महाशिवरात्रि पर शिवजी को प्रसन्न करने का सर्वोत्तम उपाय – लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ
महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत पावन अवसर होता है। इस दिन श्रद्धापूर्वक लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन सुखमय और कष्टों से मुक्त हो जाता है।
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है। इस वर्ष महाशिवरात्रि आठ मार्च, शुक्रवार को मनाई जा रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और माता शक्ति का पावन मिलन हुआ था। वहीं, ‘ईशान संहिता’ के अनुसार इसी दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव दिव्य ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। ‘शिवपुराण’ में वर्णित कथा के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह कर वैराग्य जीवन त्यागकर गृहस्थ जीवन को अपनाया था।
इस शुभ अवसर पर विधिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवजी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ अवश्य करें।
लिंगाष्टकम स्तोत्र (Lingashtakam Stotram)
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
लिंगाष्टकम स्तोत्र – संस्कृत मूलपाठ सहित सरल हिंदी अनुवाद (Lingashtakam Stotra – Simple Hindi translation with Sanskrit original text)
(भगवान शिव के दिव्य लिंग स्वरूप की स्तुति करने वाला स्तोत्र)
जो भी भक्त श्रद्धा से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है और अंत में शिवलोक में स्थान प्राप्त होता है।
श्लोक १:
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम्। जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥१॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु (मुरारी) और देवताओं द्वारा पूजित है, जो पवित्र प्रकाश से शोभायमान है, जो जन्म और उसके दुखों का नाश करता है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक २:
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम्। रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥२॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग देवताओं और महान ऋषियों द्वारा पूजित है, जो काम (वासनाओं) का नाश करता है और करुणा से भरपूर है, जो रावण के अहंकार को नष्ट करने वाला है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ३:
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम्। सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥३॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग सुगंधित द्रव्यों से अर्चित है, जो बुद्धि को बढ़ाने वाला है, जिसे सिद्ध, देवता और असुर भी वंदन करते हैं – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ४:
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम्। दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥४॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग सोने और रत्नों से अलंकृत है, जो नागराज (शेषनाग) से सुशोभित है, जो दक्ष के अहंकारपूर्ण यज्ञ को नष्ट करने वाला है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ५:
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम्। सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥५॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग कुमकुम और चंदन से लेपित है, जो कमल के हार से सुशोभित है, जो संचित पापों का नाश करता है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ६:
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम्। दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥६॥
हिंदी अर्थ: जिस लिंग की पूजा देवगण और भक्तिभाव से भक्त करते हैं, जो करोड़ों सूर्यों की तरह प्रकाशमान है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ७:
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम्। अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥७॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग अष्टदल कमल से घिरा है, जो समस्त सृष्टि का कारण है, जो आठ प्रकार की दरिद्रताओं का नाश करता है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
श्लोक ८:
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम्। परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम्॥८॥
हिंदी अर्थ: जो लिंग देवराजों और गुरु बृहस्पति द्वारा पूजित है, जो स्वर्गीय पुष्पों से सदा अर्चित रहता है, जो परात्पर और परमात्मा स्वरूप है – ऐसे सदा शिवलिंग को मैं नमन करता हूँ।
फलश्रुति (पाठ का फल):
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ। शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
हिंदी अर्थ: जो भक्त इस पुण्य लिंगाष्टक स्तोत्र का शिवजी की उपस्थिति में पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता है और सदा शिवजी के साथ आनंदपूर्वक रहता है।
महाशिवरात्रि पूजन विधि:
- प्रात: स्नान और संकल्प:
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
संकल्प मंत्र –
“मम इह जन्मनि जन्मान्तरेवार्जित सकल पाप क्षयार्थं, आयुरारोग्य-ऐश्वर्य-पुत्र-पौत्रादि सकल कामना सिद्ध्यर्थं, अन्ते शिवसायुज्य प्राप्तये, शिवरात्रिव्रतं करिष्ये।” - पूजन सामग्री एकत्र करें:
यदि संभव हो तो शिव मंदिर जाएं या घर पर नर्मदेश्वर शिवलिंग या पार्थिव शिवलिंग स्थापित करें। - षोडशोपचार पूजा:
शिवलिंग की षोडशोपचार विधि से पूजा करें। बेलपत्र, आक, कनेर, धतूरा, कटेली आदि अर्पित करें। - मंत्र जप और पाठ:
शिवपुराण, रुद्री पाठ, शिवमहिम्न स्तोत्र, लिंगाष्टकम और अन्य शिव स्तोत्रों का पाठ करें। - रुद्राभिषेक (यदि संभव हो):
दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल आदि से शिवलिंग का रुद्राभिषेक करें। - रात्रि जागरण:
रात्रि को जागरण करें और भजन-कीर्तन में भाग लें। - दूसरे दिन यज्ञ एवं व्रत पारण:
अगले दिन सुबह शिव पूजन के बाद “त्र्यम्बकं यजामहे” या “ॐ नम: शिवाय” मंत्र से 108 आहुतियाँ दें।
ब्राह्मणों या शिवभक्तों को भोजन कराकर दक्षिणा दें।
अंत में स्वयं भोजन कर व्रत का पारण करें।