“ऋणमोचन स्तोत्र” एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है जो भगवान मंगल (अंगारक) को समर्पित है। मंगल ग्रह को वैदिक ज्योतिष में ऋण, रोग, दरिद्रता, और शत्रु बाधा का कारक माना गया है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयोगी है जो कर्ज़ से परेशान हैं, आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहे हैं या मंगल ग्रह की अशुभ स्थिति (मंगल दोष) से प्रभावित हैं।
भगवान मंगल को भूमिपुत्र, अंगारक, भौम, कुज, और धरणीगर्भसम्भूत जैसे कई नामों से पुकारा जाता है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करने से व्यक्ति को ऋण से मुक्ति, धन की प्राप्ति, शत्रु भय से रक्षा, और सुख-शांति मिलती है।
ऋणमोचन स्तोत्र (Rinmochan Stotra)
मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः।
स्थिरामनो महाकायः सर्वकर्मविरोधकः।।
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरं।
वैरात्मजः कुजो भौमो भूतिदो भूमिनंदनः।।
धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्।।
अंगारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः।
वृष्टेः कर्ताऽपहर्ता च सर्वकामफलप्रदः।।
एतानि कुजनामानि नित्यं यः श्रद्धया पठेत्।
ऋणं न जायते तस्य धनं शीघ्रमवाप्नुयात्।।
स्तोत्रमंगारकस्यैतत्पठनीयं सदा नृभिः।
न तेषां भौमजा पीडा स्वल्पाऽपि भवति क्वचित्।।
अंगारको महाभाग भगवन् भक्तवत्सल।
त्वां नमामि ममाशेषमृणमाशु विनाशय।।
ऋणरोगादिदारिद्र्यं ये चान्ये ह्यपमृत्यवः।
भयक्लेश मनस्तापाः नश्यन्तु मम सर्वदा।।
अतिवक्र दुराराध्य भोगमुक्तजितात्मनः।
तुष्टो ददासि साम्राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।
विरञ्चि शक्रादिविष्णूनां मनुष्याणां तु का कथा।
तेन त्वं सर्वसत्त्वेन ग्रहराजो महाबलः।।
पुत्रान्देहि धनं देहि त्वामस्मि शरणं गतः।
ऋणदारिद्र्यं दुःखेन शत्रुणां च भयात्ततः।।
एभिर्द्वादशभिः श्लोकैर्यः स्तौति च धरासुतम्।
महतीं श्रियमाप्नोति ह्यपरा धनदो युवा।।
ऋणमोचन स्तोत्र” का हिन्दी अर्थ (Hindi meaning of “Ranmochan Stotra”)
भगवान मंगल, जो पृथ्वी के पुत्र हैं, ऋण का नाश करने वाले और धन प्रदान करने वाले हैं। उनका मन स्थिर है, वे विशाल शरीर वाले हैं और सभी नकारात्मक कर्मों को रोकने की शक्ति रखते हैं। (1)
उनका रंग लाल है, उनकी आँखें भी लाल हैं, वे सामवेद के ज्ञान में कुशल और कृपा करने वाले हैं। वे वैर नामक असुर के पुत्र हैं, कुज (मंगल), भौम (पृथ्वी के पुत्र), और संपत्ति देने वाले भूमिनंदन हैं। (2)
जो धरती के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं, बिजली के समान चमकते हैं, कुमार स्वरूप हैं और जिनके हाथ में शक्ति (शस्त्र) है – ऐसे मंगल देव को मैं प्रणाम करता हूँ। (3)
अंगारक (मंगल देव) यमराज के समान हैं, सभी रोगों को दूर करने वाले हैं। ये वर्षा कराने और रोकने वाले हैं, और सभी इच्छाओं को फल देने की क्षमता रखते हैं। (4)
जो व्यक्ति श्रद्धा से प्रतिदिन मंगल देव के इन नामों का जप करता है, उस पर कभी ऋण नहीं चढ़ता और वह शीघ्र ही धन प्राप्त करता है। (5)
मनुष्यों को यह अंगारक (मंगल) का स्तोत्र सदा पढ़ना चाहिए। जो इसे पढ़ते हैं, उन्हें मंगल ग्रह से उत्पन्न कोई भी पीड़ा कभी नहीं होती। (6)
हे अंगारक देव! आप अत्यंत सौभाग्यशाली और भक्तों पर स्नेह करने वाले हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूँ, कृपया मेरे समस्त ऋण शीघ्र समाप्त कर दीजिए। (7)
ऋण, रोग, दरिद्रता, अकाल मृत्यु, भय, क्लेश और मानसिक दुख – ये सभी मेरी जिंदगी से सदा के लिए नष्ट हो जाएं। (8)
आपका स्वभाव कुछ टेढ़ा है, आप कठिन साध्य हैं, भोगों से मुक्त हैं और आत्मसंयमी हैं। यदि प्रसन्न हों तो साम्राज्य भी दे सकते हैं, और यदि रुष्ट हो जाएँ तो वह तुरंत छीन भी सकते हैं। (9)
जब ब्रह्मा, इन्द्र, विष्णु आदि देवता भी आपके प्रभाव से नहीं बच सकते, तो मनुष्य की क्या बिसात! आप सभी ग्रहों के राजा हैं और अत्यंत शक्तिशाली हैं। (10)
हे प्रभु! मुझे संतान दीजिए, धन दीजिए, मैं आपकी शरण में आया हूँ। कृपया मुझे ऋण, दरिद्रता, दुख और शत्रुओं के भय से मुक्त करें। (11)
जो व्यक्ति इन बारह श्लोकों से धरती पुत्र मंगल देव की स्तुति करता है, वह महान ऐश्वर्य और धन प्राप्त करता है, और सदैव यशस्वी और युवा बना रहता है। (12)