष्य को मानसिक शांति मिलती है।
3. धर्म की पुनः स्थापना: भगवान कल्कि का अवतार अधर्म का नाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए होता है; अतः इस स्तोत्र का पाठ धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
4. भविष्य की आशा और विश्वास: यह स्तोत्र भविष्य में आने वाले कल्कि अवतार की महिमा का वर्णन करता है, जिससे भक्तों में आशा और विश्वास की भावना उत्पन्न होती है।
5. सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल: नियमित पाठ से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आत्मबल में वृद्धि होती है।