श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम् भगवान श्री राम की महिमा का वर्णन करने वाला एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो भक्तों को जीवन के कठिन संकटों से उबारने की शक्ति प्रदान करता है। यह स्तोत्र न केवल नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों का नाश करता है, बल्कि आंतरिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति भी प्रदान करता है।
भगवान राम के पावन नाम – राघव, जानकीनाथ, दशरथनंदन, कोसलपति – का स्मरण करने से भक्तों को भय, संकट और पापों से मुक्ति मिलती है। श्री राम का स्मरण जीवन में सफलता, समृद्धि, सुख और शांति को आकर्षित करता है। यह स्तोत्र हमें धर्म, सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है, जिससे हमारा जीवन सकारात्मकता और दिव्यता से भर जाता है।
कलियुग में, जहां असत्य, अधर्म और अशांति का प्रभाव बढ़ रहा है, भगवान श्री राम की आराधना भक्तों को इस युग के दोषों से मुक्त करके मोक्ष का मार्ग दिखाती है। श्री हरि विष्णु के अवतार, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का यह स्तोत्र हर भक्त के जीवन में अपार कृपा और आशीर्वाद लेकर आता है।
श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम् (Shri Ram Apaduddharaka Stotram)
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥
नमः कोदंडहस्ताय संधीकृतशराय च ।
दंडिताखिलदैत्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 1 ॥
आपन्नजनरक्षैकदीक्षायामिततेजसे ।
नमोऽस्तु विष्णवे तुभ्यं रामायापन्निवारिणे ॥ 2 ॥
पदांभोजरजस्स्पर्शपवित्रमुनियोषिते ।
नमोऽस्तु सीतापतये रामायापन्निवारिणे ॥ 3 ॥
दानवेंद्रमहामत्तगजपंचास्यरूपिणे ।
नमोऽस्तु रघुनाथाय रामायापन्निवारिणे ॥ 4 ॥
महिजाकुचसंलग्नकुंकुमारुणवक्षसे ।
नमः कल्याणरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 5 ॥
पद्मसंभव भूतेश मुनिसंस्तुतकीर्तये ।
नमो मार्तांडवंश्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 6 ॥
हरत्यार्तिं च लोकानां यो वा मधुनिषूदनः ।
नमोऽस्तु हरये तुभ्यं रामायापन्निवारिणे ॥ 7 ॥
तापकारणसंसारगजसिंहस्वरूपिणे ।
नमो वेदांतवेद्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 8 ॥
रंगत्तरंगजलधिगर्वहृच्छरधारिणे ।
नमः प्रतापरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 9 ॥
दारोपहितचंद्रावतंसध्यातस्वमूर्तये ।
नमः सत्यस्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 10 ॥
तारानायकसंकाशवदनाय महौजसे ।
नमोऽस्तु ताटकाहंत्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 11 ॥
रम्यसानुलसच्चित्रकूटाश्रमविहारिणे ।
नमः सौमित्रिसेव्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 12 ॥
सर्वदेवहितासक्त दशाननविनाशिने ।
नमोऽस्तु दुःखध्वंसाय रामायापन्निवारिणे ॥ 13 ॥
रत्नसानुनिवासैक वंद्यपादांबुजाय च ।
नमस्त्रैलोक्यनाथाय रामायापन्निवारिणे ॥ 14 ॥
संसारबंधमोक्षैकहेतुधामप्रकाशिने ।
नमः कलुषसंहर्त्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 15 ॥
पवनाशुग संक्षिप्त मारीचादि सुरारये ।
नमो मखपरित्रात्रे रामायापन्निवारिणे ॥ 16 ॥
दांभिकेतरभक्तौघमहदानंददायिने ।
नमः कमलनेत्राय रामायापन्निवारिणे ॥ 17 ॥
लोकत्रयोद्वेगकर कुंभकर्णशिरश्छिदे ।
नमो नीरददेहाय रामायापन्निवारिणे ॥ 18 ॥
काकासुरैकनयनहरल्लीलास्त्रधारिणे ।
नमो भक्तैकवेद्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 19 ॥
भिक्षुरूपसमाक्रांत बलिसर्वैकसंपदे ।
नमो वामनरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 20 ॥
