ऋणमोचन अंगारक स्तोत्रम् एक पवित्र संस्कृत स्तोत्र है, जो भगवान अंगारक को समर्पित है, जिन्हें हिंदू ज्योतिष और पुराणों में मंगल ग्रह अथवा मंगला के नाम से भी जाना जाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन भक्तों द्वारा श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है जो अपने जीवन से ऋणभार को दूर करना चाहते हैं और कुंडली में स्थित अशुभ मंगल के प्रभाव को शांत करना चाहते हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस स्तोत्र का नियमित एवं निष्ठापूर्वक जप करने से आर्थिक बाधाएँ, ऋण से जुड़ी समस्याएँ तथा मंगल ग्रह से संबंधित अन्य कष्टों का निवारण संभव होता है। साथ ही, भगवान अंगारक की कृपा से जीवन में ऊर्जा, साहस और स्थिरता की प्राप्ति होती है।
ऋणमोचन अङ्गारक स्तोत्रम्
अथ ऋणग्रस्तस्य ऋणविमोचनार्थं अङ्गारकस्तोत्रम्
स्कन्द उवाच –
ऋणग्रस्तनराणां तु ऋणमुक्तिः कथं भवेत् ।
ब्रह्मोवाच –
वक्ष्येऽहं सर्वलोकानां हितार्थं हितकामदम् ।
अस्य श्री अङ्गारकमहामन्त्रस्य गौतम ऋषिः ।
अङ्गारको देवता ।
मम ऋणविमोचनार्थे अङ्गारकमन्त्रजपे विनियोगः ।
ध्यानम्
रक्तमाल्याम्बरधरः शूलशक्तिगदाधरः ।
चतुर्भुजो मेषगतो वरदश्च धरासुतः ॥ १॥
मङ्गलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रदः ।
स्थिरासनो महाकायो सर्वकामफलप्रदः ॥ २॥
लोहितो लोहिताक्षश्च सामगानां कृपाकरः ।
धरात्मजः कुजो भौमो भूमिदो भूमिनन्दनः ॥ ३॥
अङ्गारको यमश्चैव सर्वरोगापहारकः ।
सृष्टेः कर्ता च हर्ता च सर्वदेशैश्च पूजितः ॥ ४॥
एतानि कुजनामानि नित्यं यः प्रयतः पठेत् ।
ऋणं न जायते तस्य श्रियं प्राप्नोत्यसंशयः ॥ ५॥
अङ्गारक महीपुत्र भगवन् भक्तवत्सल ।
नमोऽस्तु ते ममाशेषं ऋणमाशु विनाशय ॥ ६॥
रक्तगन्धैश्च पुष्पैश्च धूपदीपैर्गुडोदनैः ।
मङ्गलं पूजयित्वा तु मङ्गलाहनि सर्वदा ॥ ७॥
एकविंशति नामानि पठित्वा तु तदन्तिके ।
ऋणरेखा प्रकर्तव्या अङ्गारेण तदग्रतः ॥ ८॥
ताश्च प्रमार्जयेन्नित्यं वामपादेन संस्मरन् ।
एवं कृते न सन्देहः ऋणान्मुक्तः सुखी भवेत् ॥ ९॥
महतीं श्रियमाप्नोति धनदेन समो भवेत् ।
भूमिं च लभते विद्वान् पुत्रानायुश्च विन्दति ॥ १०॥
मूलमन्त्रः
अङ्गारक महीपुत्र भगवन् भक्तवत्सल ।
नमस्तेऽस्तु महाभाग ऋणमाशु विनाशय ॥ ११॥
अर्घ्यम्
भूमिपुत्र महातेजः स्वेदोद्भव पिनाकिनः ।
ऋणार्थस्त्वां प्रपन्नोऽस्मि गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥ १२॥
॥ इति ऋणमोचन अङ्गारकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
ऋणमोचन अङ्गारक स्तोत्रम् हिंदी
(ऋण से मुक्ति के लिए अङ्गारक स्तोत्र का पाठ)
स्कंद ने पूछा –
ऋण से ग्रस्त मनुष्यों की ऋणमुक्ति कैसे हो सकती है?
