इन्द्राक्षी स्तोत्र एक अत्यंत शक्तिशाली और दिव्य स्तोत्र है जो देवी इंद्राक्षी की स्तुति में रचा गया है। यह स्तोत्र विशेष रूप से दु:ख, रोग, भय, बाधाओं और संकटों से मुक्ति के लिए पढ़ा जाता है। इसे स्वयं देवराज इन्द्र ने भगवान शिव से प्राप्त कर जगत की भलाई के लिए प्रचारित किया था।
इंद्राक्षी स्तोत्र की उत्पत्ति की कथा (The story of the origin of Indrakshi Stotra)
पौराणिक कथा के अनुसार—
- एक बार जब इन्द्रदेव असुरों से भयभीत होकर देवताओं सहित भगवान शिव के पास गए, तब शिव ने उन्हें देवी इंद्राक्षी की मंत्रमयी स्तुति बताई।
- इस स्तुति के प्रभाव से इन्द्र ने युद्ध में विजय प्राप्त की और समस्त संकटों से मुक्त हुए।
- यही स्तुति “इंद्राक्षी स्तोत्र” के नाम से जानी गई।
इंद्राक्षी स्तोत्र का महत्व (Importance of Indrakshi Stotra)
- संकटों और रोगों से रक्षा:
इसे पढ़ने से व्यक्ति को भयानक रोगों, महामारी, अकाल मृत्यु, भय और दुर्भाग्य से मुक्ति मिलती है। - दुश्मनों पर विजय:
यह स्तोत्र शत्रु बाधा, दृष्टदोष, तंत्र-मंत्र बाधा से रक्षा करता है। - मन की शांति और अध्यात्मिक शक्ति:
पाठक को मानसिक बल, आत्मबल और देवी की कृपा मिलती है। - गृह, परिवार और संतान सुख:
इसे पढ़ने से घर में सुख-शांति और संतान से जुड़ी समस्याएँ दूर होती हैं।
इन्द्राक्षी स्तोत्र
इंद्राक्षी नाम सा देवी देवतैस्समुदाहृता ।
गौरी शाकंभरी देवी दुर्गानाम्नीति विश्रुता ॥
नित्यानंदी निराहारी निष्कलायै नमोऽस्तु ते ।
कात्यायनी महादेवी चंद्रघंटा महातपाः ॥
सावित्री सा च गायत्री ब्रह्माणी ब्रह्मवादिनी ।
नारायणी भद्रकाली रुद्राणी कृष्णपिंगला ॥
अग्निज्वाला रौद्रमुखी कालरात्री तपस्विनी ।
मेघस्वना सहस्राक्षी विकटांगी जडोदरी ॥
महोदरी मुक्तकेशी घोररूपा महाबला ।
अजिता भद्रदाऽनंता रोगहंत्री शिवप्रिया ॥
शिवदूती कराली च प्रत्यक्षपरमेश्वरी ।
इंद्राणी इंद्ररूपा च इंद्रशक्तिःपरायणी ॥
सदा सम्मोहिनी देवी सुंदरी भुवनेश्वरी ।
एकाक्षरी परा ब्राह्मी स्थूलसूक्ष्मप्रवर्धनी ॥
रक्षाकरी रक्तदंता रक्तमाल्यांबरा परा ।
महिषासुरसंहर्त्री चामुंडा सप्तमातृका ॥
वाराही नारसिंही च भीमा भैरववादिनी ।
श्रुतिस्स्मृतिर्धृतिर्मेधा विद्यालक्ष्मीस्सरस्वती ॥
अनंता विजयाऽपर्णा मानसोक्तापराजिता ।
भवानी पार्वती दुर्गा हैमवत्यंबिका शिवा ॥
शिवा भवानी रुद्राणी शंकरार्धशरीरिणी ।
ऐरावतगजारूढा वज्रहस्ता वरप्रदा ॥
धूर्जटी विकटी घोरी ह्यष्टांगी नरभोजिनी ।
भ्रामरी कांचि कामाक्षी क्वणन्माणिक्यनूपुरा ॥
ह्रींकारी रौद्रभेताली ह्रुंकार्यमृतपाणिनी ।
त्रिपाद्भस्मप्रहरणा त्रिशिरा रक्तलोचना ॥
नित्या सकलकल्याणी सर्वैश्वर्यप्रदायिनी ।
दाक्षायणी पद्महस्ता भारती सर्वमंगला ॥
कल्याणी जननी दुर्गा सर्वदुःखविनाशिनी ।
इंद्राक्षी सर्वभूतेशी सर्वरूपा मनोन्मनी ॥
महिषमस्तकनृत्यविनोदन-स्फुटरणन्मणिनूपुरपादुका ।
जननरक्षणमोक्षविधायिनी जयतु शुंभनिशुंभनिषूदिनी ॥
शिवा च शिवरूपा च शिवशक्तिपरायणी ।
मृत्युंजयी महामायी सर्वरोगनिवारिणी ॥
ऐंद्रीदेवी सदाकालं शांतिमाशुकरोतु मे ।
ईश्वरार्धांगनिलया इंदुबिंबनिभानना ॥
सर्वोरोगप्रशमनी सर्वमृत्युनिवारिणी ।
अपवर्गप्रदा रम्या आयुरारोग्यदायिनी ॥
इंद्रादिदेवसंस्तुत्या इहामुत्रफलप्रदा ।
इच्छाशक्तिस्वरूपा च इभवक्त्राद्विजन्मभूः ॥
भस्मायुधाय विद्महे रक्तनेत्राय धीमहि तन्नो ज्वरहरः प्रचोदयात् ॥