राजीवनेत्रसुस्पंद रुचिरांगसुरोचिषे ।
नमः कैवल्यनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 21 ॥
मंदमारुतसंवीत मंदारद्रुमवासिने ।
नमः पल्लवपादाय रामायापन्निवारिणे ॥ 22 ॥
श्रीकंठचापदलनधुरीणबलबाहवे ।
नमः सीतानुषक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 23 ॥
राजराजसुहृद्योषार्चित मंगलमूर्तये ।
नम इक्ष्वाकुवंश्याय रामायापन्निवारिणे ॥ 24 ॥
मंजुलादर्शविप्रेक्षणोत्सुकैकविलासिने ।
नमः पालितभक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 25 ॥
भूरिभूधर कोदंडमूर्ति ध्येयस्वरूपिणे ।
नमोऽस्तु तेजोनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 26 ॥
योगींद्रहृत्सरोजातमधुपाय महात्मने ।
नमो राजाधिराजाय रामायापन्निवारिणे ॥ 27 ॥
भूवराहस्वरूपाय नमो भूरिप्रदायिने ।
नमो हिरण्यगर्भाय रामायापन्निवारिणे ॥ 28 ॥
योषांजलिविनिर्मुक्त लाजांचितवपुष्मते ।
नमः सौंदर्यनिधये रामायापन्निवारिणे ॥ 29 ॥
नखकोटिविनिर्भिन्नदैत्याधिपतिवक्षसे ।
नमो नृसिंहरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 30 ॥
मायामानुषदेहाय वेदोद्धरणहेतवे ।
नमोऽस्तु मत्स्यरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 31 ॥
मितिशून्य महादिव्यमहिम्ने मानितात्मने ।
नमो ब्रह्मस्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 32 ॥
अहंकारेतरजन स्वांतसौधविहारिणे ।
नमोऽस्तु चित्स्वरूपाय रामायापन्निवारिणे ॥ 33 ॥
सीतालक्ष्मणसंशोभिपार्श्वाय परमात्मने ।
नमः पट्टाभिषिक्ताय रामायापन्निवारिणे ॥ 34 ॥
अग्रतः पृष्ठतश्चैव पार्श्वतश्च महाबलौ ।
आकर्णपूर्णधन्वानौ रक्षेतां रामलक्ष्मणौ ॥ 35 ॥
सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
तिष्ठन्ममाग्रतो नित्यं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥ 36 ॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥
फलश्रुति
इमं स्तवं भगवतः पठेद्यः प्रीतमानसः ।
प्रभाते वा प्रदोषे वा रामस्य परमात्मनः ॥ 1 ॥
स तु तीर्त्वा भवांबोधिमापदस्सकलानपि ।
रामसायुज्यमाप्नोति देवदेवप्रसादतः ॥ 2 ॥
कारागृहादिबाधासु संप्राप्ते बहुसंकटे ।
आपन्निवारकस्तोत्रं पठेद्यस्तु यथाविधिः ॥ 3 ॥
संयोज्यानुष्टुभं मंत्रमनुश्लोकं स्मरन्विभुम् ।
सप्ताहात्सर्वबाधाभ्यो मुच्यते नात्र संशयः ॥ 4 ॥
द्वात्रिंशद्वारजपतः प्रत्यहं तु दृढव्रतः ।
वैशाखे भानुमालोक्य प्रत्यहं शतसंख्यया ॥ 5 ॥
धनवान् धनदप्रख्यस्स भवेन्नात्र संशयः ।
बहुनात्र किमुक्तेन यं यं कामयते नरः ॥ 6 ॥
तं तं काममवाप्नोति स्तोत्रेणानेन मानवः ।
यंत्रपूजाविधानेन जपहोमादितर्पणैः ॥ 7 ॥
यस्तु कुर्वीत सहसा सर्वान्कामानवाप्नुयात् ।
इह लोके सुखी भूत्वा परे मुक्तो भविष्यति ॥ 8 ॥
श्री राम आपदुद्धारक स्तोत्रम् – हिंदी अर्थ सहित
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥1॥
अर्थ:
जो सभी आपदाओं (संकटों) को हरने वाले हैं और सभी प्रकार की संपत्तियाँ एवं समृद्धि प्रदान करते हैं, जो संपूर्ण लोकों के लिए प्रिय हैं, उन श्रीराम को बार-बार प्रणाम करता हूँ।
नमः कोदंडहस्ताय संधीकृतशराय च।
दंडिताखिलदैत्याय रामायापन्निवारिणे॥2॥
अर्थ:
जो अपने हाथों में कोदंड धनुष धारण करते हैं, जो शत्रुओं का संहार करने के लिए बाण संधान करते हैं, और जिन्होंने सभी दुष्ट राक्षसों का दंडन किया है, उन संकटमोचक श्रीराम को नमन।
आपन्नजनरक्षैकदीक्षायामिततेजसे।
नमोऽस्तु विष्णवे तुभ्यं रामायापन्निवारिणे॥3॥
अर्थ:
जो संकटग्रस्त लोगों की रक्षा करने के लिए ही व्रत धारण करते हैं और जिनका तेज अपार है, उन भगवान विष्णु के अवतार, संकटों को दूर करने वाले श्रीराम को प्रणाम।