ब्रह्मा जी ने कहा –
मैं सब लोकों के हित के लिए एक ऐसा कल्याणकारी और इच्छापूर्ति करने वाला स्तोत्र बताता हूँ।
इस श्री अङ्गारक महामंत्र के ऋषि गौतम हैं, देवता अङ्गारक (मंगल देव) हैं।
यह मंत्र मेरे ऋण से मुक्ति हेतु अङ्गारक मंत्र जाप के लिए विनियोग किया जाता है।
ध्यानम् (ध्यान श्लोक)
१.
जो रक्तमाला और लाल वस्त्र धारण करते हैं,
शूल (त्रिशूल), शक्ति (भाला), और गदा धारण करते हैं,
चार भुजाओं वाले, मेष (भेड़) पर आरूढ़, वरदान देने वाले,
और धरती के पुत्र (मंगल) हैं – मैं ऐसे भगवान अङ्गारक का ध्यान करता हूँ।
२.
मंगल, भूमिपुत्र, ऋणहरण करने वाले और धन देने वाले हैं।
वे स्थिर भाव वाले, विशाल शरीर वाले और सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं।
३.
वे लाल वर्ण वाले, लाल नेत्रों वाले, सामवेद के गायक और करुणा करने वाले हैं।
वे धरती के पुत्र, कुज, भौम, भूमि को देने वाले और भूमिनन्दन हैं।
४.
अङ्गारक, यम के समान, सभी रोगों को दूर करने वाले,
सृष्टि के कर्ता और संहारक, तथा सभी देशों में पूजित हैं।
५.
जो कोई श्रद्धा और नित्य इन मंगल के नामों का जाप करता है,
उसे कभी ऋण नहीं होता और वह निस्संदेह संपत्ति प्राप्त करता है।
मूल स्तोत्र
६.
हे अङ्गारक! हे भूमिपुत्र! हे भक्तवत्सल भगवान!
आपको बारंबार नमस्कार है – कृपया मेरा समस्त ऋण शीघ्र नष्ट कीजिए।
७.
लाल चंदन, पुष्पों, धूप, दीप और गुड़ से बने भोजन द्वारा
मंगलवार के दिन सदा मंगल (मंगलदेव) की पूजा करनी चाहिए।
८.
जब 21 नामों का पाठ किया जाए, तब मंगल की मूर्ति के समक्ष
ऋण रेखा (ऋण का प्रतीक चिह्न) अङ्गार (लाल मिट्टी या रोली) से बनाई जानी चाहिए।
९.
फिर उस रेखा को बाएँ पैर से स्मरण करते हुए मिटा देना चाहिए।
ऐसा करने से निःसंदेह व्यक्ति ऋण से मुक्त होकर सुखी होता है।
१०.
वह महान् धन-संपत्ति प्राप्त करता है, कुबेर के समान बन जाता है,
भूमि प्राप्त करता है, विद्वान बनता है, पुत्र एवं दीर्घायु को प्राप्त करता है।
मूल मंत्रः
११.
“अङ्गारक महीपुत्र भगवन् भक्तवत्सल ।
नमस्तेऽस्तु महाभाग ऋणमाशु विनाशय ॥”
(हे अङ्गारक! हे भूमिपुत्र! हे भक्तों पर स्नेह रखने वाले भगवान!
आपको नमस्कार है – कृपया मेरा ऋण शीघ्र समाप्त करें।)
अर्घ्य मंत्रः
१२.
हे भूमिपुत्र! हे महान तेजस्वी! हे स्वेद से उत्पन्न, और पिनाकधारी शिव के स्वरूप!
मैं ऋण से मुक्ति पाने की इच्छा से आपकी शरण में आया हूँ – यह अर्घ्य स्वीकार करें, आपको नमस्कार है।
॥ ऋणमोचन अङ्गारक स्तोत्र पूर्ण हुआ ॥