पदांभोजरजस्स्पर्शपवित्रमुनियोषिते।
नमोऽस्तु सीतापतये रामायापन्निवारिणे॥4॥
अर्थ:
जिनके चरण-कमल के धूलिकण के स्पर्श से मुनियों की पत्नियाँ भी पवित्र हो गईं, उन भगवती सीता के पति, संकटों को हरने वाले श्रीराम को नमन।
दानवेंद्रमहामत्तगजपंचास्यरूपिणे।
नमोऽस्तु रघुनाथाय रामायापन्निवारिणे॥5॥
अर्थ:
जो दैत्यों के स्वामी, मदोन्मत्त गजराज (रावण) के पाँच मुखों के समान स्वरूप को नष्ट करने वाले हैं, उन रघुनाथ श्रीराम को नमन।
महिजाकुचसंलग्नकुंकुमारुणवक्षसे।
नमः कल्याणरूपाय रामायापन्निवारिणे॥6॥
अर्थ:
जिनका वक्षस्थल देवी लक्ष्मी के (महिजा – पृथ्वी पुत्री सीता) वक्ष से सटा हुआ है और जो कुंकुम के रंग से अरुणित है, उन कल्याण स्वरूप श्रीराम को प्रणाम।
हरत्यार्तिं च लोकानां यो वा मधुनिषूदनः।
नमोऽस्तु हरये तुभ्यं रामायापन्निवारिणे॥7॥
अर्थ:
जो समस्त लोकों के दुखों को हरने वाले हैं और जो मधु (असुर) का संहार करने वाले विष्णु ही हैं, उन श्रीहरि श्रीराम को नमन।
तापकारणसंसारगजसिंहस्वरूपिणे।
नमो वेदांतवेद्याय रामायापन्निवारिणे॥8॥
अर्थ:
जो इस संसाररूपी महा संकट से हमें मुक्त कराने के लिए सिंह स्वरूप में प्रकट होते हैं, जो वेदों और वेदांत से जानने योग्य हैं, उन श्रीराम को नमन।
रंगत्तरंगजलधिगर्वहृच्छरधारिणे।
नमः प्रतापरूपाय रामायापन्निवारिणे॥9॥
अर्थ:
जो समुद्र के गर्व को नष्ट करने के लिए उसके ऊपर से पुल का निर्माण करते हैं और जिनकी प्रतापरूपी महान शक्ति संपूर्ण विश्व में व्याप्त है, उन श्रीराम को प्रणाम।
दारोपहितचंद्रावतंसध्यातस्वमूर्तये।
नमः सत्यस्वरूपाय रामायापन्निवारिणे॥10॥
अर्थ:
जिन्होंने चंद्रमा के समान शीतल आभा धारण की हुई है, जिनका स्वरूप ध्यान करने योग्य है और जो सत्यस्वरूप हैं, उन श्रीराम को नमन।
फलश्रुति (पाठ के लाभ)
इमं स्तवं भगवतः पठेद्यः प्रीतमानसः।
प्रभाते वा प्रदोषे वा रामस्य परमात्मनः॥1॥
अर्थ:
जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ इस स्तोत्र का प्रातःकाल या संध्या के समय पाठ करता है, वह भगवान श्रीराम की कृपा प्राप्त करता है।
स तु तीर्त्वा भवांबोधिमापदस्सकलानपि।
रामसायुज्यमाप्नोति देवदेवप्रसादतः॥2॥
अर्थ:
वह व्यक्ति इस संसार रूपी महासागर को पार कर लेता है और समस्त संकटों से मुक्त होकर भगवान राम के परम धाम को प्राप्त करता है।
कारागृहादिबाधासु संप्राप्ते बहुसंकटे।
आपन्निवारकस्तोत्रं पठेद्यस्तु यथाविधिः॥3॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करता है, वह जेल जैसी कठिनाइयों से मुक्त हो जाता है और सभी संकटों से बच जाता है।
सप्ताहात्सर्वबाधाभ्यो मुच्यते नात्र संशयः॥4॥
अर्थ:
जो इस स्तोत्र का सात दिनों तक पाठ करता है, वह सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त हो जाता है – इसमें कोई संदेह नहीं है।
धनवान् धनदप्रख्यस्स भवेन्नात्र संशयः॥5॥
अर्थ:
जो इस स्तोत्र का विधिवत पाठ करता है, वह धन-धान्य से समृद्ध हो जाता है – इसमें भी कोई संदेह नहीं है।
बहुनात्र किमुक्तेन यं यं कामयते नरः।
तं तं काममवाप्नोति स्तोत्रेणानेन मानवः॥6॥
अर्थ:
इस स्तोत्र का पाठ करने वाला व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, उसे वह सब प्राप्त होता है।
यंत्रपूजाविधानेन जपहोमादितर्पणैः।
यस्तु कुर्वीत सहसा सर्वान्कामानवाप्नुयात्॥7॥
अर्थ:
जो व्यक्ति इस स्तोत्र को यंत्र-पूजा, जप, हवन, और तर्पण के साथ करता है, वह शीघ्र ही अपनी सभी इच्छाओं को प्राप्त कर लेता है।
इह लोके सुखी भूत्वा परे मुक्तो भविष्यति॥8॥
अर्थ:
इस लोक में वह व्यक्ति सुखी रहता है और अंततः मोक्ष को प्राप्त करता है।